हमारे कुछ मित्र बोल रहे हैं कि अफगानी पठान नहीं बल्कि फटान है..
तभी वे अपने घर की महिलाओं और बच्चों को तालिबान में ही छोड़कर भाग रहे..!
जबकि, ऐसी बात नहीं है..!
ये अफगानी आज के फटान नहीं हैं बल्कि सैकड़ों वर्षों से फट्टू ही हैं. #AfghanTaliban
आज से लगभग 1000 साल पहले ये पूरा इलाका हिंदुस्तान ही हुआ करता था और वे लोग हिन्दू.
लेकिन, कटेशरों के हमले से सबसे पहले डरकर पिस्लाम कबूल करने वाले वही लोग थे.
वे कितने बड़े फट्टू अर्थात फटान कैटेगरी के लोग हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि...
आज जो वहाँ आप सड़क, स्कूल, पार्क, एयरपोर्ट , बांध, संसद आदि देख रहे हैं वो हमने महज इन 10 सालों में उन्हें बना दिया है ताकि वे फट्टे भी कम से कम इंसानों की सी जिंदगी जी सकें.
इसी से आप कल्पना कर सकते हैं कि... आज से महज 20 साल पहले वहाँ क्या रहा होगा ???
ना तो वहाँ ढंग की सड़क थी, ना बिजली, ना अस्पताल , ना स्कूल और न ही कोई बुनियादी सुविधा.
कुछेक शहरी इलाके के अलावा अधिकांश लोग कबीले में रहते थे..
अफीम की खेती करते थे और चरस फूंक के पड़े रहते रहते थे.
एक दूसरे की औरत की लूटते थे और पिस्लाम मजबूत करते थे.
और, ये सब महज 20-25 साल पहले का हाल था.
तो, ये सहज कल्पना की जा सकती है कि आज से 1000 साल पहले वहाँ की स्थिति कैसी रही होगी ???
फिर भी, वे इतने बड़े फट्टू निकले कि सालों ने आक्रमणकारी के डर से ही खतना करवा लिया और खुद के खतना धारी होने पर गर्व महसूस करने लगे.
जहाँ तक बात रह गई कि गजनवी ने 2-2 दीनार में हिन्दू महिलाओं को बेचा था तो कृपया इसकी तथ्यात्मक जांच कर लें
गजनी से दिल्ली की दूरी लगभग 1000 किलोमीटर है.
और, उस समय ना तो सड़क थी ,ना ही ट्रेन या हवाई जहाज...
तो, वे लोग हजारों महिलाओं को 1000 किलोमीटर तक कैसे ले गए थे ??
रास्ते में उतने लोगों के खाने पीने और रहने का इंतजाम कैसे हुआ होगा ???
और, बिना खाये पिये और आराम किये कोई आज की तारीख में भी 1000 किलोमीटर पैदल चल सकता है क्या ???
इसीलिए, मेरे ख्याल से अगर ऐसा कुछ हुआ भी होगा तो वो सीमांत इलाके के लोगों के साथ हुआ होगा...
जो कि, आज बलूचिस्तान, पिग्गिस्तान आदि है.
चूंकि, उस समय वो सब इलाका हिंदुस्तान ही कहा जाता था इसीलिए उन्होंने इसे हिंदुस्तान ही लिख दिया.
और, जहाँ तक उसके भारत से रिश्ते की बात है तो... अफगानिस्तान 1834 तक भारत का ही हिस्सा था...
फिर,1834 मे प्रकिया के तहत 26 मई1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत)के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात राजनीतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया
इससे,अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से अलग हो गए
और, 18 अगस्त 1919 को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली.
तो, यह एक स्थापित सत्य है कि जब अफगानिस्तान 1834 ईसवी तक हिंदुस्तान ही था तो उसने फिर किस हिंदुस्तान की महिलाओं को बेचा था ???
और... लंगड़ा तैमूर, गजनवी, गोरी, लोदी-फोदी किस अफगानिस्तान से आये थे ???
क्योंकि, उस समय तो अफगानिस्तान का कोई अस्तित्व ही नहीं था और न ही इसका नाम अफगानिस्तान था बल्कि सारा का सारा प्रदेश हिंदुस्तान ही था.
और, सबसे बड़ा सवाल जो शुरू में किया था कि... अगर पठान पीठ दिखा कर नहीं भागते हैं और अजेय होते हैं तो...
फिर, कटेशरों के कुछ ही हमले में वे हार कैसे गए और सबसे कलमा कैसे पढ़ लिया ???
असलियत यही है कि... वे फट्टू थे और आज भी फट्टू ही हैं.
क्योंकि, उनकी तुलना अगर हमलोग खुद से करें तो आज 1000 साल के लंबे हमले के बाद भी हममें से अधिकांश आबादी हिन्दुओं की ही है.
अगर... भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को भी मिला दें....
फिर भी... (भारत के) 20 +(पिग्गिस्तान के) 20 + (अफगानिस्तान के) 5 + (बांग्लादेश के) 17 = 65 करोड़ ही बैठते हैं.
जबकि... अकेले हम हिन्दुओं की ही आबादी 100 करोड़ से ज्यादा है.
तो..
तो
तलवार के डर से सलवार उतार कर कटेशर बन जाने वाली कौम ज्यादा बहादुर हुई या तलवार से तलवार टकरा कर कटेशरों को औकात दिखाने वाले हम हिन्दू ज्यादा बहादुर हुए ??
मतलब बिल्कुल साफ है कि.
फ़िल्म जंजीर में फटान बने प्राण ने जो डायलॉग कहा था कि "पठान मर जायेगा, मगर पीठ दिखाकर नही भागेगा" वो पूर्णतया गलत था और वो डायलॉग अपने मजहबी भाइयों को ग्लोरीफाई करने के लिए बुलवाया गया था.
क्योंकि, उस जंजीर फ़िल्म के डायलॉग लेखक सलीम जावेद थे जिसमें से सलीम खान पठान है ..
अफगानिस्तान से आया था.
जबकि,आज पूरी दुनिया देख रही है ये पठान पीठ दिखाकर भागना तो छोड़िए अपनी महिलाओं और बच्चों को छोड़कर भागरहे हैं
जो यह साबित करने के लिए काफी है कि ये सब साले कुछ नहीं है
और,हमारे इतिहास की किताबों और फिल्मों के माध्यम से सबके बारे में सिर्फ हवा बना दी गई थी
जबकि, हकीकत में ये बिल्कुल फट्टू-फटान कौम है.
इसीलिए, इन लफंगों से डरने अथवा भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है.
क्योंकि, जो फट्टू साले मुगलों और तुर्कों से नहीं लड़ पाए वे मुगलों और तुर्कों को धूल चटाने वाले हम हिन्दुओं से भला क्या लड़ पाएँगे.
जय महाकाल...!!!
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● चाँदी के 84 हजार सिक्के गलाकर बनाए गए थे दो कलश इस विश्व विख्यात कलश का निर्माण आमेर जयपुर के कुशवाहा ( कछवाहा ) राजवंश के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने सन 1894 ई० में करवाया था !
● राजस्थान एक ऐसा राज्य है जो आज भी अंदर पुरानी परंम्परारों सभ्यताओं और संस्कृति को सहेजे हुए है राजस्थान में हर साल देश दूनिया के कोने कोने से लाखों शैलानी आते हैं ! और यहाँ का लुत्फ उठाते हैं ! राजस्थान आने वाले पर्यटक जयपुर आने के बाद सीटी पैलेस का रूख अवश्य करते हैं !
● सीटी पैलेस गये बीना जैपूर की यात्रा पूरी नहीं होती ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ मौजूद है दूनिया का सबसे बड़ा चाँदी का कलश इस वृहद गंगाजली को देखने के लिए यहां दूर दूर से शैलानी आते हैं इस कलश की उचाई 5.फीट 3 इंच है और गोलाई 14.फीट 10 इंच !
भारतीय रेलवे में टॉयलेट्स २०वी सदी के प्रारम्भ में शुरू हुए , लेकिन अंग्रेजो ने डिब्बे के फ्लोर में ५" छेद कर बनाया था , इससे दिक्कत यह थी की पटरी से लगे ,स्टेशन ,नदिया ,खेत यह सब भी गंदे होते थे , और सबसे बड़ी दिक्कत गैंगमैन को आती थी जो पटरिया फिटिंग करते थे ,
आझादी के 70 साल बाद भी सं 2014 तक किसी भी सरकर ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया , आज रेलवे में टॉयलेट्स लगने के 100 साल बाद 2014 के बाद पहली बार भारतीय रेल में बायो टॉयलेट्स जो सीया - चीन बॉर्डर पर हमारी सेनाए वापर लेती है क्योंकि बर्फ की वजह से मानव विस्टा जमींन में घुलता नहीं ,
5 साल के अंतराल बाद आज करीब-करीब 80% रेलवे के डिब्बे बायो टॉयलेट्स से सज्ज है और स्टेशन , पटरी नदी खेत गंदे होने से बच रहे है
अब बताना जरुरी नहीं की 2014 बाद किसकी सरकार ने यह सब महेनत कर देश में फ़ैल रही गंदगी रोकने में सफल रहे है ,
UNTOLD HISTORY OF CHENGIZ KHAN!
प्रश्न है कि इस्लामी और ईसाई इतिहासकारों ने #चंगेज_खान को बदनाम क्यों किया?
यह जानकर बहुत से लोगों का दिमाग चकरा गया होगा क्योंकि हमारे देश में ज्यादातर लोग चंगेज खान को मुसलमान ही समझते हैं।जबकि स्तय यह नही है जी हाँ चंगेज़ खान मुस्लमान नही था
आमतौर पे लोग ये मानते है कि चंगेज़ खान है इसका मतलब वो पक्का मुसलमान ही है लेकिन ऐसा है नहीं
चंगेज खान मुसलमान नहीं था वो हिंदू धर्म की तरह ही एक प्रकृति पूजक धर्म का अनुयायी था जिसे #तेंगरिज्म कहा जाता है
तेंगरिज्म में आकाश के देवता तेंगरी को ही पूजनीय माना जाता है
इस्लाम मूर्तिपूजा का विरोध करता है जबकि तेंगरिज्म में मूर्तिपूजा होती है इसलिए इस्लाम और तेंगरिज्म के बीच एक ऐतिहासिक दुश्मनी और घृणा रही है
फिर लोगों के मन में ये सवाल भी उठेगा कि आज सारे खान मुसलमान क्यों होते हैं ये इतिहास में सामूहिक धर्मपरिवर्तन की एक अलग कहानी है
यह बात इतिहास में कही नही मिलेगी
प्राथमिक शिक्षा में जब बच्चे को देवनागरी वर्णमाला का अध्ययन कराया जाता है तो ठ अक्षर से ठठेरा शब्द का उच्चारण बच्चा करता है .. मैकाले की शिक्षा में हम केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित रहे गौरवशाली ऐतिहासिक ठठेरा समाज के विषय में नहीं जान पाए ....
ठठेरा समाज पर समाजशास्त्रीय अध्ययन बहुत कम हुआ... जिसकी राजस्थान मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल में एक 30 लाख से अधिक आबादी है यह समाज पीतल तांबे कांसा के उत्कृष्ट बर्तन बनाने में माहिर है अधिकतर बर्तन का कारोबार करते हैं।
बॉलीवुड की सर्वाधिक कमाई करने वाली बाहुबली फिल्म तो आपने देखी होगी फिल्म मैं महिष्मति साम्राज्य का उल्लेख किया गया है
महिष्मति कोई काल्पनिक नगरी नहीं थी यह महाभारत कालीन अवंती महाजनपद की समृद्धशाली शक्तिशाली राजधानी थी
जो मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी के किनारे बसी हुई थी...
असम के बहादुर राजा पृथु: जिन्होंने बख्तियार खिलजी को युद्ध में धूल चटाई थी
क्या आप जानते हैं कि विश्वप्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय को जलाने वाले आतंकी बख्तियार खिलजी की मौत कैसे हुई थी??
असल में ये कहानी है सन 1206 ईसवी की.!
1206 ईसवी में कामरूप में एक जोशीली आवाज गूंजती है
"बख्तियार खिलज़ी तू ज्ञान के मंदिर नालंदा को जलाकर कामरूप (असम) की धरती पर आया है... अगर तू और तेरा एक भी सिपाही ब्रह्मपुत्र को पार कर सका तो मां चंडी (कामातेश्वरी) की सौगंध मैं जीते-जी अग्नि समाधि ले लूंगा"... राजा पृथु
और , उसके बाद
27 मार्च 1206 को असम की धरती पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जो मानव अस्मिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है.
एक ऐसी लड़ाई जिसमें किसी फौज़ के फौज़ी लड़ने आए तो 12 हज़ार हों और जिन्दा बचे सिर्फ 100....
भारतीय इतिहास का इकलौता युद्ध जो लड़ा है #नागा_साधुओं ने!🙏🚩
जब #अब्दाली#दिल्ली और #मथुरा में मारकाट करता गोकुल तक आ गया और लोगों को बर्बरतापूर्वक काटता जा रहा था। महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे और बच्चे देश के बाहर बेचे जा रहे थे,
तब गोकुल में अहमदशाह अब्दाली का सामना #नागासाधुओं से हो गया।
कुछ 4 हजार चिमटाधारी साधु तत्काल सेना में तब्दील होकर लाखों की हबसी, जाहिल जेHदी सेना से भिड गए।
पहले तो अब्दाली साधुओं को मजाक में ले रहा था किन्तु
कुछ देर में ही अपने सैनिकों के चिथड़े उड़ते देख अब्दाली को एहसास हो गया कि ये साधू तो अपनी धरती की अस्मिता के लिए साक्षात महाकाल बन रण में उतर गए
तोप तलवारों के सम्मुख चिमटा त्रिशूल लेकर पहाड़ बनकर खड़े 2000 नागा साधू इस भीषण संग्राम में वीरगति को प्राप्त हो गए