सब कितना बढ़िया चल रहा था ! हिन्दू मजारों पर चादर चढ़ाता था, कभी कभी गोवा के चर्च भी चला जाता था और मंदिरों के रखरखाव की बुराई करता था ! अपने देवी देवताओं पर बने जोक्स सुनता सुनाता था ! "कृष्ण भगवान को चड्डी चोर सुनकर,दांत फाड़ फाड़ कर, खूब हंसता भी था"।
बॉलीवुड की फिल्मो में अपने रीति रिवाजो,संस्कारों की धज्जीया उड़ते देख बुरा भी नही मानता था!अपने ईश के स्वरुप का मजाक बनते देख भी शांत ही रहता था। फिल्मो मे दिखाए जाने वाली अर्धनग्न हीरोइनो की तरह अब अपनी पत्नी,बेटी,बहन को भी ऐसे कपड़े पहनकर,अर्धनग्न देखने का भी आदि हो
गया था।
हिन्दू की होली पर भले ही ईमान के चक्कर मे शांतिप्रिय कौम रंग न लगवाए,लेकिन हिन्दू ,मीठी ईद पर शेवया बकरा ईद पर बकरा उधेड़ने खूब जाता था।
राम मंदिर की जगह हॉस्पिटल बनाने को भी सही मानता था। सब कितनी ख़ुशी ख़ुशी मिलजुल कर रह रहे थे।
फिर अचानक 1 दिन हिन्दू को "मोदीशा और योगीजी" के आने के बाद,आत्मसमान का ज्ञान हुआ!उसने बाकी धर्मों की तरह अपने देवी देवता के मजाक पर सवाल उठाया, सवाल तो सवाल.खूब बवाल भी मचाया।अपने मंदिरों में दान पुण्य और सेवा शुरू की।कोई 1 मारे तो सामने वाले के मुह पर 2 थप्पड़ से जवाब दो की
रणनीति अपना ली। उसके बाद तो बस फ़ैल गया जातिवाद,इनटॉलेरेंस और डर का माहौल।
क्यों भाई,अगर हिन्दू अपने धर्म का पालन करे तो इसमे आपका धर्म कैसे खतरे में आ जाता है?
हम तो वही कर रहे है,जो आप सब शुरु से करते आये है,"अपने धर्म का पालन"
आवाज़े उस समय भी उठती थी,लेकिन साध्वी प्रज्ञा
जैसी राष्ट्रवादियो को जीवन भर के लिए अपंग कर दिया जाता था।मुझे पता है,आज भी बहुत हिन्दूओ के मुह से डर के चक्कर मे आज भी आवाज़ नही निकलती,चलिए कोई बात नही,लेकिन जो आपकी आवाज बनकर खुलकर विधर्मियों से लड़ रहे है,अपनी आनेवाली पीढ़ी के लिए उनकी आवाज़ मे थोड़ा सुर तो मिला ही सकते हो
आइये वही करते है, जो वो बरसों से करते आये है, ओर हम भूल गए थे,
जी हां-
"अपने धर्म का पालन करते है"!
धर्मो रक्षति रक्षितः
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मैं पहले भी कह चुका हूँ और बार बार कहता हूँ कि सरकार में बैठे लोग खुद से बहुत कुछ करना चाहते हैं पर नही कर सकते है।वो चाहते है कि जनता मांग करे और तब वह यह काम करे।जनता ही नहीं चाहेगी तो सरकार क्या करेगी, क्यों करेगी,इसीलिए मैं कहता हूँ कि सरकार पर दबाव बनाइये, सरकार
भी चाहती है कि जनता जागे क्यों कि जनता हमेशा रहती है जबकि सरकार केवल 5 साल
सोचिये हेमन्त विस्वा सरमा जी ने क्या कहा और क्यों कहा
सरकार तैयार है करने को, क्या आप तैयार है दबाव बनाने को ?
" बख्तियार खिलज़ी तू ज्ञान के मंदिर नालंदा को जलाकर कामरूप (आसाम) की धरती पर आया है...अगर तू और तेरा 1 भी सिपाही ब्रह्मपुत्र को पार कर सका तो मां चंडी (कामातेश्वरी) की सौगंध
"मैं जीते-जी अग्नि समाधि ले लूंगा...राजा पृथुदेव"
27/3/1206 को आसाम की धरती पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जो मानव अस्मिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। 1 ऐसी लड़ाई जिसमें किसी फौज़ के फौज़ी लड़ने आए तो 12K और जिन्दा बचे सिर्फ 100,जिन लोगो ने युद्धों के इतिहास को पढे है वे जानते हैं कि जब कोई 2
फौज़ लड़ती है तो कोई 1 फौज़ या तो बीच में ही हार मान कर भाग जाती है या समर्पण करती है,लेकिन 12 K लड़े और बचे सिर्फ 100 वो भी घायल,ऐसी मिसाल दुनिया भर के इतिहास में संभवतः कोई नही।
आज भी गौहाटी के पास वो शिलालेख मौजूद है जिस पर इस लड़ाई के बारे में लिखा है।
दिपकजी,
टकल्या की गेम बजनेवाली है,इस बात का इल्म सबको हो चुका था
नथुरामजींने गोलीया दागी और वो वही खडे रहे।
घटना के उपर गौर किजीए
ऊस वक्त SM नही था,फिर भी महज 2 घंटे के भीतर महाराष्ट्र मे ब्राह्मण हत्या शूरू हो गयी
टकले,गंजे का PM भी किया नही गया जो कानुनन
जरुरी है।
इस तथाकथित दंगे पर कुछ प्रश्न उठते है
उन्हें देखते है
1)mkg की हत्या होती है,और अचानक पूरे महाराष्ट्र को पता लग जाता है कि उसके हत्यारे नथूरामजी गोडसे साब है, जो कि 1 चितपावन ब्राह्मण है ।
और ये 1948 की बात है।जब न घर घर TV होती थी,नाही रेडिओ, और नाही अखबार
फिर ये कौनसी सूचना प्रणाली थी जिसने हर जिले ,गांव और घर में ये सूचना इतनी जल्दी प्रसारित की थी ।
2)चितपावन ब्राह्मण सिर्फ महाराष्ट्र में ही नही बल्कि UP,MPऔर कर्नाटक में भी रहते थे।लेकिन दंगे सिर्फ महाराष्ट्र में ही हुए ।
तालिबान ने रॉयटर्स के फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को घुटनों के बल बिठाया तथा उसकी पीठ मे गोली मारकर हत्या कर दी।
दानिश सिद्दीकी जीवनभर हिंदुओं को फॅसिस्ट बताता रहा लेकिन हिंदुओं ने कभी उसे परेशान नहीं किया. जिस मोदी सरकार को वह फॅसिस्ट बताता रहा,उस मोदी सरकार ने उसे कभी
1 शब्द तक नहीं बोला बल्कि उसे समय समय पर अवॉर्ड जरूर मिलते रहे.लेकिन जब दानिश का सामना असली फॅसिस्टों से हुआ तो 2 दिन में ही मार दिए गए.
अब लिब्रान्डू कह रहे हैं कि दानिश की मरने वाली तस्वीर को वायरल मत करो.ये ठीक नही होता. रियली? क्या सच में ये ठीक नही होता?
तब फिर दानिश सिद्दीकी ने क्या किया था? कोरोना काल मे शमशान मे जलती चिताओं की फोटो वायरल कर रहा था,क्या वो ठीक था?जलती चिताओं की तस्वीरे डालकर दानिश अट्टहास कर रहा था.ड्रोन से शमशान मे जलती चिताओं की ऐसी तस्वीरें पब्लिश की जिन्हें विदेशी मीडिया ने खूब भुनाया तथा भारत की
मार्च,1995 में एक फिल्म रिलीज हुई थी 'Bombay'
राम जन्मभूमि आंदोलन की पृष्ठभूमि पर बनी ये फिल्म एक प्रेमकथा थी
कुछ भी 'Abnormal' नहीं था इस फिल्म में, अगर हम फिल्म की पटकथा, स्क़ीन-प्ले की बात करें तो
लेकिन फिल्म रिलीज होते ही बवाल मच गया पूरे देश मे,कारण क्या था?
फिल्म की हीरोइन 'मुस्लिम' थी मेंरा मतलब हिरोइन का किरदार निभाने वाली अदाकारा नहीं (वो तो मनीषा कोईराला थी)पर फिल्म में प्रेम करने वाली लडकी 'मुस्लिम'थी,और लडका 'हिन्दू'और यही सबसे बडा 'जुर्म' था, मुसलमानों की निगाहों में
दंगे भडक उठे, पूरे देश में फिल्म की स्क़ीनिंग रुकवा दी
नारे लगाती हुई शांतिदुत भीड नें कई छोटे शहरों में तो भीड सिनेमाघर के अंदर घुस गई और तोड़फोड़ की ,मामला अदालत पहुँचा, और 7 दिनों के लिए फिल्म पर रोक लगा दी गई
3 लोगों की 1 मुस्लिम कमेटी को फिल्म दिखाई गयी (उनमें से 1 'रजा एकेडमी', मुबंई का था ) तीनों नें मुंबई पोलिस की सुरक्षा
मुद्दा यह नहीं है कि कश्मीर में 12 सरकारी कर्मचारियो को नौकरी से निकाला गया।मुद्दा यह है कि इनमे से 2 कुख्यात जेहादी सलाहुद्दीन के बेटे थे मुद्दा यह है कि इनको नौकरी दी कैसे गयी?कश्मीर में जेहाद के लिए क्या-क्या समझौते किए गए?
देश मे सरकारी नौकरी से पहले एक पुलिस-वेरिफिकेशन नाम
की भी चीज होती है।उसका क्या खौफ होता है,यह किसी सरकारी नौकर से पूछिए।फिर भी वे नौकरी तक पहुँचे कैसे?
मुद्दा यह नही है कि लखनौ के काकोरी क्षेत्र मे ATS की कार्यवाही मे अलकायदा के 2 आतंकवादी गिरफ्तार हुये है,और उनके पास से पर्याप्त मात्रा में विस्फोटक आदि मिले है,
मुद्दा यह है कि उन दोनो आतंकवादियो के परिवार या रिश्तेदारो या पड़ोसियो या किसी भी परिचित ने इस विषय मे पुलिस को कभी कुछ नही बताया. यही 1 सबसे बड़ा कारण है कि धीरे धीरे सभी हिन्दुओ का विश्वास समाप्त होता जा रहा है शांतिदुत समाज पर से.