प्रश्न = क्या भगवान हनुमान बलशाली राजा बलि को हराने के लिए काफी मजबूत थे?
हाँ भगवान हनुमान सुग्रीव के भाई बली को हराने के लिए काफी ताकतवर थे। जब भगवान हनुमान ने रावण के अभयारण्य को नष्ट कर दिया था, तो रावण ने अपने सैनिकों को चेतावनी दी थी कि हनुमान शक्तिशाली है ,
अन्य सभी वानरों को उन्होंने पहले देखा था जैसे कि बली, सुग्रीव, जंभवन, निल और द्विविद।
"इससे पहले, मैंने बली और सुग्रीव, पराक्रमी जांबवान, नील के सेनापति और दविवि जैसे महान शूरवीरों के रूप में बंदरों को देखा है ।
उनकी प्रदर्शन इस तरह भयभीत करनेवाली नहीं है;और ना हीं उनकी बुद्धि, न ही उनकी क्षमता या इच्छा शक्ति को बदलने की कौशल ऐसी है । "
"यह ध्यान में रखते हुए कि यह एक महान दुष्ट आत्मा है, जो बंदर के रूप में खड़ी है, एक जोड़दार प्रयास करो और इसे पकड़ लो ।
रावण ने अपने बेटे इंद्रजीत को भी चेतावनी दी थी कि कोई भी हथियार हनुमान को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है और उनकी ताकत की कोई सीमा नहीं है।
ये वीर! सेनाएँ आपकी रक्षा नहीं कर सकतीं, भले ही वे कितने ही बहुरूपियों में क्यों न हों।
हनुमान के खिलाफ एक मजबूत डरानेवाला जैसे हथियार लेने का कोई फायदा नहीं है। पवन-देवता के पुत्र हनुमान की ताकत की कोई सीमा नहीं है।" उसे मारना संभव नहीं है, जो किसी भी हथियार को निष्फल कर सकता है ।
यहाँ तक कि राम का भी यही मत था कि बली का हनुमान से कोई मुकाबला नहीं था।
बली और रावण अपनी ताकत में बेजोड़ थे। हालाँकि वे वीरता में हनुमत के बराबर नहीं थे। सिद्धता, कौशल, शक्ति, धैर्य, ज्ञान, अच्छी नीति, पराक्रम और शक्ति की प्राप्ति यह सभी कुछ हनुमत में एक साथ था ।
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प्रश्न = पिप्पलाद ऋषि कौन थे ? पिप्पलाद ऋषि का शनिदेव से क्या संबंध है ?
श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं।
इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।
जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा।
यहाँ के पण्डे आपके आते ही आपके पास पहुँच कर आपसे सवाल करेंगे
आप किस जगह से आये है ?
मूल निवास ?
आदि पूछेंगे और धीरे धीरे पूछते पूछते आपके #दादा, #परदादा ही नहीं बल्कि #परदादा के #परदादा से भी आगे की #पीढ़ियों के नाम बता देंगे जिन्हें आपने कभी सुना भी नही होगा
और ये सब उनकी #सैंकड़ो सालों से चली आ रही #किताबो में सुरक्षित है
प्रश्न = इंसान को भगवान ने बनाया तो भगवान को किसने बनाया?
ये एक बहुत पुराना पर प्रासंगिक प्रश्न है। इसके दो भाग हैं
भगवान क्या है —
आस्तिक हो या नास्तिक कोई भी ईश्वर को माने या न माने पर एक स्वचालित व्यवस्था की सत्ता में तो हम सब मानते ही हैं ।
ऐसा नही है तो हम हिरण्यकश्यप हो जाएंगे जो यह कहता था कि वही जीव को प्राण देता है, पालन-पोषण करता हैं, और वो ही प्राणों का हरण करता है। इसलिए उसी की पूजा हो।
जो ईश्वर को मानना चाहे माने, जो न माने वो इसी बड़ी सत्ता को माने।
इस शाश्वत स्वचालित व्यवस्था को ही मेरे जैसे भक्त भगवान कहते हैं। इसको किसी ने नही बनाया, इसके बिना कोई हो ही नही सकता।
2. भगवान की ज़रूरत क्यों है
हवा की ज़रूरत हम सबको है पर इसकी जरूरत महसूस नही होती क्योंकि यह हमेशा हर जगह उपलब्ध है।इसलिए हम हवा के लिए कोई कोशिश नही करते।
इनका विनाश एक-एक दोष के कारण हो जाता है। जैसे- हिरण कर्ण-सुख, मछली जिह्वा-सुख, भँवरा नासिका-सुख, पतंगा दृष्टि-सुख और हाथी स्पर्श-सुख की लालसा में अपने प्राण गँवाता है। हम में यदि पाँचो जानलेवा दोष एक साथ उपस्थित हों तो हमारी विनाश से बचने की कितनी संभावना होगी ?
माता सबरी बोली- यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो राम तुम यहाँ कहाँ से आते ? " भगवान राम गंभीर हुए । कहा , " भ्रम में न पड़ो अम्मा ! राम क्या रावण का वध करने आया है ? छी ... अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से वाण चला कर भी कर सकता है ।
राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है अम्मा , ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था !
( उद्धवजी कह रहे हैं ) चराचर जगत् और प्रकृति के स्वामी भगवान् ने जब अपने शान्त - रूप महात्माओं को अपने ही घोररूप असुरों से सताये जाते देखा ,
तब वे करुणाभाव से द्रवित हो गये और अजन्मा होने पर भी अपने अंश बलरामजी के साथ काष्ठ में अग्नि के समान प्रकट हुए ॥ अजन्मा होकर भी वसुदेवजी के यहाँ जन्म लेने की लीला करना , सबको अभय देने वाले होने पर भी मानो कंस के भय से व्रजमें जाकर छिप रहना और अनन्तपराक्रमी होने पर भी
कालयवन के सामने मथुरापुरी को छोड़कर भाग जाना- भगवान् की ये लीलाएँ याद आ आकर मुझे बेचैन कर डालती हैं ॥ उन्होंने जो देवकी - वसुदेवकी चरण - वन्दना करके कहा था- पिताजी माताजी ! कंसका बड़ा भय रहनेके कारण मुझसे आपकी कोई सेवा न बन सकी आप मेरे इस अपराधपर ध्यान न देकर मुझपर प्रसन्न हों ।