जिसे पहला स्वतंत्रता संग्राम कहते हैं, वो 1857 का बताया जाता है, फिर हम अपनी बात उससे सौ साल पहले से क्यों शुरू कर रहे हैं? क्योंकि इस दौर में बाबा तिलकामांझी ने फिरंगियों के शोषण के खिलाफ़ हथियार उठा लिए थे। ऐसा माना जाता है कि बाबा तिलका मांझी का जन्म 11 फ़रवरी 1750 को हुआ था।
इस हिसाब से 1784 के दौर में वो करीब 35 वर्ष के होंगे। विश्व इतिहास में ऐसा एक ही बार हुआ है कि कोई निजी कंपनी - ईस्ट इंडिया कंपनी, इतनी बड़ी आबादी को नियंत्रित करे। इस कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स ने विलियम पिट (यंगर) के प्रभाव में ज़मींदारी का लगान वसूलने की व्यवस्था बदली।
ये 1770 के अकाल का दौर था और तब के बिहार के लिए और शोषण झेल पाना नामुमकिन हो गया। बचपन से ही फिरंगियों का जुल्म देखते आ रहे तिलका मांझी ने आखिर फिरंगियों का और लगान भरने और जुल्म सहने के बदले हथियार उठा लिए। हथियार भी कैसे? फिरंगी तोपों-बंदूकों के खिलाफ तिलका मांझी के गुलेल-धनुष!
सुपरिटेंडेन्ट क्लीवलैंड के नेतृत्व में फिरंगी फौजों का मुकाबला भागलपुर के पास के जंगलों में तिलका मांझी से हुआ। पेड़ पर से तीर चलाकर तिलका मांझी ने क्लीवलैंड को मार गिराया। इस घटना ने फिरंगियों को हिला डाला। किसी ने तीर-गुलेल से बंदूकों का मुकाबला करने का कारनामा नहीं दिखाया था!
ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से और फौजें आगे बढ़ी। विदेशियों की फेंकी बोटियों पर पलने वाले गद्दार घुसपैठिये उतारे गए। मुखबिरों की मदद से सुल्तानपुर और भागलपुर के आस-पास की पहाड़ियों में तिलका मांझी की फौजों पर घेरा डाला गया और एक रात हमले में तिलका मांझी को घेरकर पकड़ लिया गया।
जंगलों से उन्हें घोड़े के पीछे बांधकर घसीटते हुए भागलपुर तक लाया गया। आज जहाँ भागलपुर का एसपी आवास है, उसके पास ही एक पीपल के पेड़ पर उन्हें, फ़रवरी 1785 में फांसी पर टांग दिया गया। आज उस स्थल पर बाबा तिलकामांझी की प्रतिमा लगी है। उनकी एक प्रतिमा दुमका, झारखंड में भी लगी हुई है।
भागलपुर की यूनिवर्सिटी का नाम बाबा तिलका मांझी के नाम पर है। और यहीं से समझिये कि विवाद शुरू होते हैं। “जौरा पहाड़िया” नाम के कथित डाकू की मौत के करीब 100 वर्ष बाद उस के नाम से फिरंगियों ने 1894 में सिक्का जारी किया। राजमहल की पहाड़ियों का ये “डाकू” 1300 तीरंदाजों का प्रमुख था।
तथाकथित “इतिहासकार” ये नहीं बता पाते हैं कि ये “पहाड़िया” था कौन? बाबा तिलका मांझी के पिता का नाम सुन्दर मुर्मू बताया जाता है। मांझी नहीं, मुर्मू! शोध न होने की वजह से स्पष्ट नहीं हो पाया कि तिलका नाम “लाल आँखों” की वजह से तो नहीं? वो संथाल थे या पहाड़िया, इसपर भी विवाद होता है।
तिलका मांझी को राजमहल की पहाड़ियों का “रॉबिन हुड” माना जाता है। डॉ. कुमार सुरेश सिंह की लिखी “ट्राइबल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया” की मानें तो उन्होंने क्लीवलैंड को जहरीला तीर मारा था जिससे बाद में ऑगस्टस क्लीवलैंड की मौत हुई।
भागलपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता कहते हैं कि फिरंगियों के खिलाफ लड़ना शुरू करने पर जौरा पहाड़िया ने अपना नाम तिलका मांझी रख लिया था। शोध की कमी से हमारा इतिहास लापता रहता है...
अप्रैल 1669 में औरंगज़ेब ने दारुल-हरब यानि हिन्दुस्तान को दारुल-इस्लाम बनाने के लिए फ़रमान जारी किया। जिन मंदिरों की वजह से बुतपरस्ती होती थी, उन्हें तोड़ा जाना था। इस आदेश पर इलाके की हिन्दू जनता भड़क उठी और विद्रोह हो गया। #OurTrueHistory @ShefVaidya
जाट बहुल इलाकों के इस विद्रोह में स्थानीय मीना, मेव, अहीर, गुज्जर, नरुका, पंवार सभी शामिल हो गए। मंदिरों को तोड़ने आई सेनाओं का सशस्त्र विरोध होने लगा। मथुरा के इलाके का फौजदार, अब्दुन नबी खान, विद्रोह को कुचल कर मंदिरों को तोड़ने आगे आया।
गोकुल जाट के नेतृत्व में हुई लड़ाई में शाहजहाँ के काल में बने शादाबाद के फौज़ी ठिकाने को जनता ने ध्वस्त कर दिया और 12 मई 1669 को हुई लड़ाई में गोकुल जाट और उसके साथियों ने किसानों के औजारों से ही मुग़ल सैनिकों को हराकर, अब्दुन नबी खान को मार गिराया।
यदि आप पति हो और किसी सुबह 5:30 में ही आपकी नींद खुल जाये तो आपको दो यक्ष प्रश्नों का सामना करना पड़ सकता है -
पहला -
चाय खुद बनाऊं या अर्धांगिनी को जगाने का दुःसाहस करूँ ?
परिणाम: आप कुछ भी करो आपको "चार बातें" सुननी ही हैl आप यदि खुद चाय बना लो तो ब्रह्म मुहूर्त में, अर्थात आठ बजे जब भार्या जागेगी तो आपको सुनना है -"क्या ज़रूरत थी खुद बनाने की , मुझे जगा देते, पूरा बर्तन जला दिया, वो दूध का बर्तन था, चाय वाली नीचे रखी है दाल भरकरl"
विश्लेषण: चाय खुद बनाने से पत्नी दुखी हुई या शर्मिंदा हुई या अपने अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ से भयाक्रांत हुई या कुछ और... आप कभी समझ नहीं पाएंगेl दूध के बर्तन में चाय बनाना गुनाह है लेकिन चाय के बर्तन में दाल भरकर रखी जा सकती हैl
धर्म परिवर्तन के खिलाफ़ आपके जो कानून हैं वो उल्टे हैं। बात हज़म करने में दिक्कत होगी, लेकिन जो ज़मीनी स्तर पर ऐसे मामले देख चुके हैं, उन्हें ये स्वीकार करने में दिक्कत नहीं होगी। धोखे से, लालच देकर, या गलत तरीके से धर्म परिवर्तन करते/करवाते पकड़े जाने पर क्या होता है?
अगर पीड़ित अथवा पीड़िता (जिसका धर्म परिवर्तन करवाया गया हो) किसी अनुसूचित जाति-जनजाति से आता/आती है, तो अधिक सज़ा होगी, और अगर वो सामान्य वर्ग से आता/आती हो तो कम सज़ा होगी। क्या धोखे से धर्म परिवर्तन करवाने वाले भी ऐसा ही सोचते हैं?
नहीं! वो बिलकुल इसका उल्टा करते हैं। चाहे लव जिहाद कहलाने वाले मामलों की तथाकथित "रेट लिस्ट" देखिये, या अन्य तरीकों के मामले में देखिये, तथाकथित सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के काल से इस बात के लिखित प्रमाण हैं कि निशाना पहले ब्राह्मण, फिर क्षत्रिय, वैश्य और अंत में दूसरी जातियां होंगी।
श्री कृष्ण के अनेक नामों में से एक 'मुरारी' है। ये नाम इसलिए पड़ा था क्योंकि श्री कृष्ण ने मुर नाम के राक्षस का वध किया था। इस राक्षस का वध क्यों किया? क्योंकि ये नरकासुर की सेना का सेनापति था और सत्यभामा ने नरकासुर पर आक्रमण कर दिया था।
शेखुलर गल्पकार (जो स्वयं को इतिहासकार बताते हैं), कहते हैं कि प्राचीन काल में स्त्रियों के शिक्षा इत्यादि की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए स्त्रियों के युद्धकला में दक्ष होने, रथ चलाने इत्यादि की बात नहीं होती। महाभारत में कम से कम दो बार तो सुभद्रा और सत्यभामा ही रथ चलाती दिखती हैं।
मगर खैर, हमारा मुद्दा स्त्रियों की शिक्षा और युद्धकला की जानकारी तो था नहीं। मुद्दा ये था कि सत्यभामा ने आखिर नरकासुर पर आक्रमण किया ही क्यों? अदिति के कुंडल छीन लाने के अलावा नरकासुर ने कई स्त्रियों का भी अपहरण कर रखा था। इससे क्रुद्ध सत्यभामा ने आक्रमण का आदेश दिया था।
बिल्ली का बच्चा लगातार उसे अपने साथ खेल में उलझाने की कोशिश करता दिखता है, और असफल होता है। क्या आपके लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आपका ध्यान भी इतना ही एकाग्र है? अगर ये बच्चा कर सकता है, तो आप भी कर सकते होंगे न?
भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 41वें श्लोक में कहा गया है -
इस श्लोक की "व्यवसायात्मिका बुद्धि" ने कई विद्वानों-मनीषियों ने भगवद्गीता की व्याख्या पर गंभीर प्रभाव पड़े। इस श्लोक में कहा गया है - सम बुद्धि की प्राप्ति के विषय में व्यवसायात्मिका बुद्धि एक ही होती है। अव्यवसायी मनुष्यों की बुद्धियाँ अनन्त और अनेक शाखाओं वाली होती हैं।
हिन्दुओं के कलैंडर यानि कि पञ्चांग में हर 14 से 19 साल में एक महीना खिसकता है। 2015 ऐसा ही एक साल था। इस अलग महीने वाले वर्ष पुरी के जग्गनाथ मंदिर में जो मूर्तियां रखी हैं उन्हें बदला जाता है।
मंदिर प्रांगण में जिन मूर्तियों की पूजा होती है उन्हें लकड़ी से बनाया जाता है। मुख्यतः इसमें नीम की लकड़ी इस्तेमाल होती है। इन चारों मूर्तियों में भगवान जगन्नाथ की मूर्ती 5 फुट 7 इंच की होती है और उनके फैले हुए हाथ 12 फुट का घेरा बनाते हैं।
इनका वजन इतना ज्यादा होता है कि पांच-पांच लोग इनके 1-1 हाथ और बीस लोग उन्हें पीठ की तरफ से उठाते हैं। करीब पचास लोग उन्हें आगे से खींचते हैं। बलभद्र की मूर्ती इस से कहीं हल्की होती है । उनकी मूर्ती 5 फुट 5 इंच ऊँची होती है।