#गांधार (आज का अफगानिस्तान
महाभारत में #गांधारी का नाम तो सुना ही होगा
लेकिन क्या आपको पता है कि उनका नाम गांधारी इसलिए था क्योकि वह गांधार देश की राजकुमारी थीं
आपको शायद पता नाहो लेकिन #शकुनी इसी जनपद का राजा था
महाभारत के अनुसार भारत को मुख्यत:16 जनपदों में स्थापित किया गया था
इन्हीं जनपदों में से एक गांधार था
महाभारत में हमको गांधार नरेश और गांधारी की चर्चा मिलती है गांधार कभी भारत का सबसे खुशहाल राज्य, जनपद था
बड़े आयुर्वेद अस्पतालों के लिए यह जाना जाता था
आज का पाकिस्तान के पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र उस काल में भारत का गंधारप्रदेश था
भारत में घुसने के लिए यह एक दरवाजा था. गांधार देश से ही अधिकतर व्यापारी भारत में घुसते थे। #तक्षशिला जो महाभारत काल में गांधार प्रदेश की राजधानी थी। गांधार ही आज कंधार के नाम से जाना जाता है जो अफगानिस्तान में मौजूद है
हम कहाँ तक थे और आज केवल वर्तमान भारत तक सिकुड़ गए....
हिन्दु_देश_गॉधार_बना_अफगानिस्तान
अफगानिस्तान 7 वीं सदी तक अखंड भारत का एक हिस्सा था,पहले एक हिन्दू राष्ट्र था, बाद में यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह एक इस्लामिक राष्ट्र है
26 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मो.शाह अकबर ने ईरान के नादिर शाह से संधि कर उपगण अफगानिस्तान उसे सौंप दिया था
सन् 843 ईस्वी में कल्लार नामक राजा ने हिन्दूशाही की स्थापना की। तत्कालीन सिक्कों से पता चलता है कि कल्लार के पहले भी रुतविल या रणथल, स्पालपति और लगतुरमान नामक हिन्दू या बौद्घ राजाओं का गांधार प्रदेश में राज था। ये स्वयं को कनिष्क का वंशज भी मानते थे।
हिन्दू राजाओं को #काबुलशाह या ‘महाराज धर्मपति' कहा जाता था इन राजाओं में कल्लार, सामंतदेव,भीम,अष्टपाल,जयपाल,आनंदपाल, त्रिलोचनपाल,भीमपाल आदि उल्लेखनीय है
ये राजाओं ने लगभग 350साल तक अरब आततायियों और लुटेरों को जबर्दस्त टक्कर दी और उन्हें सिंधुनदी पार करके भारत में नहीं घुसने दिया
लेकिन 1019में महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार के साथ अफगानिस्तान का इतिहास पलटी खागया
प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में पख्तून लोगों और अफगान नदियों का उल्लेख है सुदास-संवरण के बीच हुए दाशराज्ञ युद्घ में ‘पख्तूनों' का उल्लेख पुरू ययाति के कुल के कबीले के सहयोगियों के रूप में हुआ है
जिन नदियों को आजकल हम आमू, काबुल, कुर्रम,रंगा,गोमल, हरिरुद आदि नामों से जानते हैं,उन्हें प्राचीन भारतीय लोग क्रमश: वक्षु, कुभा,कुरम, रसा, गोमती, हर्यू या सर्यू के नाम से जानते थे
जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल,कंधार, बल्ख,वाखान,बगराम,पामीर,बदख्शां, पेशावर, स्वात,चारसद्दा आदि हैं
उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था।
महाभारत में गांधारी के देश के अनेक संदर्भ मिलते हैं ..
पुले-खुमरी से 16 किमी उत्तर में सुर्ख कोतल नामक जगह में कनिष्क-काल के भव्य खंडहर अब भी देखे जा सकते हैं। इन्हें आजकल ‘कुहना मस्जिद' के नाम से जाना जाता है। पेशावर और लाहौर के संग्रहालयों में इस काल की विलक्षण कलाकृतियां अब भी सुरक्षित हैं
अफगानिस्तान के बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों और मंदिरों के अवशेष मिलते हैं काबुल के आसामाई मंदिर को 2,000 साल पुराना बताया जाता है आसामाई पहाड़ पर खड़ी पत्थर की दीवार को ‘हिन्दूशाहों' द्वारा निर्मित
परकोटे के रूप में देखा जाता है।
काबुल का संग्रहालय बौद्घ अवशेषों का खजाना रहा है। अफगान अतीत की इस धरोहर को पहले इस्लामिक मुजाहिदीन और अब तालिबान ने लगभग नष्ट कर दिया है। बामियान की सबसे ऊंची और विश्वप्रसिद्घ बुद्घ प्रतिमाओं को भी उन्होंने लगभग नष्ट कर दिया,
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● चाँदी के 84 हजार सिक्के गलाकर बनाए गए थे दो कलश इस विश्व विख्यात कलश का निर्माण आमेर जयपुर के कुशवाहा ( कछवाहा ) राजवंश के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने सन 1894 ई० में करवाया था !
● राजस्थान एक ऐसा राज्य है जो आज भी अंदर पुरानी परंम्परारों सभ्यताओं और संस्कृति को सहेजे हुए है राजस्थान में हर साल देश दूनिया के कोने कोने से लाखों शैलानी आते हैं ! और यहाँ का लुत्फ उठाते हैं ! राजस्थान आने वाले पर्यटक जयपुर आने के बाद सीटी पैलेस का रूख अवश्य करते हैं !
● सीटी पैलेस गये बीना जैपूर की यात्रा पूरी नहीं होती ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ मौजूद है दूनिया का सबसे बड़ा चाँदी का कलश इस वृहद गंगाजली को देखने के लिए यहां दूर दूर से शैलानी आते हैं इस कलश की उचाई 5.फीट 3 इंच है और गोलाई 14.फीट 10 इंच !
भारतीय रेलवे में टॉयलेट्स २०वी सदी के प्रारम्भ में शुरू हुए , लेकिन अंग्रेजो ने डिब्बे के फ्लोर में ५" छेद कर बनाया था , इससे दिक्कत यह थी की पटरी से लगे ,स्टेशन ,नदिया ,खेत यह सब भी गंदे होते थे , और सबसे बड़ी दिक्कत गैंगमैन को आती थी जो पटरिया फिटिंग करते थे ,
आझादी के 70 साल बाद भी सं 2014 तक किसी भी सरकर ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया , आज रेलवे में टॉयलेट्स लगने के 100 साल बाद 2014 के बाद पहली बार भारतीय रेल में बायो टॉयलेट्स जो सीया - चीन बॉर्डर पर हमारी सेनाए वापर लेती है क्योंकि बर्फ की वजह से मानव विस्टा जमींन में घुलता नहीं ,
5 साल के अंतराल बाद आज करीब-करीब 80% रेलवे के डिब्बे बायो टॉयलेट्स से सज्ज है और स्टेशन , पटरी नदी खेत गंदे होने से बच रहे है
अब बताना जरुरी नहीं की 2014 बाद किसकी सरकार ने यह सब महेनत कर देश में फ़ैल रही गंदगी रोकने में सफल रहे है ,
UNTOLD HISTORY OF CHENGIZ KHAN!
प्रश्न है कि इस्लामी और ईसाई इतिहासकारों ने #चंगेज_खान को बदनाम क्यों किया?
यह जानकर बहुत से लोगों का दिमाग चकरा गया होगा क्योंकि हमारे देश में ज्यादातर लोग चंगेज खान को मुसलमान ही समझते हैं।जबकि स्तय यह नही है जी हाँ चंगेज़ खान मुस्लमान नही था
आमतौर पे लोग ये मानते है कि चंगेज़ खान है इसका मतलब वो पक्का मुसलमान ही है लेकिन ऐसा है नहीं
चंगेज खान मुसलमान नहीं था वो हिंदू धर्म की तरह ही एक प्रकृति पूजक धर्म का अनुयायी था जिसे #तेंगरिज्म कहा जाता है
तेंगरिज्म में आकाश के देवता तेंगरी को ही पूजनीय माना जाता है
इस्लाम मूर्तिपूजा का विरोध करता है जबकि तेंगरिज्म में मूर्तिपूजा होती है इसलिए इस्लाम और तेंगरिज्म के बीच एक ऐतिहासिक दुश्मनी और घृणा रही है
फिर लोगों के मन में ये सवाल भी उठेगा कि आज सारे खान मुसलमान क्यों होते हैं ये इतिहास में सामूहिक धर्मपरिवर्तन की एक अलग कहानी है
यह बात इतिहास में कही नही मिलेगी
प्राथमिक शिक्षा में जब बच्चे को देवनागरी वर्णमाला का अध्ययन कराया जाता है तो ठ अक्षर से ठठेरा शब्द का उच्चारण बच्चा करता है .. मैकाले की शिक्षा में हम केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित रहे गौरवशाली ऐतिहासिक ठठेरा समाज के विषय में नहीं जान पाए ....
ठठेरा समाज पर समाजशास्त्रीय अध्ययन बहुत कम हुआ... जिसकी राजस्थान मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल में एक 30 लाख से अधिक आबादी है यह समाज पीतल तांबे कांसा के उत्कृष्ट बर्तन बनाने में माहिर है अधिकतर बर्तन का कारोबार करते हैं।
बॉलीवुड की सर्वाधिक कमाई करने वाली बाहुबली फिल्म तो आपने देखी होगी फिल्म मैं महिष्मति साम्राज्य का उल्लेख किया गया है
महिष्मति कोई काल्पनिक नगरी नहीं थी यह महाभारत कालीन अवंती महाजनपद की समृद्धशाली शक्तिशाली राजधानी थी
जो मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी के किनारे बसी हुई थी...
असम के बहादुर राजा पृथु: जिन्होंने बख्तियार खिलजी को युद्ध में धूल चटाई थी
क्या आप जानते हैं कि विश्वप्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय को जलाने वाले आतंकी बख्तियार खिलजी की मौत कैसे हुई थी??
असल में ये कहानी है सन 1206 ईसवी की.!
1206 ईसवी में कामरूप में एक जोशीली आवाज गूंजती है
"बख्तियार खिलज़ी तू ज्ञान के मंदिर नालंदा को जलाकर कामरूप (असम) की धरती पर आया है... अगर तू और तेरा एक भी सिपाही ब्रह्मपुत्र को पार कर सका तो मां चंडी (कामातेश्वरी) की सौगंध मैं जीते-जी अग्नि समाधि ले लूंगा"... राजा पृथु
और , उसके बाद
27 मार्च 1206 को असम की धरती पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जो मानव अस्मिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है.
एक ऐसी लड़ाई जिसमें किसी फौज़ के फौज़ी लड़ने आए तो 12 हज़ार हों और जिन्दा बचे सिर्फ 100....
भारतीय इतिहास का इकलौता युद्ध जो लड़ा है #नागा_साधुओं ने!🙏🚩
जब #अब्दाली#दिल्ली और #मथुरा में मारकाट करता गोकुल तक आ गया और लोगों को बर्बरतापूर्वक काटता जा रहा था। महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे और बच्चे देश के बाहर बेचे जा रहे थे,
तब गोकुल में अहमदशाह अब्दाली का सामना #नागासाधुओं से हो गया।
कुछ 4 हजार चिमटाधारी साधु तत्काल सेना में तब्दील होकर लाखों की हबसी, जाहिल जेHदी सेना से भिड गए।
पहले तो अब्दाली साधुओं को मजाक में ले रहा था किन्तु
कुछ देर में ही अपने सैनिकों के चिथड़े उड़ते देख अब्दाली को एहसास हो गया कि ये साधू तो अपनी धरती की अस्मिता के लिए साक्षात महाकाल बन रण में उतर गए
तोप तलवारों के सम्मुख चिमटा त्रिशूल लेकर पहाड़ बनकर खड़े 2000 नागा साधू इस भीषण संग्राम में वीरगति को प्राप्त हो गए