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Feb 3 12 tweets 4 min read
कल हमने इस बारेमें की देश"यूनियन ऑफ़ स्टेट्स"क्यों बना इसपर लम्बी सारी पोस्ट लिख डाली और इसका फायदा क्या रहा पिछले70सालमें वो भी कवर किया,क्यूंकि हमें मालूमथा के कोई ना कोई मंदबुद्धि चड्डी जिसने संविधान नहीं पढ़ रखा होगा वो पक्का राहुलसे कहेगाके राहुलने संविधान नहीं पढ़ रखा है।
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और हमारे देश में balkanizationना हो इसलिए ही ये"यूनियन ऑफ़ स्टेट्स"बना था, इस बारे में हुई संविधान सभा की बहस भी हमने शेयर की थी।😔

#कल वाली पोस्ट येथी :

इंडिया,अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया,कनाडा,ये सब फेडरेशंस हैं,यानी के राज्योंका समूह।
बहुत सारे चौधरियोंने मिलके एक पचायत बना रखीहै
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भारत जब आज़ाद हुआ तो बात शुरू हुई के इस देश को कैसे एक रखा जाए,
क्या किया जाए की ये टूटे ना,
यानी के ऐसा क्या हो के जैसा पाकिस्तान में हुआ के बांग्लादेश अलग हो गया या यूगोस्लाविया ख़त्म हुआ ऐसा इंडिया में ना हो,
तो उसके लिए संविधान सभा में काफी बहस हुईथी।
क्या राज्यों को कमज़ोर
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किया जाना चाहिए सेंट्रल अथॉरिटी से ताकि सभी राज्य आपस में जुड़े रहे ?
और अगर सेंट्रल अथॉरिटी ज्यादा ताकतवर हो गयी तो फेडरेशन बची ही कहाँ ?
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ये बहुत ही बारीक विषय था और नेहरू जी ने चेताया था सभा में के अगर सेण्टर कमज़ोर रहा तो हमारे देश में इतनी विभिन्नता है की कभी कोई तो कभी
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कोई राज्य अलग होने की कोशिश करेगा जिसे की रोकना है, लेकिन ऐसा भी नहीं करना की किसी एक इलाके के लोगों का सभी पर हमेशा के लिए कब्ज़ा हो जाए क्यूंकि ऐसे हालत में भी जिनको हक़ नहीं मिलेंगे वो विद्रोह करेंगे और देश टूट जाएगा। पाकिस्तान में वही बंगालियों ने किया जब पंजाबियों ने
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जबरन सत्ता हथियाये रखी तो।
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इसपर आंबेडकर साहब का बयान था के :
"हमारा संविधान एक संघीय संविधान है...संघ(सेण्टर) राज्यों की एक लीग नहीं है...न ही राज्य सेण्टर की एजेंसियां हैं, जो इससे शक्तियां प्राप्त करती हैं। सेण्टर और राज्य दोनों संविधान द्वारा बनाए गए हैं, दोनों संविधान से
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अपने-अपने अधिकार प्राप्त करते हैं।इस तरह केdiverseसमाज को नियंत्रित करने के लिए, "विषम संघवाद"(asymmetrical federalism)को अपनाया गया।
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अब हिंदुस्तान के इस फेडरेलिस्म को हम चार अलग अलग कालों में बाँट सकते हैं जिनमे से दो एक जैसेहैं,
पहला काल था नेहरू जीका काल जो एक ही पार्टी का
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फेडरेलिस्म था,ये शास्त्री जी तक चला,
दूसरा काल आया इंदिराजी के काल से राजीव जी के काल तक जब देशमें विरोध उत्पन्न हुआ सिंगल पार्टी के खिलाफ और दो अलग अलग गुट टकराये,
तीसरा काल आया फिर जब बहुत सारी क्षेत्रीय पार्टियां ताकत बन गई और तीसरा मोर्चा चौथा मोर्चा टाइप्स राजनीती होने लगी
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चौथा काल ये है जो अभी चल रहा है जिसमे इंदिरा जी के समय वाला ही काल चल रहा है जिसमे एक पार्टी सत्ता में है और बाकी सब उसके खिलाफ इकठ्ठा हो रहे हैं।
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ये सब संभव हो पाया क्यूंकि हमारे यहां asymmetrical federalism का कांसेप्ट लागू था।
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अब ये asymmetrical federalism अलग कैसे है अमेरिका के या क्लासिकल सेंस के फेडरेशन से ?
ये अलग ऐसे है की आंबेडकर ने बताया था के
हमारा देश राज्यों की फेडरेशन होकर भी फेडरेशन नहीं बल्कि यूनियन है,
यानी के कई चीज़ों से मिलकर एक चीज़ बनी
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लेकिन जिनसे वो बनी है उसका एक भी हिस्सा अलग नहीं हो सकता है !
अमेरिका का कोई राज्य अमेरिका से अलग हो सकता है लेकिन भारत का नहीं,
इसलिए हमने संविधान में यूनियन शब्द का इस्तेमाल किया है फेडरेशन की बजाय।
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@BramhRakshas
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Feb 5
लॉजिक हम शर्मिंदा हैं ।

बिजनौर विधान सभा से राष्ट्रीय लोकदल पार्टी से डॉक्टर नीरज चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं । डॉक्टर नीरज चौधरी जाट बिरादरी से हैं । उनके ख़िलाफ़ एक FIR दर्ज हुई है कि उन्होंने एक गाँव में पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगवाए हैं ।
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ऑल्ट न्यूज़ साबित कर चुका है कि आकिफ़ भाई ज़िंदाबाद के नारे को पाकिस्तान ज़िंदाबाद बनाया गया है । होना तो यह चाहिए था कि उस व्यक्ति को पकड़ा जाता जिसने यह विडीओ एडिट की है क्योंकि भावनाएँ तो वो भड़का रहा है लेकिन प्रशासन को इससे कोई ख़ास मतलब नहीं है । अब बात करें लॉजिक की तो
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भाई एक जाट पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे क्यों लगवाएगा ?? किसी जाट का पाकिस्तान से क्या सम्बंध हो सकता है ??

क्या भाजपा ने मान लिया है कि उत्तर प्रदेश के लोग मूर्ख हैं ?? अगर नहीं हैं तो भाजपा की इस ग़लतफ़हमी को दूर कीजिए ।
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@BramhRakshas
@NiranjanTripa16
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Feb 5
लॉजिक हम शर्मिंदा हैं !

ओवैसी साहब की गाड़ी पर गोली चली । गोली चलाने वाले CCTV कैमरा में आ गए । वो अपने पिस्टल छोड़कर भाग गए । एक पकड़ा गया फिर दूसरे ने सरेंडर कर दिया । हमलावर भाजपा का कार्यकर्ता निकला । उसके फ़ोटो भाजपा के बड़े बड़े नेताओ के साथ हैं ,
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फ़ोटो सोशल मीडिया पर वाइरल होने लगे । न्यूज़ चैनल में बहस शुरू हो गयी । ओवैसी साहब का संसद में इस मुद्दे पर दिया गया भाषण वाइरल होने लगा।सुरक्षा देने और सुरक्षा लौटाने की खबरें चलने लगी।

ओवैसी सपा ,बसपा,कांग्रेस के विरोधी हैं , उनके वोटर जितने भी हैं वो सब भी पहले कांग्रेस,
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सपा या बसपा के वोटर थे । उनके पास कोई एक वोटर भी ऐसा नहीं हैं जो पहले भाजपा को वोट करता हो फिर भाजपा को उनसे क्यों ख़तरा होगा ?? वो भाजपा के वोट तो काट नहीं रहे , फिर भाजपा का कार्यकर्ता उन पर गोली क्यों चलाएगा ?? अगर सपा , लोकदल, बसपा या कांग्रेस का कोई कार्यकर्ता उन पर गोली
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Feb 5
साल दो साल और नेहरू को गाली दे सकते हैं ...

साफ साफ बोलें तो यदि 6th pay commission के जरिये लगभग दो ढाई करोड़ लोगों ( पढ़ें 18 - 20 करोड़ आबादी ) की तनख्वाहें और पेंशन इतनी ज्यादा न बढ़ी होती तो आज न इनके पास बाइक होती , न कार होती , न ये लोन लेकर घर बनवा पाते ,
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न अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों की फीस भर सकते थे,न प्राइवेट इलाज करा सकतेथे. सेविंग के नाम पर धेला न होता और एक बेरोजगार बेटा दस साल उम्र कम कर देता औऱ जवान होती बेटी की सूरत देख कर तकिए में मुंह छिपा कर रोते...

भला हो मनमोहन सिंहका जिन्होंने एक झटकेमें तनख्वाहें
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लगभग दूनी कर दी ... और दूसरी ओर मनरेगा ने ग्रामीण भुखमरी पर लगभग लगाम लगा दी...इसी का नतीजा था कि डॉमेस्टिक सेविंग के दम पर 2008 की महामंदी से जनता की मौत नही हुई...

मिडिल क्लास और ग्रामीण अर्थव्यस्था छठे वेतन आयोग और मनरेगा ही था जो अब तक उनकी हालत थामे हुये था ...
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Read 7 tweets
Feb 4
सेनाये मरने मारने के लिए नही होती

जी हां,सेना फोर्स है,जिसका इस्तेमाल पोलिटिकल ऑब्जेक्टिव के पाने लिए होताहै इंटरनेशनल पोलिटिकल ऑब्जेक्टिवके लिए

यह पोलिटीकल ऑब्जेक्टिव ऐसी टेरेटरीहो सकतीहै,जिसका महत्व जियोस्ट्रेटेजिक हो या व्यापारिकहो,या एथनिक,या कुछ और। ऑब्जेक्टिव तय करके सेना Image
यूज कीजिए,उसे हासिल करनेको

अगर आपके ऑब्जेक्टिव हासिल नहीहोते,या ऑब्जेक्टिव डिफाइंड ही नही,तब मरने मारने का कोई औचित्य नही।फिर ये महज दंगा है। लाशें गिनाकर बरियार बनने की सनक

तो चीनके चार मरे,या चालीस,हमारे दोमरे या दोसौ..इन बातोंका दम्भ जताने और ईगो सैटिस्फाइ करनेके अलावा कोई
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महत्व नहीहोता।
एकके बदले दस सर लानेका उद्घोष इसी तरह फिजूलका लहू बहानेकी सनक है,जिसे आप गर्मी ठंडा करदेने,या टाइट करदेने के डिफरेंट वर्जनमें सुनतेहै।

अगर खुश होतेहै,तो जान लीजिए एक दंगाई आपके भीतर घुसपैठ कर चुकाहै।इसलिए कटे हुए सर की संख्या नही,हासिलात बताइये।

हासिलात पूछिये।3 Image
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Feb 4
राहुल गांधी के दो दिन पहले लोकसभा में दिए गए भाषण पर समूचे भगवा ब्रिगेड और संघी संपादकों को सांप क्यों सूंघ गया?

दरअसल, राहुल ने नरेंद्र मोदी सरकार और उनके दरबारी मीडिया के देश में संसदीय लोकतंत्र को ख़त्म करने की तमाम कोशिशों को पलीता लगा दिया।

नरेंद्र मोदी खिड़कीसे मुंह
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निकालकर दुनिया को यह ज़रूर फेंक सकते हैं कि वे अभिव्यक्ति की आज़ादी को कितना समर्थन देते हैं।

लेकिन अपनी सरकार की नाकामयाबियों पर जवाब तो दूर, विपक्षी सांसदों को बोलने देने से कतराते हैं।

लेकिन चूंकि राहुल प्रश्नकाल नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस में बोल रहे थे,
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लिहाज़ा उन्हें रोक पाना नामुमकिनथा।

और उन्होंने पूरे देशको मोदीकी इसी कथनी-करनीका सच बता दिया, जो पेडिग्री दरबारी मीडिया के सवालों में नहीं आता। पर राहुल का संसद में दिया भाषण था, तो छापना ही पड़ा। सुलगनी ही थी।

दुनियाके लोकतांत्रिक सूचकांकमें भारत खिसकता जा रहाहै।क्यों?
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Feb 3
आज से ठीक 16 साल पहले देश में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू हुई थी। यह भारत सरकार से प्रत्येक ग्रामीण वयस्क को मिलने वाली काम की कानूनी गारंटी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद संसद में खड़े होकर बेशर्मी से मनरेगा को UPAसरकार की गड्ढा खोदो योजना बताकर मज़ाक उड़ा चुके हैं।
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कोविड काल में इसी योजना ने करीब 10 करोड़ जॉब कार्ड धारकों को भूखों मरने से बचाया था।

लेकिन इस साल मोदी सरकार के पास 100 दिन तक काम देने को भी पैसा नहीं है। आज राज्यसभा में उनकी सरकार ने खुद यह बात बताई है।
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वज़ह यह है कि मनरेगा की3358करोड़ से ज़्यादा की मजदूरी का भुगतान बाकी है। सामग्री पर11हज़ार करोड़ से अधिक की पेमेंट बकायाहै।

मोदी सरकार ने पिछले बजट के संशोधित अनुमान में एक-चौथाई की कटौती कीहै।

अब बकाए का भुगतान कर अगले एक साल के लिए बची रकम देखें तो यह54650करोड़ ₹ होती है।3
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