प्रश्न = अक्सर ऐसा कहा जाता है कि " शिक्षा ही शक्ति है " लेकिन फिर रावण का विनाश क्यों हुआ था जबकि वह एक महान विद्वान था ?

गो0 तुलसीदासजी ने विनय-पत्रिका में लिखा है--

पाँचइ पाँच परस रस, शब्द गन्ध अरु रूप।

इन्हकर कहा न कीजिये, बहुरि परब भव-कूप।।
भावार्थ- रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द; इन पाँचों के आकर्षण से बचो, नहीं तो बारम्बार जन्म-मरण के कूप में गिरोगे।

मृग-मीन-भृंग-पतंग-कुंजर एक दोष विनासहीं।।

पञ्च दोष असाध्य जामें। ताकी केतिक आसहीं।।

भावार्थ-- मृग (हिरण), मीन (मछली), भृंग (भँवरा), पतंग (पतंगा) और कुञ्जर (हाथी);
इनका विनाश एक-एक दोष के कारण हो जाता है। जैसे- हिरण कर्ण-सुख, मछली जिह्वा-सुख, भँवरा नासिका-सुख, पतंगा दृष्टि-सुख और हाथी स्पर्श-सुख की लालसा में अपने प्राण गँवाता है। हम में यदि पाँचो जानलेवा दोष एक साथ उपस्थित हों तो हमारी विनाश से बचने की कितनी संभावना होगी ?
मतलब यह है कि मनुष्य में कितना भी ज्ञान हो, कितनी भी बड़ा वह विद्वान हो ; यदि पँच इन्द्रियों का संयम नहीं है, विषय-भोग की लालसा प्रबल है तो उसका विनाश निश्चित है। सांसारिक शिक्षा और सांसारिक विद्वता से इन्द्रिय-संयम नहीं होता है।

एक रोचक प्रसंग है--
वेदव्यासजी महाराज के प्रमुख शिष्य थे, जैमिनी। वेदव्यासजी महाभारत ग्रंथ की रचना कर रहे थे। वे लिखकर जैमिनी को देखने के लिए देते थे ताकि यदि कोई अशुद्धि रह जाए तो पुनः उसका शुद्धीकरण हो सके। एक बार वेदव्यासजी ने लिखा- बलवान इंद्रियग्रामो विद्वान्समपि कर्षति।
अर्थात् इंद्रियाँ इतनी बलवान होती हैं कि वह विद्वानों को भी आकर्षित कर लेती हैं। उन्होंने लिखकर जैमिनी को देखने के लिए दिया। जैमिनी को ये बातें अच्छी नहीं लगी। उनके मन में हुआ कि जो विद्वान होते हैं इंद्रियाँ उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है।
वे अपने गुरुदेव से बोले कि गुरुदेव! यहाँ कुछ अशुद्धि रह गई है। उन्होंने पढ़कर सुनाया। वेदव्यासजी ने पूछा-- 'तेरे विचार से यहाँ क्या होना चाहिए?' उन्होंने उत्तर दिया--' यहाँ होना चाहिए-- बलवान इंद्रियग्रामो विद्वान्स नापि कर्षति।'
अर्थात् यद्यपि इंद्रियाँ बलवान हैं तथापि वे विद्वानों को आकर्षित नहीं कर सकती हैं। वेदव्यासजी ने सोचा कि अभी इसे समझाने से भी ये नहीं समझेगा। उन्होंने कहा—'अच्छा, इस विषय को अभी रहने दो, बाद में मैं देख लूँगा। अभी कुछ समय के लिए मैं जंगल भ्रमण करने जा रहा हूँ।'
वेदव्यासजी की ऐसी लीला हुई कि वे भ्रमण को निकले और आँधी, तूफान के साथ जोरों की बारिश होने लग गई। इसी बीच एक सुंदर युवती बारिश से बचने की असफल कोशिश करती हुई झोपड़ी के बाहर दीवार से सटकर खड़ी हो गई।
जैमिनी ने उसे देखा तो बोल पड़े—'बारिश बहुत तेज है।बाहर क्यों खड़ी हो, झोपड़ी के अंदर आ जाओ।'

युवती--'मैं यहीं ठीक हूँ।'

जैमिनी--'भींगकर बीमार हो जाओगी, आ जाओ।'

युवती--'मुझे पराए मर्दों पर विश्वास नहीं है।'
जैमिनी--'मुझ पर शंका करती हो? शायद तुम्हें पता नहीं कि मैं कितना बड़ा विद्वान हूँ। वेदव्यासजी महाराज जब कुछ लिखते हैं तो मैं उसे शुद्ध करता हूँ। भय छोड़कर अंदर आ जाओ।'

युवती सकुचाती हुई उस छोटी-सी कुटिया के भीतर आ गई। वह बहुत सुन्दर थी।
भींगे कपड़े उसके शरीर से चिपके हुए थे। जैमिनी ने जब उसे करीब से देखा तो उसके मन में कुभाव जागृत हो गया। वे युवती के रूप- लावण्य पर मोहित हो गए। संत कबीर साहब ने बड़ा अच्छा कहा है--

काम क्रोध मद लोभ की, जब लगि घट में खान। क्या मूरख क्या पंडिता, दोऊ एक समान।।
जैमिनी अपने को रोक नहीं सके और युवती से बोले— 'मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ।'

युवती—'विवाह की बात सोचना मेरे अभिभावक का काम है।'

जैमिनी-- 'लेकिन तेरी स्वीकृति भी जरूरी है। देखो, मेरे जैसा विद्वान पति तुमको अन्यत्र नहीं मिलेगा।'
युवती—'मेरे कुल-खानदान में एक रिवाज है। आप यदि उसको पूरा करें तो मैं आप से विवाह कर सकती हूँ।'

जैमिनी--' मुझे सब शर्त मंजूर है। बोलो क्या करना होगा?

युवती--'रिवाज के अनुसार जो कोई युवक घोड़ा बनकर मुझे अपनी पीठ पर बैठाएगा और उसी तरह चलकर पास के देवी माता मंदिर में दर्शन करवाएगा
उसी से मेरा विवाह हो सकता है। क्या आपको यह मंजूर है?'

जैमिनी ने सोचा कि संध्या का समय है, गुरुदेव भ्रमण में गए हैं, यहाँ तो कोई देखनेवाला है नहीं। थोड़े समय के लिए यदि घोड़ा ही बन जाता हूँ तो कौन जानेगा। मेरा विवाह तो इससे हो जाएगा। उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी।
वे घोड़ा बन गए और लड़की दुपट्टे का लगाम बनाकर उनके पीठ पर बैठ गई।

जैमिनी हसीन सपने में खोए मंदिर की ओर बढ़े चले जा रहे थे। जब वे मंदिर के करीब पहुँच रहे थे तो उन्हें लगा कि वहाँ बरामदे पर कोई व्यक्ति बैठा हुआ है।
उन्होंने सोचा कि अब कोई भी हो मैं अपनी मुरादें अवश्य पूरी कर लूँगा। जैसे ही वे नजदीक पहुँचे यह देखकर घबड़ा गए कि मंदिर के बरामदे पर गुरुदेव वेदव्यासजी महाराज इस प्रकार बैठे हुए थे जैसे उन्हीं का इंतजार हो रहा हो। जैमिनी लज्जित होकर गुरुदेव के चरणों में गिर गए और माफी मांगने लगे।
वेदव्यासजी ने पूछा--'बेटा! कहो 'बलवान इंद्रियग्रामो विद्वान्समपि कर्षति'-- यह ठीक है या 'बलवान इंद्रियग्रामो विद्वान्स नापि कर्षति'—ठीक है? जैमिनी ने कहा-- 'क्षमा करें गुरुदेव! आपकी वाणी सदैव सत्य है।'
इसी तरह की हालत रावण की भी थी। विद्वता और पाण्डित्य में तो वह बढ़ा हुआ था पर चरित्र से गिरा हुआ था। इसलिए कुछ समय के उत्कर्ष के बाद उसका पतन हो गया। जब विद्वता के साथ उत्तम चरित्र का समागम होता है तब सच्ची महानता प्रकट होती है।

धनबल परिजन ज्ञान अपार। सदाचार बिन सब बेकार।।

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Jan 20
राम और माता शबरी " संवाद " के सुंदर भाव ।
माता सबरी बोली- यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो राम तुम यहाँ कहाँ से आते ? " भगवान राम गंभीर हुए । कहा , " भ्रम में न पड़ो अम्मा ! राम क्या रावण का वध करने आया है ? छी ... अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से वाण चला कर भी कर सकता है ।
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इस कहते हैं अज्ञान या फिर अज्ञानता कहिये. हम आज के भारतीयों की सबसे बड़ी समस्या यही है.

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जी हाँ, आप कहेंगे कि इसमें सोचना क्या है. हनुमान जी पहाड़ उठा कर ले जा रहे हैं.
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प्रश्न = पुराणों में जब विष्णु भगवान ने वराह का रूप लिया था। तब उन्होंने पृथ्वी को समुद्र की गहराई से बचाकर बाहर निकाला था तो आप हमें यह बताएं कि पृथ्वी आखिर समुद्र में कैसे डूबी क्योंकि समुद्र तो पृथ्वी में ही है तो पृथ्वी कौन से समुद्र में डूबी थी ??????
पहली बात ये है कि किसी भी पुराण में ये नहीं लिखा है कि हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपाया था। दशावतार की कथा सबसे विस्तार में विष्णु पुराण में मिलती है। इसके अतिरिक्त 24000 श्लोकों वाले वाराह पुराण में भी इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।
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बेहतरीन सवाल !

क्योकि मादा ऑक्टोपस जितनी कोई माँ अपने बच्चो के लिए नहीं कर सकती।

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