व्हाइट हाउस में रंभाते हुए जैकोब चांसले याद हैं??
इनको 41माह की जेल हो गयी है। सजा के पहले इन्होंने लम्बी चौड़ी स्पीच दी, और बताया कि देश समाज और धर्म की रक्षा के लिए गौमाता बनकर इन्होंने कैपिटोल हिल याने अमेरिकन सन्सद पर चढ़ाई कर दी थी।
गौमाताके लिए भारत मे भी सन्सद पर चढ़ाई
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कर दी थी।
गौमाता के लिए भारत मे भी सन्सद पर चढ़ाई करने वाले एक बाबा हुए थे। नाम है - करपात्री जी महाराज।
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व्हाट्सप यूनिवर्सिटी के डिजिटल ग्रन्थ " दुष्ट इंदिरा की बदमाशियां" -भाग 22, फारवर्ड क्रमांक 169228 (2)ख के अनुसार..
करपात्री जी महाराज एक महान सन्त, स्वतंत्रता संग्राम
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सेनानी,गोभक्त एवं वचनसिद्ध संत थे।उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था।वे हिन्दू दसनामी परम्परा के संन्यासी थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम”हरिहरानन्द सरस्वती”था किन्तु वे“करपात्री”नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुली का उपयोग खानेके बर्तन की तरह करते थे।
उन्होने अखिल भारतीय
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राम राज्य परिषद नामक राजनैतिक दल भी बनायाथा।धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें ‘धर्मसम्राट’की उपाधि प्रदान कीगई।
इंदिरा गाँधीका उस समय चुनावथा।करपात्री महाराज से इंदिरा गाँधी ने वादा किया की अगर वह चुनाव जीतगई तो वो गौरक्षा पर कानून बनाएगी।
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इंदिरा गाँधी चुनाव जीत गयी।कुछ दिन बाद इंदिरा गाँधी से करपात्री महाराज ने उनको उनका वादा याद दिलाया। लेकिन इसके बाबजूद वह इस बात को टालती रही।
ऐसे में करपात्री जी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा। उन्होंने योजना बनाई की संसद को चारो ओर से घेर लेंगे। फिर न तो कोई अंदर जा पायेगा
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नहीं बहार आ पायेगा।7नवंबर 1966 को संसद का घेराव किया गया। कहते है की दिल्ली का पूरा इलाका लोगो की भीड़ से भर गया।10से 20हजार तो केवल महिला थी।
जब इंदिरा गाँधी को यह सूचना मिली तो उन्होंने निहत्थे करपात्री महराज और संतो पर गोली चलाने का हुक्म दे दिया। पुलिस ने संतो और गौरक्षक
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पर अंधाधुन फायरिंग शुरू करदी।
इस घटनाके बाद करपात्री जी महाराजने इंदिरा गांधीको श्राप दिया कि जिस तरह से संतो और गौरक्षको पर अंधाधुंध गोली मारी है ठीक उसी तरह गौअष्टमी के दिन ही तेरे वंशका नाश होगा।
यह तो सत्य है कि इंदिरा गाँधी,संजय गांधी और राजीव गाँधीकी अकाल मृत्यु हुई थी।
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माना जाता है कि उस दिन अष्टमी तिथि ही थी।
असल मे कोई 3-4 हजार की भीड़ ने डंडे, त्रिशूलों-फ़रसों जैसे "सांकेतिक हथियार" लेकर सन्सद में घुसने की कोशिश की। लाठी चार्ज हुआ, हवाई फायर हुए। भीड़ दूसरे इलाकों में भाग गई। हिंसा फैली, बसें वगेरह फूंक दी। कामराज के बंगले पर हमला हुआ।इस
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हड़बोंग में 40 लोग घायल हुए, जिसमे 19 पुलिसवाले थे।
बाबा की पार्टी, "रामराज्य परिषद' संघियों का अस्थायी ठिकाना थी। जब गांधी हत्या के बाद बैन लगा था। बाद में जनसंघ बन गया, तो बाबा और उनकी पार्टी यूजलेस हो गए। 1966 में जब विजयराजे सिंधिया और इंदिरा गांधी के बीच ठन गयी, तो दलबदल
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दलबदल से प्रदेशो की कांग्रेसी सरकारें गिराई गयी। संविद सरकारें बनी।
लेकिन दिल्ली में इंदिरा को बम्बू न किया तो मजा कैसे आये। गवालियर से बसों में भरकर लोगबाग दिल्ली भेजे गए। करपात्री जी महाराज,त्रिशूलधारी अन्ना बने।
भारत के इतिहास में सन्सद पर पहला हमला हुआ।
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व्हाइट हाउस पर पहला हमला, ब्रिटिश फौजो ने 200 साल पहले किया था। भारत मे दूसरा हमला 50 साल बाद ही 2001 में हुआ।
किसानों ने पकड़कर उल्टा लटका दिया है। वो 6 मांगों के साथ शहंशाह-ए- आलम को टेबल पर आने, नेगोशिएट करने का आमंत्रण दे रहे हैं।
अव्वल तो सर्वशक्तिमान देवता को, जिसके आगे नर, किन्नर, देव, उपदेव, भूत, पिशाच, ग्रह, उपग्रह नक्षत्र सब झुकझुककर सिजदा करते हैं..
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उस फिरौन को टेबल पर बुलाना ही अपमान है।
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लेकिन फिर भी, अगर आसमां के जीनों से उतर कर, खुदा टेबल पर आ भी गया तो,एक एक मांग, अपमान का घूंट है।
आंदोलनकारियों पर से केस वापस लेना, मौतों का मुआवजा देना, और फिर स्मारक बनवाना.. अरे ,तीन कानून वापस लेने की जलालत काफी नही थी क्या??
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पर सबसे कठिन है MSP की गारन्टी देना। केस वापसी, मुआवजा या स्मारक बनाना तो सस्ता-मस्ता काम है। कूदकर हरियाणा और यूपी की सरकारें हां कर देंगी, अपनी ओर से घोषणा कर देंगी। लेकिन MSP पर कानून बनाना...ये कैसे होगा??
कृषि तो राज्य सूची का विषय है।
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तीन कृषि क़ानून को जबरन कामर्स,
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" थाली का बैंगन "
एक दिन बादशाह अकबर बैंगन की खूब तारीफ़ कर रहे थे.
पास खड़े बीरबल भी बादशाह की हां में हां मिला रहे थे.साथ में अपनी तरफ से दो-चार कसीदे भी बैंगन की शान में पढ़ दे रहे थे: 'बैंगन है ही ऐसी सब्जी,जो न सिर्फ देखने में बल्कि खाने में भी बढ़िया रहती है,इसीलिए तो
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ऊपरवाले ने इसके सिर पर ताज दिया है.'
इत्तेफ़ाक़न कुछ दिनों बाद बैंगन की तरकारी खानेके बाद बादशाह सलामत की तबियत ख़राब हो गई,
उसके बाद अकबर अगले दिन दरबार में बैंगन को जमकर कोसनेलगे.
बीरबल ने फिर बादशाह का साथ दिया:'सही कह रहे हैं जहाँपनाह आप,इसी वजह से तो इसे बे-गुन यानी बिना
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किसी गुण का कहा जाता है .देखिये, इसी के चलते बनाने वाले ने इसके सिर में एक बड़ा सा कीला भी ठोंक दिया है.'
बादशाह मुस्कुराते हुए बोले...बीरबल , उस दिन तो तुम बैगन के गुण बताते नहीं थक रहे थे और आज उसकी बुराई पर बुराई किए जा रहे हो ।
आज किसान आंदोलन का 361वां दिन है, यानी एक साल बीतने में सिर्फ़4दिन बाकी हैं।
रोज़ की तरह टिकरी बॉर्डर पर क्रांति के गीत हैं, जोशीले इंकलाबी नारे हैं।सिर पर छत नहीं, लेकिन वाहे गुरु पर अटूट विश्वास का सायाहै।
इस आंदोलनमें जो700से ज़्यादा किसान शहीद हुए,उनमें ज़्यादातर छोटे
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किसान थे- इस पर विस्तृत रिपोर्ट आ चुकी है।
नरेंद्र मोदी एंड कंपनी को इनसे कोई मतलब नहीं। उन्हें 20 लाख करोड़ के कृषि क्षेत्र को कॉर्पोरेट के हवाले करना है।
किसानों को छोटा-बड़ा कर बांटने की उनकी साज़िश नाकाम रही। अब तो माफ़ी मांगने का सियासती दांव भी नाकाम नज़र आ रहा है।
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पूरे देश में सत्ता विरोधी लहर है।युवा बेरोज़गार उसी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर पूरी रात अखिलेश की रैली में चलते रहे, जहां मोदी ने उड़नखटोले उड़ाए थे।लेकिन पेडिग्री मीडिया ने नहीं दिखाया।
अब तो भक्त भी यकीन से नहीं कह पा रहेहैं कि मोदी है तो मुमकिनहै।
अमित शाह, राजनाथ सिंह जैसे
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दिखा रहा है कि हमारा भविष्य कैसा होगा जहाँ बाकी देशों में "चुनाव "विकास के आधार पर लड़ा जाता है वही भारत में इलेक्शन "हिंदू , मुसलमान , मंदिर , मस्जिद , गाय , गोबर , गोमूत्र " इसके सिवा कुछ नहीं.! दुनियां को अन्न किसान देते हैं हमारे यहां अन्नपूर्णा की पत्थर की मूर्ति देती है ,
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कनाडा से पत्थर की मूर्ति लाकर लाखों रूपया खर्च कर उसमे प्राण प्रतिष्ठाका ढोंग करके धर्म के नाम पर नाटक किया जाताहै।
भारत की युवा पीढ़ी को शिक्षासे इसलिए दूर रखा जाताहै क्योंकि शिक्षा से भारत का युवा जागरुक होगा जिससे उसे दुनिया की समझ होगी और वो फिर सरकार से हिसाब मांगेगा इसी
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वो हिन्दू माँ का लाल था।
और पठान का बच्चा था। बेहद दयावान, कृपालु , प्रजापालक था। एंटायर फ़ारसी, कुरान, एस्ट्रोनमी, गणित, विज्ञान और इकॉनमिक्स का ज्ञाता था। 19-19घण्टे बस यही सोचता कि प्रजा का भला कैसे हो। उसने बारी बारी से "शबका भला" करने का डिसाइड किया।
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तो उसने तय किया
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कि वो किसानों की आय दोगुनी कर देगा। रियासत की सारी जमीन जिस पर काश्त न की जाती हो, गरीब मजदूरों को खेती के लिए देना तय किया। जमीन पाकर जब वे "उन्नत खेती" करते,तो आय डबल उनकी भी, राजा की भी...
योजना शुरू हुई। लेकिन राजा की पार्टी के अफसरों ने अच्छी अच्छी जमीनों को खुद ही बेनामी
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रख लिया।बेकार जमीनें जनतामें बांट दी।घर से दूर,जंगलों ,पहाड़ों की तलहटी में,बंजर बियाबान में जाकर कौन खेती रहता।योजना फेल हो गयी।
लेकिन अफसर,योजना की सफलता के किस्से बताते रहे,और तकाबी,ट्रेनिंग और पानी की व्यवस्था के नाम पर खजाने से पैसे लेतेरहे। सफलताके आंकड़े जारी होतेरहे।
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👉अगर मोदी सरकार को हटानें की कोशिश की तो भारत में सीरिया जैसे गृहयुद्ध की सुरुवात हो जायेंगी- श्रीश्री रवि शंकर
👉2019 का चुनाव लोक तांत्रिक भारत का आखरी लोकसभा चुनाव है, 2024 में चुनाव नहीं होगा- साक्षी महाराज
👉हमारी सरकार 50 साल तक भारत की सत्ता पर बनी रहेगी-अमित शाह (1)
देश 2014 के बाद सही अर्थ में आजाद हुआ है- कंगना राणावत
पिछले 70 साल का कचरा साफ करने में समय तो लगेगा ही- विक्रम गोखले
कभी सोंचा आपने कि समय समय पर इस तरह के बयान संघ भाजपा और मोदी सरकार के मंत्रीयों ने और उद्योगपति समर्थकों ने क्यों दिये है??
जो घटिया,दंगाई और जलील
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आदमी बुढ़ापे तक बूढ़ी मां को और उसकी गरीबी को बेंचता रहा,बीवी को छोड़ कर भाग गया,कभी अपने बाप का जिक्र नही करता।जिस पर 2014 तक न जाने कितने आपराधिक मुकदमे थे,जो बेगैरत जवानी से लेकर बुढ़ापे तक देश से झूठ बोलता रहा,उस मक्कार को क्यों अवतारी घोषित किया जा रहा है??
अम्बानी,अडानी
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