2 .अगर सरकार का काम बैंकों का नियमन करना है तो क्यों PMC जैसे बैंक डूब गए? 1994 में 10 बैंकों को लाइसेंस दिया था उनमें से 4 ही बचे हैं? बाकी कहाँ गए? Yes bank को बचाने के लिए SBI का पैसा क्यों लगवाया गया?
3 .सरकार कह रही है कि कर्मचारियों का ध्यान रखा जाएगा तो भरोसा करना चाहिए? सरकार ने ऐसा कौनसा काम किया है जिससे उसपर भरोसा किया जा सके? नोटबंदी से काला धन वापिस आ गया?
भरोसा तो दो करोड़ रोजगार का भी दिलाया था। NPS के टाइम कहा था कि भविष्य सुरक्षित है, तो आज क्यों सेवानिवृत कर्मचारी 500 रूपये पेंशन पा रहे हैं? भरोसा तो ये भी दिलाया था कि देश नहीं बिकने देंगे, तो क्यों आज सरकारी सम्पतियाँ बेच रहे हैं?
4 .क्यों सार्वजनिक कोष से बैंकों में धन डालने की जरूरत पड़ी? ऋण वसूली के लिए कड़े कानून क्यों नहीं बनाते? अगर सरकार को जनता के पैसे की इतनी ही चिंता है तो क्यों उर्जित पटेल ने ये कहते हुए इस्तीफा दिया की सरकार ने ऋण न चुकाने वालों के लिए RBI को नरम रहने को कहा था?
मुद्रा, स्वनिधि जैसी NPA बढ़ने वाली स्कीम्स के लिए जबरदस्ती दबाव क्यों बनाया जा रहा है?
5 .क्या आपको पता है की सरकारी बैंकों की इंटरनेट बैंकिंग प्राइवेट बैंकों से बेहतर है? प्रति कस्टमर शिकायत का अनुपात प्राइवेट बैंकों में सरकारी बैंकों कि तुलना में कहीं अधिक है।
6 .जहां तक कर्णचरियों की बात है PNB का एक कर्मचारी 1800 ग्राहकों को सर्विस देता है, SBI का एक कर्मचारी औसतन 2000 लोगों को सर्विस देता है, वहीँ HDFC का एक कर्मचारी केवल 400 लोगों को सर्विस देता है। इस हिसाब से ज्यादा सक्षम कौन हुआ?
7 . आपने लिखा कि आगे और बैंकों का विलय किया जा सकता है, अगर विलय किया जा सकता है तो निजीकरण क्यों किया जा रहा है? सरकार अपनी नीति स्पष्ट क्यों नहीं करती? कभी कहते हैं घाटे वाले संस्थान बेचे जाएंगे, कभी कहते हैं मुनाफे वाले संस्थान बेचे जाएंगे।
8 . कर्ज बांटना बैंक का काम है। क्यों बैंकों के इस काम में सरकार दखल दे रही है? UPA के समय में टेलीफोन से लोन दिलवाये जाते थे। मोदीजी के समय में बैंकों के बहार कूड़ा डलवा कर, FIR करवाकर लोन बंटवाए जा रहे हैं।
9 . NPA बढ़ने का काम खुद सरकार कर रही है। NPA केवल एक बहाना है, असली मकसद पूंजीपतियों को सरकारी संपत्ति आने पौने दामों पर बेचना है।
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आजकल ईमानदारी से काम करने का चलन नहीं है। पेशे के साथ ईमानदारी पुराने जमाने की बात हो चली है। हमारे तंत्र में हर व्यक्ति के लिया काम निर्धारित रहता है और उस काम के बदले तयशुदा मेहनताना भी दिया ही जाता है। लेकिन व्यक्ति उससे संतुष्ट नहीं होता।
किसी के पास कोई भी करवाने जाओ तो वो पहले आपने फायदा ढूंढता है। सरकारी ऑफिस में जाओ तो रिश्वत मांगते हैं। बैंक में जाओ तो जबरदस्ती बीमा पालिसी पकड़ा देते हैं। ये खेल पत्रकारिता में भी चल रहा है। दो दिन बैंकों की हड़ताल रही।
बैंकों के निजीकरण के मुद्दे को जब कुछ पत्रकारों के सामने रखा गया तो अलग अलग तरह के रुझान आये। एक सत्तापक्ष के पालतू पत्रकार ने "बैंकरों की भारी मांग" पर बैंकों के निजीकरण के मुद्दे को उठाने की कोशिश की मगर आदत से मजबूत होकर वे सरकार का ही पक्ष पेश करने लगे।
पिछले कुछ सालों से एक चीज बहुत स्पष्ट रूप से देखने में आ रही है और वो ये की सरकार के सलाहकार मंडल में केवल एक विशेष मानसिकता वाले लोगों की ही भर्ती हो रही है। शुरू से शुरू करते हैं :
V K Saraswat : नीति आयोग में वैज्ञानिक सलाहकार हैं। वैसे तो ये पद्म भूषन और पद्म श्री जैसे पुरस्कारों से नवाज़े गए हैं मगर साधारण विकिपीडिया सर्च इनके कच्चे चिट्ठे खोलने के लिए काफी है।
मुंबई एक ज़माने में सात द्वीपों का समूह हुआ करता था जो कि आधिकारिक रूप से सुल्तान बहादुर शाह के पास था। उधर हुमायूँ की बढ़ती शक्ति को देख कर सुल्तान ने पुर्तगालियों की मदद लेने की योजना बनाई।
सन 1534 में बसाइन की संधि के तहत सुल्तान ने मुंबई को पूरी तरह से पुर्तगालियों के हवाले कर दिया। बाद में अंग्रेजों ने मुंबई के आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक महत्व को समझा और एक वैवाहिक संधि के तहत पुर्तगालियों से मुंबई को दहेज़ में मांग लिया।
अंग्रेजी राजा ने मात्र दस पौंड प्रति वर्ष में मुंबई ईस्ट इंडिया कंपनी को लीज पर दे दी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई के सातों द्वीपों को मिला कर आधुनिक रूप दिया। आज मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है। बेवकूफ आदमी के लिए हीरे और कांच के टुकड़े में कोई फर्क नहीं होता।
पहले अलास्का रूस का भाग हुआ करता था। रूस के राजा अलेक्सेंडर द्वितीय को लगा कि अलास्का एक वीरान क्षेत्र है जहां बर्फ और बर्फीले जानवरों के अलावा कुछ नहीं मिलता। रूस के राजा को अलास्का की सुरक्षा भी महंगा काम लगता था।
अलास्का को बेकार की जमीन मान कर 1867 में रूस ने अलास्का मात्र 7.2 मिलियन डॉलर्स में अमेरिका को बेच दिया जो आज के हिसाब से 895 करोड़ रूपये बैठता है। जहां रूस ने अलास्का को बेकार मान कर अमेरिका को बेचा था वहीँ उसे खरीद कर अमेरिका की लॉटरी ही लग गयी।
1896 में अलास्का में भारी मात्रा में सोना मिला। बाद में अलास्का में पेट्रोलियम और गैस भी भरपूर मात्रा में मिले। विशेषज्ञों के अनुसार अलास्का की धरती में आज भी लगभग 15 लाख करोड़ रूपये का तेल और गैस मौजूद है। रूस आज भी अपनी इस गलती पर पछताता है।
उस समय तक देश में केवल एक ही चैनल आता था, दूरदर्शन। दूरदर्शन पर सबके लिए कुछ न कुछ आता था, किसानों से लेकर घरेलु महिलाओं और छात्रों से लेकर व्यवसाइयों लोगों तक। नीम का पेड़ और रामायण महाभारत जैसे सीरियल दूरदर्शन पर ही आये।
दिन में दो बार समाचार भी आते थे। वीकेंड पर फिल्म भी आती थी। अगर बाकी सरकारी चैनलों कि बात करें तो अच्छी अर्थपूर्ण चर्चा के लिए राज्यसभा टीवी ने अपना अलग स्थान बना लिया है (अब सरकार ने राज्यसभा टीवी को बंद करके केवल संसद टीवी शुरू किया है)। #StopSellingIndia
दूरदर्शन हर भाषा के लिए अलग क्षेत्रीय चैनल भी चलाता है। मगर कई लोगों का कहना था कि दूरदर्शन बहुत बोरिंग चैनल है। इस पर तड़क-भड़क नहीं है, ग्लैमर नहीं है। फिर आये निजी चैनल। सब के लिए स्पेशल चैनल। #StopSellingIndia
नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं ये बिना रीढ़ के नौकरशाह। नेता तो आएंगे और चले जाएंगे। नेताओं को तो जनता हर पांच साल बाद परख लेती है। नौकरशाहों की एक एग्जाम पास कर लेने के बाद कोई परख नहीं होती।
ये नौकरशाह ही हैं जो सरकारी फरमानों को पूरा करने के लिए बैंक बंद करवाते फिरते हैं, शाखा प्रबंधकों पर FIR करवाते फिरते हैं, बैंकों के बाहर शहरभर का कचरा डलवा कर अपने मानसिक दिवालियेपन का साक्षात् प्रदर्शन करते हैं।
योजना आयोग में भी तो नौकरशाह ही भरे थे, जो एक ढंग की योजना नहीं बना पाते थे (MGNREGA में योजना आयोग का हाथ नहीं था। अब योजना आयोग की जगह नीति आयोग आ गया है। यहां भी नौकरशाह ही भरे हैं।