हाल ही में तीन नए देशों का सृजन हुआ है ! ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवो !
क्या हम अधिकांश भारतीयों को यह पता है, इन देशों का निर्माण किस आधार पर हुआ है ?
जिन्हें नहीं पता है उनके लिए जानकारी है कि इन देशों का निर्माण जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण हुआ है !
ईस्ट तिमोर, जो इंडोनेशिया का एक भाग था, उसमें पहले ईसाइयों की जनसंख्या बहुत कम थी !
मुसलमानों एवं अन्य मत के मानने वाले नागरिकों की आबादी ८०% से अधिक थी ! केवल ५० वर्षों में ईसाई मिशनरियों के प्रयत्नों से, ईस्ट तिमोर में ईसाइयों की जनसंख्या ८०% से अधिक हो गई, परिणाम स्वरूप
"संयुक्त राष्ट्र संगठन" के दखल से जनमत संग्रह करा कर, ईस्ट तिमोर नाम के देश का निर्माण कर दिया गया! कोई युद्ध नहीं हुआ !
सूडान के दक्षिणी क्षेत्र में गरीबी थी मिशनरियों के प्रभाव में कुछ आदिवासी लोगों को पहले ही ईसाई बनाया गया !
धीरे धीरे इस मुस्लिम बहुल देश को दक्षिणी
क्षेत्र में ईसाइयों से भर दिया गया !
फिर गृह युद्ध करा दिया गया ! शांति प्रयास "संयुक्त राष्ट्र संगठन" के तत्वाधान में हुए, और परिणाम यह हुआ कि दक्षिणी सूडान को काटकर ईसाई देश के रूप में नए देश की मान्यता दे दी गई !
कोसोवो सर्बिया के भीतर एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें खदानें बहुत
अधिक थीं!इन खदानों में काम करने के लिए अल्बानियाई मूल के मुसलमानों को मजदूर के रूप में लाया गया!
कालांतर में इनकी संख्या बढ़ गई! यूगोस्लाविया के विघटन के बाद सर्बिया स्वतंत्र देश बना!
लेकिन मुसलमानों ने सर्बों के अधीन रहना स्वीकार नहीं किया,और कोसोवो को अलग देश बनाने की मांग की!
गृहयुद्ध जैसी स्थिति कई वर्षों तक रही ! फिर नया देश बन गया !
भारत के कई क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से जनसांख्यकीय परिवर्तन किए जा रहे हैं ! बहुसंख्यक जनसंख्या इससे अनजान है !
विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों मे ऐसा होने से गैरकानूनी एवं आतंकी गतिविधियां बढ़ रही हैं !
यदि हम भारत की अखंडता बनाए रखना चाहते हैं, तो स्थानीय प्रशासन से मिलकर हमें समस्या का समाधान खोजना चाहिए !
आखिर हम भी तो भारत माता के बिना वर्दी वाले सैनिक हैं ! हर हर महादेव !
ऐसा भारत में ना होने पाए, इसके लिए अन्य प्रयास तो करने ही हैं किंतु ... फिलहाल राष्ट्रवादी पार्टी को
समर्थन देकर हर दिशा से सक्षम बनाए रखना आवश्यक ही नहीं,अनिवार्य है।
किसी के पास कोई मार्ग या विकल्प हो,तो वार्ता करे,सिद्ध करे!
कृपया अपने स्वार्थ छोड़िए,अपनी इंद्रियों को जागृत कर,उनका सदुपयोग करें!
जो अभी स्वार्थवश आप अर्जित करेंगे,वो ना आपका,न आपके परिवार का,रहने वाला है !
पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी.... अखिलेश राज आया तो तन्ख्वाह भी लुटेगी
30 साल बाद पेंशन तो भूल जाओ... जालीदार टोपी आएगी तो आपके बच्चों को घर से भी पलायन करना पड़ेगा... अपने बच्चों की सोचो !
- अखिलेश यादव ने वादा किया है कि वो उस पुरानी पेंशन को बहाल कर देंगे जो साल 2005 में बंद
की गई थी
-जब पुरानी पेंशन बंद हुई तब राज्य में अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव ही मुख्यमंत्री थे... तब मुलायम ने राजकोषीय घाटे का हवाला देकर ही पेंशन को बंद करने का समर्थन किया था लेकिन अब उनके पुत्र अखिलेश यादव ने कहा है कि वो पिता का फैसला पलट देंगे
-अगर देखा जाए तो यूपी में
2005 के बाद 13 लाख सरकारी कर्मचारी नियुक्त हुए हैं ये 13 लाख कर्मचारी अगर अपने साथ 5 वोट और जोड़ पाते हैं तो ये 65 लाख की आबादी हो जाती है इस तरह ये 65 लाख का एक बड़ा वोट बैंक बन जाता है
-कई लालची टाइप के लोग झूठे वायदों में फंसकर पैसे दो गुने करने के लालच में अपना सब कुछ गंवा
मीरा नायर ने दो समलैंगिक महिलाओं पे एक फ़िल्म बनाई थी फायर,
जिसमे एक का नाम राधा और दूसरी का नाम सीता था!!
मकबूल फिदा हुसैन नामक एक पेंटर हुआ करते थे जो हिन्दू देवियों की अश्लील पेंटिंग बनाया करते थे!!
दाऊद इब्राहिम को महिमामंडित करने के लिए कंपनी और डी जैसी फिल्में बनाई
जाती थी!
उस दौर में भी हम सब इनका विरोध करते थे तो कांग्रेस शासन में लाठी डंडों से स्वागत किया जाता था!!
हमारी विचारधारा में एक बात समझाई जाती थी,
अगर किसी देश को खत्म करना है तो उसकी संस्कृति को खत्म कर दो वो देश खुद ब खुद खत्म हो जाएगा!
आज फ़िल्म बन रही है रानी लक्ष्मी बाई पे, उरी की सर्जिकल स्ट्राइक पे, बाला साहेब पे, और ऐसे कई अच्छे विषयो पे जिनमे भारत ने कामयाबी के झंडे गाड़े हैं!!
अब अयोध्या में शानदार आयोजन कर दीवाली मनाई जा रही है जो आज तक तो किसी ने मनवाने की जहमत नही उठायी,
श्री शैलेन्द्र वाजपेयी मौजी लेखक हैं और खिंचाई में माहिर। उनकी यह विशुद्ध हास्य भाव की टिप्पणी पढ़नी चाहिए, बिल्कुल ठंढे मन से।
*
ठंड एक अनोखा व्यंग कृपया अन्यथा न लें।
केवल आनंद लीजिए, छीटाकसी नही है।
देश भर में पड़ रही कंपकपाती ठण्ड पर विभिन्न दलों/नेताओं की
राय इस प्रकार हो सकती हैं।
भाजपा- ये कंपकपाती ठण्ड सबका साथ, सबका विश्वास का अद्भुत उदाहरण है। ये ठण्ड बिना किसी जाति, धर्म के भेदभाव किए बिना सभी पर समान रूप से पड़ रही है। हम इस सद्भावनापूर्ण ठण्ड का स्वागत करते हैं। भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।
कांग्रेस - ऐसा नही हैं कि ये ठण्ड हमारी सरकार में नहीं पड़ती थी, पड़ती थी किन्तु ऐसी भेदभावपूर्ण, विद्वेषपूर्ण ठण्ड आज से पहले कभी नहीं पड़ी। हम पूछना चाहते हैं इस सरकार से अल्पसंख्यक इलाकों में ही ज्यादा ठण्ड क्यों पड़ रही हैं ❓❓.. लोकतंत्र में इतनी ठण्ड बर्दाश्त नहीं।
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे जनरल वीपी मलिक अपनी किताब "इंडियाज मिलिट्री कॉन्फ्लिक्टस एंड डिप्लोमेसी" में कहते हैं कि युद्ध के दौरान जब उन्होंने आर्म्स और एम्यूनशन की शॉर्टेज पर सरकार का ध्यान आकर्षित कराया था, तब उस समय के एक सीनियर
ब्यूरोक्रेट ने उनकी इस बात पर आलोचना की थी कि उन्होंने प्रेस में कहा था कि "हमारे पास जो कुछ भी है हम उसके साथ लड़ेंगे।"
जनरल मलिक कहते हैं कि जबकि उस समय शॉर्टेज का कारण बजटरी सपोर्ट में लगातार कमी और एक ऑलमोस्ट नॉन फंक्शनल प्रोक्योरमेंट सिस्टम था।
अब सोंचिये कि ऐसा क्यों था? राव, देवगौड़ा, गुजराल के बाद अटल जी की सरकार थी जो मात्र कुछ ही महीने पुरानी थी। तो यह लगातार कमी जो कि सालों की थी वो किस कारण थी और ऐसा बंद सा पड़ा प्रोक्योरमेंट सिस्टम था, वो किस कारण था?
जनरल मलिक बताते हैं कि रक्षा मंत्री के साथ होने वाली
पता नहीं, किस रचनाकार की रचना है। लेकिन, है लाजवाब.
*शब्द*
शब्द *रचे* जाते हैं,
शब्द *गढ़े* जाते हैं,
शब्द *मढ़े* जाते हैं,
शब्द *लिखे* जाते हैं,
शब्द *पढ़े* जाते हैं,
शब्द *बोले* जाते हैं,
शब्द *तौले* जाते हैं,
शब्द *टटोले* जाते हैं,
शब्द *खंगाले* जाते हैं,
... इस प्रकार
शब्द *बनते* हैं,
शब्द *संवरते* हैं,
शब्द *सुधरते* हैं,
शब्द *निखरते* हैं,
शब्द *हंसाते* हैं,
शब्द *मनाते* हैं,
शब्द *रुलाते* हैं,
शब्द *मुस्कुराते* हैं,
शब्द *खिलखिलाते* हैं,
शब्द *गुदगुदाते* हैं,
शब्द *मुखर* हो जाते हैं
शब्द *प्रखर* हो जाते हैं
शब्द *मधुर* हो जाते हैं
... इतना होने के बाद भी
शब्द *चुभते* हैं,
शब्द *बिकते* हैं,
शब्द *रूठते* हैं,
शब्द *घाव देते* हैं,
शब्द *ताव देते* हैं,
शब्द *लड़ते* हैं,
🙏सन् 1840 में काबुल में युद्ध में 8000 पठान मिलकर भी 1200 राजपूतो का मुकाबला 1 घंटे भी नही कर पाये।
वही इतिहासकारो का कहना था की चित्तोड की तीसरी लड़ाई जो 8000 राजपूतो और 60000 मुगलो के मध्य हुयी थी वहा अगर राजपूत 15000 राजपूत होते तो अकबर भी जिंदा बचकर नहीं जाता।
इस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे जिसमे 8000
राजपूत और 40000 मुग़ल थे वही 10000 के करीब
घायल थे।
और दूसरी तरफ गिररी सुमेल की लड़ाई में 15000
राजपूत 80000 तुर्को से लडे थे, इस पर घबराकर शेर
शाह सूरी ने कहा था "मुट्टी भर बाजरे (मारवाड़)
की खातिर हिन्दुस्तान की सल्लनत खो बैठता"
उस युद्ध से पहले जोधपुर महाराजा मालदेव जी नहीं गए
होते तो शेर शाह ये बोलने के लिए जीवित भी नही
रहता।
इस देश के इतिहासकारो ने और स्कूल कॉलेजो की
किताबो मे आजतक सिर्फ वो ही लडाई पढाई
जाती है जिसमे हम कमजोर रहे,
वरना बप्पा रावल और राणा सांगा जैसे योद्धाओ का नाम तक सुनकर