चुनाव, व्यवस्था से असन्तोष का सेफ पैसेज है।ठीक वैसे ही, जैसे प्रेशर कुकर में सीटी होती है। जो इतनी भारी होती है कि भाप को रोक सके, लेकिन इतनी हल्की होती है, कि कुकर फटने से पहले उठकर भाप निकाल दे।
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"अच्छे दिन आएंगे" से "खेला होबे" और "
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"खदेड़ा होबे' तक, नारों के टोन में अंतर महसूस कीजिए। पहला एस्पिरेशन, दूसरा खीज, और तीसरा गुस्सा है।पहला नारा भाजपा के लिए और बाकी दो उसके खिलाफ है।
व्यवस्था जैसी भी हो, नागरिक को एक समय के बाद थकावट और ऊब होने लगती है।सब अच्छा हो, तो और अच्छा चाहिए।सब बुरा हो, तो जल्द से जल्द
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बदलकर पुरानी वाली अवस्था मे लौटने का मन होता है।
यहीं पर आरएसएस-भाजपा और कांग्रेस समेत दूसरी पार्टियों का अंतर है।कांग्रेस,और दूसरी पार्टियां जानती हैं कि सत्ता आज जा रही है, तो कल फिर आ जायेगी।नो बिग डील..
लेकिन आरएसएस भाजपा.."फाइट लाइक देयर इज नो टुमारो"
बेतरह पैसा,प्रचार
24घण्टे चुनावी मॉड में रहना,बूथ मजबूत, संगठन, प्रशिक्षण।फिर ईवीएम,चुनाव आयोग, अफसरों को प्रभावित करना,दलबदल, आधी रात शपथ, येन केन पुनःसरकार बना लेना..
जिन्होंने भाजपा को अपनी आईपीएल टीम समझ रखा है,वो उसकी हर जीत पर खुश हो सकते हैं।
लेकिन जिन्हें लोकतंत्र और राजनीति शास्त्र की
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समझ है,वे चिंतित है।भाजपा,याने एक पैन इंडिया पार्टी के समूल नाश के बीज इसी प्रवृत्ति में छिपे हैं।सत्ता में होकर भी उसके सांसद और एमएलए,खदेड़े जा रहे हैं।
तुर्रा ये की वो गुमान में है,कि चुनाव जीत कर सबको देख लेंगे। चर्बी,गर्मी उतार देंगे। बुलडोजर भाजपा का प्रतीक बन गया है।
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समस्या यहीं पर है।भाजपा,इसके लोग,शासन के बेसिक एलिमेंट्स में एमेच्योर है।इसकी सरकारें प्रतिभाहीन,भीरू,घमंडी, ऊबी और अपरिपक्व हैं।
मैनिपुलेशन,और चुनावी मशीनरी से इन्होंने जनतासे उनको बदलने का हक छीन लिया है। ऐसी सत्ता दोही नतीजे पाती है-एक लीबिया जैसा,दूसरा सोवियत रशिया की तरह।
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दोनो में स्थायी अहित है।चुनाव जनता की क्रुध्दता का सेफ पैसेज है।इसलिए भाजपाके, भक्तों के,और देशके हितमे होगा,कि वो अंतिम क्षणों का अफसर मैनेजमेंट,और ईवीएम मैनेजमेंट छोड़ दे।
चुनाव हारना,हार पचाना भी सीखे। समूल उखाड़कर फेंक दिये जानेसे बचे।
जनादेश से खेल न करे।
7 @NiranjanTripa16
जंगल का सबसे ताकतवर, विशालकाय, इंटेलिजेंट, सामाजिक, शाकाहारी जीव, जिसे ऐसे गगनभेदी नारों से मूर्ख बनाकर सवारी गांठी जाती है।
हाथी सिकंदर के दौर से, मालिकों की लड़ाइयां लड़ता रहा है, उनका हौदा पीठ पर ढोता रहा है। शीश का दान कर, वह
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पूजनीय बन सकता है,मगर राजा नही।
नो पॉलिटिक्स- ऑनली वाइल्डलाइफ सीरीज में गिरगिट, शेर,गैंडे,जंगली गधे, मगरमच्छ, उल्लू, गिद्ध पर बात हो चुकी है, मगर हाथी यहां हमसे भी उपेक्षित रह गया था।
तो आज बात हमारी, याने हाथी की..
साहबान, कदरदान, मितरों,मूर्खो।
आप जानते हैं कि धरती पर
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चलने वाला सबसे विशालकाय मेमल, हाथी है। संस्कृत के हस्ति शब्द से इसका प्रादुर्भाव है। जहां सारे हाथी पकड़कर सेवा में लाये जायें, वह माइथोलॉजिकल शहर हस्तिनापुर कहलाया।
अंग्रेजी में एलिफेंट कहते है, जो ग्रीक शब्द एलिफ़ास से बनता है।एलिफ़ास का मतलब है आइवरी, याने वो दांत, जो बड़े
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राजस्थान और छत्तीसगढ़ के इन शानदार स्कूलों के लिए धन्यवाद अरविंद केजरीवाल..
जी नही। ये स्कूल तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान के कांग्रेसी सरकारें ही बना रही हैं। मगर इसका श्रेय कहीं न कहीं दिल्ली सरकार, मनीष सिसोदिया और केजरीवाल को जाता है।
इसलिए, कि सरकारे एक दूसरे से सीखती है।
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दिल्ली की सरकार ने स्कूलों को लेकर जो सिरियस एप्रोच शुरू की,उसकी चुनावी सफलता ने दूसरी सरकारों को प्रेरणा दी है।
राजस्थान की ओल्ड पेंशन लागू कराने को भी भूपेश बघेल ने कॉपी किया है।पिछले हफ्ते सरकारी कार्यालयों में समय पूर्व होली खेली गई, जश्न हुआ।
अजीत जोगी की "मितानिन योजना"
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को केंद्र ने देश भर में "आशा वर्कर" योजना के रूप में लागू किया था। राजस्थान की RTI और रोजगार गारंटी स्कीम को देश की आरटीआई और मनरेगा में ढाला गया।अम्मा कैंटीन को छत्तीसगढ़ में दाल भात केंद्र के रूप में शुरू किया गया था,जो असफल रही। पर उसकी जगह अभी "गढ़ कलेवा" चल रहा है, सफल है।
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बहुत जोर शोर से कश्मीर पर किसी प्रोपेगेंडा फिल्म का जिक्र चल रहा है,क्योंकि हमे समयाभाव के कारण फिल्मे देखनेका अवसर नहीं मिलता तो हमने देखी भी नहीं( लास्ट फिल्म फना देखी थी,आमिर खान की वो भी कश्मीर के बैकग्राउंड पर बनी थी )
लेकिन कथित कश्मीर फाइल्स की चर्चा और जिक्र सुनकर यकीन
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हो गया है कि भारतमें अन्दर तक घुसपैठ हो चुकी है।
शीत युद्ध के समय की हॉलीवुड फिल्मे देखे तो उनमें अकेला रैंबो सोवियत मिलेट्री अड्डों में घुसकर सबको नेस्तनाबूत कर देता है।
फिर चीन की फिल्म देखे तो उसमे चिंग पिंग अपने मार्शल आर्ट्स से ही गोरोंको बर्बाद करके निकल लेताहै।एक फिल्म
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में तो काफी मारा पीटी के बाद हीरो बचकर निकलता है और चीन का पासपोर्ट दिखाता है इसी के साथ द एंड का बैनर लग जाता है( इस प्रकार की चाइनीज फिल्मे दो तीन साल से आ रही है )
जब हम तेजी से विश्व शक्ति बनने की ओर बढ़ रहे थे तो पड़ोसी का मनोबल तोड़ने के लिए हमारे यहांभी Hero,The spyजैसी
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महाभारत कथामें अंकित रहस्यमयी व्यूहरचना,जो युद्ध के तेरहवें दिन रची गयी थी। सात परतों में अपने कमजोर और मजबूत सैनिकों का ऐसा संयोजन की हर दीवार को बगल की दीवार का सहयोग मिले,और दुश्मन कुचल दिया जाये।
देखने मे लगता है कि यह डिफेंसिव है।पर व्यूह के सैनिक स्थिर नही
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वे घूम रहे हैं,आगे चल रहे हैं।लेकिन इसके साथ पूरा व्यूह भी दुश्मन की तरफ बढ़ रहा है।इस व्यूह को रचना और चलाना आसान काम नही। पर बना लिया,तो इसे तोड़ना औऱ कठिन।
चक्रव्यूह की सात परतें हैं।हर परत के बारे में बताता हूँ।
पहली परत, प्रोपगंडा है।टीवी, रेडियों, अखबार,और सोशल मीडिया
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पर महारथी इसकी कमान सम्हालते हैं।फेक तस्वीरें,फेक डेटा,फेक उपलब्धियां,ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल..हाथ का भाला है। तो नकली इतिहास, आइडिओलिजी, क्रिया प्रतिक्रिया की थ्योरी इनकी ढाल है।
दूसरी परत पैसा है। इसमे कानून काम आता है। पैसे लेन देंन की अनुमत प्रक्रिया ऐसी, की व्यूहकर्ता का
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अगर झटके में सोचने बैठें तो पाएंगे पूरे विश्व में रुस द्वारा दिए गए कम्युनिज्म से भी दसियों गुना ज्यादा लोकप्रिय और दिल खोलकर आजमाई गई चीज AK 47 ही है. इसको दुनिया के कोने कोने के लोगों ने बगैर किसी नैतिक दुविधा के खुले दिल से अपनाया और ये
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उनकी आशाओं पर उम्मीद से ज्यादा खरी उतरी.
लेनिन, दोस्तोवस्की और चेखव से ज्यादा संसार मेंAK 47को जानने और चाहने वाले लोग हैं.
एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ से ज्यादा AK 47अभी तक बन कर प्रचलन में आ चुकी है अगर एक एके 47 अपने लगभग पचास साल के पूरे जीवन काल में दस से बारह हाथों में
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भी गई हो तो मान लीजिए भारत की लगभग पूरी आबादी के बराबर लोग इसे अपने हाथों में थाम चुके हैं.
अनुमान है कि धरती पर हर सत्तर व्यक्ति पर एक एके 47 राइफल विद्यमान है और हर साल लगभग ढाई लाख लोग धरती पर इसका शिकार होते हैं.
एके 47 का संतुलन और इसकी शक्ति इसे धरती का सबसे आकर्षक और
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अब बड़े बड़े चुप्प संघी(केजरीवाल वाले)सलाह दे रहे हैं कि सोनिया,राहुल और प्रियंका को राजनीति छोड़ देना चाहिए।बाकी कांग्रेसी अलग से संगठन बनालें।जिन्होंने दिल्ली के विज्ञापन वाले और असली स्कूल देखें हैं,जिन्होंने सरकारी(केजरीवाल सिसोदिया गोपाल राय सहित सारे मंत्रियोंके इलाज निजी
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अस्पतालोंमें होनेके बिल सरकारी फाइल्समें हैं)और मुहल्ला क्लीनिकोंमें गधे घूमते देखेहैं, जो हर दिन दिल्लीकी टूटी सड़कोंपर चल रहे हैं।जो देख रहेहैं कि कैसे केजरीवालके सिविल डिफेंस वाले दिल्ली पुलिसके साथ मिलकर वसूली कर रहेहै।जिन्होंने दिल्ली दंगेमें केजरीवालकी भूरी पेंट सरेआम देखी,
वे जानते हैं कि संघ परिवार का डर और बाधा केवलः नेहरू गांधी परिवार ही है। इस परिवार को अलग कर दें तो सभी संघ के साथ गलबहियां करते रहे हैं।
भगतसिंह के नाम पर दुकान खोल रहे माँ साहब शायद यह भी नहीं जानते कि भगतसिंह का लोकतंत्र फेडरल सिस्टम का था।
3 @NiranjanTripa16 @budhwardee