-गुरु ! काशी में महामृत्युंजय जाप हो रहा है ?
- काशी में तो बहुत कुछ हो रहा है !
- पंजाब में कोई चूक हुई है , प्रधानमंत्री बच के निकल आए हैं ।
- तो ?
- मोदी को कुछ हो न , इसलिए काशी के पंडित महामृत्युंजय का जाप कर रहे हैं !
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- के कहा बे ? कुछ न हो , इस लिए महामृत्युंजय जाप हो रहा है ? माने मृत्यु न हो , इसलिए महामृत्युंजय का मंत्र बना है ।
- बात तो इहैय है
- के कहलेस बे ?
- चैनल वाले
- चैनल वाले कूकिया हैं भो के
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- तैं काशी के पंडितन के केतना जाने ले बे ? महामृत्यंजय का मंत्र ऋग्वेद की ऋचा से है - त्र्यंबक शिव की स्तुति है जो मृत्यु के भय से दूर करती है है । यह मंत्र किसी को अमोघ नही बनाता , न ही , मृत्यु से बचाता है , यह मंत्र मृत्यु के भय को मिटाता है ।
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मृत्यु से बचाना और मृत्यु के भय को मिटाना , दोनो मे बहुत फ़र्क़ है । जय आपन काम कर , पंडिताइन से बोलि दिहे - मोदी छाप रिफ़ाइन अब ना मिली , तीसी के तेले से काम चलाय लें ।
- कमवा का हौ गुरु ?
चुआ गुरु असंसदीय हो गये , क्या करेंगे सुन के ?
4 @BramhRakshas
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डगर बंद ।काम चालू आहें
पिछले कई पोस्ट से देश की तमाम विसंगतिया और द्रुतगति से भागती एकाधिकारवाद की आँधी की ज़िम्मेदार ताक़तों पर चर्चा करते समय यह लेखक -उस समाज को ज़िम्मेदार बनाता जा रहा है जिसमें वह खुद हिस्सेदारी कर रहा है ,और डंके की चोट पर स्वीकार करता है 12/1
क़ि इस समय देश आफ़तके दौरको स्वीकार कर,वो परिस्थिति बना रहा है जी तानाशाही तक को न्योत सकती है।यह है हमारे समाज की अजगरी प्रवृत्ति।एक ताज़ा वाक़या लीजिए -
मुस्लिम महिलाओंके ख़िलाफ़ माहौल रचनेके लिए दक्षिण पंथी अपनी पुरानी कटार चलायी है - चरित्र पर हमला।बहुत आसान होता है 12/2
महिलाओं के लिए तो और ज़्यादा।अपने को हिंदू कहनेवाली यह टीम खुद हारा किरी में लगी है । उस गिरोह का एक लड़का मैथिल है । मैथिल समाज की क्या ज़िम्मेदारी बनती है , मैथिल समाज को क्या करना चाहिए इस सवाल को लेकर मैथिल समाज से ,और दरभंगा राज घराने की Kumud Singh ने उस आरोपी मैथिल
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एक गांव (विलेज)में एक महामूर्ख रहता था! शकल सूरत से ठीक ठाक था,बस हरकतें मूर्खों वाली थी!
कभी मगरमच्छ के बच्चोंको पकड़ लाता तो कभी गटर की गैससे चाय बनाने लग जाता! कभी जहाज को बादलों में छिपा देता तो कभी a+bके होल स्कवायर में से एक्स्ट्रा2ab निकाल लाता
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पूरे गांव वाले उसको लंडू'र कहा करते थे! जिधर भी जाता उसको इसी नाम से बुलाते थे सब!
किसी ने उसे सलाह दी कि तू गांव छोड़ दे तभी तुझे इस नाम से मुक्ति मिलेगी! दूसरे गांव में जा! नयी शुरुआत कर!
उसने गाँव छोड़ने का फैसला किया और एक अँधेरी रात में माँ के गहने चुराकर घरसे भाग निकला!
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कई दिनों तक पैदल चलते चलते एक दूसरे गांव में पहुंचा और एक कुंवेकी जगत पर बैठ गया!
लेकिन हरकतें भाईसाहब!हरकतें..
कुंवेकी जगत पर बैठा तो ठीक ही था,बस उसने अपने दोनों पैर कुंवे के अंदरकी तरफ लटका लिएथे!
बगल से गुजरते हुए एक राहगीरने उसकी इस हरकतको देखा और कहा-अबे लंडूर है क्या?3
संत और सिपाही ।
“ धूमिल” ने पूछा है - “ संत और सिपाही में कौन बड़ा दुर्भाग्य है ? जवाब अब तक नही मिला , प्रतिस्पर्धा जारी है कभी संत आगे निकल जा रहा है कभी सिपाही लपक के आगे चला जा रहा । सुस्ताने के लिए दोनो एक दूसरे के लिए जंघा फैला देते हैं । मज़े की बात
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भारतीय समाज को खोखला करने में दोनो की ज़बरदस्त भूमिका है जब क़ि दोनोके अपने तय रास्ते कत्तयी अलहदा हैं।इस संत और सिपाही के आपसी रिश्तेकी बारीकी से जाँच करिए तो मिलेगा की यह तो महज़“पर काया प्रवेश“ का स्थायी बंधन बन चुका है -वर्दी पाप से सन जाती है तो संत के “कपड़े”में घुस कर ,
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संत की सुविधा ले लेती है ,नाक में नथ पहन कर चुनरी ओढ़ लेगी और किसी एक बहुचर्चित देवता का पुजारी बन जायगी ।यह है वर्दी का काया प्रवेश । संत और भी बड़ा खिलाड़ी है । यह समाज का जघन्य अपराधी है।( याद रखिए - हम उन संत और सिपाही का ज़िक्र कर रहे हैं जो किसी न किसी बहाने से समाज में
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शायद नई पीढ़ी को शहर में कंक्रीट के जंगलों में रहने वालो को मालूम भी नहीं होगा कि बंदर में सांप पकड़ने का गुण जन्मजात होता है और उसकी कुछ विशेषता होती हैं।
क्योंकि बंदर की हड्डियां बहुत लचीली होती है और चारो पंजो की पकड़ भी बहुत मजबूत होती हैं तो वो चपलता और चतुराई से सांप को
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गर्दन से पकड़ लेता है लेकिन उसको मारता नहीं।
वो उसके फन( मूंह )को निकट लाकर उस पर थूकता है और फिर उसको जमीन अथवा पेड़ से रगड़ता ( घिसता )हैं।
दो तीन बार ऐसा करने के बाद चोट खाए सांप को छोड़ देता है। जैसे ही सांप भागने की कोशिश करता है उसे पुनः पकड़कर मूंह पर थूकने और फन घिसने
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( रगड़ने ) प्रक्रिया को दोहराता है।
इस प्रकार अत्यन्त निर्दयता से सांप को उसकी अधम गति में पहुंचा देता है।
कहते है कि ऐसा करने से क्योंकि मृत सांप के शरीर से जहर निकल चुका होता है तो उसे कीड़े मकोड़े भी बहुत चाव से खाते है। सम्भव है कि कोई और वजह भी हो किन्तु यह सत्य है कि
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कमल-एक फूल, इसे मुठ्ठी मे मसल सकतेहै।
कलम-पेन,जिसे क्रश करनेके लिए कुछ औजार लगेंगे।
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इन दोनो चीजोके स्पेलिंग सीक्वेंस मे मामूली फर्क है।लेकिन इससे बनने वाली चीज के गुणधर्म एकदम अलग।डीएनए सीक्वेंस,याने जीन इसी तरह से काम करता है।जीन मे मामूली बदलाव होने से जीव के गुणधर्म मे
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भारी परीवर्तन आ जाताहै।इसका मतलब यह भी हुआ कि उससे मुकाबला करनाहै,तो आपको एकदम ही अलग किस्मके प्रतिरोधकी जरूरत पड़ेगी।
जीन कोड छोटे भी होतेहै।लम्बे लम्बे भी...छोटे कोड सिंपल जीवों मे होते है,बड़े बड़े लंबे कोड काम्प्लेक्स जीवोमे।सबसे सिंपल जीव है वाइरस,और फिर उससे काम्प्लेक्स
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बैक्टीरिया,प्रोटोजोआ,और फिर बहुकोशिकीय लाखों तरहके जीव।
काम्प्लेक्स जीवोंमे किसी जीनका,कहीं कोई सीक्वेंस बदल गया,तो उसके गुणधर्ममे बहुत ज्यादा अंतर नही पड़ता।इसलिए कि किसी गुण से संबंधित जीन लंबा चौड़ाहै,और भारी बदलाव के लिए भारी परीवर्तन चाहिए,जो एकाएक नही होता।कई पीढियों मे
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दूसरा विश्वयुद्ध, घ्वस्त देश, बरबाद अर्थव्यवस्था ... जापान की नई पीढी को यही सौगात मिली थी। देश को राख से खड़ा़ करना था। शुरूआती कनफ्यूजन के बाद जापान की सरकार और केन्द्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था को खड़ा करना शुरू किया।
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केन्द्रीय बैंक ने एक क्रेडिट सिस्टम शुरू किया - विण्डो गाइडेंस।
असलमे यह युद्ध के दौर की फंडिंग का ही एक प्रतिरूप था।तब टैंक के लिए,प्लेनके लिए,बंदूको,हथियारों,विमान वाहक पोत के लिए कोटा लक्ष्य तय होता था। बैंक सिर्फ ऋण नही देता था,बल्कि उत्पादन मे कोई बाधा न आए, ये भी देखता।
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यह व्यवस्था युद्धके बाद नए तरीके से लागू हुई।स्टीलमे,बिजली मे,हाउसिंग मे, आटोमोबाइल...इस तरह हर सेक्टरमेे लोन देने का एक कोटा शुरू किया।छोटे छोटे व्यवसाइयों को खोजकर उन्हे काम के लिए लोन दिए।
सरकारने जमीनें दी,सस्ते मे अच्छी शिक्षादी, कालेज और शिक्षा संस्थानों से छात्र निकलकर
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