पाकिस्तान मे जब 'अहमदियों' को 'गैर-मुस्लिम' करार दिये जाने की बात चल रही थी। तब इसे सरकारी रूप से स्वीकृति देने के लिए उस समय की हुकूमत ने एक 'कमिशन' बनाया। कमीशन का नाम दिया गया- "मुनीर कमिशन"
इस कमिशन ने जब अपनी रिपोर्ट सौंपी तो उस रिपोर्ट मे उसने
लिखा कि इस्लाम के अलग-अलग फ़िरके के सारे मौलानाओं की परिभाषाओं को अगर सही माना जाए तो 'पाकिस्तान' में एक भी 'मुसलमान' नहीं बचेगा। वो इसलिए क्योंकि हरेक फ़िरके के मौलानाओं ने अपने अलावा तमाम दूसरे फ़िरके वाले को 'काफ़िर' और 'मुरतद' (दीन से खारिज़) करार दिया हुआ है।
'मुनीर कमीशन' की ये रिपोर्ट 1 तरह से 'इस्लाम' के अंदर की फिर्काबंदी की रिपोर्ट भी है और ये बात सच है कि कई बार तो 1 फ़िरके ने दूसरे फ़िरके को न सिर्फ 'काफ़िर' और 'मुरतद' घोषित किया बल्कि उनको 'वाजिबुल- क़त्ल' भी घोषित किया है और इन द्वेषों ने चलते 'इस्लामिक जगत' मे
शियाओं, खारजियों, नेचरी आदि और सबसे अधिक 'अहमदी मुस्लिमों' के कत्लेआम उनके साथ लूटपाट,भेदभाव,उनकी बेटियों के साथ बदसलूकी का लंबा इतिहास है। पर क्या आपने कभी सुना है कि इनमें से कोई भी अपनी बदहाली के लिए कभी अपने 'मज़हब'या उसकी तालीम को जिम्मेदार मानता है?
क्या कभी सुना है इनमें से कोई कहता हो कि 'इस्लामिक व्यवस्था' उसके इस दुर्भाग्य का जिम्मेदार है?
कभी नहीं सुना होगा बल्कि अकीदे की पुख्तगी मे शिया और अहमदी तो सबसे आगे रहने की कोशिश करते है।
अब थोड़ा आगे चलते है। 👇
मध्यपूर्व के देशो में इतनी मारधाड़ हुई। कुवैत और ईराक का झगड़ा हुआ,अरब और यमन का झगड़ा हुआ.ईरान और सुन्नी अरब जगत का टकराव आपको पता ही है। सीरिया से लाखो मुस्लिम निर्वासित हो गये।यमन से कुवैत से हुए पर निर्वासन के बाद वो जहाँ भी गए अपने 'दीन' के साथ और
भी पुख्तगी से जुड़ गए। उनके जहन मे रत्ती भर भी ये ख्याल नहीं आया कि उनके साथ हुई ज्यादती का जिम्मेदार उनका "मज़हबी अकीदा" है और इसलिए उन्हें अपना मज़हब छोड़ देना चाहिए।हाल ही मे अफगाणिस्तान मे भी निर्वासन हो ही रहा है।
जबतक पुरी दुनियामे इस्लामी निजाम नही होता
तबतक ये निर्वासन
किसी ना किसी इस्लामी देश से शूरू रहेगा, और ये सभी निर्वासित गैरइस्लामी देश मे निर्दयता से ढकेल दिये जायेंगे।लेकिन मजहब पे इनका इमान पुख्ता रहेगा, चाहे इनके साथ कितनी भी निर्दयता की जाय।
अब इसके बरअक्स अपने यहाँ क्या है?
दिखाता हू👇
आप आये दिन देखते हैं कि हमारे यहाँ के कथित नीची जाति के लोग और कई बार तो कुछ तो कथित ऊँची जाति के समझे जाने वाले लोग भी अपनी बदहाली का कारण 'हिन्दू धर्म' और 'हिन्दू धर्म' की व्यवस्था को मानते है और इसलिए हमलोग आये दिन अखबार मे ख़बरें पढ़ते हैं कि आज इसने धमकी दी कि वो हिंदुवादी
व्यवस्था से बाहर निकलकर कोई और धर्म चुनेगा तो किसी ने कहा कि हम हिंदूवादी व्यवस्था के कारण पीड़ित और संतप्त है। इसलीये फूले और पेरियार जैसे हमारे यहाँ ही सबसे अधिक हुए।
गरीबी हर मज़हब मे है पर 'ईसाई' केवल 'हिन्दू'ही बनता है इसके पीछे भी कारण यही है।
चाहे वो 'शिया' हो, 'अहमदी' हो या जो भी पीड़ित, संतप्त 'मुस्लिम' है उसे ये लगता है कि हमारा मज़हब ना गलत है और न ही हो सकता है। गलती हमारे मज़हब में नही है बल्कि गलत हम पर अत्याचार करने वाला कानून, या इंसान, या व्यवस्था है,और इसलिए वो अपने मज़हब पर पूरी पुख्तगी से जमा हुआ रहता है
भले उसका क़त्ल हो जाये, उसकी बेटी लूट जाये या उसके साथ जो कुछ भी अघटन घटित भी हो जाये।
हमारे यहाँ वाले हमेशा अपने दुर्भाग्य का कारण 'हिन्दू धर्म' को मानते हैं इसका कारण ये है कि हमने उनके अंदर कभी ये बोध ही पैदा नहीं किया कि हिंदुत्व के"ठेकेदार", हिंदुत्व के "स्टेक-होल्डर"
कोई ब्राह्मण, ठाकुर,लाला या बनिया नहीं है बल्कि इस हिन्दू धर्म के पूरे के पूरे हिस्से से 'स्टेक होल्डर' तुम भी नही बल्कि तुम ही हो।
अगर तुम्हारे साथ कुछ अन्याय,अत्याचार,अस्पृश्यता हो रही है तो वो 'हिन्दू धर्म' की गलती नही,बल्कि वो 'हिन्दू समाज'का दोष है,जो चीजों की मनमानी
व्याख्या कर रहा है और इसके लिए तुमको अपनी बदहाली के लिए हिन्दू धर्म को जिम्मेदार नही मानना है।
इसलिए मैं हमेशा कहता हूँ कि हमे कम से कम अब अपने धर्म के अंदर यह व्यवस्था पैदा करना है कि हममे से हरेक को ये लगे कि हिन्दू धर्म उसका ही है और इसके नाम पर कोई भी अश्पृश्यता का
छुआछूत का या किसी भी तरह का कोई जन्मना श्रेष्ठता का कोई बोध पालता है, तो वो गलत है हिन्दू धर्म नहीं।
'इस्लाम' के अंदर की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती ये है कि उसने अपने माननेवालो मे ये बोध बड़ी सफलता से पैदा कर दिया कि
तुम....और केवल तुम इस्लाम के अकेले 1 "स्टेक होल्डर" हो और कोई भी इसकी
गलत व्याख्या करके तुमको इससे बाहर नहीं कर सकता।
'गुरुदत्त' ने अपने 'उपन्यास' 'अस्ताचल की ओर' की भूमिका मे 1 जगह लिखा है।
अशोक के काल को शांति का काल कहा जाता है परंतु वह काल जनमानस मे बुद्धि-विहीनता का काल भी था।उस काल मे बौद्ध भिक्षुओ और विहारो के महाप्रभुओ की तूती बोलती थी।
दूसरी ओर 'समुद्रगुप्त' के काल मे अनपढ़ रुढ़िवादी लोगों का बोलबाला था।परिणाम में दोनों काल देश और समाज को पतन की ओर द्रुतगति से ले जाने वाले सिद्ध हुए थे।
गुरुदत्त जो लिख रहे है
वो गलती को इस्लाम नहीं करता इसलिए उसके यहाँ आजतक आप अंगुली पर गिने जाने लायक नाम ही खोज पाएंगे तो उसकी
व्यवस्था से खिन्न हुए बाकी सब इस दावे के साथ जीते हैं कि "दीन" केवल उनका है जो सौ फीसदी सही है।बाकी लोग गलत हो सकते है।
गुरुदत्त के उपरोक्त कथन का सार-संक्षेपण और हमारे लिए बोध ये है कि अब वक़्त आ गया कि हम हिंदुत्व की ठेकेदारी किसी 1 या कुछ को न देकर अपने दावे छोड़े और सबको कहे
के ये हिन्दू धर्म मेरा है तो तुम्हारा भी है और इसके ठेकेदार तुम भी हो,और उतने ही हो जितने हम है।हिन्दू धर्म के नाम पर की गई गलत व्याख्याओ को तुम नकारो हिन्दू धर्म को नही
सीधे अर्थ मे ये कि जिस दिन हमने हिन्दू के सभी वर्ग मे ये बोध करा दिया कि हिन्दू धर्म के भले-बुरे के अकेले के
"स्टेक- होल्डर" केवल तुम हो और इसके रक्षण और संवर्धन तुम्हारा कर्तव्य है।
हमारी समस्याओं का निराकरण हो जायेगा।
हाँ, इसके कारण आंतरिक रूप से भले हममें कुछ संघर्ष हो जायेगा पर बाहरियों के लिए फिर "हिंदुत्व" का किला हमेशा के लिए अभेद हो जायेगा।
जय श्रीराम
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सेक्युलरतेचे गाठोडे आमचे(तुमच्या भाषेत)नेते घेऊन फिरतात हे जे वाक्य आहे ना तुमचे, ह्याला जबाबदार ही अशीच मानसिकता असलेले तुमची मागची मतदान करणारी पिढी आहे, आणि त्याच पिढीचे तुमच्यासारखे वंशज अजूनही भरपूर आहेत,
जोपर्यंत ही संख्या कमी होत नाही तोपर्यंत हे गाठोडे वागवावे लागणार जसे
आताचे इस्लामी पक्ष वागताहेत
असे कित्येक विडिओ उपलब्ध आहेत की त्यात ती लोकं व नेते म्हणतात की फक्त आपली संख्या वाढली पाहिजे नंतर आपला निजाम येईल
तुमच्यासारखी लोकं आणि ही धर्मांध ह्यांनाही बरोबर घेऊन जायचे म्हटलं तर थोडीफार लवचिकता ठेवावी लागतेच त्याला जर तुम्ही सेक्युलरतेचे गाठोडे
म्हणणार असाल तर हेच गाठोडे फेकून दिल्यावर
जो धर्मांधतेचा उद्रेक घडवून आणला जाईल आणि देश जळू लागला तर त्याचे खापर फोडायला आणि दुसऱ्याला शांतिप्रिय संबोधायला तुमच्यासारखे सो कॉल्ड हिरिरीने पुढे येतील व येतात हीच मूळ समस्या आहे.
वकील आहात ना मग जे दिसतंय ते बघू नका
जे दिसतंय
मजा ?
योगेश अरे काय?कसला अंदाज किंवा आनंद व्यक्त करतोयस,? 👇नीट क्रमबद्ध विचार कर आणि जुळव.तटस्थपणे बघत राहण्याचे वाक्य मागे घेशील.
ट्रम्प असताना ISIS ची खुरासान शाखा अफगाणिस्तान मध्ये सुरू झालीय,
ISIS ने चांगले पाय रोवले जे तालिबान ला खपणारे नव्हते.तालिबान चे उद्दिष्ट फक्त काबुल
ISIS चे उद्दिष्ट संपूर्ण जग.
खुरासान मध्ये प्रवेश म्हणजे गजवा-ए-हिंद ची मुहूर्तमेढ, म्हणून तर ISIS भारतीय गद्दार M कडून पूर्ण समर्थन तसेच अल-तकीया मोड मध्ये असणाऱ्यांचे मूक समर्थन.
तालिबान ने तसेच ट्रम्प ने पुढील धोका ओळखून
मिश्र कारवाई करून ISIS ला उखडून टाकले
नंतर काही दिवसात
ट्रम्प ने कारवाई करून बगदादी ला संपवले आणि लगेचच तालिबान शी USA ने संधी केली
इथे चीन ची सगळी स्वप्ने उध्वस्त झाली म्हणून ट्रम्प ला पाडून कठपुतळा आणला गेला.
आता अफगाणिस्तान संपूर्ण उध्वस्ततेच्या मार्गाने जातोय आणि ISIS चीन,पाकिस्तान च्या साथीने व भारतीय गद्दार M च्या इच्छेने तिथे
नाव बदलताना इब्राहिम ने जो पक्का विचार केला होता त्यावर त्याचे मार्गक्रमण तर झाले पण नेमकी संधी मिळत नव्हती.अश्यातच सद्दाम पतन झाले आणि त्याच दरम्यान ह्याची दीड वर्षाच्या कैदेतून सुटका झाली.असेही म्हटले जाते की जेल मध्ये असतानाच कुरेश कबिल्याशी असलेले रक्ताचे नाते इतर जिहादींना
सांगून त्यांची खात्री पटल्यावर (किंवा त्यांना ही 1 खुंखार नेता हवा होताच)त्याने आपले नाव बदलून इस्लाम चे पहिले खलिफा ह्यांचे नाव धारण केले.
बगदादी ने जीभह किंवा गोळ्या घालून जितके कैदी मारले त्या सगळ्यांना भगव्या कलरचा ड्रेस घालण्यास देण्यात येत असे,कारण बगदादी जेलमध्ये असताना
त्याचा ड्रेस कोड ही हाच होता, पण जेवढे यजीदी तसेच इस्लामी नागरिक त्याने मारले ते बहुतेक सर्व गोळ्या (हेडशॉट)घालून किंवा जिवंत जाळून मारले.
सर्वात भयानक हत्याकांड हे लहान यजीदी बालकांचे,त्या अबोध बालकांना (इतकी लहान)एका पिंजऱ्यात ठेवून पिंजऱ्यात ज्वलनशील लिक्विड टाकून
मुझे अफगाणिस्तान पर तालिबान के कब्जे का कोई खास दर्द नहीं है। मैं तो चाहता हूं, कि तालिबान पूरे 56 इस्लामिक देशों पर कब्जा कर ले ताकि मामला जल्दी से जल्दी रफा दफा हो जाए और विश्व शांति की तरफ बढ़े।
मरने-मारने वाले दोनों अल्लाह के बंदे हैं, हमें क्या, हम तो काफ़िर हैं..
🤔😛🤔
अरे भाई! तुम्हारे पास अल्ला ताला का मुकम्मल दीन है,शरीया कानून है,पांचों वक्त की नमाज है,
पर्दा और बुर्का है,ट्रिपल तलाक है,4 निकाह और 84 मुताह है,हर रोज हलाला है,कभी रजिया कभी मलाला है,ऊपर वाले की गाज है,कोढ़ में खाज है,
दूर-दूर तक कोई बुत या बुत परस्त नहीं है,
तुम्हारे अड़ोस-पड़ोस में कोई काफिर नहीं है जिससे तुम्हें डर लगे, तुम्हारे कानों मे मंदिर की आरती या गुरुद्वारे से गुरुवाणी नहीं पहुंचती,होली का हुड़दंग नहीं है, दिवाली की आतिशबाजी नहीं है,शिवरात्रि पर दूध की बर्बादी नहीं है,चकाचक पांचों वक्त गाय, भैंस,घोड़ा,गधा कुछ भी खा सकते हो,
भूतकाळात घडलेल्या घटना इतक्या अजब असतात की त्यांची लिंक लावत गेलं की डोकं भंजाळून जातं
2001 साली USA ने जेंव्हा अफगाणिस्तान बेचिराख करून तालिबान ला खाली खेचलं. त्याच सुमारास पश्चिमेकडे ISIS नावाच्या संघटने चा जन्म झाला.सुरुवातीला नाव भले वेगळे असेल
कालांतराने ISIS कमजोर झाली तर
तालिबान सत्ताधारी बनण्यासाठी अग्रेसर झाली.
पण 1 घडलेली घटना त्यावर लक्ष देणे गरजेचे बनते.
USA ने माघार घेतल्यावर तालिबानी वरचढ झाले पण त्याच वेळेला ISIS ने आपल्या साप्ताहिक मुखपत्रात सरळ म्हटले की जीत इस्लाम ची नाहीये तर USA ने तालिबान कडे अफगाणिस्तान सोपवला.इथे सौदेबाजी ची जीत
होती. ह्याचा अर्थ हाच निघतो की दोन्ही इस्लामी संघटना आता 1मेकांच्या समोर उभ्या ठाकल्यात.
हे असं का होतेय हा विचार केला तर भविष्यात होणाऱ्या भौगोलिक बदलाबरोबरच नरसंहाराची कल्पना येते,किंवा शस्त्रव्यापार हा ही अँगल समोर येतोय,म्हणजेच काय!ह्या लोकांना इस्लाम शी काहीच देणेघेणे नाही.