युधिष्ठिर को युवराज के रूप में क्यों नियुक्त किया गया था? / बलराम भीम के गुरु कैसे बने? / पांडवों ने यूनान (ग्रीस) तक अपने राज्य का विस्तार कैसे किया?
एक वर्ष बीतने के बाद, धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को युवराज के रूप में उनके निरंतर, दयालु, सरलता, सहयोग आदि के महान गुणों के लिए नियुक्त किया, क्योंकि वे हस्तिनापुर के लिए एक सक्षम प्रशासक साबित होंगे। जल्द ही युधिष्ठिर की महिमा पांडु से अधिक हो गई।
इस बीच भीम गदा के माध्यम से युद्ध की कला और युद्ध में रथ के उपयोग की कला सीखने के लिए बलराम के पास गए। भीम इस कला में बलराम के समान हो गए। वह वापस आए और अपने भाइयों के साथ रहने लगे। विभिन्न प्रकार के बाणों को तेजी से निशाना बनाकर अर्जुन अपनी मुट्ठी से धनुष को पकड़ने की कला में
निपुण हो गए। द्रोणाचार्य को विश्वास था कि धनुष और तीर के उपयोग में अर्जुन के बराबर कोई और नहीं है।
एक बार द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर के दरबार में यह बताया कि उन्होंने ऋषि अग्निवेश से धनुष और बाण का उपयोग करने की कला सीखी थी, जिन्होंने बदले में ऋषि अगस्त्य से यह सीखा था
और अब उन्होंने जो कुछ भी सीखा था वह अर्जुन को सिखाया था। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को ब्रह्मशिर नाम का अस्त्र यानी हथियार दिया था जिसे वास्तव में कोई भी नियंत्रित नहीं कर सकता था क्योंकि इसे विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया जाना था।
ऋषि अग्निवेश ने मनुष्य पर इस अस्त्र का प्रयोग न करने की चेतावनी दी थी। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को यह भी सलाह दी कि भविष्य में यदि द्रोणाचार्य स्वयं अर्जुन के विरोधियों के साथ खड़े हों तो अर्जुन को द्रोणाचार्य पर प्रहार करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
तभी से अर्जुन की महिमा दूर-दूर तक फैल गई।
नकुल ने भी द्रोणाचार्य से युद्ध की कला सीखी और उसके बाद देवता विज्ञान नितीशस्त्र नैतिकता सीखने के लिए बृहस्पति गए। सहदेव द्रोणाचार्य से युद्ध की कला सीखकर अजीबोगरीब तरीके से युद्ध लड़ने के लिए प्रसिद्ध हुए।
उन्हें अतीरथी के नाम से जाना जाता था। अर्जुन ने उस समय शासन करने वाले सौवीर के राजा को मार डाला। अर्जुन ने युनान ( यानी अब का ग्रीस) के राज्य सहित कई छोटे और बड़े राजाओं को मार डाला और कब्जा कर लिया। सभी पांडवों ने अपने राज्य का दूर-दूर तक विस्तार किया। @Anshulspiritual
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भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते है कि तुम्हे यह गीतारूप रहस्यमय उपदेश किसी भी कालमें न तो तपरहित मनुष्यसे कहना चाहिये , न भक्तिरहितसे और न बिना सुननेकी इच्छावालेसे कहना चाहिये तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है , उससे भी कभी नहीं कहना चाहिये ।
जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्रको मेरे भक्तोंमें कहेगा , वह मुझको ही प्राप्त होगा - इसमें कोई सन्देह नहीं है । मेरा उससे बढ़कर प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्योंमें कोई भी नहीं है तथा मेरा पृथ्वीभरमें उससे बढ़कर प्रिय दूसरा कोई भविष्यमें होगा भी नहीं ।
तथा जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनोंके संवादरूप गीताशास्त्रको पढ़ेगा , उसके द्वारा मैं ज्ञानयज्ञसे पूजित होऊँगा -ऐसा मेरा मत है जो पुरुष श्रद्धायुक्त और दोषदृष्टिसे रहित होकर इस गीताशास्त्रका श्रवण भी करेगा वह भी पापोंसे मुक्त होकर उत्तम कर्म करनेवालोंके श्रेष्ठ लोकोंको प्राप्त होगा।
द्रोणाचार्य ने कुरु कुमारो को राजा द्रुपद को हराने के लिए कहा क्योंकि अध्यापन के लिए गुरुदक्षिणा लेने का विचार किया और/ अर्जुन द्रुपद को कैदी के रूप में लाते है और द्रोणाचार्य पांचाल का आधा हिस्सा द्रुपद को वापस कर देते है।
संपूर्ण सैन्य प्रशिक्षण पूरा होने के बाद, द्रोणाचार्य ने धृतराष्ट्र के पुत्रों से गुरु दक्षिणा लेने का विचार किया।
तो वह धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को बुलाते है और उन्हें बताते है कि वह पांचाल के राजा द्रुपद को अपने गुरुदक्षिणा के रूप में चाहते है।
धृतराष्ट्र के पुत्र द्रोणाचार्य को खुश करने के लिए उनकी बात पर सहमत हो जाते है और हमला करते हैं। तो दुर्योधन युयुत्सु दुशासन विकर्ण और उनके मित्र आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं और पहले हमला करने के लिए दौड़ते हैं वे राजधानी शहर पहुंचते हैं और सभी विनाश के युद्ध में शामिल होते हैं
एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे । रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु- एक जिज्ञासा है मेरे मन में , अगर आज्ञा हो तो ? श्री कृष्ण ने कहा- अर्जुन , तुम मुझसे बिना किसी हिचक , कुछ भी पूछ सकते हो।
तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ? यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा।
श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया । इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो।
देवों के देव महादेव को पंचदेवों का प्रधान कहा गया है । ये अनादि परमेश्वर हैं और आगम - निगम आदि शास्त्रों के अधिष्ठाता हैं । शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं । इस आधार पर दैवीय शक्ति के जीव तत्व को चेतन करने वाले स्वयं भगवान शिव।
शक्ति के साथ इस समस्त जगत मंडल व ब्रह्मांड में अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते हैं।
मृत्युंजयाय रुद्राय , नीलकंठाय संभवै , अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नमो नमः मृत्युंजय महारुद्र त्राहिमाम , शरणागतम् , जन्म - मृत्यु जरा व्याधि , पीड़ितम कर्म बंधनः
अर्थात ... मृत्यु को जय करने वाले भगवान महाशंभू को हम नमन करते हैं जिन्होंने नीलकंठस्वरूप को धारण करके संसार के समस्त गरल ( विष ) को शमन किया है । साथ ही मृत्यु को जीतने वाले महाशिव हम आपको साधना के साथ नमन करते हुए जन्म - मृत्यु के बंधन से पीड़ित अवस्था से मुक्त होकर आपसे
ये आगरा मैं हॉस्पिटल है इसमे भगवान जी की मूर्ति को जमीन से कुछ इंच ऊपर लगाया गया है यानी पैरो के पास क्या अब भगवान का इस्तेमाल थूक रोकने के लिए किया जाएगा ये घटिया लोग पैसे कमाने के चक्कर मैं मानसिक रूप से बीमार हो चुके है इनका इलाज जरूरी है
अगर कोई भाई आगरा से है तो भाई इनका इलाज करवाओ या आगरा के किसी हिन्दू संगठन को सूचित करो।
हिन्दू संगठन इतना तो करी सकते है। फ़ोटो मैं इनके नंबर भी दिए है मेने अभी इनसे बात की लेकिन इन्होंने मेरा नम्बर ब्लॉक कर रखा है अगर आप सूचित नही कर सकते है तो फोन तो कर ही सकते है ।
हमारे होते आराध्य देवो का अपमान नहीं हो सकता इन लोगो को बता दीजिए कि सब वापंथी नही होते है। @KapilMishra_IND