अब बड़े बड़े चुप्प संघी(केजरीवाल वाले)सलाह दे रहे हैं कि सोनिया,राहुल और प्रियंका को राजनीति छोड़ देना चाहिए।बाकी कांग्रेसी अलग से संगठन बनालें।जिन्होंने दिल्ली के विज्ञापन वाले और असली स्कूल देखें हैं,जिन्होंने सरकारी(केजरीवाल सिसोदिया गोपाल राय सहित सारे मंत्रियोंके इलाज निजी
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अस्पतालोंमें होनेके बिल सरकारी फाइल्समें हैं)और मुहल्ला क्लीनिकोंमें गधे घूमते देखेहैं, जो हर दिन दिल्लीकी टूटी सड़कोंपर चल रहे हैं।जो देख रहेहैं कि कैसे केजरीवालके सिविल डिफेंस वाले दिल्ली पुलिसके साथ मिलकर वसूली कर रहेहै।जिन्होंने दिल्ली दंगेमें केजरीवालकी भूरी पेंट सरेआम देखी,
वे जानते हैं कि संघ परिवार का डर और बाधा केवलः नेहरू गांधी परिवार ही है। इस परिवार को अलग कर दें तो सभी संघ के साथ गलबहियां करते रहे हैं।
भगतसिंह के नाम पर दुकान खोल रहे माँ साहब शायद यह भी नहीं जानते कि भगतसिंह का लोकतंत्र फेडरल सिस्टम का था।
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Mar 14
राजस्थान और छत्तीसगढ़ के इन शानदार स्कूलों के लिए धन्यवाद अरविंद केजरीवाल..

जी नही। ये स्कूल तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान के कांग्रेसी सरकारें ही बना रही हैं। मगर इसका श्रेय कहीं न कहीं दिल्ली सरकार, मनीष सिसोदिया और केजरीवाल को जाता है।

इसलिए, कि सरकारे एक दूसरे से सीखती है।
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दिल्ली की सरकार ने स्कूलों को लेकर जो सिरियस एप्रोच शुरू की,उसकी चुनावी सफलता ने दूसरी सरकारों को प्रेरणा दी है।

राजस्थान की ओल्ड पेंशन लागू कराने को भी भूपेश बघेल ने कॉपी किया है।पिछले हफ्ते सरकारी कार्यालयों में समय पूर्व होली खेली गई, जश्न हुआ।

अजीत जोगी की "मितानिन योजना"
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को केंद्र ने देश भर में "आशा वर्कर" योजना के रूप में लागू किया था। राजस्थान की RTI और रोजगार गारंटी स्कीम को देश की आरटीआई और मनरेगा में ढाला गया।अम्मा कैंटीन को छत्तीसगढ़ में दाल भात केंद्र के रूप में शुरू किया गया था,जो असफल रही। पर उसकी जगह अभी "गढ़ कलेवा" चल रहा है, सफल है।
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Mar 13
बहुत जोर शोर से कश्मीर पर किसी प्रोपेगेंडा फिल्म का जिक्र चल रहा है,क्योंकि हमे समयाभाव के कारण फिल्मे देखनेका अवसर नहीं मिलता तो हमने देखी भी नहीं( लास्ट फिल्म फना देखी थी,आमिर खान की वो भी कश्मीर के बैकग्राउंड पर बनी थी )

लेकिन कथित कश्मीर फाइल्स की चर्चा और जिक्र सुनकर यकीन
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हो गया है कि भारतमें अन्दर तक घुसपैठ हो चुकी है।

शीत युद्ध के समय की हॉलीवुड फिल्मे देखे तो उनमें अकेला रैंबो सोवियत मिलेट्री अड्डों में घुसकर सबको नेस्तनाबूत कर देता है।

फिर चीन की फिल्म देखे तो उसमे चिंग पिंग अपने मार्शल आर्ट्स से ही गोरोंको बर्बाद करके निकल लेताहै।एक फिल्म
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में तो काफी मारा पीटी के बाद हीरो बचकर निकलता है और चीन का पासपोर्ट दिखाता है इसी के साथ द एंड का बैनर लग जाता है( इस प्रकार की चाइनीज फिल्मे दो तीन साल से आ रही है )

जब हम तेजी से विश्व शक्ति बनने की ओर बढ़ रहे थे तो पड़ोसी का मनोबल तोड़ने के लिए हमारे यहांभी Hero,The spyजैसी
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Mar 13
चक्रव्यूह..

महाभारत कथामें अंकित रहस्यमयी व्यूहरचना,जो युद्ध के तेरहवें दिन रची गयी थी। सात परतों में अपने कमजोर और मजबूत सैनिकों का ऐसा संयोजन की हर दीवार को बगल की दीवार का सहयोग मिले,और दुश्मन कुचल दिया जाये।

देखने मे लगता है कि यह डिफेंसिव है।पर व्यूह के सैनिक स्थिर नही
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वे घूम रहे हैं,आगे चल रहे हैं।लेकिन इसके साथ पूरा व्यूह भी दुश्मन की तरफ बढ़ रहा है।इस व्यूह को रचना और चलाना आसान काम नही। पर बना लिया,तो इसे तोड़ना औऱ कठिन।

चक्रव्यूह की सात परतें हैं।हर परत के बारे में बताता हूँ।

पहली परत, प्रोपगंडा है।टीवी, रेडियों, अखबार,और सोशल मीडिया
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पर महारथी इसकी कमान सम्हालते हैं।फेक तस्वीरें,फेक डेटा,फेक उपलब्धियां,ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल..हाथ का भाला है। तो नकली इतिहास, आइडिओलिजी, क्रिया प्रतिक्रिया की थ्योरी इनकी ढाल है।

दूसरी परत पैसा है। इसमे कानून काम आता है। पैसे लेन देंन की अनुमत प्रक्रिया ऐसी, की व्यूहकर्ता का
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Mar 13
Automatic Kalashnikov 47 उर्फ एके 47.

अगर झटके में सोचने बैठें तो पाएंगे पूरे विश्व में रुस द्वारा दिए गए कम्युनिज्म से भी दसियों गुना ज्यादा लोकप्रिय और दिल खोलकर आजमाई गई चीज AK 47 ही है. इसको दुनिया के कोने कोने के लोगों ने बगैर किसी नैतिक दुविधा के खुले दिल से अपनाया और ये
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उनकी आशाओं पर उम्मीद से ज्यादा खरी उतरी.
लेनिन, दोस्तोवस्की और चेखव से ज्यादा संसार मेंAK 47को जानने और चाहने वाले लोग हैं.

एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ से ज्यादा AK 47अभी तक बन कर प्रचलन में आ चुकी है अगर एक एके 47 अपने लगभग पचास साल के पूरे जीवन काल में दस से बारह हाथों में
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भी गई हो तो मान लीजिए भारत की लगभग पूरी आबादी के बराबर लोग इसे अपने हाथों में थाम चुके हैं.
अनुमान है कि धरती पर हर सत्तर व्यक्ति पर एक एके 47 राइफल विद्यमान है और हर साल लगभग ढाई लाख लोग धरती पर इसका शिकार होते हैं.

एके 47 का संतुलन और इसकी शक्ति इसे धरती का सबसे आकर्षक और
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Read 17 tweets
Mar 12
भाजपा को चुनाव हारना भी सीखना चाहिए।

चुनाव, व्यवस्था से असन्तोष का सेफ पैसेज है।ठीक वैसे ही, जैसे प्रेशर कुकर में सीटी होती है। जो इतनी भारी होती है कि भाप को रोक सके, लेकिन इतनी हल्की होती है, कि कुकर फटने से पहले उठकर भाप निकाल दे।
~~~
"अच्छे दिन आएंगे" से "खेला होबे" और "
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"खदेड़ा होबे' तक, नारों के टोन में अंतर महसूस कीजिए। पहला एस्पिरेशन, दूसरा खीज, और तीसरा गुस्सा है।पहला नारा भाजपा के लिए और बाकी दो उसके खिलाफ है।

व्यवस्था जैसी भी हो, नागरिक को एक समय के बाद थकावट और ऊब होने लगती है।सब अच्छा हो, तो और अच्छा चाहिए।सब बुरा हो, तो जल्द से जल्द
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बदलकर पुरानी वाली अवस्था मे लौटने का मन होता है।

यहीं पर आरएसएस-भाजपा और कांग्रेस समेत दूसरी पार्टियों का अंतर है।कांग्रेस,और दूसरी पार्टियां जानती हैं कि सत्ता आज जा रही है, तो कल फिर आ जायेगी।नो बिग डील..

लेकिन आरएसएस भाजपा.."फाइट लाइक देयर इज नो टुमारो"

बेतरह पैसा,प्रचार
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Mar 11
जब स्वस्थ शरीर(देश)के रखवाले रहनुमा ( कांग्रेस )गलत रहन - सहन ,अनियमितता इत्यादि से विभिन्न प्रकार के बिमारियों से ग्रसित हो जाता है तो उसकी जगह कैंसर ( बीजेपी ) ले लेता है। कैंसर का अगर समय से उपचार न किया जाय तो शरीर को नष्ट होने से नहीं बचाया जा सकता।
कैंसर कोई लाईलाज
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बिमारी नहीहै लेकिन इस बिमारीका उपचार पहलीही स्टेजमें करना चाहिये,थर्ड-फोर्थ स्टेज में यह जानलेवा हो जाताहै।आज यह बिमारी थर्ड स्टेजमें पहुंच गईहै अभी तक संविधान बचा है,अगर अब देशकी जनता नही चेती तो २०२४में यह फोर्थ स्टेज में आ जाएगी।संविधान को रद्दीकी टोकरी में फेंक दिया जाएगा,
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संविधान को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जायगा, तिरंगे से जूता साफ किया जायेगा, लाल किला पर भगवा फहराया जायेगा , संविधान की जगह मनुस्मृति का संविधान लाया जायेगा। तमाम विरोधी जेल के सींकचों में नजरबंद नज़र आयेंगे। तमाम छोटे मोटे छेत्रिय जमींदार ( प्रादेशिक पीर्टियों के नेता )
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