वो हिन्दू माँ का लाल था।
और पठान का बच्चा था। बेहद दयावान, कृपालु , प्रजापालक था। एंटायर फ़ारसी, कुरान, एस्ट्रोनमी, गणित, विज्ञान और इकॉनमिक्स का ज्ञाता था। 19-19घण्टे बस यही सोचता कि प्रजा का भला कैसे हो। उसने बारी बारी से "शबका भला" करने का डिसाइड किया।
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तो उसने तय किया
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कि वो किसानों की आय दोगुनी कर देगा। रियासत की सारी जमीन जिस पर काश्त न की जाती हो, गरीब मजदूरों को खेती के लिए देना तय किया। जमीन पाकर जब वे "उन्नत खेती" करते,तो आय डबल उनकी भी, राजा की भी...
योजना शुरू हुई। लेकिन राजा की पार्टी के अफसरों ने अच्छी अच्छी जमीनों को खुद ही बेनामी
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रख लिया।बेकार जमीनें जनतामें बांट दी।घर से दूर,जंगलों ,पहाड़ों की तलहटी में,बंजर बियाबान में जाकर कौन खेती रहता।योजना फेल हो गयी।
लेकिन अफसर,योजना की सफलता के किस्से बताते रहे,और तकाबी,ट्रेनिंग और पानी की व्यवस्था के नाम पर खजाने से पैसे लेतेरहे। सफलताके आंकड़े जारी होतेरहे।
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वक्त आया तो बताया गया कि किसान की इनकम डबल हो गयी है। राजा ने टैक्स डबल कर दिया। भाई, इत्ता कमा रहे हो, तो राष्ट्र की सेवा में कुछ अर्पण करो न..
दुर्भिक्ष था, उल्टे त्राहि त्राहि मच गई। राजा की एजेंसियां लोगो के घरों में घुसकर मारपीट करती, कोड़े के बल पर टैक्स वसूलती।
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ज्यादा खुद खा जाती, थोड़ा खजाने में देती।
राजा को आया गुस्सा। उसे पता चला कि खूब सारा काला धन,चांदी के टंके के रूप मे दुष्टों ने जमा कर लिया है। उसने काले धन पर चोट की। एक दिन अचानक उसने कहा- चांदी का रुपया बन्द, आज से तांबा ही चांदी है।
फिर ..??
फिर क्या- "घर मे शादी है,
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पैसे नही हैं"
लेकिन ये हिंदुस्तान था। राजा डाल डाल, तो प्रजा पात पात। लोगो ने घर मे चांदी छापनी शुरू कर दी। मने अब तो तांबा ही चांदी था न.?
इकोनमी की वाट लग गयी। राजा डेस्परेट होकर नए नए तरीके निकालता। कभी डिजिटल करेंसी, कभी क्रिप्टो करेंसी, कभी कुछ कभी कुछ। लेकिन होना हवाना
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कुछ नही था।फेक करेंसी फैल गयी। अर्थव्यवस्था ढह गई, महंगाई बढ़ गयी।राजा ने चावल आटे का इंतजाम किया।लेकिन प्रजा त्राहि त्राहि करने लगी। कुछ लोगो ने चिठ्ठी भेजी, ट्वीट किए- पागल राजा, मूर्ख राजा, अहमक है तू बादशाह..
राजा को बड़ा बुरा लगा। उसे लगा जरूर उसके महल में वास्तु दोष है।
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सब अच्छा करता है, बुरा हो जाता है। उसने एक विस्टा खोजा, सेंट्रल विस्टा।
मने, साम्राज्य के सेंटर में एक विस्टा, वो देवो का घर था, देवगिरी नाम था, राजा ने कहा- आज से देवगिरी का नाम दौलताबाद। और अपुन वहां बसेरा करेगा। जिस जिस को हमसे मोहब्बत है, हमेरे साथ दौलताबाद चलेगा।
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तो 1200 किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरू हुई। पूरी राजधानी, और उसके नागरिक घसीटते हुए सेंट्रल विस्टा ले जाये गए। आधे रास्ते मे मारे गए। जो पहुचे वहां, उनके लायक न काम था, न मौसम, न मिजाज। सारे उदास थे।
राजा भी उदास था। कारण क्या था, की उसकी उत्तरी सीमा पर छोटी आंख वाले मंगोल
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उत्पात मचाये थे।उसके पहले के राजवंशों ने उनसे लड़कर देश बचाया था।कुछ जीता था, कुछ हाराथा।पर छोटी आंख वाले आजकल बड़े ताकतवर थे,राजा उनसे उलझना नही चाहता था।उसने छोटी आंख वालों को ताकत से नही,दिमाग से हरानेका तय किया।
उसने छोटी आंख वालोंके सारे प्रोडक्ट, दौलताबाद में बैन करदिए।
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झालरें,दिए,जूते,चप्पल,मशीनरी।इससे छोटी आंख वालो की इकॉनमी चौपट हो जाती। आइडिया तो ब्रिलिएंट था,लेकिन इससे उन चीजों की दौलताबादमें ही किल्लत हो गयी। चाल उल्टी पड़ गयी।
मजबूरन फैसला रोल बैक किया।अब पैसे से जीतने का तय किया।छोटी आंख वालो की रिश्वत दी गयी।"पैसे ले लो,जूते दे दो"
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छोटी आंख वालो ने पैसे लिए, जूते भी दिए, दूसरे ढंग से।
राजा की बड़ी बेइज्जती हुई। लेकिन उसने अपने दरबारियों को बस यही कहा- न कोई घुसा है, न कोई आया है।
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दौलताबाद में बैठकर दूर उत्तरी सीमा को बचाना कठिन था। सो तय किया गया कि वापस दिल्ली जाएंगे। सात ही साल बाद फिर से पूरा
पूरा कारवां वापस दिल्ली लौटा।दिल्ली की तीन चौथाई आबादी इस चोंचोंबोरो मे मारी गयी।
इस तरह एक ब्रिलिएंट आईडीए से दिल्ली की पॉपुलेशन प्रॉब्लम सॉल्व करने में मुहम्मद बिन तुगलक सफल रहा।
आह,बताना भूल गया।मैं तुगलक वंश के मशहूर सुल्तान,जौना खां उर्फ उलुग खां उर्फ मोहम्मद बिन तुगलक
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की कथा सुना रहा हूँ।इसका किसी जीवित या मृत कैरेक्टर से कोई सम्बन्ध मात्र संयोग है, न कि कोई प्रयोग है।मुझे ये डिस्क्लेमर पहले देना था..
आई एम सॉरी, बाबू !!!
हां तो..मोहम्मद बिन तुगलक के सारे आइडियाज ब्रिलिएंट थे। वह हमेशा जनता की भलाई के लिए ही सोचता था।उसकी नीयत में कोई खोट
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निकल जाए,उसका कोई गलत इरादा निकल जाए, तो हमेशा चौराहे पर आने को तैयार रहता था। उसे बस पचास साल के वक्त चाहिए था।
जो किस्मत ने उसे नहीं दिया। पच्चीस (बरस) तक, राज करने के बाद वह चल बसा। लोग कहते है कि उसकी सोच साइंटिफिक थी। फार्मर वेलफेयर और लैंड रिफार्म की बात हो, करेंसी नोट
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की बात हो, या राजधानी बदलने की, उसके प्लान बड़े अच्छे थे।
इतिहासकारो का मत है कि वह अपने वक्त से बहुत पहले पैदा हो गया था। अगर आधुनिक युग मे पैदा होता, तो उसे पागल बादशाह नही, ब्रिलिएंट टेक्टीशियन माना जाता।
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इतिहासकारों की बात मोहम्मद बिन तुगलक की आत्मा ने सुन ली,
और सिरियस ले लिया।
उसने तय किया वह सात सौ साल बाद आधुनिक भारत मे पैदा होकर, अपने आइडियाज फिर से इम्पलीमेंट करेगा।
आज किसान आंदोलन का 361वां दिन है, यानी एक साल बीतने में सिर्फ़4दिन बाकी हैं।
रोज़ की तरह टिकरी बॉर्डर पर क्रांति के गीत हैं, जोशीले इंकलाबी नारे हैं।सिर पर छत नहीं, लेकिन वाहे गुरु पर अटूट विश्वास का सायाहै।
इस आंदोलनमें जो700से ज़्यादा किसान शहीद हुए,उनमें ज़्यादातर छोटे
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किसान थे- इस पर विस्तृत रिपोर्ट आ चुकी है।
नरेंद्र मोदी एंड कंपनी को इनसे कोई मतलब नहीं। उन्हें 20 लाख करोड़ के कृषि क्षेत्र को कॉर्पोरेट के हवाले करना है।
किसानों को छोटा-बड़ा कर बांटने की उनकी साज़िश नाकाम रही। अब तो माफ़ी मांगने का सियासती दांव भी नाकाम नज़र आ रहा है।
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पूरे देश में सत्ता विरोधी लहर है।युवा बेरोज़गार उसी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर पूरी रात अखिलेश की रैली में चलते रहे, जहां मोदी ने उड़नखटोले उड़ाए थे।लेकिन पेडिग्री मीडिया ने नहीं दिखाया।
अब तो भक्त भी यकीन से नहीं कह पा रहेहैं कि मोदी है तो मुमकिनहै।
अमित शाह, राजनाथ सिंह जैसे
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व्हाइट हाउस में रंभाते हुए जैकोब चांसले याद हैं??
इनको 41माह की जेल हो गयी है। सजा के पहले इन्होंने लम्बी चौड़ी स्पीच दी, और बताया कि देश समाज और धर्म की रक्षा के लिए गौमाता बनकर इन्होंने कैपिटोल हिल याने अमेरिकन सन्सद पर चढ़ाई कर दी थी।
गौमाताके लिए भारत मे भी सन्सद पर चढ़ाई
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कर दी थी।
गौमाता के लिए भारत मे भी सन्सद पर चढ़ाई करने वाले एक बाबा हुए थे। नाम है - करपात्री जी महाराज।
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व्हाट्सप यूनिवर्सिटी के डिजिटल ग्रन्थ " दुष्ट इंदिरा की बदमाशियां" -भाग 22, फारवर्ड क्रमांक 169228 (2)ख के अनुसार..
करपात्री जी महाराज एक महान सन्त, स्वतंत्रता संग्राम
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सेनानी,गोभक्त एवं वचनसिद्ध संत थे।उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था।वे हिन्दू दसनामी परम्परा के संन्यासी थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम”हरिहरानन्द सरस्वती”था किन्तु वे“करपात्री”नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुली का उपयोग खानेके बर्तन की तरह करते थे।
दिखा रहा है कि हमारा भविष्य कैसा होगा जहाँ बाकी देशों में "चुनाव "विकास के आधार पर लड़ा जाता है वही भारत में इलेक्शन "हिंदू , मुसलमान , मंदिर , मस्जिद , गाय , गोबर , गोमूत्र " इसके सिवा कुछ नहीं.! दुनियां को अन्न किसान देते हैं हमारे यहां अन्नपूर्णा की पत्थर की मूर्ति देती है ,
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कनाडा से पत्थर की मूर्ति लाकर लाखों रूपया खर्च कर उसमे प्राण प्रतिष्ठाका ढोंग करके धर्म के नाम पर नाटक किया जाताहै।
भारत की युवा पीढ़ी को शिक्षासे इसलिए दूर रखा जाताहै क्योंकि शिक्षा से भारत का युवा जागरुक होगा जिससे उसे दुनिया की समझ होगी और वो फिर सरकार से हिसाब मांगेगा इसी
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👉अगर मोदी सरकार को हटानें की कोशिश की तो भारत में सीरिया जैसे गृहयुद्ध की सुरुवात हो जायेंगी- श्रीश्री रवि शंकर
👉2019 का चुनाव लोक तांत्रिक भारत का आखरी लोकसभा चुनाव है, 2024 में चुनाव नहीं होगा- साक्षी महाराज
👉हमारी सरकार 50 साल तक भारत की सत्ता पर बनी रहेगी-अमित शाह (1)
देश 2014 के बाद सही अर्थ में आजाद हुआ है- कंगना राणावत
पिछले 70 साल का कचरा साफ करने में समय तो लगेगा ही- विक्रम गोखले
कभी सोंचा आपने कि समय समय पर इस तरह के बयान संघ भाजपा और मोदी सरकार के मंत्रीयों ने और उद्योगपति समर्थकों ने क्यों दिये है??
जो घटिया,दंगाई और जलील
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आदमी बुढ़ापे तक बूढ़ी मां को और उसकी गरीबी को बेंचता रहा,बीवी को छोड़ कर भाग गया,कभी अपने बाप का जिक्र नही करता।जिस पर 2014 तक न जाने कितने आपराधिक मुकदमे थे,जो बेगैरत जवानी से लेकर बुढ़ापे तक देश से झूठ बोलता रहा,उस मक्कार को क्यों अवतारी घोषित किया जा रहा है??
अम्बानी,अडानी
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राज्यसभा एडजर्न कर, बहुमत के बगैर, आसंदी की कुटिलता से ध्वनिमत बताकर पास किये कृषि कानून, खत्म करने के लिए प्रधानसेवक सन्सद के दरवाजे जाएंगे। नया फरमान है, कि सरकार बहादुर, फार्म लॉज वापस लेंगे। सब कुछ, पूर्ववत हो जाएगा।
क्या सचमुच??
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सारे किसान खालिस्तानी आतंकी बताये गए। उन्हें देशद्रोही कहा,पाकिस्तान भेजा।दिन रात टीवी पर बेशर्म बहसें चली।पुलिस के सामने गुंडों ने किसानों पर पत्थर बरसाए।लाठियां भांजी,पानी फेंके। किसान नेता बदनाम किये गए, उनके टेंट जलाए गए,सौ से उपर लाशें गिरी।
देश के वक्षस्थल जो चाकू घोपा
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जा रहा था,वो एक तरफ रख देने की घोषणा हुई है।हुक्म है कि अधमरा,लहूलुहान देश अब अपने घर लौटने को आजादहै।
अब हमें यकीन करना है,कि सड़को पर बिछाई कीले निकाल दी जाएंगी।कंक्रीट के बैरिकेट तोड़े जाएंगे।खुदी हुई सड़के पाटी जाएंगी।मरे हुए लोग जिंदा होकर अपने घरों में खुशी खुशी लौटेंगे।
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जब सबसे ज्यादा शोषित शिक्षकों की बात की जाये,मेरे शिशु मंदिर के आचार्य जी और दीदी जी का नाम शायद सबसे आगेहोगा।
सरस्वती शिशु मंदिर उस दौरके संस्थान हैं जब RSSदेश की राजनीति में सिमट चुका था। राजनैतिक हार पे हार झेलता हुआ,जनसंघ, जनता पार्टी,
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भारतीय जनता पार्टीके नए नए नामो से अपनी जमीन तलाशता हुआ संघ अगर अपनी वैचारिक भूमि पर टिका रहा,सरस्वती शिशु मंदिरों का इसमे गुरुतर योगदानहै।
विद्या भारती नामक अनुषांगिक संगठन,lइन स्कूलों का पैतृक सन्गठन होता है।सन्चालन समिति जो स्वतंत्र होती है,स्थानीय रूप से पंजीकृत हो सकतीहै।
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ये स्थानीय गणमान्य से बनी है। अमूमन संघ से जुड़े कार्यकर्ता केंद्रीय भूमिका में होते है, पर दानदाता भी शामिल होते हैं।
सरस्वती शिशु मंदिर अमूमन राज्यों के बोर्ड से एफिलिएटेड होते हैं। छोटे शहरों में , गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए सरस्वती शिशु मंदिरों का योगदान स्तुत्य है।
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