#कश्मीरनामा #कश्मीर_और_कश्मीरी_पंडित
क्या #ब्राह्मण कश्मीर के मूलनिवासी हैं ?
आम तौर पर कश्मीरी पंडितों के नैरेशन में यह बताया जाता है कि कश्मीर में ब्राह्मणों के अलावा कोई जाति नहीं थी और ये ब्राह्मण कहीं और से नहीं आए थे बल्कि यहीं के मूल निवासी थे। उदाहरण के लिए 1996 से 1999+
तक कश्मीरी एसोसिएशन के अध्यक्ष तथा1997से 2000तक ऑल इंडिया कश्मीरी समाज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे शिया पोस्ट-ग्रेजुएट कॉलेज,लखनऊ से सेवानिवृत डॉ.बैकुंठनाथ शर्गा कश्मीरी ब्राह्मणोंको #सरस्वतीनदी के किनारे रहने वाले संत-महात्माओं की संतानें बताते हैं जो कश्मीर में जाकर2000 ईसा-पूर्व++
बस गए थे। वह इन्हे शुद्ध #आर्य नस्ल का बताते हैं और इनकी उत्पत्ति भारतीय मानते हैं। इसी आधार पर वह दावा करते हैं कि कश्मीर में सिर्फ़ ब्राह्मण निवास करते थे।
लेकिन इस दावे की बाक़ी आलोचनाओं को छोड़िये, #राजतरंगिणी का एक सावधान पाठ भी इसे आधारहीन साबित करदेता है। #कल्हण न केवल+
अलग-अलग काल में भारत के अलग-अलग इलाक़ों से ब्राह्मणों के कश्मीर में आगमन की बात करतेहैं बल्कि वहां #हरिजन(पेज230) #कायस्थ(पेज246) बनिया(पेज326) #चांडाल(पेज392) #मल्लाह (पेज82 खंड2) की उपस्थिति का भी स्पष्ट ज़िक्र करतेहैं। इतना तो कहा ही जा सकता है कि कश्मीर में #चातुर्वर्ण्य का++
उद्भव केवल ब्राह्मणोंके आगमन और उपस्थितिसे तो संभव नहीं ही हो सकताथा और इस बातकी पूरी सम्भावनाहै कि वहां पहले से रह रहे #मूलनिवासियों को ही #हिन्दूधर्म में शामिल करनेके बाद इन जातियों से सम्मिलित किया गया था।साथ ही अलग-अलग कालमें #विजेता राजा भी अपनेसाथ लोगोंको लेकर यहाँ आये थे++
जिसके बहुत स्पष्ट प्रमाण राजतरंगिणी में हैं।
यहाँ कश्मीरके #संस्कृत#साहित्य के सबसे प्रितिष्ठित विद्वान् #अभिनवगुप्त के उदारहण से इसे संक्षेप में समझा जा सकताहै। #परात्रिंशिकाविवरण में उन्होंने अपने पुरखे #अत्रिगुप्त का ज़िक्र कियाहै जिनका जन्म #गंगा और #यमुना के दोआब में स्थित++
#अंतर्वेदी नामक स्थान में हुआ था। यह स्थान #कन्नौज राज्य में पड़ता था जहाँ के राजा #यशोवर्मन को हराकर #ललितादित्य मुक्तपीड़ अत्रिगुप्त को कश्मीर ले आए थे और उन्हें #झेलम नदी के किनारे #शीतांशुमौलि मंदिर के सामने एक हवेली और साथ में एक जागीर दी गई थी। यह तथ्य कश्मीरी पंडितों के++
'मूलनिवासी' होने के दावे पर गंभीर सवाल तो खड़े करता ही है, साथ में वर्तमान के राजनीतिक-सामाजिक द्वंद्वों के चलते इतिहास के आख्यानों को प्रभावित करने की कोशिशों की तरफ़ भी स्पष्ट इशारा करता है । @Ashok_Kashmir
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बुर्जहोम उत्खनन और वैज्ञानिक साक्ष्य :
1961 में आरम्भ हुई बुर्जहोम की खुदाई से प्राप्त चीज़ें कश्मीर के प्रागैतिहासिक काल की सबसे विश्वसनीय जानकारी का स्त्रोत हैं। टी एन खजांची कश्मीर मे 1960से1970
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के बिच में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उस टीम के निदेशक थे जिसने कश्मीर में बुर्जहोम में पुरातत्व सर्वेक्षण का काम शुरू किया। एम. के. कॉ. द्वारा सम्पादित किताब 'कश्मीर एन्ड इट्स पीपल' में वह कश्मीर के प्रागैतिहासिक युग के बारे में विस्तार से बात करते। 1935 में येल-कैंब्रिज
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द्वारा गए संयुक्त अध्ययन में एच.डी.ई. टेरा, टी. चार्डिन और टी.टी. पैटरसन ने कश्मीर में 'करेवा फॉर्मेशन' को लेकर रोचक निष्कर्ष निकाले। प्रतिनूतन काल, जिसमें चट्टानों का निर्माण हुआ के आरंभिक काल में जहाँ हिमालय जैसे पर्वतों का निर्माण हुआ, वहीँ कश्मीर में नदियों, झीलों और