इस्लाम के पंथों (फिरको) की जानकारी पिछले कुछ दिनों से चल रहीं हैं उसी लेख को आगे बढाते हुए आज इस्लाम में जीस पंथ या फिरके को बहुत ही कम इस्लामिक माना जाता है ऐसे "अहमदिया" मुस्लिम के बारे में आज का लेख हैं।
इस्लाम के 73 फिरको में से इस्लाम द्वारा सबसे ज्यादा प्रताड़ित फिरका है "अहमदिया"। प्रताड़ित किए जाने की वजह को भी समझते हैं।

कहने को मुसलमान फिर भी पाकिस्‍तान में इनके लिए कोई जगह नहीं है।

अहमदिया समुदाय की नींव 23 मार्च 1889 को भारत के पंजाब राज्‍य में आने वाले गुरदासपुर के
कादियान नामक कस्बे में रखी गई थी। मिर्जा गुलाम अहमद जो इसके संस्‍थापक थे उन्‍होंने सन् 1891 में अपने आप को 'पैगंबर' घोषित कर दिया था।
जर्मनी में रहने वाले अहमदिया मुसलमानों पर इस समय बड़ा संकट आया हुआ है। उन पर इस समय पाकिस्‍तान भेजे जाने का खतरा मंडरा रहा है।
यहां पर बसे 535 अहमदिया को जर्मनी की अथॉरिटीज की तरफ से वापस देश भेजे जाने की धमकी दी गई है। पाकिस्‍तान के गृह मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि अहमदिया धार्मिक समुदाय से नहीं आते हैं और क्रिमिनल लॉ के तहत प्रतिबंधित नहीं हैं। ऐसे में हर अहमदिया पर केसेज को परखा जा रहा है।
जर्मनी की प्रशासनिक अदालतों की तरफ से ध्‍यान दिलाया गया है कि पाकिस्‍तान में अहमदिया के लिए सुरक्षित जगहें कौन-कौन सी हैं।लेकिन इसके बाद भी वो अपने देश नहीं जाना चाहते हैं।आखिर ऐसा क्‍या है जो अहमदिया मुसलमान अपने देश वापस नहीं जाना चाहते हैं, जानिए पाक में उनके डर की वजह।
आर्मी चीफ अहमदिया फिर भी वही हाल
पाकिस्‍तान के रबवाह को अहमदिया मुसलमानों का सुरक्षित इलाका माना जाता है। मगर इस समुदाय के लोगों की मानें तो अब यहां पर भी उन्‍हें चुन-चुनकर मारा जा रहा है। पाकिस्‍तान ने जब 2016 में जनरल कमर जावेद बाजवा को देश का आर्मी चीफ नियुक्‍त किया था तो
इस समुदाय के लोगों में कुछ आशा बंधी थी।
बाजवा अहमदिया मुसलमान हैं और इसलिए जब उन्‍होंने पद संभाला तो लगा कि अब इस समुदाय के लिए सकारात्‍मक बदलाव होंगे।ऐसा इसलिए क्‍योंकि पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक ‘एक गैर-मुस्लिम शख्‍स कभी भी आर्मी चीफ नियुक्त नहीं हो सकता है।
अहमदिया गैर-मुसलमान!
अहमदिया को पाकिस्‍तान में ‘गैर-मुस्लिम’ का दर्जा दिया जाता है। अक्‍सर उन्‍हें अपने धार्मिक विश्‍वासों की वजह से शक का सामना करना पड़ा है। उनके खिलाफ भेदभाव इस कदर है कि सऊदी अरब, अहमदिया को हज करने की इजाजत भी नहीं देता है।
पाकिस्‍तान में अहमदिया मुसलमानों को काफिर का दर्जा मिला हुआ है।
सन् 1984 में पाक में एक कानून आया जिसके बाद अहमदिया समुदाय के लोगों को खुद को मुसलमान साबित करना पड़ता था। पाकिस्तान में 95 से 98 फीसदी लोग मुसलमान हैं। इतनी आबादी में भी मुसलमान 3 वर्गों में बंटे हैं,
सुन्नी, शिया और अहमदिया। आम सुन्नी मुसलमानों का मत हैं कि इस्लाम मुताबिक ‘अहमदिया’ वो भटके हुए लोग हैं जिनका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है और ये अपनी हरकतों से लगातार इस्लाम का नाम खराब कर रहे हैं।

भारत में पड़ी थी नींव
अहमदिया समुदाय की नींव 23 मार्च 1889 को
भारत के पंजाब राज्‍य में आने वाले गुरदासपुर के कादियान नामक कस्बे में रखी गई थी।मिर्जा गुलाम अहमद जो इसके संस्‍थापक थे उन्‍होंने सन् 1891 में अपने आप को ‘पैगंबर’ घोषित कर दिया था। बंटवारे के बाद पंजाब राज्‍य दो भागों में बंट गया और एक हिस्‍सा भारत में आ गया तो
दूसरा पाकिस्तान में चला गया। कुछ अहमदिया मुसलमान भारत में रह गए और कुछ पाकिस्तान चले गए।
पंजाब के लुधियाना में जन्में मिर्जा गुलाम अहमद के पूर्वज मिर्जा हादी को मुगल बादशाह जहीररुद्दीन बाबर ने 16वीं शतीब्दी में कई गांव तोहफे में दिए थे। 23 मार्च 1889 को मिर्जा गुलाम अहमद ने
लुधियाना में हकीम अहमद जान के घर पर पंचायत बुलाई गई और इस पंचायत में ही अहमदिया समुदाय की नींव पड़ी। पैगम्‍बर को मानने से इनकार
कहते हैं कि पंचायत में लोगों से कहा गया कि मोहम्मद आखिरी नबी नहीं हैं, बल्कि मैं खुद नबी हूं। गुलाम अहमद का दावा था कि पैंगंबर मोहम्मद की तरह ही
उन्हें अल्लाह का हुक्म मिला है कि वो लोगों से इस बात की बात मनवा लें कि वे नबी हैं और उन्हें जमात बनाने का हुक्म दिया गया। गुलाम अहमद के दावे के अनुसार खुदा अब भी जिससे चाहे कलाम करता है। खुदा से बात करने का ये सिलसिला जारी है। आम मुसलमान हजरत मुहम्मद के अलावा किसी को
अपना खुदा नहीं मानते हैं। ऐसे में मिर्जा गुलाम अहमद को अपने को रसूल या फिर रसूल का वारिस कहना आम मुसलमानों को स्वीकार नहीं हुआ।

मुसलमानों के मुताबिक मोहम्मद साहब अल्लाह के आखिरी पैगम्बर थे। उनके बाद न कोई हुआ है और न कोई हो सकता है।
इस्लाम की बुनियाद इसी विश्वास पर टिकी है। इस वजह से ही अहमदिया को आज तक भेदभाव झेलना पड़ता है। अहमदियों पर अक्‍सर होते हैं हमले
पाकिस्तान में अक्‍सर अहमदिया मुसलमानों पर हमले होते रहते हैं। इनमें उनकी मौत भी होती रही हैं। पाकिस्तान का मानना है कि अहमदिया मुसलमान इस्लाम धर्म के
मानने वालों को गुमराह कर रहे हैं और एक इस्लामिक देश में गैर-इस्लामिक कामों पर नियंत्रण नहीं लगाया गया तो फिर इस्लाम पर गलत असर पड़ेगा।
पाकिस्तान में सन् 1953 में पहली बार अहमदियों के खिलाफ दंगे हुए। जब उन दंगों की जांच पड़ताल हुई तो पता चला कि वो कट्टरपंथियों के उकसाने पर किए
गए थे। सितंबर 1974 में पाकिस्तानी संविधान में संशोधन किया गया और अहमदी जमात को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया।

इस दौरान हजारों अहमदिया परिवारों को अपना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। साल 1982 में राष्ट्रपति जिया उल हक ने संविधान में फिर से संशोधन किया।
इसके तहत अहमदियों पर पाबंदी लगा दी गई कि वे खुद को मुसलमान भी नहीं कह सकते।
मिलती है मौत की सजा
पैगंबर मोहम्मद की तौहीन करने पर मौत की सजा का कानून लागू कर दिया गया। उनके कब्रिस्तान भी अलग कर दिए गए। सिर्फ इतना ही नहीं पहले से दफन अहमदियों की कुछ लाशें को कब्रों से निकलवा दिया
गया।
अहमदियों पर जुल्म का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें ‘अस्सलाम अलेकुम’ कहने पर भी जेल में डाल दिया जाता है। 28 मई साल 2010 को पाकिस्तान में तालिबान ने दो अहमदी मस्जिदों को निशाना बनाया। लाहौर की बैतुल नूर मस्जिद पर फायरिंग की गई और ग्रेनेड फेंके गए साथ ही
आत्‍मघाती हमले में आतंकी मस्जिद में घुस गए जिसमें 94 लोग मारे गए।

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14 Sep
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