जब स्वस्थ शरीर(देश)के रखवाले रहनुमा ( कांग्रेस )गलत रहन - सहन ,अनियमितता इत्यादि से विभिन्न प्रकार के बिमारियों से ग्रसित हो जाता है तो उसकी जगह कैंसर ( बीजेपी ) ले लेता है। कैंसर का अगर समय से उपचार न किया जाय तो शरीर को नष्ट होने से नहीं बचाया जा सकता।
कैंसर कोई लाईलाज
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बिमारी नहीहै लेकिन इस बिमारीका उपचार पहलीही स्टेजमें करना चाहिये,थर्ड-फोर्थ स्टेज में यह जानलेवा हो जाताहै।आज यह बिमारी थर्ड स्टेजमें पहुंच गईहै अभी तक संविधान बचा है,अगर अब देशकी जनता नही चेती तो २०२४में यह फोर्थ स्टेज में आ जाएगी।संविधान को रद्दीकी टोकरी में फेंक दिया जाएगा,
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संविधान को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जायगा, तिरंगे से जूता साफ किया जायेगा, लाल किला पर भगवा फहराया जायेगा , संविधान की जगह मनुस्मृति का संविधान लाया जायेगा। तमाम विरोधी जेल के सींकचों में नजरबंद नज़र आयेंगे। तमाम छोटे मोटे छेत्रिय जमींदार ( प्रादेशिक पीर्टियों के नेता )
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मायावती टाईप सत्ता के तलुये चांटेगे या जो नहीं सहमत होंगे वे लालू की तरह जेल में सड़ेंगे। लेबर कानून खतम कर दिया जायेगा, महिलाओं को सिर्फ बच्चा पैदा करके उनका पालन पोषण करने का काम सौंप दिया जायेगा, रिजर्वेशन खतम कर दिया जायेगा । वर्ण व्यवस्था लागू कर दी जायेगी ।
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ब्रह्मा के पैरों से पैदा होने वालों को उनकी जगह बता दी जायेगी।सावरकर, हेडगवार,गोलवलकर का सपना पूरा हो जायेगा। सरसंघ चालक के नेतृत्व में पूरी शासन व्यवस्था चितपावनो केहाथ में सिमट कर रह जायेगी।परिणाम जगह जगह हिंदू- मुश्लिम नरसंहार शुरू हो जायेगा..५किलो राशन वाले हिंदू सेना में
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भर्ती होकर संघ की सेना में फ्रंट पर कटने मरने के लिये तैयार हो जाएँगे।हिंदू धर्म के यही रक्छक होंगे,प्रशासन मंदिरों से चलाया जायेगा,मंदिर ही सत्ता के केंद्र होंगे लेकिन मंदिरों में घुसने की इजाजत शूद्रों की नहीं होगी..आप मेरी बातों पर हंस सकते हैं ...लेकिन जान लिजिये संघ की सोच
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हिटलर से भी खतरनाक है, कभी सुना है कि किसी देश समाज में वेद वाक्य शूद्रों के कान मे पड़ने पर सीसा पिघलाकर डालने की बात कोई धर्म का ग्रंथ कहता हो, लेकिन हिंदू धर्म ग्रंथों मे कही गयी है । ऐसी बात कैंसर का रोगी ही सोच सकता है.....जो संविधान के रहते हुये समस्या का निदान
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अगर झटके में सोचने बैठें तो पाएंगे पूरे विश्व में रुस द्वारा दिए गए कम्युनिज्म से भी दसियों गुना ज्यादा लोकप्रिय और दिल खोलकर आजमाई गई चीज AK 47 ही है. इसको दुनिया के कोने कोने के लोगों ने बगैर किसी नैतिक दुविधा के खुले दिल से अपनाया और ये
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उनकी आशाओं पर उम्मीद से ज्यादा खरी उतरी.
लेनिन, दोस्तोवस्की और चेखव से ज्यादा संसार मेंAK 47को जानने और चाहने वाले लोग हैं.
एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ से ज्यादा AK 47अभी तक बन कर प्रचलन में आ चुकी है अगर एक एके 47 अपने लगभग पचास साल के पूरे जीवन काल में दस से बारह हाथों में
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भी गई हो तो मान लीजिए भारत की लगभग पूरी आबादी के बराबर लोग इसे अपने हाथों में थाम चुके हैं.
अनुमान है कि धरती पर हर सत्तर व्यक्ति पर एक एके 47 राइफल विद्यमान है और हर साल लगभग ढाई लाख लोग धरती पर इसका शिकार होते हैं.
एके 47 का संतुलन और इसकी शक्ति इसे धरती का सबसे आकर्षक और
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चुनाव, व्यवस्था से असन्तोष का सेफ पैसेज है।ठीक वैसे ही, जैसे प्रेशर कुकर में सीटी होती है। जो इतनी भारी होती है कि भाप को रोक सके, लेकिन इतनी हल्की होती है, कि कुकर फटने से पहले उठकर भाप निकाल दे।
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"अच्छे दिन आएंगे" से "खेला होबे" और "
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"खदेड़ा होबे' तक, नारों के टोन में अंतर महसूस कीजिए। पहला एस्पिरेशन, दूसरा खीज, और तीसरा गुस्सा है।पहला नारा भाजपा के लिए और बाकी दो उसके खिलाफ है।
व्यवस्था जैसी भी हो, नागरिक को एक समय के बाद थकावट और ऊब होने लगती है।सब अच्छा हो, तो और अच्छा चाहिए।सब बुरा हो, तो जल्द से जल्द
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बदलकर पुरानी वाली अवस्था मे लौटने का मन होता है।
यहीं पर आरएसएस-भाजपा और कांग्रेस समेत दूसरी पार्टियों का अंतर है।कांग्रेस,और दूसरी पार्टियां जानती हैं कि सत्ता आज जा रही है, तो कल फिर आ जायेगी।नो बिग डील..
अब बड़े बड़े चुप्प संघी(केजरीवाल वाले)सलाह दे रहे हैं कि सोनिया,राहुल और प्रियंका को राजनीति छोड़ देना चाहिए।बाकी कांग्रेसी अलग से संगठन बनालें।जिन्होंने दिल्ली के विज्ञापन वाले और असली स्कूल देखें हैं,जिन्होंने सरकारी(केजरीवाल सिसोदिया गोपाल राय सहित सारे मंत्रियोंके इलाज निजी
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अस्पतालोंमें होनेके बिल सरकारी फाइल्समें हैं)और मुहल्ला क्लीनिकोंमें गधे घूमते देखेहैं, जो हर दिन दिल्लीकी टूटी सड़कोंपर चल रहे हैं।जो देख रहेहैं कि कैसे केजरीवालके सिविल डिफेंस वाले दिल्ली पुलिसके साथ मिलकर वसूली कर रहेहै।जिन्होंने दिल्ली दंगेमें केजरीवालकी भूरी पेंट सरेआम देखी,
वे जानते हैं कि संघ परिवार का डर और बाधा केवलः नेहरू गांधी परिवार ही है। इस परिवार को अलग कर दें तो सभी संघ के साथ गलबहियां करते रहे हैं।
भगतसिंह के नाम पर दुकान खोल रहे माँ साहब शायद यह भी नहीं जानते कि भगतसिंह का लोकतंत्र फेडरल सिस्टम का था।
3 @NiranjanTripa16 @budhwardee
भाजपा पांच साल "मेहनत" करती है, चुनावी मॉड में रहती है।
और अखिलेश चुनाव के चार महीने पहले जागते हैं।
मोहतरम
भाजपा का खर्च आप देते हैं। अपना पेट काटकर, पीएसयू बेचकर ..
हांजी।5 साल,रैली,अभियान,विज्ञापन, होर्डिंग,तमाशे,बूथ मजबूत.. इस चुनावी मॉड में में रहने के पैसे लगते है। 3/1
और थोड़े मोड़े नही, करोङो में लगते हैं।
वो सरकार में हैं, तो आपको लूटकर, वाया अम्बादाणी कमाया रुपया इस "एवर रेडी" मॉड पर खर्च कर रहे हैं।
और आप लुटकर इसी मेहनत पर लहालोट हैं,
गजब।
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विपक्ष को दीजिए न चन्दा।
और कहिये की करे यही सब पांच साल, रोज रोज।
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खर्चा मिले तो क्यों न करेगा अखिलेश?? लेकिन फ्री में तो आप तमाशा देखना चाहते हैं। वो कैसे करे?? कांख कूंखकर तीन माह का खर्च जुटा पाते हैं, तो उतना करते हैं।
कल शाम एक छोटा सा ग्रुप खड़ा होकर चुनावी विश्लेषण कर रहा था।
बातें युजुअल। कांग्रेस को मेहनत करनी चाहिए, संगठन बनाना चाहिए। जनता के मुद्दे उठाने चाहिए। पार्टी में लोकतंत्र लाना चाहिए, परिवार से बाहर का आदमी लीडर बनाना चाहिए।
तो क्या इससे कांग्रेस जीत जाएगी?
एक बात समझिये।
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सरकार बदलती है,तो इसलिए कि लोगो मे उसके प्रति नाराजगी है।सजा दी जाती है।अगर
सरकार रिपीट होती है,तो इसलिए कि उसने शानदार काम किया। उसे पुरुस्कृत किया जाता है।
उत्तर प्रदेश की रिपीट सरकार को किस बात के लिए पुरस्कृत किया गया है??
कोई एक काम बताएं??
उस ग्रुप के लोग सोचने लगे।
6/2
अभी तक याद नही कर पाए।आप बतादें??
न बता पाऐ,तो जरा खोजें की वोट किया किस वजह से।कौनसी बात आपके हृदय की है जिससे तादातम्य मैच कर गया।
जो बात आप अपने भीतर जाकर खोजेंगे,उसे खुलकर बाहर बतानेमें शर्माएंगे।
और उन बातोंको कांग्रेस पूरा नही कर सकती।करे,तो ऐसी कांग्रेस जाए भाड़में।
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होली को करीब एक हफ्ता बचा है... गनीमत है कि होली हम बहुसंख्यकों का त्योहार है... अगर अल्पसंख्यकों का होता तो आज हफ्ते भर पहले त्राहि त्राहि मची होती... अपना गुल्लू स्टूडियो में उछल उछल कर बता रहा होता कि पाकिस्तान से कितने टन कैमिकल मिले हुए रंग की खेप चली है भारत के लिए,
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एक सांस में इन रंगों के 1000-1200 दुष्प्रभाव तो अपना गुल्लू बता ही देता... कार्यक्रम का नाम होता रंग जिहाद...
😀
एक कार्यक्रम अपना तिहाडी करता...कार्यक्रम में रंग का DNA चेक करता और बताता कि कैसे ये विशेष तरह की दवा मिले रंग सांस के द्वारा फेफड़े में जाकर बहुसंख्यक समुदाय को
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नपुंसक बनाने का कार्य कर सकते हैं... ताकि बहुसंख्यकों की जनसंख्या कम हो जाए...
😀
अब तक रंग के टैंक में थूकने के वीडियो तो बंपर आने लगे होते... साथ ही साथ 2000 के नोट में चिप ढूंढने वाली मैडम रंगों में चीन की साजिश से कोरोनावायरस का
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