कल की ही तो बात है,जब मोदी सरकारने विपक्ष की मांग को ठुकराते हुए बिना बहस के किसान बिल को वापस ले लिया।
संसद की कार्यवाही स्थगित हो गई और विपक्ष के 12सांसदों को निलंबित कर दिया गया।
इस बीच कांग्रेस के राज्यसभा सांसद केसी वेणुगोपाल का वह सवाल भी गोल कर दिया गया,जो किसानों को
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लेकर मोदी सरकार की नीयत दर्शाता है।
वेणुगोपाल ने विदेश मंत्रालय से सवाल किया था- 1. क्या यह सच है कि कुछ NRI को एयरपोर्ट पर परेशान किया गया और उन्हें वापस भेजा गया?
2.अगर हां तो 3 साल का विवरण दें। 3. क्या यह सच है कि इनमें से कुछ NRI से कहा गया कि वे आंदोलनकारी किसानों की
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मदद बंद करदें?
4.अगर हां तो विवरणदें।
U455नंबर का यह सवाल तारांकित/अतारांकित के रूप में दर्ज़ था,जिसका जवाब विदेश मंत्रीको देनाथा।
लेकिन इस सवालको ही ड्रॉप कर दिया गया।
वेणुगोपालके जलियांवाला बाग के इतिहासको सौंदर्यीकरण के नाम पर नष्ट करने संबंधी सवाल को ड्रॉप करदिया गया।
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संसद के भीतर सरकार की यह तानाशाही अभूतपूर्व है। प्रेस को भीतर जाने की आज़ादी नहीं है।
फिर भी पाखंड यह कि प्रधान सेवक संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं।
मुझे लगता है कि किसानों को अपनी मांग मनवाने के लिए आंदोलन तेज करना होगा।
इमरजेंसी लग चुकी थी। इंद्र कुमार गुजराल सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। कैबिनेट की बैठक खत्म होने के बाद संजय गांधी, इंद्र कुमार गुजराल के पास पहुंचे और कहा कि मुझे न्यूज़ बुलेटिन देखनी है। गुजराल 5 सेकंड की खामोशी के बाद बोले " यह नहीं हो सकता! समाचार बुलेटिन को सिर्फ प्रसारण के
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बाद ही सार्वजनिक किया जाता है, प्रसारण के पहले तो मैंने भी आज तक बुलेटिन नहीं देखी क्योंकि यह दखलअंदाजी होती है"
गुजराल ने बहुत ऊंची आवाज में मना किया था श्रीमती गांधी ने यह सुन लिया और वह भीतर आ गई। उन्हें समझ में नहीं आया क्या कहना चाहिए? लेकिन उन्हें लगा कि गुजराल सही हैं।
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उन्होंने संजय गांधी से कहा नहीं नहीं हम बाद में देख लेंगे।
इन सबके बीच अगले दिन गजब यह हुआ कि ऑल इंडिया रेडियो ने इंदिरा गांधी का भाषण नहीं चलाया जो कि उस वक्त एक आम बात थी। संजय गांधी ने तुरंत इंद्र कुमार गुजराल को बुला लिया और कहा कि देखिए ऐसा नहीं चलेगा। गुजराल ने कहा
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श्रीमती किरन बेदी ,भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी रही है।किरण बेदी की छवि एक बेहद तेज तर्रार, निडर, व नियमों का पालन करने वाले , कर्तव्य परायण अधिकारी की रही है ।वह जहॉ भी रही थी अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी थी।
किरण बेदी 1982 में दिल्ली की DCP ( Traffic ) थी । दिल्ली में उनके
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समय में यदि कोई गाड़ी ग़लत पार्किंग की पाई जाती थी वह उसे क्रेन से उठवा कर संबंधित इलाक़े के थाने में भिजवा देती थी।उनकी इस सख़्ती के कारण उन्हें लोग‘क्रेन बेदी‘कहने लगे थे।
किरण बेदी साहिबा जब दिल्ली कीDCP ( Traffic )थी तो एक दिन दिल्लीके यूसुफ़ जई मार्केट जो कनॉटप्लेस में है
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से प्रधानमंत्री कार्यालय की एक एम्बेसडर कार जो ग़लत पार्क की हुई थी को उनके निर्देश पर उनकी टीम ने क्रेन से उठवा लिया था जिसकी उस समय काफ़ी चर्चा हुई थी।लोगों यह अनुमान लगा रहेथे कि इस ग़ुस्ताख़ी की सजा उन्हें ज़रूर मिलेगी पर उस समय देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गॉधी थी जो
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बीस साल पहले की बात है,ममता कांग्रेस तोड़कर तृणमूल बना चुकी थी।भाजपा के साथ थीं। तब कांग्रेस, चचा केसरी के दौर से निकल, दोबारा खड़ी हो रही थी।पत्रकारों के सामने, हवा में बड़ा सा शून्य घुमाकर ममता बनर्जी ने कहा - "सोनिया इज अ बिग जीरो"..।
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वो भाजपा की रेलमंत्री बनी,फिर कोयला मंत्री। 2004में "बिग जीरो" सोनिया ने सरकार को धराशायी कर दिया। बंगाल से भाजपा- तृणमूल गठबन्धन से एकमात्र सांसद जीता, खुद ममता। 2006 की विधानसभा में भी तृणमूल शिकस्त मिली।
मजबूर ममता ने सोनिया को कहा- सॉरी मैडम..
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सोनिया ने हंसकर उन्हैं
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साथ ले लिया। ममता2009का लोकसभा चुनाव यूपीए के साथ लड़ी, मनमोहन की रेलमंत्री बनी। 2011 में यूपीए लीडर के रूप में कांग्रेस, जेएमएम, जीएनएलएफ के साथ, विधानसभा चुनाव लड़ा। पहली बार बंगाल में जीत मिली। ममता रेलमंत्री का पद छोड़ा। राइटर्स बिल्डिंग में मुख्यमंत्री बन कर प्रवेश किया। ।
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भारत की ज़्यादातर संपत्ति बेचकर भी पाई-पाई को मोहताज़ इतिहास की सबसे निकम्मी मोदी सरकार की नज़र अब बैंकों पर है।
संसद के चालू सत्र में दो बैंकों (शायद सेंट्रल बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक) को बेचने के लिए बैंकिंग कानून संशोधन बिल 2021 लाया जाएगा।
मोदी सरकार का जुमला है कि उसे
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देश के विकास के लिए1.75लाख करोड़ की ज़रूरत है। इसीलिए विनिवेश ज़रूरी है।
देश का विकास हो रहा है या अडाणी का-ये दुनिया को पता है
सच यह है कि मोदी सरकार भारत के चंद कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाना चाहतीहै
यह बात मैं नहीं, बैंक के कर्मचारियों का एसोसिएशन(AIBEA)खुद कह रहाहै।
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कर्मचारी सड़कों पर उतर आए हैं।
मोदी सरकार का सीधा गणित है। पहले लोन सेटलमेंट के रूप में डिफाल्टर कंपनियों का कर्ज माफ करवाओ और फिर अपने दोस्त कॉर्पोरेट के हाथों उन्हीं कर्जदार कंपनियों को बिकवा दो।
नीचे ऐसी ही 13 कर्जदार कंपनियों की लिस्ट है, जिनकी कर्जमाफी से बैंकों को करीब
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पहले विश्वयुद्ध की हार के बाद जर्मनी के राजा कैसर को गद्दी छोड़नी पड़ी। वाइमर रिपब्लिक अस्तित्व मे आया, जिसमे चुनाव होते थे। कुल 585 सदस्यों की संसद मे बहुमत के लिए 293 सदस्यों की जरूरत थी। अगले चौदह साल कई चुनाव हुए, कभी किसी को क्लीयर मेजोरिटी नही आई। 6/1
सो गठबन्धन सरकारें बनती रहीं। आखरी फेयर इलेक्शन नवम्बर 1932 मे हुआ। इस इलेक्शन मे हिटलर को मिली 195 सीटें, उसकी सहयोगी पार्टी याने सोशल डेमाक्रेट को मिली 121 सीट। कुल हुए 317
हिटलर भैया को पहली बार सरकार बनाने का मौका मिला। चांसलर बन गए। लेकिन अब सदन मे बहुमत साबित करना है।
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और हिटलर पर सहयोगी दल, और सहयोगी दल को नाजियों पर भरोसा नही था। तो संभव था कि सौ पचास डेमोक्रेट, हिटलर के समर्थन मे वोट न करें।