वैसे ताइजी तो कुछ और बोल रही थी। ऑयल बॉन्ड वाला झूठ पकड़ा गया तो आ गए वही पुराना राग अलापने पर। कुणाल कामरा मुझे पसंद नहीं लेकिन ये लोग हर बार उसकी बात को सच साबित कर देते हैं। "वहां सियाचिन में सैनिक मर रहे हैं तुम इतना भी नहीं कर सकते?"
"वहां LOC पर सैनिक खड़े हैं, तुम भूखे नहीं रह सकते?" " वहां सैनिक...तुम...नहीं कर सकते"? कब तक चलाओगे ये एक ही गाना? 2014 से पहले सैनिक नहीं थे? कपड़े नहीं पहनते थे? बंदूक की जगह लाठी लेकर घूमते थे? 2014 से पहले वायुसेना हैरी पॉटर की झाड़ू लेकर उड़ती थी?
नौसेना के पास तो पनडुब्बियां तो अभी भी पूरी नहीं हैं। तीन एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है नौसेना को। जरा बताइए तो हमारी मौजूदा सरकार ने कितने नए एयरक्राफ्ट कैरियर का ऑर्डर दिया? (विक्रांत का नाम मत लेना क्योंकि इसका ऑर्डर बहुत पहले हुआ था, अभी केवल कमिशन हुआ है)
चलो एयरफोर्स की बात कर लेते हैं। 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है air force को। अभी 30 भी पूरे नहीं पड़ रहे। सेना ने 200 एयरक्राफ्ट मांगे। हिसाब लगा कर पिछली सरकार 126 राफेल के लिए राजी हुई। फिर ये 36 पर क्यों आ गए? मांगी 12 स्क्वाड्रन और मिली 2?
एम्यूनिशन के लिए CAG पहले ही बोल चुका है कि हमारे पास 10 दिन का युद्ध लड़ने जितना गोला-बारूद भी नहीं है। 2014 से हल्ला कर रहे हैं कि डोमेस्टिक हथियार बनाएंगे, घरेलू हथियार खरीदेंगे। अब आर्मी को बोल रहे हैं INSAS छोड़ के AK 203 पकड़ो।
दुनिया nuclear पनडुब्बियां चला रही है, हम अभी भी डीजल वाली ही खरीद रहे हैं। अगर ये सरकार हथियारों में आत्मनिर्भर बनने के लिए इतनी ही दृढ़संकल्प है तो ये बताओ कि कावेरी इंजन का प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में क्यों डाला? 10,000 किलोमीटर रेंज वाली सूर्या ICBM ला रहे थे, कहां तक पहुंची?
दुनिया के सारे बड़े देश नेशनल मिसाइल डिफेंस सिस्टम लगाकर बैठे हैं। भारत सरकार अभी भी एक दर्जे नीचे का बैलेस्टिक मिसाइल डिफेंस लगाने की सोच रहा है, आयरन डोम तो बहुत दूर की बात है।
अरे बाकी तो छोड़ दो श्रीनगर मिलिट्री एयरपोर्ट अभी भी CAT 1 सिस्टम पर चल रहा है।
मतलब विजिबिलिटी जब तक 1500मीटर से ज्यादा नहीं होगी कोई प्लेन वहां नहीं उतर सकता। बॉर्डर पर 3 लेयर कंप्रीहेंसिव इंटीग्रेटेड बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम लगाने वाले थे क्या हुआ उसका? अभी एक हफ्ते पहले ही BSF ने कहा है कि राजस्थान बॉर्डर पर रेत के खिसकते टीलों से निपटने का इंतजाम नहीं है
घोषणाएं इन्होंने 5000 कर दी हैं काम 5 का भी ठीक से नहीं हो रहा। बस पुरानी योजनाओं का नाम बदल कर दोबारा गाजे बाजे के साथ लॉन्च करके फोटो खिंचवा लेते हैं। जब वो तरीका फेल हो गया है तो पूरे सरकारी सिस्टम को ही दोषी बताते हुए निजीकरण करने निकल पड़ते हैं।
ये राष्टवाद की घुट्टी बहुत पुरानी हो गई है साहब। अब इससे काम नहीं चलेगा।

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26 Aug
पेट्रोल डीजल की कीमतें ऐसे ही नहीं बढ़ रही हैं। सरकार लाख बहाना बनाये कि ऑयल बांड का ब्याज चुका रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ रही हैं, या घोड़ी ने गधे का बच्चा दिया है। पर थोड़ी थोड़ी सच्चाई सभी को पता है। मुझे लगता है कि सरकार ये कीमतें जान बूझकर बढ़ा रही है ताकि:
1. ताकि लोग त्राहि त्राहि कर उठें। फिर सरकार आकर बताएगी कि तेल इसलिए महंगा है क्यूंकि ये GST के अंतर्गत नहीं आता। और ईंधन को GST में लाने के लिए राज्य सरकारें मान नहीं रहीं। मतलब ठीकरा राज्य सरकारों के सर फोड़ा जाए, जिससे राज्य सरकारों से तेल पर टैक्स लगाने का अधिकार छीना जा सके।
2. देश में सबसे बड़ी रिफाइनरी आज रिलायंस के पास है। बाकी आप समझदार हैं।
3. सरकार की मेहरबानी से आज सारे नए ऑयल और गैस एक्सप्लोरेशन फील्ड प्राइवेट के पास ही जा रहे हैं। सरकार इस बात का ख़ास ध्यान रख रही है कि PSUs को इससे जितना हो सके दूर ही रखा जाए।
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25 Aug
अभी मार्केट में यही सब 235 रुपए/किलो पर बेचे जाएंगे। साथ में डब्बे पर ये भी लिखा होगा कि मैं तो इतने में ही बेचूंगा, जो उखाड़ना है उखाड़ लो।

सरकार के पास जाओगे तो बोलेगी कि हमको क्या पता, हम तो सेब खाते ही नहीं।
मीडिया के पास जाओगे तो आपको बताया जाएगा कि कैसे ये पैसा पाकिस्तान से गिलगित बाल्टिस्तान जीतने में लगाया जाएगा।
विपक्ष के पास जाओगे तो वो सरकार के खिलाफ एक ट्वीट कर देंगे फिर बैंकॉक छुट्टी मनाने चले जायेंगे।
सरकारी अधिकारियों के पास जाओगे तो सेब की कीमत सुनकर वो आश्चर्य में पड़ जाएंगे क्योंकि उनको सेब खरीदने ही नहीं पड़ते, उनको तो कंपनी पहले ही फ्री में दे रही है।
Read 6 tweets
24 Aug
1. Who will decide if the asset is actually under utilized and how will it be ensured that it is not crony capitalism?
2. What is such an urgent need to "monetize" national assets created out of taxpayer's money?
3. If the assets are created from taxpayer's money then will the govt ensure that no additional fee will be charged for using them since we have already paid tax.
4. If they are going to be chargeable (obviously they will be), then how it is not double taxation?
5. Is there any mechanism to ensure that the service fee is going to be reasonable and not going to hurt the pocket of common man? E.g. at the Adani airports, free drop off facility has been removed and the parking charges have been increased.
Read 5 tweets
14 Aug
थ्रेड: भक्तों का सर्कस

जॉर्ज विल्हेम फ्रेडरिक हेगेल। एक जर्मन दार्शनिक जिनके विचार आधुनिक पाश्चात्य दर्शन की नींव रखते हैं। मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और उनके धर्म को लेकर विचारों के पीछे भी इनकी ही प्रेरणा थी।
मार्क्स ने कहा है कि "Religion is Opiate of Masses यानी धर्म जनता की अफीम है"। हेगेल ने इसके पीछे पूरा कारण भी बताया है। हेगेल कहते हैं कि जब व्यक्ति भगवान् को मानने लगता है तो वो अपनी शक्ति उसे दे देता है। बदले में उससे उम्मीद लगा लेता है।
अपनी इच्छा से अपनी शक्ति का त्याग करना उसे कमजोर कर देता है, और उम्मीद लगा कर बैठना उसे आश्रित बना देता है। और ये शक्ति भी वो ऐसी सत्ता के हवाले करता है जिससे कोई सवाल नहीं पूछ सकता। यही भक्ति कहलाती है। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए तो क्या अपने लिए भी किसी काम का नहीं रहता।
Read 9 tweets
13 Aug
थ्रेड: आदि-अनादि- 2

किसी भी आदमी के पास ताकत दिखाने के दो तरीके होते हैं, 1. तू जानता है मेरा बाप कौन है? 2. जाके अपने बाप से पूछ मैं कौन हूँ। मतलब एक बात तो तय है कि किसी भी व्यक्ति का अस्तित्व दो हिस्सों से मिलकर बना होता है।
एक है "Traditional identity" यानी परंपरागत पहचान, और दूसरी "achieved identity" यानी "उपार्जित पहचान"। पारम्परिक पहचान का सम्बन्ध परिवार, क्षेत्र, जाति, पंथ इत्यादि से होता है। इनसे व्यक्ति का भावना का रिश्ता होता है। यहां लॉजिक, विज्ञान इत्यादि नहीं चलता।
वहीँ उपार्जित पहचान व्यक्ति स्वश्रम से हासिल करता है। यहां आप कॅल्क्युलेटेड निर्णय लेते हैं, फायदा नुक्सान देखते हैं। एक शांतिपूर्ण जीवन के लिए दोनों में बैलेंस आवश्यक है।
Read 13 tweets
12 Aug
थ्रेड: आदि-अनादि- 1
डिस्क्लेमर: ये पूरा फ़र्ज़ी थ्रेड है। फिलोसोफी का अपच है। हो सके तो इग्नोर करिये।

आजकल शिवभक्ति का काफी उबाल आया हुआ है। केदारनाथ, कैलाश मानसरोवर, तुंगनाथ से लेकर देश विदेश के भिन्न भिन्न कोनों में छुपे हुए शिवलिंग देखने को मिल रहे हैं।
आधुनिक पीढ़ी का शिव के साथ ये प्रेम देखकर थोड़ा आश्चर्य सा होता है। आश्चर्य इसलिए क्यूंकि दोनों बिलकुल ही विपरीत प्रवृति के हैं। आधुनिक पीढ़ी के पास आराम की सारी ऐसी चीजें उपलब्ध हैं जिनके बारे में सौ साल पहले कोई सोच भी नहीं पाता था।
गर्मी में AC, सर्दी में हीटर, सीढ़ी चढ़ने के लिए लिफ्ट, घूमने के लिए गाडी, एक से बढ़कर एक गैजेट, मनोरंजन के इतने साधन हैं कि कंफ्यूज हो जाएँ। दूसरी तरफ शिव हैं, बर्फ से पूरी ढकी पहाड़ के चोटी पर आधा शरीर ढके हुए, पशुओं के सानिध्य में, बिना घर बिना छत के वैरागी जैसे बैठे रहते हैं।
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