दूसरा विश्वयुद्ध, घ्वस्त देश, बरबाद अर्थव्यवस्था ... जापान की नई पीढी को यही सौगात मिली थी। देश को राख से खड़ा़ करना था। शुरूआती कनफ्यूजन के बाद जापान की सरकार और केन्द्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था को खड़ा करना शुरू किया।
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केन्द्रीय बैंक ने एक क्रेडिट सिस्टम शुरू किया - विण्डो गाइडेंस।
असलमे यह युद्ध के दौर की फंडिंग का ही एक प्रतिरूप था।तब टैंक के लिए,प्लेनके लिए,बंदूको,हथियारों,विमान वाहक पोत के लिए कोटा लक्ष्य तय होता था। बैंक सिर्फ ऋण नही देता था,बल्कि उत्पादन मे कोई बाधा न आए, ये भी देखता।
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यह व्यवस्था युद्धके बाद नए तरीके से लागू हुई।स्टीलमे,बिजली मे,हाउसिंग मे, आटोमोबाइल...इस तरह हर सेक्टरमेे लोन देने का एक कोटा शुरू किया।छोटे छोटे व्यवसाइयों को खोजकर उन्हे काम के लिए लोन दिए।
सरकारने जमीनें दी,सस्ते मे अच्छी शिक्षादी, कालेज और शिक्षा संस्थानों से छात्र निकलकर
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सीधे इन फैक्ट्रियों मे पहुंचे।छोटे छोटी कंपनियां - सान्यो,माजदा,होंडा,टोयोटा,कैनन,सोनी, पैनासोनिक,लैक्सस बनकर दुनिया पर छा गई।
दुनिया मे जापानी सामान बिकता,और दुनिया का पैसा जापान आ जाता। और इन्वेस्टमेण्ट, इससे और समृद्धि..।
कभी यह काम ब्रिटेन दुनिया कारखाना बनकर कर रहाथा।
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पर जापान ने बगैर साम्राज्यवाद के यह कर दिखाया। अगली पीढी को भी यही कर्मठता, इनोवेशन, एजुकेशन घुट्टी मे मिली।और विश्व का कारखाना, जापान हो गया।
महज दो पीढी मे जापानी लोगों का जीवन स्तर दुनिया मे सबसे उंचा हो गया।
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जापान यूं तो पिछले बीस सालों से मंदी और स्थिरता मे फंसा है।
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गिरती हुई आबादी,घटता कन्ज्मप्शन इसका कारण है।शानदार हेल्थकेयर के कारण इंसान 100साल जीता है।आबादी मे अब बूढे ज्यादा है,जवान कम,वर्कफोर्स कम।
पर इससे जीवन स्तर मे कोई गिरावट नही आई। क्योकि इन बूढों के पास सेविंग है।घर है, पेंशन है ..जिंदगी के मजे है।
चीन ने इसी माडल को अपनाया।
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अपनी जवान आबादी को काम पर लगा दिया। पिछले बीस सालों से दुनिया का कारखाना,चीन है।उसने 1980 के बाद से 80 करोड लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है।दुनिया का ट्रेड किंग चीन है, उस पैसे से वह सुपरपावर बन चुकाहै।
अब चीन की आबादी भी बढना भी रूक चुकी है।जन्म दर कम है,मृत्यु दर और भी कम,
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तो20साल बाद चीनभी बूढोंका देश होगा।
लेकिन समृद्ध,आत्मनिर्भर बूढोंका.
यही माडल हमभी अपनाने चले थे।65 प्रतिशत जवान आबादीका ऐतिहासिक अवसर हमे भी मिला। सफलता भी कदम चूम रही थी,भारत इमर्जिंग इकानमी था।
कि अचानक हमारा धर्म खतरे मे आ गया।
हमने अपनी जवान आबादीको राजनीतिमे लगा दिया।
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हमारे युवा नेहरू का गरियाने,चीन का कटियाने, पाकिस्तान को लतियाने मे व्यस्त हो गया। शिक्षा महंगी होती गई,इन्टरनेट सस्ता हुआ। रैलियोंमे भीड़ बढ़ी,पार्टीके कार्यकर्ता भी..
मंदिर बना,सेन्ट्रल विस्टा बना,370हट गई और तीन तलाक बैन हो गया।गर्व की सप्लाई हुई, बार बार देशभक्त सरकारे बनी
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और पप्पू मूत्र पीवक, वामी, और जेएनयू धूल चाटने लगे।
अरे हां,मुल्ले टाइट भी जबरजस्त टाइट हूए।
भारत की जवानी अब मुल्ले टाइट करने मे गुजर रही है। लैपटाप पर काम करते युवा को देखकर बाप गौरवान्वित है।लेकिन बेटा...तो "बुल्ली बाई एप" बना रहा है।ट्रोल कर रहा है, गालियां बक रहा हैं।
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डेमोग्राफिक डिवीडेंट का जो मौका चार हजार साल के इतिहास मे पहली बार आया था, दूसरो को परेशान करने की कोशिश मे..यूं ही निकल गया।
इस युवा के पास न स्किल्स है, न जाब है, न कुव्वत, न समझ, न सेविंग ..30 साल बाद कोई पेंशन भी नही होगी। नेहरू की पेंशन खाने वाले 10 साल मे साफ हो जाऐगे।
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अटल की नाममात्र की पेंशन वाले, भी अपने बच्चों पर निर्भर होंगे।
और वो बच्चे ....खुद ही, मिडिल एज, थकी, चीट करी गई, हताश, बेकार आबादी होगी। यह सब जवानी मे अपनी हाथ मे लकीरों मे जबरन खोदा गया था।
जिस ओर जवानी चलती है, बुढापा वहीं पहुंचता है।
12 @BramhRakshas
कमल-एक फूल, इसे मुठ्ठी मे मसल सकतेहै।
कलम-पेन,जिसे क्रश करनेके लिए कुछ औजार लगेंगे।
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इन दोनो चीजोके स्पेलिंग सीक्वेंस मे मामूली फर्क है।लेकिन इससे बनने वाली चीज के गुणधर्म एकदम अलग।डीएनए सीक्वेंस,याने जीन इसी तरह से काम करता है।जीन मे मामूली बदलाव होने से जीव के गुणधर्म मे
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भारी परीवर्तन आ जाताहै।इसका मतलब यह भी हुआ कि उससे मुकाबला करनाहै,तो आपको एकदम ही अलग किस्मके प्रतिरोधकी जरूरत पड़ेगी।
जीन कोड छोटे भी होतेहै।लम्बे लम्बे भी...छोटे कोड सिंपल जीवों मे होते है,बड़े बड़े लंबे कोड काम्प्लेक्स जीवोमे।सबसे सिंपल जीव है वाइरस,और फिर उससे काम्प्लेक्स
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बैक्टीरिया,प्रोटोजोआ,और फिर बहुकोशिकीय लाखों तरहके जीव।
काम्प्लेक्स जीवोंमे किसी जीनका,कहीं कोई सीक्वेंस बदल गया,तो उसके गुणधर्ममे बहुत ज्यादा अंतर नही पड़ता।इसलिए कि किसी गुण से संबंधित जीन लंबा चौड़ाहै,और भारी बदलाव के लिए भारी परीवर्तन चाहिए,जो एकाएक नही होता।कई पीढियों मे
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-गुरु ! काशी में महामृत्युंजय जाप हो रहा है ?
- काशी में तो बहुत कुछ हो रहा है !
- पंजाब में कोई चूक हुई है , प्रधानमंत्री बच के निकल आए हैं ।
- तो ?
- मोदी को कुछ हो न , इसलिए काशी के पंडित महामृत्युंजय का जाप कर रहे हैं !
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- के कहा बे ? कुछ न हो , इस लिए महामृत्युंजय जाप हो रहा है ? माने मृत्यु न हो , इसलिए महामृत्युंजय का मंत्र बना है ।
- बात तो इहैय है
- के कहलेस बे ?
- चैनल वाले
- चैनल वाले कूकिया हैं भो के
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- तैं काशी के पंडितन के केतना जाने ले बे ? महामृत्यंजय का मंत्र ऋग्वेद की ऋचा से है - त्र्यंबक शिव की स्तुति है जो मृत्यु के भय से दूर करती है है । यह मंत्र किसी को अमोघ नही बनाता , न ही , मृत्यु से बचाता है , यह मंत्र मृत्यु के भय को मिटाता है ।
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मात्र20मिनट आपका काफिला रुक गयातो आपको लोक परलोक याद आ गया!..वाह मोदी जी वाह!..वैसे अच्छा हुआ अब आपको पता चल गया होगा कि जब जनताVIPमूवमेंट के चक्कर मे घण्टो जाम में फंस जाती तो उसे कैसा लगता है ?..पिछले साल कानपुर में तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदका काफिला निकलने के दौरान ट्रैफिक
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जाम में फंसी एम्बुलेंस में तो एक महिला की मौत तक हो गयी थी...
वैसे यह कोई पहली घटना नही है जब2018में आप मेट्रो की मजेंटा लाइन का उद्घाटन करने नोएडा आए थे तब भी जनसभा स्थल से बोटेनिकल गार्डेन स्थित हेलीपैड पर वापसीके दौरान आपका काफिला एक्सप्रेस-वे पर रास्ता भटक गयाथा और जाम मे
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फंस गया था तब आपको सुरक्षामें खतरा महसूस नही हुआ?
कई बार आपकी गाड़ी दिल्लीके व्यस्त मार्ग पर रेड लाइटमें खड़ी हुई है तब तोVIPकल्चर को हटानेके नाम पर आपकी बड़ी वाहवाही की जातीहै तब आपको सुरक्षा याद नही आती?
अब बोला जा रहाहै कि जहाँ आपका काफिला रुका वह जगह पाकिस्तान सीमासे बहुत
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जोशीमठ उत्तराखंड से मित्रAtul Sati मैसेज भेज रहे हैं!
आज सुबह ही हमारे लिए दूध लेकर आने वाले सकलानी जी ने बताया कि सुनील में उनके घर के पीछे बहुत बड़ी दरार आ गयी है।उनके घर के आगे सड़क का बड़ा हिस्सा दरार से पट गया है।जो कल तक नहीं था ।जिस पैदल रास्ते वो रोज आते हैं उसमें भी 4/1
कहीं कहीं उभार दिख रहा है जो ऊंचा नीचा हो टेढ़ा हो रहा है ।
यह बात जगह जगह दिख रही है। । इस पर तत्काल सोचे जाने की जरूरत है । यदि शीघ्र कुछ न किया गया तो बड़ी आपदा से हम बच नहीं पाएंगे ।
अभी 9 परिवार बेघर हो रहे हैं,पिछले एक हफ्ते से उनका वैकल्पिक इंतजाम नहीं हो पा रहा है
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तब सोचिए इतनी बड़ी आबादी का क्या होगा । जिस तरह के हालात बन रहे हैं, जगह जगह जैसे दरारें उभर रही हैं निश्चित ही धरती के नीचे कोई बड़ी हलचल चल रही है। जिससे जल्द ही भविष्य में कुछ बड़े घटने के संकेत मिल रहे हैं । हो रही
बारिश और बर्फबारी इस मुसीबत को बढ़ाएगी ही ।
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भारत चीन सीमा विवाद कई लोगोंको क्लीयर नही होता।वे इतिहासकी कही सुनी बातोंपर खूब बकैती करते हे,और अन्तमे नेहरू पर ठीकरा फोड़कर पूर्णाहुति करतेहैं
एक सिम्पल ग्राफिकसे समझिये।यहां अधिकतर इलाका बंजरहै,शून्य से नीचेका तापमान,और मनुष्यके रहने लायक नहीहै।याने घासका तिनकाभी नहीं उगता।
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लेकिन कहीं कहीं घाटी है, जिसमे जमा गाद मे खेती हो सकती है।वहां बस्तियां बस गई। अब एक बेसिक बात समझ ले। पुराने जमाने मे सीमा जीपीएस से मार्किंग तो होती नही थीं।न राजाओं को भारत माता से कोई लेना देना था।
उनको कमाई याने लगान से मतलब था,जो जनता, याने बस्ती से मिलता था।राजा महराजा
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गांव पर कब्जे करते थे,जमीन पर नही।
अब अगर एक राजाके आखरी गांव और दूसरे राजाके आखरी गांवके बीच300किलोमीटर का बंजर इलाका हो,तो इस तीन सौ किलोमीटर की हकदारी किसकी???
किसीकी नही।क्योकि किसीको ये जगह नहीं चाहिए।सब जीरो टेम्प्रेचर पर कौन पागल अपनी सेना रखकर किला बनाकर रक्षा करेगा।
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स्वतंत्र भारतके इतिहासमें इससे बड़ी बेशर्मी की मिसाल कभी सामने नही आयी है जो मोदी सरकार द्वारा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के मामले में पेश की जा रहीं हैं
लखीमपुर में हुई किसानों की हत्या के मामले में अब तक यह कहकर बचा जा रहा था कि अब तक चार्जशीट पेश नही हुई है...
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लेकिन अब तो एसआइटी ने कोर्ट में5000 पन्नो की चार्जशीट भी पेश कर दी है...जिसमे आशीष मिश्रा को हत्या का मुख्य आरोपी बनाया गया है.......एसआईटी ने 3 अक्टूबर को हुई चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या की उस घटना को एक ‘‘सोची-समझी साजिश’’ करार दिया है.
पांच अक्टूबर को अजय मिश्र टेनी
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ने स्वयं कहा था,'मैं लगातार अपनी बात रख रहा हूं। हमारे पास यह साबित करने के सबूत हैं कि न तो मैं और ना ही मेरा बेटा घटनास्थल पर मौजूदथे।अगर मेरे बेटेकी मौजूदगी का प्रमाण साबित हो जाए तो मैं अभी मंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा।'
अगर थोड़ा भी नैतिक बल उनमें होतातो वे अब तक इस्तीफा
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