Some important details about Ekadashi from various shastra & puranas.
Description of the origin of Ekadashi.
एकादशी की उत्पत्ति भगवान श्रीविष्णु के देह से बद्रिकाश्रम कि सिंहावती नाम की बारह योजन लम्बी गुफा जहाँ भगवान विष्णु शयन कर रहे थे वहाँ हुई है।
एकादशी की उत्पत्ति मुर नामक दैत्य को समाप्त करने के लिये हुई।
एकादशी को भगवान ने पापनाशिनी,सिद्धि दात्री,तीर्थों से भी अधिक महिमा वाली होने का वर दिया।
एकादशी ने उपवास,नक्त अथवा एकभुक्त होकर व्रत का पालन करने वालों के लिये चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धि का वर भी प्राप्त किया।
Names of twenty four Ekadashis & some important ones.
मार्गशीर्ष
कृ० उत्पत्ति शु० मोक्षा
पौषमास
कृ० सफला शु० पुत्रदा
माघमास
कृ० षट्तिला शु० जया
फाल्गुन मास
कृ० विजया शु० आमलकी
चैत्रमास
पापमोचिनी शु० कामदा
वैशाख मास
कृ० वरूथनी शु० मोहिनी
ज्येष्ठ मास
कृ० अपरा शु० निर्जला
जिस दिन उदयकाल में एकादशी
मध्यभाग में द्वादशी और अन्त में किंचित त्रयोदशी हो तो वह त्रिस्पृशा कहलाती है और विशिष्ट पुण्यदायी होती है।
जब शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि और पुनर्वसु नक्षत्र हो तो वह जया कहलाती है।
जब शुक्लपक्ष की द्वादशी को श्रवण नक्षत्र हो तो वह विजया कहलाती है। जब शुक्लपक्ष द्वादशी को रोहिणी नक्षत्र हो तो वह जयन्ती कहलाती है और पुष्य नक्षत्र हो तो पापनाशिनी कहलाती है।
Description of people who are eligible for observing Ekadashi.
एकादशी का व्रत सभी वर्णों के लोग और स्त्रियाँ करने के अधिकारी हैं। यति,वैष्णव,स्मार्त,शैव,गाणपत्य,सूर्योपासक, ब्रह्मचारी,भिक्षु,चाण्डाल और विधवा स्त्रियाँ भी एकादशी व्रत कर सकती हैं।
Some important points about Tithi decision of Ekadashi.
दशमी विद्धा एकादशी को व्रत निषेध है ऐसा करने से पुण्यों का क्षरण होता है।
जिस दिन दशमी,एकादशी और द्वादशी तीनों तिथियाँ हों तो उस दिन एक समय भोजन कर दूसरे दिन उपवास-व्रत करना चाहिये।
द्वादशी को व्रत कर त्रयोदशी को पारण करना चाहिये। उस दशा में व्रतधारियों को द्वादशी लङ्घन का दोष नहीं लगता।
जब सम्पूर्ण दिन और रात को एकादशी हो और उसका कुछ भाग दूसरे दिन प्रातःकाल चला गया हो तब दूसरे दिन ही उपवास करना चाहिये।
दो दिन एकादशी तिथि हो तो भी व्रत में सारा जागरण सम्बन्धी कार्य पहली रात में ही करे। पहले दिन व्रत कर दूसरे दिन एकादशी व्यतीत होने पर पारण करें।
एकादशी रविवार,किसी मङ्गलमय पर्व अथवा सङ्क्रान्ति के दिन ही क्यों न हो,सदा ही उसका व्रत करना चाहिये।
अष्टमी,एकादशी,षष्ठी, तृतीया और चतुर्दशी ये यदि पूर्व तिथि से विद्ध हों तो उनमें व्रत नहीं करना चाहिये। परवर्तिनी तिथि से युक्त होने पर ही इनके उपवास का विधान है।
Now description of various rules regarding Ekadashi Vrata.
यह एकादशी व्रत दो प्रकार का होता है एक भोजन निषेध परिपालनात्मक और दूसरा व्रतात्मक। भोजननिषेध परिपालनात्मक एकादशी नियम में पुत्रवान गृहस्थों का कृष्णपक्ष एकादशी में भी अधिकार है।
व्रतात्मक उपवास में पुत्रवाले गृहस्थों का कृष्णपक्ष में अधिकार नहीं है किन्तु उस दिन मन्त्रसहित व्रत के संकल्प को नहीं करके शक्ति अनुसार भोजन का त्याग करना चाहिये। देवशयनी और देव प्रबोधनी इन के मध्यवर्ती कृष्ण पक्ष एकादशी में पुत्रवान गृहस्थों का भी अधिकार है।
एकादशी के दिन अन्न विशेषरूप से चावल में पापों का निवास होता है इस कारण एकादशी को अन्न यानि चावल ग्रहण नहीं करना चाहिये।
द्वादशी बारह दोषों को नाश करती है।
संयत इन्द्रिय रहकर संयम पूर्वक दशमी के दिन एक बार भोजन करना चाहिये ।एकादशी को व्रत उपवास पालन करने के पश्चात द्वादशी में पारण करना चाहिये।
दशमी तिथिको काँसके बर्तन,उडद,मसूर,चना,कोदो,साग,मधु,पराया अन्न,दो समय भोजन और मैथुन इन दसों का त्याग करना चाहिये ।
एकादशी तिथि को जुआ,निद्रा,पान,दाँतुन,परायी निंदा,चुगली,चोरी,हिंसा,मैथुन,क्रोध और असत्य भाषण इन ग्यारह दोषों से बचना चाहिये।
द्वादशी के दिन काँसके बर्तन,उड़द,मसूर,तैल,असत्य भाषण,व्यायाम,परदेशगमन,दो बार भोजन,मैथुन,बैलकी पीठ पर सवारी,पराया अन्न और साग इन बारह वस्तुओं का त्याग करे।
एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प ले कर श्रीविष्णु का पूजन करना चाहिये। जप,स्वाध्याय,सत्सङ्ग,रात्रि जागरण और कीर्तन करना चाहिये ।
कुसङ्ग,मिथ्याभाषण,क्रोध इत्यादि से त्याग करना चाहिये।
केशव मैं अज्ञान रूपी अन्धकार से अन्धा हो गया हूँ। आप इस व्रत से प्रसन्न हों और प्रसन्न होकर मुझे ज्ञान दृष्टि प्रदान करें।
इस प्रकार देवताओं के स्वामी देवाधिदेव भगवान विष्णु को भक्तिपूर्वक निवेदन कर ब्राह्मणों को भोजन कराये और उन्हें दक्षिणा दे। उसके बाद नारायण के शरणागत होकर बलिवैश्वदेव विधि से पञ्चमहायज्ञों का अनुष्ठान करके स्वयं मौन हो अपने बन्धु बान्धवों सहित भोजन करे।
जो शास्त्रोक्त विधि से एकादशी का व्रत करते हैं वे जीवन मुक्त देखे जाते हैं इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।
एकादशी व्रत के सम्बन्ध में विशेष रूप से तिथि निर्णय और पूजा विधान एवं भिन्न२ एकादशियों के नियम आदि के ज्ञान को और विस्तार से जानने के लिये अपने सम्प्रदाय द्वारा मान्य ग्रन्थ अथवा धर्म सिन्धु,निर्णय सिन्धु, ब्रह्मवैवर्तपुराण, पद्मपुराण,अग्निपुराण,नारद पुराण आदि का अध्ययन करें। 🙏
#काव्यरश्मि
रचना - व्याल विजय
रचनाकार - रामधारी सिंह दिनकर
झूमें झर चरण के नीचे मैं उमंग में गाऊँ.
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।
यह बाँसुरी बजी माया के मुकुलित आकुंचन में,
यह बाँसुरी बजी अविनाशी के संदेह गहन में
अस्तित्वों के अनस्तित्व में,महाशांति के तल में,
यह बाँसुरी बजी शून्यासन की समाधि निश्चल में।
कम्पहीन तेरे समुद्र में जीवन-लहर उठाऊँ
तान,तान,फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।
अक्षयवट पर बजी बाँसुरी,गगन मगन लहराया
दल पर विधि को लिए जलधि में नाभि-कमल उग आया
जन्मी नव चेतना, सिहरने लगे तत्व चल-दल से,
स्वर का ले अवलम्ब भूमि निकली प्लावन के जल से।
अपने आर्द्र वसन की वसुधा को फिर याद दिलाऊँ.
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।
Geographical description and importance of BhAratvarsha.
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।२-३-१।।
नव योजन साहस्त्रो विस्तारो अस्य महामुने।
कर्मभूमिरियं स्वर्गपवर्गं च गच्छताम्।।२-३-२।।
हे मैत्रेय जो समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित है वह भारतवर्ष कहलाता है।उसमें भरत की सन्तान बसी हुई हैं।
इसका विस्तार नौ हजार योजन है । यह स्वर्ग और अपवर्ग प्राप्त करनेवालों की कर्मभूमि है।
इक्ष्वाकुवंशी वीर महामना महाराज दशरथ के मन्त्रिजनोचित गुणों से सम्पन्न आठ मन्त्रि थे जो मन्त्र के तत्व को जाननेवाले और बाहरी चेष्टा को देखकर मन के भाव को समझने वाले थे ।वे सदा ही राजा के प्रिय और हितमें लगे रहते थे।इस कारण उनका यश बहुत फैला हुआ था।
Thanks to this South Korean series 'Rich Man' got to know that Christianity is a big thing in South Korea almost 30% identify themselves as Christian.
Christianity is deeply interwoven with modern Korean history and especially with Koreans’ relationship with the United States. foreignpolicy.com/2021/05/09/min….)
The Christian faith was a major conduit through which Koreans negotiated modernity and personally and ideologically connected with the United States.
स कच्चिद् ब्राह्मणो विद्वान् धर्मनित्यो महाद्युतिः।
इक्ष्वाकूणामुपाध्यायो यथावत् तात पूज्यते॥९॥
तात क्या तुम इक्ष्वाकुकुलके पुरोहित ब्रह्मवेत्ता,विद्वान सदैव धर्म में तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी ब्रह्मऋषि वशिष्ठ जी का यथावत पूजन तो करते हो ना।
तात कच्चिद् कौसल्या सुमित्रा च प्रजावती ।
सुखिनी कच्चिदार्या च देवी नन्दति कैकयी॥१०॥
भरत क्या माता कौसल्या और सुमित्रा सुख से हैं,और क्या माता आर्या कैकयी आनन्दित हैं ।