योग शरीर और मन दोनों ही का संतुलन माँगता है..अब मन का संतुलन यानि ध्यान लाएं कहाँ से..?
कैसे दूर करें मन की चंचलता कि ध्यान सार्थक हो सके..?
प्रयास करते हैं..
क्या आपको भी आँख बंद करते ही सारे काम याद आने लगते हैं..?
या आप सोचने लगते हैं कि कुछ देर बाद क्या खाएंगे..?
या कार मेकेनिक को फोन करने की इच्छा हो जाती है..?
सारे सगे-सम्बंधियों की हारी-बीमारी, शादी-ब्याह मरण-परण याद आने लगते हैं..?
घबराइए नहीं..
क्योंकि एक सांसारिक व्यक्ति होने के नाते ऐसा होना स्वाभाविक है..
हम सब से जुड़े हैं और सब हम से..तो एक-एक कर ध्यान भंग करने वाली इन सब बाधाओं का उपचार करें..
1. सबसे पहले समुचित स्थान का चयन करें..समतल हो, स्वच्छ हो..आसन लगा हो..
वातानुकूलित हो यह आवश्यक नहीं पर खुला हो..
अच्छा सा संगीत चलाएं।आवश्यक नहीं कि भक्ति संगीत ही हो किंतु वाद्य संगीत होना चाहिए।भारतीय वाद्ययंत्रों में बाँसुरी,संतूर,जलतरंग, सितार और सरोद मन को शांत करते हैं,पाश्चात्य वाद्ययंत्रों में पियानो, गिटार आदि चुन सकते हैं।यूट्यूब के इस युग मेंमनचाहा संगीत चुनना कठिन नहीं होगा..
संगीत आपका ध्यान अन्य ध्वनियों से हटाएगा।
यदि आप संगीत पसंद नहीं करते हैं तो इयर प्लग्स लगाएं।
ध्यान करते समय आँखें बंद रखिए। कुछ लोग आँखें बंद नहीं कर पाते..उन्हें घबराहट महसूस होती है।
चिंता की कोई बात नहीं है। जब आप ध्यान करते हैं तो थोड़े अभ्यास के बाद चित्त शांत होने लगता है..धीरे-धीरे आप आँखें बंद कर ध्यान कर पाएंगे।
अपने सामने कोई अच्छा सा चित्र लगाएं।प्राकृतिक दृश्य मन में संतुष्टि और शांति जगाते हैं।अपनी यात्रा का कोई चित्र भी सामने रख सकते हैं।
चित्र के किसी पक्ष विशेष पर ध्यान केंद्रित करें। उससे जुड़ी स्मृतियां आपके चित्त को प्रसन्न करेंगी और आप अपनी दैनंदिन दौड़भाग से ध्यान हटा पाएंगे।
जहाँ तक हिन्दू धर्म का संबंध है तो हम अपने ईश्वर की मूर्ति/तसवीर आदि ध्यान में ला सकते हैं। "ओम" कार ध्यान का सर्वाधिक प्रचलित एवं सर्वसिद्ध रूप है।
मन शांत न हो और ध्यान न कर पाएं तो ध्यान पर ध्यान न दे कर अपने जीवन के किसी सुखद क्षण को याद करें। मन ही मन उस क्षण को एक बार फिर जीने का प्रयास करें।आप ध्यान कर पाएंगे।
एक और सरल उपाय है..मन ही मन उलटी गिनती बोलें..आपका ध्यान अंकों में रहेगा और आप अपनी समस्याएं/भटकाव जीत पाएंगे। यदि उलटी गिनती आपको अच्छे से आती है तो कठिनाई बढ़ाएं..एक छोड़ कर एक गिनें आप अपना ध्यान अन्य बातों से हटा पाएंगे।
कुछ लोग जब ध्यान करने लगते हैं तो उन्हें नींद आ जाती है। इसका अर्थ यह है कि वे मानसिक रूप से बहुत थके हुए हैं और उनका मस्तिष्क खाली होते ही विश्राम चाहता है।
इसका अर्थ ये नहीं कि वे ध्यान न करें। समय बदल कर प्रयास करें।
सबसे महत्वपूर्ण है समय का चयन..योगी और सिद्ध पुरुष कभी भी और कहीं भी अपने मन को साध कर ध्यान लगा सकते हैं। हम जैसे साधारण लोगों को प्रयास और अभ्यास करना पड़ता है।
प्रातःकाल का समय श्रेष्ठ रहता है जब वातावरण अपेक्षाकृत रूप से शांत होता है।
संध्या समय भी उपयुक्त होगा।
आपने देखा होगा कई बार लोग मंदिर में आरती गाते-गाते इतने ध्यानमग्न हो जाते हैं कि सब कुछ भूल जाते हैं। ऐसा तब होता है जब हम स्वयं को ईश्वर के चरणों में पूर्णतया समर्पित कर देते हैं और सारा त्रास भूल जाते हैं।
ध्यान केंद्रित करने के लिए आप सुगंध का सहारा भी ले सकते हैं। अगरबत्ती या सुगन्धित मोमबत्तियों का उपयोग भी किया जा सकता है।
कई लोग इस के लिए श्वास पर ध्यान केंद्रित करने को कहते हैं..
विपश्यना गुरु श्री सत्यनारायण गोयनका सहज श्वास पर ध्यान केंद्रित करने का परामर्श देते थे। उनके अनुसार हमें अपनी श्वास के आने-जाने पर पहरेदार की तरह जागरुक हो कर ध्यान करना चाहिए।
अंत में बात आती है ध्यान कितना करें?
कोई कठोर नियम नहीं हैं ..आप अपनी क्षमता और सुविधा के अनुसार जब जितना संभव हो ध्यान कर सकते हैं किंतु आरंभ में प्रयास करें कि रोज एक निश्चित समय पर ही करें।
बाद में अभ्यास होने पर आप किसी भी समय ध्यान कर पाएंगे।
ध्यान अवश्य करें क्योंकि इसके अनेक लाभ हैं। ध्यान आपकी कार्यक्षमता और कार्यकुशलता में वृद्धि करता है। यह हमारा साक्षात्कार स्वयं से तो कराता ही है, हमारे भीतर बसे परमात्मा से भी हमारा परिचय कराता है।
🙏
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
सोच कर ही हँसी आती है..किस तरह शेखर गुप्ता जैसे धर्मनिरपेक्षता के प्रवर्तक इस बात को बढ़ावा देते हैं कि समाज के एक बड़े तबके को हाथों में उठा कर रखा जाए,उसके सब नखरे उठाए जाएँ,उसकी सही गलत हर बात को माना जाए,कहीं वो रूठ न जाए..कहीं वो बुरा न मान जाए,दूसरों के विरुद्ध न हो जाए..
अजीब बात है..इस डर ने न केवल हमारी लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्षता को विकृत किया है बल्कि हमें सबसे ज्यादा हानि पहुँचाई है..
As is evident C-19 has taken it's toll..
On everyone..Teachers and students alike..
Like everything else teaching Post Corona
Is going to be much more challenging a task.
Teaching a class of 40-50 teens bubbling with insane energy and enthusiasm gives an instant adrenaline rush..The Good, bad and ugly sort of motley crowd armed with the googlies beyond google are bound to bowl you off..
Brace yourself dear teachers..
Considered superhumans until last couple of years,these bright young minds are now equipped with full awareness that the teacher is just another human being.
You will have to take them in your stride once again..
ओलंपिक प्रदर्शन पर चार साल में एक बार प्रलाप से कुछ नहीं होता..
बच्चों के साथ सर्दी-गर्मी-बरसात भूल खेल के मैदान में तपस्या करनी होती है..
हैं तैयार आप..?
फेल/पास सब छोड़ कर धुन लगानी होती है..
हैं तैयार आप?
सुबह चार बजे से आरंभ होती है दिनचर्या..
हैं तैयार आप?
इस शहर से उस शहर दौड़ लगानी होती है बच्चे को लेकर..तैयार हैं आप!
खिलाड़ियों को अक्सर किसी छात्रावास या विद्यालय में एक साथ ठहराया जाता है..तैयार हैं आप?
कोच की सुननी होती है..शादी-ब्याह सब भूलना होता है..तैयार हैं आप?
भारत खेल प्राधिकरण के चक्कर काटने होते हैं..तैयार हैं आप?
व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धाओं के उपकरण महँगे आते हैं..तैयार हैं आप?
लालफीताशाही से लड़ने को तैयार हैं आप..तैयार हैं आप?
भाई-भतीजावाद से पार पाना होता है..तैयार हैं आप?
खेलों के क्लबों की सदस्यता लेनी होती है..तैयार हैं आप?
ड्राइंग रूम में टीवी चैनल बदल कर खिलाड़ी नहीं बनते..
जानना चाहेंगे कि जूही जी को ये एक्टीविज्म का जोश क्यों चढ़ा..?
आज तक जूही विवादों से दूर रही है तो अभी ऐसा क्या हुआ कि वे सीधे न्यायालय पहुँच गई..?
क्या हो सकती है उनकी इस तुरत सक्रियता के पीछे की कहानी..?
जूही ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका में कहा कि "हम ने इस विषय पर स्वयं छानबीन कर पता लगाया है कि 5G विकिरण हानिकारक हैं.."
उनके इस "हम" में शामिल हैं..जूही स्वयं, सेलोरा और विल्कॉम..
जूही इस क्षेत्र में पिछले एक दशक से सक्रिय हुईं जब से उन्होंने अपने निवास स्थान के आसपास मोबाइल रेडिएशन के विरुद्ध आवाज उठाई। विकिरण विरोधी अभियान में वे IIT प्रोफेसर गिरीश कुमार का साथ दे रही हैं..
व्यापारियों द्वारा कालाबाजारी और जमाखोरी तो होती आई है..आखिर बाजार में बैठे हैं..मगर कोरोना महामारी में सरकारें भी कालाबाजारी पर उतर आईं..!
कारण..?
मोदी से नफरत या मुनाफे की हुड़क..
अब जनता कहाँ जाए..?
चौथा स्तंभ जिसका उत्तरदायित्व था कि जनता की बात रखता..सरकारों पर नज़र रखता,यहाँ-वहाँ जलती लाशों, चिताओं की तस्वीरें बेचता रहा,लोगों को भयभीत करता रहा..उल्टे-सीधे अर्थहीन विषयों पर कुकरहाव करता रहा..और फ्रंट लाईन वारियर के नाम मुफ्त वैक्सीन माँगता रहा..
तो जनता कहाँ जाए..?
पंजाब सरकार 400रू की दर से वैक्सीन खरीद कर कोल्ड स्टोरेज में रख देती है..वैक्सीन की कमी का ठीकरा रो रो कर केन्द्र के नाम फोड़ती है और मूल्य बढ़ते ही प्रायवेट अस्पतालों को 1060रू में बेचती है..और वे इसे 1500 से लेकर 1800 तक बेचते हैं..
कोरोना की दूसरी लहर में प्रशासन जनता को विश्वास दिलाने में असफल रहा फिर चाहे वे राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार.. ऑक्सीजन,वैंटीलेटर,रेमीदेसिविर, वैक्सीनेशन किसी भी क्षेत्र में लगा ही नहीं कि हमारा कोई धणी-धोरी है,जनता ने स्वयं को इतना अनाथ, इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया..
भ्रष्टाचार मिटाने का ढोल पीटते रहें और हमारी ही नाक के नीचे दवाओं की कालाबाजारी,ऑक्सीजन की जमाखोरी चलती रही तो सरकार रही कहाँ..?
कोई सात सौ सिलेंडर दबा कर बैठा रहा और न्यायालय ने उसे जमानत दे दी..
थू है ऐसी न्याय व्यवस्था पर..!
क्या न्याय ऐसा होता है..?
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही सोशल मीडिया पर कुतरभसाई कर के अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझने लगे हैं..
किसी के पास किसी तरह का कोई जवाब नहीं है सिवा तू-तू मैं-मैं के..
और टीवी पर डिबेट के नाम की नौटंकी की क्या कहिए..?
शर्म आती है कि ये राजनैतिक दलों के प्रवक्ता हैं..