Is there any connection between Sadguru Jaggi talking about freeing temples from Govt control and attack on him that followed?
I am not saying whatever Jaggi said is right. Aise aise kayi statements diye honge Jaggi Bhai ne. Meri curiosity ye thee ki abhee kyon ye sab bahar aa raha hai. Duniya mein kuch bhee bina matlab ke nahin hota.

Lol! Ye North Indians ko le aaye isme. Not many knew him in north until Modi went for his Aadi Yogi inauguration.

I think it's exactly the opposite. Some people think what's the use of free of temples if they don't control it.

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with हिरण्यरेता

हिरण्यरेता Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @Hiranyareta

10 Apr
"पराशरी होरा में ग्रहों को देवता कहा गया जो जीवों को कर्मफल देने के लिये अवतरित हुए। परन्तु दृक्पक्षवादियों के अनुसार आकाशीय मृतपिण्ड ही कर्मफल देते हैं और पूजन द्वारा शान्त होते हैं! ऐसे नक्षत्रसूचकों से बेहतर आधुनिक वैज्ञानिक हैं जो मुर्दा पिण्डों में दैवी शक्ति नहीं मानते।1/
मुर्दा पिण्डों में ज्योतिषीय प्रभाव मानना संसार की सबसे बड़ी मूर्खता है । देवता यदि हैं तो अदृश्य हैं । बाह्य चक्षु से जो दिखते हैं वे ऐन्द्रिक विषय हैं,देवता नहीं । ज्योतिष का प्रमाण फलादेश की जाँच है,न कि ऐन्द्रिक नक्षत्रसूचन । 2/
ऐन्द्रिक नक्षत्रसूचन चाण्डालकर्म है । मनुस्मृति में छ वेदाङ्गों की बड़ाई है परन्तु नक्षत्रसूचकों की चाण्डाल तथा पङ्क्तिदूषक कहकर निन्दा है । 3/
Read 25 tweets
10 Apr
"देखोजी, वह तो उपासक लोग भी 'यह' के रूपमें ब्रह्मको जानते हैं। 'यह' के रूपसे ब्रह्मको जानेगा तो उससे अलग रहेगा। द्वैतवादका यही सिद्धान्त है। 'इदं' रूपसे उन्होंने ब्रह्मको जाना तो 'अहं' का लय कभी 'इदं' में होना सम्भवं ही नहीं है।
1/
पहले-पहल जब उनका सिद्धान्त अपनी दष्टिमें आया तो हम तो चकित रह गये। बड़ा आश्चर्य हुआ! ओ-हो, इतने अनुभवी, इतने विद्वान् ! जब 'यह' के रूपमें उन्होंने परमात्माको स्वीकार किया, तो 'मैं'का लय किसी 'यह' में कभी हो ही नहीं सकता। यदि 'मैं' का लय होगा तो 'मैं' का साक्षी कौन रहेगा?
2/
तो इसलिए, यदि अन्यरूप परमात्मामें जीवका मिलना होता है तो भेद स्वीकार करना ही सिद्धान्त हो सकता है। परन्तु, यदि स्वरूप-भूत परमात्मामें अन्यका लय होता है, तो वहाँ द्वैत रहनेकी कोई आवश्यकता नहीं है।
3/
Read 16 tweets
9 Apr
What's Bhadralok? Watch this.

"कोलकाता का भद्रलोक बेसिकली क्या है? भद्रलोक एक तरह का आप समझ लीजिये साहित्य फाइन आर्ट्स इत्यादि में रुचि रखने वाला पढा लिखा मध्यम वर्गीय तबका।
1/3
भद्रलोक थियोरेटिकली इज नोट सेम ऐज कास्ट लेकिन यह भी फैक्ट है कि भद्रलोक में ज्यादातर लोग जो हैं वह, ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्या ये जो तीन कास्ट हैं बेंगाल कि, ज्यादातर इससे आये बिकाज ओफ हिस्टोरिकल रीजन्स."
2/3
It's basically the Bengali equivalent of "Gora Gaa**d Khujhau Class" (or Double Distilled Raibahaduri Class) which was born (as a local brown cooley) to serve the needs of the colonial state.
3/3
Read 12 tweets
8 Apr
You are talking as if @govardhanmath handle is operated by Shankaracharya Ji himself. The handle is operated most likely by some caste supremacist Tambraham. I was blocked when I used to take on Steppe Aryan gang of Tambrahams.
This what I got in DM before I was blocked. 🤣🤣 ImageImage
Read 4 tweets
8 Apr
एक बार नारदजी को हिमालय में घूमते हुये वहाँ की रमणीयता देख कर समाधि लग गयी। इन्द्र भगवान को लगा कि ये मेरा स्वर्ग छीनना चाहते हैं। गोस्वामी तुलसीदास को एक ब्रह्मदर्शी महात्मा के प्रति ऐसा सोचना (कि वह विषयों को चाहेगा) सहन नही हुआ और उन्होंने अपनी टिप्पणी दी।

1/
"जे कामी लोलुप जग माहीं। कुटिल काक इव सबहि डेराहीं॥"

भावार्थ:- जगत में जो कामी और लोभी होते हैं, वे कुटिल कौए की तरह सबसे डरते हैं॥
2/
"सूख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज।
छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज॥"

भावार्थ:-जैसे मूर्ख कुत्ता सिंह को देखकर सूखी हड्डी लेकर भागे और वह मूर्ख यह समझे कि कहीं उस हड्डी को सिंह छीन न ले, वैसे ही इन्द्र को (नारदजी मेरा राज्य छीन लेंगे, ऐसा सोचते) लाज नहीं आई॥
3/
Read 4 tweets
10 Mar
This review of a book on Hindu Astronomy (by a Gora) published in Nature magazine published in the year 1896.
cc @jayasartn @Koenraad_Elst
Two things to note:
1) Astronomical data in Hindu texts contradicts AIT and it makes the book reviewer uncomfortable.
1/
2) Hindus had a more accurate estimate of the rate of precession than Ptolemy but check any book on astronomy and its section on Precession, it simply ignores Hindu contribution (which IMO is original, Greeks borrowed from us) with proud mention of Hipparchus and Ptolemy.

2/
"He begins by a discussion of the ancient zodiac, and its general correspondence amongst the Indians, Chinese, Chaldæans, Arabians, and Egyptians;
3/
Read 11 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!