#ChhathPuja
1.प्रश्न ये है,आखिर बिहार/आसपास के क्षेत्र में ही छठ क्यों? यह कब से मनाया जा रहा है और इसकी सर्वव्यापकता का राज क्या है? छठ की कुछ बातें उल्लेखनीय हैं- सूर्योपासना, पुरोहित या कर्मकांड का न होना, व्यापक समाज की भागीदारी और स्थानीय वस्तुओं, फलों और उत्पादों का प्रयोग
#ChhathPuja 2. कह सकते हैं कि यह पर्व 'सभ्यता-पूर्व' पर्व है- उस समय का पर्व, जब समाज अपने ठोस रूप में संगठित होना शुरू नहीं हुआ था. शायद इसलिए भी इसमें सभी जाति-वर्ण के लोग एक जैसी श्रद्धा से भाग लेते हैं.
#ChhathPuja 3. रामधारी सिंह दिनकर अपनी किताब ''संस्कृति के चार अध्याय'' में संकेत देते हैं कि हो सकता है इस प्रकार के पर्व उन अनार्य और जनजातीय महिलाओं द्वारा आर्यों की संस्कृति में प्रविष्ट किए गए हों जिनसे विवाह आर्य लोगों ने इन क्षेत्रों में आगमन के बाद किया था.
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4.लेकिन इस तर्क में एक पेंच हैं-जनजातीय लोग प्रकृतिपूजक तो थे, लेकिन सूर्योपासक भी थे इस पर संदेह है! सूर्य आर्यों के देवता थे!
एक सिद्धांत शाकलद्वीपी ब्राह्मणों से जुड़ा है. शाकलद्वीपी ब्राह्मण मगध और भोजपुर इलाकों में रहते हैं. ये शाकलद्पीवी कौन थे?
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5.शाकलदीपी/ शकद्वीपी ब्राह्मण वे थे जो शक द्वीप पर निवास करते थे जो वर्तमान ईरान माना जाता है.कहते हैं कि सुदूर अतीत में ये लोग मगध से ही उधऱ गए थे,अत: इन्हें मग भी कहा गया.लैटिन ग्रंथों में ईरान के प्राचीन निवासियों को मैगिज भी कहा गया है जो सूर्य के उपासक थे.
#ChhathPuja 6. गौर कीजिए कि ईरानी मूल के पारसी भी सूर्य के उपासक हैं. शाकलदीपी ब्राह्मणओं के कुलगीत को मगोपाख्यान कहा जाता है. लेकिन सवाल ये है कि ये शाकलदीपी ब्राह्मण ईरान से बिहार कैसे आए?
#ChhathPuja 7. एक कथा के मुताबिक, कृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग हुआ तो वैद्यों ने उन्हें सूर्य को समर्पित एक यज्ञ करने की सलाह दी. कुष्ठ रोग से जुड़ी भ्रांतियों की वजह से स्थानीय ब्राह्मणों ने इससे इनकार कर दिया तो कृष्ण ने शक द्वीप के ब्राह्मणों को द्वारका आमंत्रित किया.
#ChhathPuja 8. शक द्वीप के ब्राह्मण सूर्य के उपासक भी थे और वैद्य भी. शक द्वीप से द्वारका बुलाना भौगोलिक रूप से भी उचित जान पड़ता है. कहते हैं कि साम्ब का रोग उन्होंने अपनी युक्तियों से दूर कर दिया और वहीं बस गए. इस प्रकार सूर्योपासक एक वर्ग गुजरात में बस गया.
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9.लेकिन कालांतर में जब द्वारका का पतन हुआ तो ये शक-द्वीपीय ब्राह्मण मगध के इलाकों में बस गए जिसका महाभारत काल के बाद पुन: उत्थान हो रहा था. ये वहीं ब्राह्मण हैं जिनकी वजह से गंगा के दक्षिण भी सूर्य मंदिरों की एक श्रृंखला बनी और उनके पुरोहित ये शाकलदीपी ही होते हैं.
#ChhathPuja 10. संभवत: सूर्योपासन और छठ पूजा उस समय से शुरू हुई हो लेकिन यहां पर भी एक पेंच है. ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा शुरू की गई सूर्योपासना में वैदिक मंत्र और कर्मकांड जरूर होने चाहिए थे लेकिन छठ पूजा में ऐसा नहीं है!
#ChhathPuja 11. उधऱ गुजरात में नर्मदा तट पर भरुच (भृगुकच्छ) सूर्य और उनकी पत्नी ऊषा की पूजा का बड़ा केंद्र था. वहां बाद में गुर्जर सम्राट जयभट्ट द्वीतीय ने एक विशाल सूर्य मंदिर की स्थापना भी की. गुर्जर राजा-गण वैसे भी बड़े सूर्योपासक हुए.
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12.यानी गुजरात में बसे शाकलदीपियों कारण वहां सूर्योपासना पसरी जो बाद में मगध आई. हाल के कुछ शोध बताते हैं कि सूर्य मंदिरों की श्रृंखला गंगा से उत्तर मिथिला में थी और सुशांत भास्कर ने इस पर बढ़िया लेख भी लिखा है.गंगा से दक्षिण ये श्रृंखला संभवत:कोणार्क तक पहुंच गई थी
#ChhathPuja 13. औरंगाबाद का देव, पटना का पुन्डारक (पुण्यार्क) और झारखंड में कई जगह मिल रहे सूर्य मंदिर इस बात का संकेत करते हैं. ये बात सच है कि छठ पूजा सिर्फ मगध में ही नहीं होती, बल्कि मिथिला में भी उसी श्रद्धा से मनाई जाती है.
#ChhathPuja 14. सवाल यह है कि मिथिला में सूर्योपासना कब से शुरू हुई? सवाल यह भी है क्या कर्मकांडी विधि से सूर्योपासना और लोकाचार के रूप में छठ के तौर पर मनाई जाने वाली नदी और सूर्य की पूजा में कितनी साम्यता है और कितना अंतर है?
#ChhathPuja 15. महाभारत और विभिन्न पुराणों के आधार पर लिखे अपने ग्रंथ 'युगांधर' में शिवाजी सावंत लिखते हैं कि एक बार स्यमंतक मणि को लेकर श्रीकृष्ण और बलराम में मतभेद हुआ और बलराम अपने समर्थकों के समूह के साथ मिथिला में आकर रहने लगे.
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16.श्रीकृष्ण ने जब प्राग्ज्योतिषपुर (वर्तमान गुवाहाटी और आसपास) के राजा नरकासुर का वध किया तो द्वारका वापसी के दरम्यान उन्होंने बलराम से मिथिला में मुलाकात की और उन्हें वापस लौटने के लिए मनाया. कहते हैं कि बलराम के बहुत सारे साथी उस प्रदेश में बस गए!
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16.क्या उस इलाके में यादवों की सघन आबादी का उस पौराणिक घटना से कोई संबंध है? क्या मैथिली और गुजराती में कुछ समानता होने का यह कारण हो सकता है? क्या मैथिली, बांग्ला,नेपाली और गुजराती में कुछ सामानता के सूत्र उस पौराणिक घटना में निहित हो सकते हैं? यह गहन शोध का विषय है
17. छठ के आसपास ही मिथिला में सामा-चकेबा मनाया जाता है जो भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है. सामा (या श्यामा!) कृष्ण की बेटी थी और साम्ब की बहन. सामा पर मंत्री चुरक (जिसे चुगला कहा गया) ने एक ऋषि से अवैध संबंध का आरोप लगाया जिसपर कृष्ण ने सामा को पक्षी बनने का श्राप दे दिया.
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18.बाद में साम्ब ने तपस्या कर कृष्ण को इस बात के लिए मनाया कि वे सामा को श्राप मुक्त करे.कृष्ण ने कहा कि सामा साल में एक बार आठ दिनों के लिए मनुष्य रूप में सामने आएगी और उसी दौरान सामा-चकेबा का पर्व मनाया जाता है.
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19.लोकगीतों में मंत्री चुरक (चुगला) की निंदा की जाती है और उसकी मूंछ में आग लगा दी जाती है. सामा-चकेबा छठ के खरना दिन शुरू होता है और पूर्णिमा दिन खत्म. सामा-चकेबा मिथिला में ही मनाया जाता है.
20. छठ व्रत के बारे में कहते हैं कि असाध्य और गंभीर रोग जैसे कुष्ठ, विकलांगता, दाग, बदनामी, आपदा इत्यादि को दूर करने की प्रार्थना की जाती है.इससे पहले हम बता चुके हैं कि साम्ब को कुष्ठ रोग था जिसके लिए शाकलदीपी ब्राह्मणों को शक द्वीप से बुलाया गया था और जो बाद में मगध में बसे !
21. यहां कुछ न कुछ ऐसा है जो साम्ब, कुष्ठ रोग, द्वारका, शाकलदीपी ब्राह्मण,सूर्य-मंदिरों की श्रृंखला, छठ और सामा-चकेबा में एक महीन संबंध दर्शाता है. हालांकि यह प्रश्न अनु्त्तरित है कि सामा-चकेबा का त्योहार सिर्फ मिथिला में ही क्यों मनाया जाता है, गुजरात या ब्रज में क्यों नहीं!
#ChhathPuja 22. एक प्रश्न का जवाब फिर भी नहीं मिलता कि अगर शाकलद्वीपी ब्राह्मणों के प्रभाव में यह पर्व फैला और राजाओं ने कई सूर्य-मंदिर भी बनवाए, तो भी इसमें पुरोहित क्यों नहीं हैं? इसका हर जाति-वर्ग में इतना प्रभाव कैसे है?
23.एक धारणा बौद्ध धर्म से भी संबंधित है. सूर्य, बौद्ध और हिंदू परंपराओं में भी मिलते हैं और कई सूर्य मंदिर उन राजाओं द्वारा बनवाए प्रतीत होते हैं जो बौद्ध थे. तो क्या सूर्योपासना की कोई ऐसी विधि विकसित कर दी गई जो पुरोहित और कर्मकांड-विहीन थी और जिसने बाद में छठ का रूप ले लिया?
24.एक कथा के मुताबिक संभवत: छठ अंगराज कर्ण के कारण लोक-पर्व में परिवर्तित हो गया.कर्ण को आजीवन लांछन झेलना पड़ा था.उन्होंने सूर्य से खुद को मान्यता देने की प्रार्थना की थी.कर्ण विद्रोही चरित्र है.संभवत:परवर्ती पीढ़ियों ने विद्रोह के प्रतीक के रूप में इसे कर्मकांड विहीन कर लिया
#ChhathPuja 25. छठ पूजा में स्थानीय वस्तुएं या उत्पाद ही प्रयोग में लाए जाते हैं. उस दृष्टि से छठ पूजा की शुरुआत तब की है जब मानव सभ्यता सिर्फ फल-फूल और कंदमूल पर जी रही थी और मिठाई बनाना नहीं सीखा था या सुव्यवस्थित खेती का विकास नहीं हुआ था.
#ChhathPuja 26. उस समय समाज में वर्ण-व्यवस्था स्थापित नहीं हुई थी या अपने शुरुआती रूप में थी. कुल मिलाकर इतना कहा जा सकता है कि छठ पर्व समाजिक समरसता और उदारता का बड़ा प्रतीक पर्व है और शायद यहीं इसकी लोकप्रियता का कारण भी है.
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27.उस क्षेत्र में अगर हम इसमें प्राचीन मिथिला की उदार जनक-परंपरा और बाद में क्षेत्र का बौद्ध धर्म के प्रभाव में होना भी जोड़ दें-तो उदार परंपराओं की एक श्रृंखला बन जाती है. बहरहाल, छठ पर्व पर अभी कई दृष्टिकोण आने बाकी हैं और यह कोई अंतिम दृष्टिकोण नहीं है।(End)
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#ChhathPuja#Economics
Considering greater Bihar population (including part of UP east) at 15 cr and migration of 20% as not all could celebrate Chhath (and not only 20 pc are migrant),it happens to be around 2.5 cr household. (1)
#ChhathPuja#Economics
Reducing 15 % Muslim population brings us at 2.1 cr household. A conservative estimate would be the expense of Rs 1000 household each. So, it may stand out at 2500 cr rupees minimum.(2)
#ChhathPuja#Economics
I have not added crackers, sound, keertan, celebrity singers and Darbhanga-Patna air travel cost and Railway revenues! Also, the cost of cleanliness, water body cleaning, lesser crime scenerio may be add to another thousand crore rupees (3 )
#BhagalpurAirport
कल ट्विटर पर भागलपुर एयरपोर्ट ट्रेंड कर रहा था और मेरा मत है कि वहाँ एक एयरपोर्ट होना ही चाहिए। बल्कि मैं इसमें कुछ संशोधन के साथ(अगर संभव हो तो) इसे भागलपुर और मुंगेर के बीच में कहीं बनाने की मांग करता हूँ। (1)
#BhagalpurAirport
भागलपुर बिहार का एक प्रमुख व्यापारिक शहर है और दक्षिण पूर्वी बिहार का तो सबसे बड़ा शहर है। इसकी आबादी करीब 5 लाख है और हस्तशिल्प से लेकर, शिक्षा, साहित्य, कला आदि में इसका बड़ा योगदान रहा है। यहां शरतचंद्र जैसे बड़े लेखक भी आकर रहे, जिनका यहीं पर ननिहाल था। (2)
#BhagalpurAirport
भागलपुर से देश के अन्य हिस्सों में जाने के लिए अभी ट्रेन से 25 से 50 घंटे तक लगते हैं। यहाँ से सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट पटना या बंगाल में बागडोगरा है जहाँ जाने में कम से चार-पाँच घंटे लगते हैं। दरभंगा का नया एयरपोर्ट भी वहाँ से करीब पाँच-छह घंटे की दूरी पर है। (3)
बिहार में खासकर मिथिला क्षेत्र की बात करें तो किसानी की हालत खराब तो है, लेकिन वृक्षारोपण/बागवानी बढ़ रही है। ख़ासकर लोग आम, जामुन, महोगनी और सागवान के पेड़ लगा रहे हैं। मछली पालन बढ़ रहा है, लोग तालाब खुदवा रहे हैं।आंध्र की मछली अब नहीं दिखती, बंगाल से मछली की आमद बढ़ी है। (1)
बंगाल से उत्तर बिहार में मछलियों की आवक का कारण चार लेन हाईवे है और बेहतर ग्रामीण सड़कों का होना है। वहाँ से जिंदा मछलियाँ आती हैं और यहाँ के तालाबों में 3-4 दिन तक रखी जाती हैं। स्वाद में बहुत फर्क नहीं है। आज से 10-15 साल पहले तक यहाँ पर आँध्र की मछलियों का राज था। (2)
सरकार भले ही बिहार में ज़मीन की चकबंदी न कर पाई हो, पर लोग निजी स्तर पर ज़मीन को एक जगह लाने की कोशिश कर रहे हैं। पलायन ने आबादी का घनत्व घटाया है, समाज में बाहरी पैसों से ही सही, थोड़ी समृद्धि दिखती है। कानून व्यवस्था तुलनात्मक रूप से ठीक है। ज़्यादातर झगड़े भूमि विवाद के हैं(3)