पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी.... अखिलेश राज आया तो तन्ख्वाह भी लुटेगी
30 साल बाद पेंशन तो भूल जाओ... जालीदार टोपी आएगी तो आपके बच्चों को घर से भी पलायन करना पड़ेगा... अपने बच्चों की सोचो !
- अखिलेश यादव ने वादा किया है कि वो उस पुरानी पेंशन को बहाल कर देंगे जो साल 2005 में बंद
की गई थी
-जब पुरानी पेंशन बंद हुई तब राज्य में अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव ही मुख्यमंत्री थे... तब मुलायम ने राजकोषीय घाटे का हवाला देकर ही पेंशन को बंद करने का समर्थन किया था लेकिन अब उनके पुत्र अखिलेश यादव ने कहा है कि वो पिता का फैसला पलट देंगे
-अगर देखा जाए तो यूपी में
2005 के बाद 13 लाख सरकारी कर्मचारी नियुक्त हुए हैं ये 13 लाख कर्मचारी अगर अपने साथ 5 वोट और जोड़ पाते हैं तो ये 65 लाख की आबादी हो जाती है इस तरह ये 65 लाख का एक बड़ा वोट बैंक बन जाता है
-कई लालची टाइप के लोग झूठे वायदों में फंसकर पैसे दो गुने करने के लालच में अपना सब कुछ गंवा
बैठते हैं... अखिलेश का ये वादा भी ठीक वैसा ही है
-क्योंकि आम तौर पर नौकरी पाने की उम्र 25 से 35 साल के बीच में होती है अब अगर मान लीजिए किसी ने 35 साल में 2005 में सरकारी नौकरी पाई है वो साल 2030 में रिटायर होगा
जिसने 30 साल की उम्र में नौकरी पाई है तो वो 2035 में रिटायर होगा.
जिसने 25 साल की उम्र में नौकरी हासिल की है तो वो 2040 में रिटायर होगा
-जबकि अगर मान भी लिया जाए कि अखिलेश जीत जाएंगे तो भी वो 2027 तक ही मुख्यमंत्री बनेंगे यानी उनके कार्यकाल में कोई भी पेंशन नहीं दी जाएगी
अगर अखिलेश की सरकार आ गई तो आप सोचिए डकैती और लूटपाट इस तरह से होगी कि
हो सकता है कि तन्ख्वाह भी लुट जाए पेंशन तो छोड़ दीजिए और लूटपाट में हत्या भी हो जाए
-वैसे भी मुलायम ने ही राजकोषीय घाटे की बात कहकर पेंशन यूपी में बंद करवाई थी... अगर मान लीजिए कि 13 लाख सरकारी कर्मचारियों को एक महीने में न्यूनतम 30 हजार रुपया भी पेंशन देना हो तो यूपी सरकार पर
3900करोड़ रुपए प्रति माह का बोझ पड़ेगा और साल में यूपी सरकार पर करीब 50 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा.इस वक्त यूपी सरकार का बजट ही करीब17लाख करोड़ का है.अब आप भी सोचिए कि क्या कोई सरकार आधा लाख करोड़ रुपए पेंशन ही बाट सकती है?अगर बांट दे तो अच्छी बात है लेकिन बजट आएगा कहां से ?
लेकिन अखिलेश के राज तक तो कोई रिटायर ही नहीं होगा तो अखिलेश को इससे क्या लेना देना उन्हें तो झूठे वादे करके गुंडागर्दी का राज स्थापित करना है
-इसलिए यूपी के वोटर्स आपसे ये प्रार्थना है कि सोच समझकर ईमानदार सरकार को वोट देना... जालीदार टोपी से यूपी को बचा लें वरना पश्चिम बंगाल
जैसा हाल होगा.... आपके बच्चों का घर से पलायन होगा.... पेंशन तो भूल ही जाओ
धन्यवाद
प्लीज शेयर इन ऑल ग्रुप्स
दिलीप पांडेय
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
मोहन दास करम चंद्र गांधी, आप आज ज़िंदा होते तो शायद मेरे इन प्रश्नो के उत्तर दे पाते। 1. आप एक काले आदमी लंदन में रहकर बिना किसी परेशानी के गोरो के साथ पढ़ते, होस्टल के एक कमरे में रहते हैं, एक मेस में खाते है फिर अचानक ट्रेन में एक साथ सफर करने में फेंक दिए जाते है?
क्यूँ? ये बात कतई हजम नही हुई।
2. फिर आप वही काले भारतीय उन्हीं गोरों की सेना में सार्जेंट मेजर बनते हैं और दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश बोर वार में आपकी तैनाती एम्बुलेंस यूनिट में होती है जहां आप लड़ाई में गोरों का कालों के विर्रुध साथ देते हैं। मिलिट्री यूनिफॉर्म में
आपकी की फोटो पूरे इंटरनेट उपलब्ध है। सार्जेंट मेजर गांधी लिखकर सर्च कर लीजिए।
3. फिर आप में अचानक 46 वर्ष की उम्र में 1915 में देशप्रेम जागा और मिलिट्री यूनिफार्म उतारकर आपको बैरिस्टर घोषित कर दिया गया। (रानी लक्ष्मी बाई, खुदीराम बोस, बिस्मिल, भगतसिंह और आजाद जैसे अनेकों
हाल ही में तीन नए देशों का सृजन हुआ है ! ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवो !
क्या हम अधिकांश भारतीयों को यह पता है, इन देशों का निर्माण किस आधार पर हुआ है ?
जिन्हें नहीं पता है उनके लिए जानकारी है कि इन देशों का निर्माण जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण हुआ है !
ईस्ट तिमोर, जो इंडोनेशिया का एक भाग था, उसमें पहले ईसाइयों की जनसंख्या बहुत कम थी !
मुसलमानों एवं अन्य मत के मानने वाले नागरिकों की आबादी ८०% से अधिक थी ! केवल ५० वर्षों में ईसाई मिशनरियों के प्रयत्नों से, ईस्ट तिमोर में ईसाइयों की जनसंख्या ८०% से अधिक हो गई, परिणाम स्वरूप
"संयुक्त राष्ट्र संगठन" के दखल से जनमत संग्रह करा कर, ईस्ट तिमोर नाम के देश का निर्माण कर दिया गया! कोई युद्ध नहीं हुआ !
सूडान के दक्षिणी क्षेत्र में गरीबी थी मिशनरियों के प्रभाव में कुछ आदिवासी लोगों को पहले ही ईसाई बनाया गया !
धीरे धीरे इस मुस्लिम बहुल देश को दक्षिणी
मीरा नायर ने दो समलैंगिक महिलाओं पे एक फ़िल्म बनाई थी फायर,
जिसमे एक का नाम राधा और दूसरी का नाम सीता था!!
मकबूल फिदा हुसैन नामक एक पेंटर हुआ करते थे जो हिन्दू देवियों की अश्लील पेंटिंग बनाया करते थे!!
दाऊद इब्राहिम को महिमामंडित करने के लिए कंपनी और डी जैसी फिल्में बनाई
जाती थी!
उस दौर में भी हम सब इनका विरोध करते थे तो कांग्रेस शासन में लाठी डंडों से स्वागत किया जाता था!!
हमारी विचारधारा में एक बात समझाई जाती थी,
अगर किसी देश को खत्म करना है तो उसकी संस्कृति को खत्म कर दो वो देश खुद ब खुद खत्म हो जाएगा!
आज फ़िल्म बन रही है रानी लक्ष्मी बाई पे, उरी की सर्जिकल स्ट्राइक पे, बाला साहेब पे, और ऐसे कई अच्छे विषयो पे जिनमे भारत ने कामयाबी के झंडे गाड़े हैं!!
अब अयोध्या में शानदार आयोजन कर दीवाली मनाई जा रही है जो आज तक तो किसी ने मनवाने की जहमत नही उठायी,
श्री शैलेन्द्र वाजपेयी मौजी लेखक हैं और खिंचाई में माहिर। उनकी यह विशुद्ध हास्य भाव की टिप्पणी पढ़नी चाहिए, बिल्कुल ठंढे मन से।
*
ठंड एक अनोखा व्यंग कृपया अन्यथा न लें।
केवल आनंद लीजिए, छीटाकसी नही है।
देश भर में पड़ रही कंपकपाती ठण्ड पर विभिन्न दलों/नेताओं की
राय इस प्रकार हो सकती हैं।
भाजपा- ये कंपकपाती ठण्ड सबका साथ, सबका विश्वास का अद्भुत उदाहरण है। ये ठण्ड बिना किसी जाति, धर्म के भेदभाव किए बिना सभी पर समान रूप से पड़ रही है। हम इस सद्भावनापूर्ण ठण्ड का स्वागत करते हैं। भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।
कांग्रेस - ऐसा नही हैं कि ये ठण्ड हमारी सरकार में नहीं पड़ती थी, पड़ती थी किन्तु ऐसी भेदभावपूर्ण, विद्वेषपूर्ण ठण्ड आज से पहले कभी नहीं पड़ी। हम पूछना चाहते हैं इस सरकार से अल्पसंख्यक इलाकों में ही ज्यादा ठण्ड क्यों पड़ रही हैं ❓❓.. लोकतंत्र में इतनी ठण्ड बर्दाश्त नहीं।
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे जनरल वीपी मलिक अपनी किताब "इंडियाज मिलिट्री कॉन्फ्लिक्टस एंड डिप्लोमेसी" में कहते हैं कि युद्ध के दौरान जब उन्होंने आर्म्स और एम्यूनशन की शॉर्टेज पर सरकार का ध्यान आकर्षित कराया था, तब उस समय के एक सीनियर
ब्यूरोक्रेट ने उनकी इस बात पर आलोचना की थी कि उन्होंने प्रेस में कहा था कि "हमारे पास जो कुछ भी है हम उसके साथ लड़ेंगे।"
जनरल मलिक कहते हैं कि जबकि उस समय शॉर्टेज का कारण बजटरी सपोर्ट में लगातार कमी और एक ऑलमोस्ट नॉन फंक्शनल प्रोक्योरमेंट सिस्टम था।
अब सोंचिये कि ऐसा क्यों था? राव, देवगौड़ा, गुजराल के बाद अटल जी की सरकार थी जो मात्र कुछ ही महीने पुरानी थी। तो यह लगातार कमी जो कि सालों की थी वो किस कारण थी और ऐसा बंद सा पड़ा प्रोक्योरमेंट सिस्टम था, वो किस कारण था?
जनरल मलिक बताते हैं कि रक्षा मंत्री के साथ होने वाली
पता नहीं, किस रचनाकार की रचना है। लेकिन, है लाजवाब.
*शब्द*
शब्द *रचे* जाते हैं,
शब्द *गढ़े* जाते हैं,
शब्द *मढ़े* जाते हैं,
शब्द *लिखे* जाते हैं,
शब्द *पढ़े* जाते हैं,
शब्द *बोले* जाते हैं,
शब्द *तौले* जाते हैं,
शब्द *टटोले* जाते हैं,
शब्द *खंगाले* जाते हैं,
... इस प्रकार
शब्द *बनते* हैं,
शब्द *संवरते* हैं,
शब्द *सुधरते* हैं,
शब्द *निखरते* हैं,
शब्द *हंसाते* हैं,
शब्द *मनाते* हैं,
शब्द *रुलाते* हैं,
शब्द *मुस्कुराते* हैं,
शब्द *खिलखिलाते* हैं,
शब्द *गुदगुदाते* हैं,
शब्द *मुखर* हो जाते हैं
शब्द *प्रखर* हो जाते हैं
शब्द *मधुर* हो जाते हैं
... इतना होने के बाद भी
शब्द *चुभते* हैं,
शब्द *बिकते* हैं,
शब्द *रूठते* हैं,
शब्द *घाव देते* हैं,
शब्द *ताव देते* हैं,
शब्द *लड़ते* हैं,