Geographical description and importance of BhAratvarsha.
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।२-३-१।।
नव योजन साहस्त्रो विस्तारो अस्य महामुने।
कर्मभूमिरियं स्वर्गपवर्गं च गच्छताम्।।२-३-२।।
हे मैत्रेय जो समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित है वह भारतवर्ष कहलाता है।उसमें भरत की सन्तान बसी हुई हैं।
इसका विस्तार नौ हजार योजन है । यह स्वर्ग और अपवर्ग प्राप्त करनेवालों की कर्मभूमि है।
अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्विपे महामुने।
यतो हि कर्मभूरेषा ह्यतोअन्या भोगभूमयः।।२-३-२२।।
हे महामुने! इस जम्बूद्वीप में भी भारतवर्ष सर्वश्रेष्ठ है,क्योंकि यह कर्मभूमि है इसके अतिरिक्त अन्यान्य भोग भूमियाँ हैं।
अत्र जन्मसहस्त्राणां सहस्त्रैरपि सत्तम।
कदाचिल्लभते जन्तुर्मानुष्यं पुण्यसञ्चयात्।।२-३-२३।।
हे सत्तम! जीवको सहस्त्रों जन्मों के अनन्तर महान पुण्यों का उदय होने पर ही कभी इस देश में मनुष्य जन्म प्राप्त होता है।
गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।।२-३-२४।।
देवगण भी निरंतर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग के मार्ग भूत भारतवर्ष में जन्म लिया है वे पुरुष हम देवताओं की अपेक्षा अधिक धन्य हैं।
कर्माण्यसङ्कल्पित तत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते।
अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिँल्लयं ये त्वमलाः प्रयान्ति।।२-२३-२५।।
अपने स्वर्गप्रद कर्मों के क्षीण होने पर हम कहाँ जन्म लेंगे। धन्य तो वे ही मनुष्य हैं जो भारत भूमि पर जन्म लेकर इन्द्रियों की शक्ति से हीन नहीं हुये हैं।
इक्ष्वाकुवंशी वीर महामना महाराज दशरथ के मन्त्रिजनोचित गुणों से सम्पन्न आठ मन्त्रि थे जो मन्त्र के तत्व को जाननेवाले और बाहरी चेष्टा को देखकर मन के भाव को समझने वाले थे ।वे सदा ही राजा के प्रिय और हितमें लगे रहते थे।इस कारण उनका यश बहुत फैला हुआ था।
Thanks to this South Korean series 'Rich Man' got to know that Christianity is a big thing in South Korea almost 30% identify themselves as Christian.
Christianity is deeply interwoven with modern Korean history and especially with Koreans’ relationship with the United States. foreignpolicy.com/2021/05/09/min….)
The Christian faith was a major conduit through which Koreans negotiated modernity and personally and ideologically connected with the United States.
स कच्चिद् ब्राह्मणो विद्वान् धर्मनित्यो महाद्युतिः।
इक्ष्वाकूणामुपाध्यायो यथावत् तात पूज्यते॥९॥
तात क्या तुम इक्ष्वाकुकुलके पुरोहित ब्रह्मवेत्ता,विद्वान सदैव धर्म में तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी ब्रह्मऋषि वशिष्ठ जी का यथावत पूजन तो करते हो ना।
तात कच्चिद् कौसल्या सुमित्रा च प्रजावती ।
सुखिनी कच्चिदार्या च देवी नन्दति कैकयी॥१०॥
भरत क्या माता कौसल्या और सुमित्रा सुख से हैं,और क्या माता आर्या कैकयी आनन्दित हैं ।
शिवप्रियतमो ज्ञेयो रुद्राक्षः परपावनः।
दर्शनात् स्पर्शनाज्जाप्यात् सर्वपापहरः स्मृतः।।२-५-२।।
रुद्राक्ष शिव को अत्यंत प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिये। रुद्राक्ष का स्पर्श,दर्शन और जप समस्त पापों का हरण करनेवाला कहा गया है।
वर्णैस्तु तत्फलं धार्यं भुक्तिमुक्तिफलेुसुभिः।
शिवभक्तैर्विशेषेण शिवयोः प्रीतये सदा॥२-५-१३॥
भोग और मोक्ष की इच्छा वाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषत शिवभक्तों शिव पार्वती की प्रसन्नताके लिये रुद्राक्ष फलोंको अवश्य धारण करना चाहिये॥
Description of different types of Brahmins.
विभिन्न प्रकार के ब्राह्मणों का वर्णन।
सदाचारयुतो विद्वान् ब्राह्मणो नाम नामत।
वेदाचारयुतो विप्रो ह्येतैरेकैकवान्द्विजः॥ १-१२-२॥
सदाचार का पालन करनेवाला विद्वान ब्राह्मण ही 'ब्राह्मण' नाम धारण करने का अधिकारी है।
वेदोक्त आचार और विद्या से युक्त ब्राह्मण 'विप्र' कहलाता है। सदाचार, वेदाचार और विद्या से युक्त ब्राह्मण 'द्विज' कहलाता है।