प्रश्न = श्री कृष्ण अपने ही वंश का नाश क्यों नहीं रोक पाए?
क्योंकि वो रोकना नहीं चाहते थे। यह सृष्टि के नियम, काल व कर्म के सिद्धांत के विरुद्ध होता। कृष्ण स्वयं धर्म हैं, तो वे ऐसे अधर्म को क्यों करते?
हम सब अपने रिश्ते-नातों के प्यार और आकर्षण में इतना डूबे रहते हैं कि हमें अच्छाई-बुराई कुछ दिखाई नहीं देती। हमें लगता है हम खुद तो सही हैं ही, हमारे माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी, पति या पत्नी इत्यादि भी बिलकुल सही हैं और कोई कुछ ग़लत कर ही नहीं सकता।
और चाहे हमारे सगों ने जो किया हो, उनके हर सही-ग़लत काम पर पर्दा डालना और उन्हें उनके किए की सज़ा मिलने से रोकना भी हमें अपना फ़र्ज़ लगता है।
शायद यह भी एक फ़र्क़ है भगवान और इंसान में। कृष्ण जानते थे कि उनके कुल के लोग बेहद लालची और क्रूर हो गए हैं।
यादव धर्म से विमुख हो गए थे एवं शक्ति और सम्पन्नता के मद में अंधे हो गए थे। स्यामंतक मणि के ही चक्कर में अक्रूर जैसे महारथी ने क़त्ल कर डाले थे, और बलराम जैसे भाई ने कृष्ण पर ही शक किया था। उनके अपने पुत्र साम्ब ने ऋषियों के साथ उपहास किया था।
कोई मर्यादा या आदर नहीं रहा था आचरण में। अंदर ही अंदर कई ख़ेमे बन गए थे जो एक-दूसरे की काट पर रहते थे। द्वारका से धर्म समाप्त होने लगा था।
कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद आर्यावर्त के अन्य राज्य कमज़ोर हो गए थे। ऐसे में शक्तिशाली यादव उपद्रवी हो जाते और अधर्म पर उतर आते।
कृष्ण ने युधिष्ठिर को धर्म स्थापना के लिए सम्राट बनाया था; ऐसे में वो अपने ही कुल के लोगों के हाथों अधर्म क्यों होने देते? बस इसलिए कि वो अपने भाई-बंधु थे? कृष्ण आसक्ति में डूबे इंसान नहीं थे, तभी तो उन्हें भगवान माना जाता है।
इसलिए उन्होंने गांधारी के श्राप को स्वीकार कर लिया और उसे फलीभूत हो जाने दिया। नहीं तो किसी की क्या बिसात कि भगवान को श्राप दे!
कृष्ण को समझने के लिए टीवी के सीरीयल और उनकी राधा के व्याकुल प्रेमी की छवि छोड़ गीता का अध्ययन कीजिए।
कृष्ण के जीवन का सार भी उसमें है। मात्र इस जन्म के क्षणभंगुर रिश्तों की आसक्ति में हम ग़लत काम करने से भी बच सकते हैं।
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प्रश्न = टीभी सिरियल 'राधा कृष्ण' में क्या क्या त्रुटियाँ हैं जो कि सच्चाई से भिन्न हैं?
इसके लिए बहुत लंबे चौड़े उत्तर की आवश्यकता नही है। ये सीरियल कितना बकवास है, इसका अंदाजा तो केवल इसके प्रोमो को देख कर ही लगाया जा सकता है। क्या आप विश्वास करेंगे कि यूट्यूब पर इस सीरियल के
कॉमेडी सीन" बहुत मशहूर हैं। धर्म कभी हास्य का प्रतीक नही होता, ये जरा सी बात लोगों को समझ मे नही आती।
इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण और राधा के पवित्र संबंध को जब आज कल के कलियुगी निर्माताओं द्वारा "ड्रामा" एवं "रोमांस" की संज्ञा दे दी जाए तो उस वाहियात सीरियल के विषय में कुछ और बोलने की आवश्यकता ही क्या है?
प्रश्न = शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों ने खेती बॉडी करना कैसे सीखा ?
दुनिया के अन्य महाद्वीपों के लोग जब वर्षा , बादलों की गड़गड़ाहट के होने पर भयभीत होकर गुफाओं में छुप जाते थे ! जब उन्हें एग्रीकल्चर का ककहरा भी मालूम नहीं था !
उससे भी हजारों वर्ष पूर्व महर्षि पाराशर मौसम व कृषि विज्ञान पर आधारित भारतवर्ष के किसानों के मार्गदर्शन के लिए " कृषि पाराशर ” नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे ! पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि , शास्त्रवेत्ता , ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है !
यह महर्षि वसिष्ठ के पौत्र , गोत्रप्रवर्तक , वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं ! पराशर शर - शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे ! परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि मुनियों में वे भी थे ! वह छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे।
ग्रन्थों मैं ज्ञान-विज्ञान की बहुत सारी बातें भरी पड़ी हैं। आज का विज्ञान जो खोज रहा है वह पहले ही खोजा जा चुका है। बस फर्क इतना है कि आज का विज्ञान जो खोज रहा है उसे वह अपना आविष्कार बता रहा है और उस पर किसी पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों का लेबल लगा रहा है।
हालांकि यह इतिहास सिद्ध है कि भारत का विज्ञान और धर्म अरब के रास्ते यूनान पहुंचा और यूनानियों ने इस ज्ञान के दम पर जो आविष्कार किए और सिद्धांत बनाए उससे आधुनिक विज्ञान को मदद मिली। यहां प्रस्तुत है भारत के उन दस महान ऋषियों और उनके आविष्कार के बारे में।
महृषि कणाद = परमाणु सिद्धांत के आविष्कारक : आधुनिक दुनिया जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर को परमाणु का अविष्कारक मानती है लेकिन उनसे हजारो साल पहले कणाद ने वेदों मैं लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था
भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है
यह तो आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि बिना कारण के कोई क्रिया नहीं होती, बिना क्रिया के कोई कर्म नहीं होता और बिना कर्म के कोई परिणाम (फल) नहीं होता। एक ही क्रिया से एक से अधिक कर्म भी होते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य बिना कर्म किये कैसे जी सकता है? और जब वह कर्म करेगा तो उसे उनके फल भी भोगने होंगे। तो वह कर्मफल-शून्य कैसे हो और कैसे वह इन योनियों के चक्र से छूटे? इस सम्बंध में मेरा पंथ कहता है कि यदि मनुष्य ईश्वर के कहे वचनों के अनुसार निष्काम भाव से जीवन
व्यापन करे तो उसे उसके द्वारा किये गए कर्मों के फल नहीं भोगने पड़ेंगे। अब ईश्वर के वचन तो बहुत हैं और उन सबका मनुष्य को ज्ञान भी नहीं होता। तो चाहकर भी वह कैसे उन वचनों का पालन करे। तो समझने के लिए इसका एक व्यावहारिक उपाय है।