हम सब हिन्दू जातिवाद और हिन्दू के अंदर कुपोषित कीए गए बहुत से तथ्यों को रोज सुनते रहते हैं पर हम कभी भी मुस्लिम समुदाय में चल रहे सबसे बड़े भेदभाव से अभी तक अज्ञात है।
आईये आज सफर करते हैं कुछ ऐसे ही विषय पर जहां कुछेक पहलु को उजागर करने की कोशिश की गई है।
दुनियाभर में क्यों भिड़े हैं शिया और सुन्नी?
इराक़ में जारी संघर्ष ने एक बार फिर सुन्नी और शियाओं के बीच मतभेदों को उजागर कर दिया है. सीरिया में भी जारी संघर्ष में शिया-सुन्नी विवाद की गूंज सुनाई देती है लेकिन इस मतभेद के बुनियादी कारण क्या हैं, जानते हैं। @madhu_surana
शिया और सुन्नियों में अंतर
मुसलमान मुख्य रूप से दो समुदायों में बंटे हैं- शिया और सुन्नी. पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के तुरंत बाद ही इस बात पर विवाद से विभाजन पैदा हो गया कि मुसलमानों का नेतृत्व कौन होगा.
मुस्लिम आबादी में बहुसंख्य सुन्नी हैं और अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, इनकी संख्या 85 से 90 प्रतिशत के बीच है। दोनों समुदाय के लोग सदियों से एक साथ रहते आए हैं और उनके अधिकांश धार्मिक आस्थाएं और रीति रिवाज एक जैसे हैं।
इराक़ के शहरी इलाक़ों में हाल तक सुन्नी और शियाओं के बीच शादी बहुत आम बात हुआ करती थीं।
इनमें अंतर है तो सिद्धांत, परम्परा, क़ानून, धर्मशास्त्र और धार्मिक संगठन का. उनके नेताओं में भी प्रतिद्वंद्विता देखने को मिलती है. @badal_saraswat
लेबनान से सीरिया और इराक़ से पाकिस्तान तक अधिकांश हालिया संघर्ष ने साम्प्रदायिक विभाजन को बढ़ाया है और दोनों समुदायों को अलग-अलग कर दिया है.
सुन्नी मुसलमान ख़ुद को इस्लाम की सबसे धर्मनिष्ठ और पारंपरिक शाखा से मानते हैं.
सुन्नी शब्द 'अहल अल-सुन्ना' से बना है जिसका मतलब है परम्परा को मानने वाले लोग. इस मामले में परम्परा का संदर्भ ऐसी रिवाजों से है जो पैग़ंबर @RATHORERAJA_
मोहम्मद और उनके क़रीबियों के व्यवहार या दृष्टांत पर आधारित हो।
सुन्नी उन सभी पैगंबरों को मानते हैं जिनका ज़िक्र क़ुरान में किया गया है लेकिन अंतिम पैग़ंबर मोहम्मद ही थे. इनके बाद हुए सभी मुस्लिम नेताओं को सांसारिक शख़्सियत के रूप में देखा जाता है। @DevaTheRathaur
शियाओं की अपेक्षा, सुन्नी धार्मिक शिक्षक और नेता ऐतिहासिक रूप से सरकारी नियंत्रण में रहे हैं।
शिया कौन हैं?
शुरुआती इस्लामी इतिहास में शिया एक राजनीतिक समूह के रूप में थे- 'शियत अली' यानी अली की पार्टी। @BharatR74239432@THESIKKHISBACK
शियाओं का दावा है कि मुसलमानों का नेतृत्व करने का अधिकार अली और उनके वंशजों का ही है अली पैग़ंबर मोहम्मद के दामाद थे।
इसे लेकर हुए एक संघर्ष में अली मारे गए थे. उनके बेटे हुसैन और हसन ने भी ख़लीफ़ा होने के लिए संघर्ष किया था।
हुसैन की मौत युद्ध क्षेत्र में हुई, जबकि माना जाता है कि हसन को ज़हर दिया गया था। @NKThaku33787262
इन घटनाओं के कारण शियाओं में शहादत और मातम मनाने को इतना महत्व दिया जाता है।
अनुमान के अनुसार, शियाओं की संख्या मुस्लिम आबादी की 10 प्रतिशत यानी 12 करोड़ से 17 करोड़ के बीच है। @puneesh_luthra
ईरान, इराक़, बहरीन, अज़रबैजान और कुछ आंकड़ों के अनुसार यमन में शियाओं का बहुमत है. इसके अलावा, अफ़ग़ानिस्तान, भारत, कुवैत, लेबनान, पाकिस्तान, क़तर, सीरिया, तुर्की, सउदी अरब और यूनाइडेट अरब ऑफ़ अमीरात में भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। @KamalSinghnamo
हिंसा के लिए कौन ज़िम्मेदार?
उन देशों में, जहां सुन्नियों की सरकारें है, वहाँ शिया ग़रीब आबादी में गिने जाते हैं. अक्सर वे खुद को भेदभाव और दमन के शिकार मानते हैं. कुछ चरमपंथी सुन्नी सिद्धांतों ने शियाओं के ख़िलाफ़ घृणा को बढ़ावा दिया गया है। @ImBlal1
वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति से उग्र शिया इस्लामी एजेंडे की शुरुआत हुई. इसे सुन्नी सरकारों के लिए चुनौती के रूप में माना गया, ख़ासकर खाड़ी के देशों के लिए।
ईरान ने अपनी सीमाओं के बाहर शिया लड़ाकों और पार्टियों को समर्थन दिया जिसे खाड़ी के देशों ने चुनौती के रूप में लिया।
खाड़ी देशों ने भी सुन्नी संगठनों को इसी तरह मजबूत किया जिससे सुन्नी सरकारों और विदेशों में सुन्नी आंदोलन से उनसे संपर्क और मज़बूत हुए।
लेबनान में गृहयुद्ध के दौरान शियाओं ने हिज़बुल्ला की सैन्य कार्रवाईयों के कारण राजनीतिक रूप में मजबूती हासिल कर ली। @raam_thakur
पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में तालिबान जैसे कट्टरपंथी सुन्नी संगठन अक्सर शियाओं के धार्मिक स्थानों को निशाना बनाते रहे हैं।
इराक़ और सीरिया में जारी वर्तमान संघर्ष ने भी दोनों समुदायों के बीच एक बड़ी दीवार खड़ा कर दी है। @JangBah02098566
दोनों ही देशों में सुन्नी युवा विद्रोही गुटों में शामिल हो गए हैं. इनमें से ज़्यादातर अल-क़ायदा की कट्टर विचारधारा को मानते हैं।
इस बीच, शिया समुदाय के अधिकांश कट्टर युवा सरकारी सेना के साथ मिलकर इनसे लड़ते रहे हैं। @Gaurai1984
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अब तक हम बात कर रहे थे इस्लाम की, जहां हमने यह समझा कि इसमे कितने पंथ है और क्यों सब एक दूसरे के खून के प्यासे है।
आज समझने की कोशिश करते हैं कि क्यों ईसाई यहुदी और इस्लाम में इतनी बड़ी जंग चल रही है।
फर्क़ यह है कि ईसाई वाले इस्लाम का इस्तेमाल कर के उसे अंदर अंदर ही खत्म
करवा रहे हैं जबकि यहुदी बाकायदा जंग पर है।यहूदी, ईसाई और मुसलमानों की जंग का सच
यहूदी और मुस्लिम धर्म लगभग समान है फिर भी यहूदी और मुसलमान एक-दूसरे की जान के दुश्मन क्यों हैं? ईसाई धर्म की उत्पत्ति भी यहूदी धर्म से हुई है, लेकिन दुनिया @Sanjay42194654
अब ईसाई और मुसलमानों के बीच जारी जंग से तंग आ चुकी है।
तीनों ही धर्म एक दूसरे के खिलाफ हैं, जबकि तीनों ही धर्म मूल रूप में एक समान ही है। आओ जानते हैं इस जंग के इतिहास का संक्षिप्त।
613 में हजरत मुहम्मद ने उपदेश देना शुरू किया था तब मक्का, मदिना सहित पूरे @Sanjeev_Nahata
इसबार राहुल गांधी जीस वायनाड से चुनाव लड़े उस वायनाड और उसके इतिहास को जानना जरूरी है क्योंकि आज के समम में केरल से ISIS का संपर्क भी लगातार सामने आता रहा है।
इस लेख में बहुत सी ऐसी बातें उजागर होगी जिससे बहुत कम लोग जानते हैं।
वायनाड का काला सच
दक्षिण भारत को छोड़कर शेष भारत में रहने वाले लोगों को यह संभवत प्रथम बार ज्ञात हुआ कि केरल में एक ऐसा भूभाग है जहाँ पर अहिन्दू (मुस्लिम +ईसाई) जनसंख्या हिन्दुओं से अधिक है । बहुत कम हिन्दुओं को यह ज्ञात होगा कि उत्तरी केरल के कोझिकोड, मल्लपुरम और वायनाड के इलाके दशकों
पहले ही हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके थे। इस भूभाग में हिन्दू आबादी कैसे अल्पसंख्यक हुई ? इसके लिए केरल के इतिहास को जानना आवश्यक हैं। @bkMisralOO7_O7
इस्लाम के पंथों (फिरको) की जानकारी पिछले कुछ दिनों से चल रहीं हैं उसी लेख को आगे बढाते हुए आज इस्लाम में जीस पंथ या फिरके को बहुत ही कम इस्लामिक माना जाता है ऐसे "अहमदिया" मुस्लिम के बारे में आज का लेख हैं।
इस्लाम के 73 फिरको में से इस्लाम द्वारा सबसे ज्यादा प्रताड़ित फिरका है "अहमदिया"। प्रताड़ित किए जाने की वजह को भी समझते हैं।
कहने को मुसलमान फिर भी पाकिस्तान में इनके लिए कोई जगह नहीं है।
अहमदिया समुदाय की नींव 23 मार्च 1889 को भारत के पंजाब राज्य में आने वाले गुरदासपुर के
कादियान नामक कस्बे में रखी गई थी। मिर्जा गुलाम अहमद जो इसके संस्थापक थे उन्होंने सन् 1891 में अपने आप को 'पैगंबर' घोषित कर दिया था।
जर्मनी में रहने वाले अहमदिया मुसलमानों पर इस समय बड़ा संकट आया हुआ है। उन पर इस समय पाकिस्तान भेजे जाने का खतरा मंडरा रहा है।
हिन्दू में बनी वर्ण प्रथा (जो कि कर्म के आधारित थी उसे जातिवाद में बदल दिया गया) सिर्फ़ 4 हु हैं। जब कि इस्लाम में 72 (की जगह पर 73 कहा गया है) फिरको में से आज कुछेक को जानने की कोशिश करते हैं।
कल के लेख में दो मुख्य फिरके सुन्नी और शिया के बारे में पढ़ा आज थोड़ा
और आगे जानते हैं।
दुनिया के मुसलमान कितने पंथों में बंटे हैं?
चरमपंथ और इस्लाम के जुड़ते रिश्तों से परेशान भारत में इस्लाम की बरेलवी विचारधारा के सूफियों और नुमाइंदों ने एक कांफ्रेंस कर कहा कि वो दहशतगर्दी के खिलाफ हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बरेलवी समुदाय ने इसके लिए वहाबी
विचारधारा को जिम्मेदार ठहराया।
इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच सभी की दिलचस्पी इस बात में बढ़ गई हैकि आखिर ये वहाबी विचारधारा क्या है। लोग जानना चाहते हैं कि मुस्लिम समाज कितने पंथों में बंटा है और वे किस तरह एक दूसरे से अलग हैं?
इस्लाम के सभी अनुयायी खुद को मुसलमान कहते हैं
फिल्मी हस्ती जावेद अख्तर भारत में मुगल शासन को "खुशहाली का समय" मानते हैं। तुलना करते हुए वे अकबर, जहाँगीर और औरंगजेब को महान और अंग्रेजों को गया-गुजरा बताते हैं।
मुख्यतः इसी मतभेद पर वे तारिक फतह को हिन्दू सांप्रदायिकों का ‘प्रवक्ता’ कहते हुए जलील कर रहे हैं। वस्तुतः मुगल काल को गौरव-काल बताना लंबे समय से चल रहा है। यह स्वतंत्र भारत में अधिक प्रचारित हुआ। कांग्रेस-कम्युनिस्ट सत्ता गठजोड़ ने राजकीय बल से इसे स्कूल-कॉलेजों तक फैला दिया।
हमारे नेताओं ने सच दबाने और झूठ फैलाने का गंदा काम किया, करवाया हैं। इसी का दूरगामी असर अब हर कहीं दिखता है।
सचाई यह है कि भारत में मुगल शासन भी ब्रिटिश शासन जैसा "विदेशी" था।
पंजशीर वादी (दरी फ़ारसी: درهٔ پنجشير, दरा-ए-पंजशीर) उत्तर-मध्य अफ़ग़ानिस्तान में स्थित एक घाटी है। यह राष्ट्रीय राजधानी काबुल से १५० किमी उत्तर में हिन्दु कुश पर्वतों के पास स्थित है। यह वादी पंजशीर प्रान्त में आती है और इसमें से प्रसिद्ध पंजशीर नदी गुज़रती है। @Kanchan93333001
यहाँ लगभग १,४०,००० लोग बसे हुए हैं जिनमें अफ़ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा ताजिक लोगों का समुदाय भी शामिल है।
तालिबान अफगान सत्ता पर काबिज हो गया है, लेकिन पंजशीर उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। ये वो इलाका है जिसे तालिबान @Kanubha21169684
कभी नहीं जीत सका। इस बार भी इस अभेद्य दुर्ग को तालिबानी अब तक भेद नहीं पाए हैं।
पंजशीर की घाटियां तालिबान के विरोध का प्रतीक बनती जा रही हैं। कभी पंजशीर के शेर अहमद शाह मसूद का गढ़ रहे इस इलाके से विरोध का झंडा उनके बेटे अहमद मसूद ने उठाया है। @madhu_surana