" “हिन्दू नववर्ष” कहना अनुचित है । “हिन्दू” शब्द अवैदिक है । सनातनी वा वैदिक नववर्ष कह सकते हैं । उससे भी बेहतर है केवल “नववर्ष” कहना, क्योंकि यह एकमात्र वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक एवं दिव्य एवं अनादि एवं शाश्वत नववर्ष है,
1/
अन्य सब तो चाण्डालवर्ष वा म्लेच्छवर्ष वा व्रात्यवर्ष आदि हैं जो आर्यों द्वारा समाज से बहिष्कृत संस्कारहीन लोगों ने आरम्भ किये — उन सबमें सर्वाधिक भ्रष्ट एवं अवैज्ञानिक है ईसाई कैलेण्डर ।
2/
केवल वैदिक नववर्ष के अनुसार धार्मिक अनुष्ठानों का फल मिलता है। वैदिक कालमान नौ प्रकार के होते हैं,जिनमें संक्रान्ति वाले वर्ष एवं मासों का फल देश पर घटित होता है,यद्यपि व्यक्तियों को भी उस काल के जप−तप का फल मिलता है,जबकि धार्मिक कर्मों का वर्ष चैत्र शुक्लादि से आरम्भ होता है।3/
बचपन से ही सनातनी पञ्चाङ्ग देखने की शिक्षा सबको दें ।"
I quoted Vinay Jha. But that's how Hindi was written until mid 20th century. Post 1947 Urduization of Hindi by NCERT has brought many changes removing many uses of "Bhasha" (That's what Hindi was called originally).
" जो लोग “हिन्दू” शब्द का प्रयोग कर रहे हैं उनका विरोध नहीं होना चाहिये क्योंकि आजकल “हिन्दू” शब्द ही प्रचलित है । परन्तु यह सहस्र वर्ष की दासता का परिणाम है । कोई भी समुदाय अपना नाम आक्रान्ताओं द्वारा दिये गये शब्द पर नहीं रखता । 1/
“हिन्दू” शब्द का प्राचीनतम प्रयोग आसुरी ग्रन्थ जेन्द अवेस्ता में है जिसमें सप्तसिन्धु को हप्तहिन्दू कहा गया । ऋग्वेद के अनुसार तीन सप्तसिन्धुओं का एक चक्र है,वेदव्यास जी ने कौशिकी से सरस्वती तक आर्यावर्त वाले सप्तसिन्धु को प्रधान माना ।
2/
किसी नदी नाम “सिन्धु” नहीं था । सुषोमा नदी को कलियुग में पश्चिम के लोगों ने सिन्धु कहना आरम्भ किया । सिन्धु पुल्लिङ्ग है और इसका अर्थ है समुद्र,अथवा समुद्र की तरह विशाल जलराशि ।
3/
तीनों सप्तसिन्धुओं वाले जलपूरित देश को विदेशियों ने हिन्दूस्थान कहा क्योंकि यहाँ के सभी सम्प्रदायों में एक विशेषता थी जो और कहीं नहीं बची,उस विशेषता का नाम है “धर्म” । “धर्म” शब्द का यूरोप वा अरब समुदायों की किसी भाषा में अनुवाद सम्भव नहीं ।
4/
“धर्म” के दस लक्षण हैं धैर्य,क्षमा,दम (मन पर अङ्कुश),अस्तेय (दूसरे की सम्पत्ति का हरण न करना),मन−शरीर−वचन का शौच,इन्द्रियनिग्रह,धी (सात्विक बुद्धि),शास्त्रीय विद्या,सत्य तथा अक्रोध ।
5/
किस देवता को माने या न माने यह सम्प्रदाय के अन्तर्गत है,धर्म में नहीं । अनीश्वरवादी में भी ये दस लक्षण हों तो वह धार्मिक है,परन्तु धर्म पर चलते रहने पर वह कालान्तर में अनीश्वरवादी नहीं रह सकेगा । प्राचीन काल में “धर्म” का जो अर्थ था वहीं आज “हिन्दू” का अर्थ” हो गया है ।
6/
भारतीय संविधान के अनुसार भारत में उत्पन्न सारे रिलीजनों को मिलाकर “हिन्दू” है । अतः “हिन्दू” कोई एक रिलीजन नहीं,अनेक रिलीजनों अर्थात् पन्थों का समूह है ।
7/
दासता से पहले ऐसे सारे पन्थ स्वयं को “धर्म” कहते थे,हिन्दू या सनातनी या वैदिक या बौद्ध या जैन तो दासता के युग में दिये गये नाम हैं ।
संसार में दो प्रकार के रिलीजन हैं — धार्मिक और अधार्मिक । हमारा देश भारत है और हम “धर्म” पर चलते हैं । “धर्म” पर चलने के अनेक पन्थ हैं ।
8/
“धर्म” पर नहीं चलने के भी अनेक पन्थ हैं,जैसे कि कलियुग से पहले राक्षस,दानव,आदि और कलियुग में अनेक म्लेच्छ सम्प्रदाय तथा कम्युनिज्म,फासिज्म,आदि ।
9/
“धर्म” पर दो प्रकार से चला जाता है — गृहस्थों का एकमात्र “धर्म” है वैदिक कर्मकाण्ड जिसके अन्तर्गत समस्त संस्कार तथा यज्ञ भी आते हैं,और संन्यासियों के “धर्म” में अनेक पन्थ हैं जिनमें बौद्ध और जैन भी आते हैं।कलियुग के प्रभाववश बाद में गृहस्थ भी स्वयं को बौद्ध और जैन कहने लगे ।
10/
बहुत से हिन्दू गृहस्थ भी संन्यास के नियमों का पालन न कर सके और गृहस्थ बनकर “संन्यासी नाम की जाति बना डाली । ऐसी जातियाँ चातुर्वर्ण्य समाज से बाह्य है,वैदिक वा सनातनी नहीं हैं,पर हिन्दू हैं । 11/
अतः “हिन्दू” का अर्थ वैदिक वा सनातनी से अधिक व्यापक है,कम्युनिष्ट भी हिन्दू हो सकते हैं परन्तु वैदिक वा सनातनी नहीं । अधार्मिक और नास्तिक भी हिन्दू कहलाते हैं । ऐसे पथभ्रष्ट लोगों को सनातनी बनाना है,ये लोग दासता के युगों में सनातन पथ से भटक गये हैं ।12/
कलियुग में बहुत से चातुर्वर्ण्य समाज से बहिष्कृत लोगों के वंशज आजकल स्वयं को हिन्दू मानते हैं । वे सनातनी नहीं हैं किन्तु हिन्दू हैं । चातुर्वर्ण्य समाज से बहिष्कृत लोगों के वंशज पुनः सनातनी बनने का सच्चा प्रयास कर रहे हैं,जैसे कि बंगाल का मतुआ समुदाय ।13/
चातुर्वर्ण्य समाज से बहिष्कृत लोगों के वंशजों में से कुछ तो वेद और ब्राह्मण को मिटाना भी चाहते हैं और वेदविरोधी हिन्दुत्व का निर्माण करना चाहते हैं जिसका कोई धर्मग्रन्थ नहीं । धर्मग्रन्थ−विहीन हिन्दुत्व एक छलावा है,हिन्दुओं को नास्तिक बनाने का हथकण्डा है ।14/
ऐसे लोग असुर हैं परन्तु हिन्दू संगठनों में ऊँचे पदों पर हैं । उनको पुनः सनातनी अर्थात् वेदों के समर्थक बनायें जिसका तरीका है पञ्चाङ्गों के अनुसार धार्मिक व्रत−पर्व आदि का पालन और सनातनी संस्कारों को अपनाना । 15/
चातुर्वर्ण्य समाज से बहिष्कृत लोगों के वंशजों में से जो लोग अपने गन्दे हतिहास को जानते हैं वे ही गिरोह बनाकर मेरे विरुद्ध अभियान चला रहे हैं । उनका लक्ष्य है शास्त्र की भ्रामक व्याख्याओं का प्रचार करके लोगों को भ्रमित करना और शास्त्रविरुद्ध नास्तिक हिन्दुत्व खड़ा करना । 16/
ऐसे ही बहिष्कृत लोगों ने पश्चिम में नये रिलीजनों का निर्माण किया,अब भारत में वही “खेला होवे” करेंगे जो चलने वाला नहीं। चलने वाला नहीं,क्योंकि जब−जब धर्म की ग्लानि होती है तब−तब भगवान (और उनके भक्तजन) अपना कमाल दिखाते हैं "।
17/17
AMAZING CLARITY!!
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
It took me almost 15 years to get an inkling of what's "अविद्या" in Vedanta. It was the result of listening following spoken by Swami Akhandananda Ji in the context of Aagam Parakaran of Mandukya Karika. Just in case someone interested.
1/
"अच्छा जी, यह अविद्या कहाँसे आयी? तो वेदान्ती लोग कहते हैं कि,
"अविद्यास्तीत्यविद्यायामेवासित्वा प्रकल्प्यते।
ब्रह्मदृष्ट्या त्वविद्येयं न कथञ्चन विद्यते॥" ~ (पंचदशी)
अविद्यामें बैठकर ही अविद्याकी कल्पना की जाती है।
2/
ब्रह्म-दृष्टिसे तो अविद्या न थी, न है, न होगी। ब्रह्म दृष्टिसे तो अविद्यमान ही है यह। परन्तु,अविद्यमान होनेपर भी मनुष्यको जो "अज्ञोऽहं" यह अनुभूति होती है, इस अनुभूतिके बलपर अविद्याकी कल्पना करनी पड़ती है।
3/
The same question applies to all the scientific theories of cosmology eg the Big Bang. They are nothing but imagination as by their own admission these theories deny the presence of any form of intelligence/consciousness at the start.
It's very simple. Between अहम् (Drashta) and इदम् (Drishya) there is never a state when अहम् is not present ie अहम् (Drashta) is experienced even when इदम् (Drishya) is not experienced ie during deep sleep.
"पराशरी होरा में ग्रहों को देवता कहा गया जो जीवों को कर्मफल देने के लिये अवतरित हुए। परन्तु दृक्पक्षवादियों के अनुसार आकाशीय मृतपिण्ड ही कर्मफल देते हैं और पूजन द्वारा शान्त होते हैं! ऐसे नक्षत्रसूचकों से बेहतर आधुनिक वैज्ञानिक हैं जो मुर्दा पिण्डों में दैवी शक्ति नहीं मानते।1/
मुर्दा पिण्डों में ज्योतिषीय प्रभाव मानना संसार की सबसे बड़ी मूर्खता है । देवता यदि हैं तो अदृश्य हैं । बाह्य चक्षु से जो दिखते हैं वे ऐन्द्रिक विषय हैं,देवता नहीं । ज्योतिष का प्रमाण फलादेश की जाँच है,न कि ऐन्द्रिक नक्षत्रसूचन । 2/
ऐन्द्रिक नक्षत्रसूचन चाण्डालकर्म है । मनुस्मृति में छ वेदाङ्गों की बड़ाई है परन्तु नक्षत्रसूचकों की चाण्डाल तथा पङ्क्तिदूषक कहकर निन्दा है । 3/
"देखोजी, वह तो उपासक लोग भी 'यह' के रूपमें ब्रह्मको जानते हैं। 'यह' के रूपसे ब्रह्मको जानेगा तो उससे अलग रहेगा। द्वैतवादका यही सिद्धान्त है। 'इदं' रूपसे उन्होंने ब्रह्मको जाना तो 'अहं' का लय कभी 'इदं' में होना सम्भवं ही नहीं है।
1/
पहले-पहल जब उनका सिद्धान्त अपनी दष्टिमें आया तो हम तो चकित रह गये। बड़ा आश्चर्य हुआ! ओ-हो, इतने अनुभवी, इतने विद्वान् ! जब 'यह' के रूपमें उन्होंने परमात्माको स्वीकार किया, तो 'मैं'का लय किसी 'यह' में कभी हो ही नहीं सकता। यदि 'मैं' का लय होगा तो 'मैं' का साक्षी कौन रहेगा?
2/
तो इसलिए, यदि अन्यरूप परमात्मामें जीवका मिलना होता है तो भेद स्वीकार करना ही सिद्धान्त हो सकता है। परन्तु, यदि स्वरूप-भूत परमात्मामें अन्यका लय होता है, तो वहाँ द्वैत रहनेकी कोई आवश्यकता नहीं है।
3/
"कोलकाता का भद्रलोक बेसिकली क्या है? भद्रलोक एक तरह का आप समझ लीजिये साहित्य फाइन आर्ट्स इत्यादि में रुचि रखने वाला पढा लिखा मध्यम वर्गीय तबका। 1/3
भद्रलोक थियोरेटिकली इज नोट सेम ऐज कास्ट लेकिन यह भी फैक्ट है कि भद्रलोक में ज्यादातर लोग जो हैं वह, ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्या ये जो तीन कास्ट हैं बेंगाल कि, ज्यादातर इससे आये बिकाज ओफ हिस्टोरिकल रीजन्स."
2/3
It's basically the Bengali equivalent of "Gora Gaa**d Khujhau Class" (or Double Distilled Raibahaduri Class) which was born (as a local brown cooley) to serve the needs of the colonial state.
3/3
You are talking as if @govardhanmath handle is operated by Shankaracharya Ji himself. The handle is operated most likely by some caste supremacist Tambraham. I was blocked when I used to take on Steppe Aryan gang of Tambrahams.