प्रश्न = भारतीय पुराणों के मुताबिक़ रामायण-महाभारत काल में अमेरिका आदि बाकी देश कहाँ थे ?
हम हमारे प्रश्नो के उत्तर सही जगह नहीं खोज रहे !
जी हा , दूसरे देशो और संस्कृतियों का हमारे प्राचीन ग्रंथो /पुराणों में उल्लेख है ,किन्तु हम वहा नहीं खोज रहे आप वाल्मीकि रामायण के
विभिन्न देशो के सन्दर्भ पाएगे। यह उत्तर लम्बा है ,कित्नु आप सभी को निश्चित ही पसंद आएगा !
ऑस्ट्रेलिया ,न्यूज़ीलैण्ड एवं परकास ट्रिडेंट पेरू
रामायण में रामजी की अपहृत पत्नी सीताजी को खोजने के लिए चार अलग-अलग दिशाओं में खोजने निकले वानरों
(वन में भटकने वाले मनुष्य) के बारे में वर्णन किया गया है।
वानर राजा सुग्रीव ने उसपूर्व की ओर यात्रा करते खोजी समूह को बताया था की , कि पहले उन्हें समुद्र पार करना होगा और याव (जावा) द्वीप में उतरना होगा।
उसके बाद उन्हें एक और द्वीप पार करके एक लाल /पीले पानी वाले समुद्र तक पहुंचना होगा (ऑस्ट्रेलिया का कोरल समुद्र ),तब उन्हें पिरामिड (वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी छोर पर मौजूद गिम्पी पिरामिड ) मिलेंगे।
सुग्रीव के पात्र द्वारा रचियता वाल्मीकिजी ने आगे लिखाः है की
इस महाद्वीप (शाल्मली / ऑस्ट्रेलिया ) को पार करने के बाद उन्हें ऋषभ पर्वत मिलेगा , जो ‘नीचे मोतिओं की माला जैसी जैसे लहरों वाला एक श्वेत बादल ‘ जैसा दिखता है !
उसी के पास ,उन्हें सुदर्शन सरोवर मिलेगा , जिसमे ‘सोने जैसी पंखुड़ियों वाले चांदी जैसे कमल’ खिले हुए होंगे !
यहाँ शायद वाल्मीकिजी MOUNT COOK एवं LAKE PUKAKI का वर्णन कर रहे हो ,जिनका वास्तविक वर्णन उनके किये वर्णन से सटीक मिलता है
वाल्मीकि कहते हैं कि इन झीलों, हंसों और सुंदर पहाड़ों के साथ द्वीप को पार करने के बाद, एक नरम पानी के महासागर को पार करना होगा जो सभी प्राणियों के लिए भयावह होगा।
रिंग ऑफ फायर वह जगह है जहां प्रशांत महासागर के बेसिन में बड़ी संख्या में ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं। अगली श्लोक में वाल्मीकि इस 'अग्नि ' की भयावहता का वर्णन करते हैं, कि प्रत्येक युग (युग) या युग के अंत में, यह आग अधिक ऊर्जा के साथ उभरती है, और संपूर्ण सृष्टि बन जाती है
वाल्मीकि शायद इन ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड और दक्षिण अमेरिका के बीच ‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर' का उल्लेख कर रहे थे !
सुग्रीव ने आगे वर्णन किया है कि इस महासागर को पार करने के बाद, उदय आद्री पर्वत देखेगा।(उदय का अर्थ सूर्योदय और आद्री का अर्थ पहाड़ . उनके अनुसार, उदयाद्री में पृथ्वी पर
दिन की शुरुवात होती है !
आज, हम जापान को लैंड ऑफ राइजिंग सन के रूप में मानते हैं लेकिन पृथ्वी के हर भौगोलिक बिंदु पर अंधेरा दूर होता है और दिन हर दिन एक निश्चित समय पर निकलता है
उदयाद्रि माउंट सनराइज को पूर्वी बिंदु के रूप में क्यों चुना गया और किसी अन्य स्थान पर क्यों नहीं ?
रामायण के किष्किंधा कांड में श्लोक ४-४०-५७ और ४-४०-५८ इसका जवाब देते है :
इस सौमनासा के शिखर पर पूर्व में सूर्योदय होता है जो उदय पर्वत के आंचल पर है। फिर वह दक्षिण-पूर्व एशिया सहित जंबु द्विप्पा, भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर से गुजरता है, और पश्चिम में अस्तगिरी,
सूर्यास्त पर्वत' नामक पर्वत पर अस्त होता है !फिर यह धरती के उत्तरी भाग में ,सुमेरु पर्वत को लाँघ जम्बू द्वीप के दूसरी तरफ प्रकाशित होता है और अंत में फिर इसी उदय आद्री पर्वत पर उदय होता है !
इससे यह द्वीप सबसे पहले सूर्य की पहली किरणे देखता है !
भारत देश का नाम भारत पड़ने मैं कोई एक कारण नही है अलग अलग धार्मिक वेज्ञानिक कारणों से भारत का नाम भारत रखा गया यह भी एक कारण था क्यों कि ! (भा : सूर्य,रत : प्रसन्न) ... 'वह स्थान जहाँ सबसे पहले सूर्य प्रसन्न होता है, वह है भारत ‘।
कई वर्षों से एंडीज 'आद्री का एक विकृत/अपभ्रष्ट संस्करण हो सकता है।
सुग्रीव आगे वनारस से कहते हैं कि, उदय-आद्री तक पहुँचने के दौरान, वे जाट-शिला-रूप (गोल्डन रॉक पीक) देखेंगे, जिस पर एक स्वर्ण मंडप के साथ तीन शाखाओं के साथ एक ताड़ के पेड़ जैसा दिखने वाला स्वर्ण तोरण है।
तो, रामायण के अनुसार, पेरू ‘लैंड ऑफ़ राइजिंग सन’ है।
वीराचोन - रचनाकार देवता
विरोचन :भक्त प्रह्लाद के पुत्र और राजा बलि के पिता थे चंदोग्य उपनिषद के अनुसार, विरोचन और इंद्र (वज्रद्वीपके लिए कहा जाता है, वज्र एक हथियार) प्रजापति (ब्रह्मा, निर्माता) के पास गये कि वह आत्मन के बारे में जानें और उन्होंने बत्तीस साल ब्रह्मचर्य (आत्म नियंत्रण) का अभ्यास किया।
लेकिन अंत में, उन्होंने ब्रह्मा की शिक्षाओं को गलत समझा और असुरों (राक्षसों) को शत्रु (शरीर) की पूजा करने का उपदेश दिया। इस प्रकार, असुरों ने मृतक के शरीर को इत्र, माला और आभूषणों से सजाना शुरू कर दिया।
दक्षिण अमेरिका और मेक्सिको में पिशाच(vampires )
किष्किंधा कांड में दक्षिण अमेरिका और मेक्सिको में रक्त चूसने वाले पिशाचों का वर्णन है।
राजा सुग्रीव द्वारा वर्णन है कि शाल्मली द्विप (ऑस्ट्रेलिया में गिम्पी पिरामिड) में गरुड़ के विशाल पिरामिड को पार करने के बाद, किसी को प्रशांत महासागर के ऊपर से उड़ान भरने की आवश्यकता होती है
और फिर एक भूमि (दक्षिण अमेरिका) में प्रवेश करती है, जहां राक्षसों को 'मंडेहा' कहा जाता है।
चीन में ताईहांग टनल रोड - रामायण कनेक्शन
सुग्रीव उन्हें तीन और पर्वत शिखर स्थल बताते है। पहले क्रौंच शिखर का उल्लेख करते है ‘अत्यधिक अगम्य सुरंग वाली’ ।
शिवजी को आकाश (हिमालय) से गंगा को पृथ्वी (भारत के मैदान) में लाने के लिए कहा जाता है, और स्कंद को क्रौंच शिखर के भीतर से एक सुरंग बनाने का श्रेय दिया जाता है।
चीन में सबसे प्रसिद्ध प्राचीन सुरंगों में से एक ताइहंग पर्वत में गुओलिनग सुरंग है।
वाल्मीकिजी द्वारा विश्लेषित पथ चाक से निकलता है वह कैलाश से क्रौंच (ताहांग श्रेणी में) तक है, और वाल्मीकिजी कहते है कि कई अन्य पर्वत चोटियां हैं वह जैसे ' काम शिखर और मनसा शिखर !!
सुग्रीव ने उन्हें सीताजी के लिए इन पहाड़ों को अच्छी तरह से खंगालने का निर्देश दिया।
ये किनलिंग रेंज के पर्वत हैं जो हिमालय और ताहांग पर्वत के बीच में आते हैं क्योंकि कैलाश से उत्तर-पूर्व दिशा में वानरों को मिलने वाले थे ।
इस श्रृंखला में दो सबसे ऊंची चोटियाँ, और इसलिए सबसे अधिक दिखाई देती हैं, तुआनजाई और तैयबई। सुग्रीव ने एक और चोटी का उल्लेख किया है जिसे मैनाक कहा जाता है। , जिसे माया नामक दानव वास्तुकार द्वारा निर्मित एक विशाल हवेली द्वारा पहचाना जाता है।
सुग्रीव ने उल्लेख किया है कि एक विशाल प्रांत को पार करने के बाद, वानर वैखना नाम की एक बड़ी झील पर पहुंचेगे चीन के उत्तर में यात्रा करते हुए, मंगोलियाई प्रांत या पठार को पार करते हुए एक साइबेरिया में पूर्वी सिरे पर बैकाल झील आ जाता है यह ‘वैखना साइबेरिया की बाइकाल झील हो सकती है।
साइबेरिया (संस्कृत में उत्तरा कुरु) और चीन बांस वन (कीचक घास)
आगे वैखाना झील के दूसरे (पश्चिमी) छोर पर, शीलोदा नाम से एक नदी है, और वानरों गर वे उत्तर की ओर अपने मार्ग का अनुसरण करते , तो कई मील की दूरी पर वे उत्तरी महासागर तक पहुंच जाते ’।। आगे जारी है 👇👇
यह वास्तव में सच है। शैलदा की पहचान वर्तमान अंगारा के रूप में की गई है।
यह नदी 'अंगारा' झील के पश्चिमी सिरे से बहिकाल तक बहती है और कई मील बाद उत्तरी आर्कटिक महासागर के कारा सागर में गिरती है। (रामायण में वर्णित उनके प्राचीन नामों वैखना और शैलोदा (की तरह, उनके वर्तमान नाम बाइकाल
और अंगारा भी संस्कृत मूल के हैं।
प्राचीन भारतीय ग्रंथ साइबेरिया को उत्तरा-कुरु के रूप में संदर्भित करते हैं। ‘उत्तरा‘ का अर्थ है ‘उत्तर‘, ‘कुरु' उस भारतीय जनजाति का नाम है, जिसने महाभारत काल के दौरान कुरुवापुर (आंध्र प्रदेश / कर्नाटक सीमा में कृष्णा नदी पर) और इंद्रप्रस्थ
(वर्तमान दिल्ली के निकट) पर उत्तर से कूच किया था।
‘कारा‘, सागर का नाम जिसमें अंगारा नदी गिरती है, सबसे अधिक प्राचीन संस्कृत नाम 'कुरु' की विकृति है। सुग्रीव वानरों को भी सलाह देता है कि वह वहाँ पर उगने वाले ‘कीचका (बांस) की मदद से झील बैकाल को पार करे। इसमें साइबेरियन बांस घास
का संदर्भ है जो स्थानीय लोगों द्वारा इस क्षेत्र में झीलों और पानी की सीमाओं को पार करने के लिए उपयोग किया जाता था। अंत में, सुग्रीवा ने नॉर्दर्न लाइट्स या ऑरोरा बोरेलिस, का उल्लेख किया, जो वैखरास झील वैखाना से उत्तर की ओर जाते हुए दिखाई देती ।
यदि आप उपरोक्त लेख से खुश नही है तो वाल्मीकि की रामायण या द रामायण: वाल्मीकि की मूल संस्कृत भाषा में अनुवादित गद्य पुस्तकों को पढ़ें। आप उनमे सुग्रीव और वनारस के बीच की सटीक बातचीत पा सकते हैं।
धन्यवाद् :)
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प्रश्न = श्री कृष्ण अपने ही वंश का नाश क्यों नहीं रोक पाए?
क्योंकि वो रोकना नहीं चाहते थे। यह सृष्टि के नियम, काल व कर्म के सिद्धांत के विरुद्ध होता। कृष्ण स्वयं धर्म हैं, तो वे ऐसे अधर्म को क्यों करते?
हम सब अपने रिश्ते-नातों के प्यार और आकर्षण में इतना डूबे रहते हैं कि हमें अच्छाई-बुराई कुछ दिखाई नहीं देती। हमें लगता है हम खुद तो सही हैं ही, हमारे माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी, पति या पत्नी इत्यादि भी बिलकुल सही हैं और कोई कुछ ग़लत कर ही नहीं सकता।
और चाहे हमारे सगों ने जो किया हो, उनके हर सही-ग़लत काम पर पर्दा डालना और उन्हें उनके किए की सज़ा मिलने से रोकना भी हमें अपना फ़र्ज़ लगता है।
शायद यह भी एक फ़र्क़ है भगवान और इंसान में। कृष्ण जानते थे कि उनके कुल के लोग बेहद लालची और क्रूर हो गए हैं।
प्रश्न = टीभी सिरियल 'राधा कृष्ण' में क्या क्या त्रुटियाँ हैं जो कि सच्चाई से भिन्न हैं?
इसके लिए बहुत लंबे चौड़े उत्तर की आवश्यकता नही है। ये सीरियल कितना बकवास है, इसका अंदाजा तो केवल इसके प्रोमो को देख कर ही लगाया जा सकता है। क्या आप विश्वास करेंगे कि यूट्यूब पर इस सीरियल के
कॉमेडी सीन" बहुत मशहूर हैं। धर्म कभी हास्य का प्रतीक नही होता, ये जरा सी बात लोगों को समझ मे नही आती।
इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण और राधा के पवित्र संबंध को जब आज कल के कलियुगी निर्माताओं द्वारा "ड्रामा" एवं "रोमांस" की संज्ञा दे दी जाए तो उस वाहियात सीरियल के विषय में कुछ और बोलने की आवश्यकता ही क्या है?
प्रश्न = शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों ने खेती बॉडी करना कैसे सीखा ?
दुनिया के अन्य महाद्वीपों के लोग जब वर्षा , बादलों की गड़गड़ाहट के होने पर भयभीत होकर गुफाओं में छुप जाते थे ! जब उन्हें एग्रीकल्चर का ककहरा भी मालूम नहीं था !
उससे भी हजारों वर्ष पूर्व महर्षि पाराशर मौसम व कृषि विज्ञान पर आधारित भारतवर्ष के किसानों के मार्गदर्शन के लिए " कृषि पाराशर ” नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे ! पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि , शास्त्रवेत्ता , ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है !
यह महर्षि वसिष्ठ के पौत्र , गोत्रप्रवर्तक , वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं ! पराशर शर - शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे ! परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि मुनियों में वे भी थे ! वह छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे।
ग्रन्थों मैं ज्ञान-विज्ञान की बहुत सारी बातें भरी पड़ी हैं। आज का विज्ञान जो खोज रहा है वह पहले ही खोजा जा चुका है। बस फर्क इतना है कि आज का विज्ञान जो खोज रहा है उसे वह अपना आविष्कार बता रहा है और उस पर किसी पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों का लेबल लगा रहा है।
हालांकि यह इतिहास सिद्ध है कि भारत का विज्ञान और धर्म अरब के रास्ते यूनान पहुंचा और यूनानियों ने इस ज्ञान के दम पर जो आविष्कार किए और सिद्धांत बनाए उससे आधुनिक विज्ञान को मदद मिली। यहां प्रस्तुत है भारत के उन दस महान ऋषियों और उनके आविष्कार के बारे में।
महृषि कणाद = परमाणु सिद्धांत के आविष्कारक : आधुनिक दुनिया जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर को परमाणु का अविष्कारक मानती है लेकिन उनसे हजारो साल पहले कणाद ने वेदों मैं लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था
भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है
यह तो आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि बिना कारण के कोई क्रिया नहीं होती, बिना क्रिया के कोई कर्म नहीं होता और बिना कर्म के कोई परिणाम (फल) नहीं होता। एक ही क्रिया से एक से अधिक कर्म भी होते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य बिना कर्म किये कैसे जी सकता है? और जब वह कर्म करेगा तो उसे उनके फल भी भोगने होंगे। तो वह कर्मफल-शून्य कैसे हो और कैसे वह इन योनियों के चक्र से छूटे? इस सम्बंध में मेरा पंथ कहता है कि यदि मनुष्य ईश्वर के कहे वचनों के अनुसार निष्काम भाव से जीवन
व्यापन करे तो उसे उसके द्वारा किये गए कर्मों के फल नहीं भोगने पड़ेंगे। अब ईश्वर के वचन तो बहुत हैं और उन सबका मनुष्य को ज्ञान भी नहीं होता। तो चाहकर भी वह कैसे उन वचनों का पालन करे। तो समझने के लिए इसका एक व्यावहारिक उपाय है।