🌻8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।
तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः हमें चतुर्वर्ग के आकार के इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं ।
ध्यान रखने योग्य बाते :- अब तक आपने शास्त्रीय बाते समझने का प्रयास किया यह बहुत जरुरी हैं ।
क्योंकि इसके बिना सरल बाते पर आप गंभीरता से विचार नही कर सकते ।
सरल विधान का यह मतलब कदापि नही की आप गंभीर बातों को ह्र्द्यगमन ना करें ।
जप के बाद कितना और कैसे हवन किया जाता हैं ?
कितने लोग और किस प्रकार के लोग की आप सहायता ले सकते हैं ?
कितना हवन किया जाना हैं ?
हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं ?
क्या कोई और सरल उपाय भी जिसमे हवन ही न करना पड़े ? किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं ?
किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं ?
किस प्रकार की हवन सामग्री का उपयोग करना हैं ?
दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं ?
कुछ और
आवश्यक सावधानी ?
आदि बातों के साथ अब कुछ बेहद सरल बाते को अब हम देखेगे ।
जब शाष्त्रीय गूढता युक्त तथ्य हमने समंझ लिए हैं तो अब सरल बातों और किस तरह से करना हैं उस पर भी कुछ विषद चर्चा की आवश्यकता हैं ।
🚩 1. कितना हवन किया जाए ?
शास्त्रीय नियम तो दसवे हिस्सा का हैं । 🚩
इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे 1,25,000 जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 =
125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति । (यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100 गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 second लगे तब कुल 12,500 *
15 = 187500 second
मतलब 3125 minute मतलब 52 घंटे लगभग। तो किसी एक व्यक्ति के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं ?
🚩2. तो क्या अन्य व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं? तो इसका उतर हैं हाँ । पर वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहिन हो तो अति उत्तम हैं । जब यह भी न
संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं ।
🚩3. तो क्या कोई और उपाय नही हैं ? यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन किया जा सकता हैं । मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति =
लगने वाला समय = 5/6 घंटे ।यह एक साधक के लिए संभव हैं ।
🚩4. पर यह भी हवन भी यदि संभव ना हो तो ? कतिपय साधक किराए के मकान में या फ्लैट में रहते हैं वहां आहुति देना भी संभव नही है तब क्या ? गुरुदेव जी ने यह भी विधान सामने रखा की साधक यदि कुल जप संख्या का एक चौथाई हिस्सा जप और
कर देता है संकल्प ले कर की मैं दसवा हिस्सा हवन नही कर पा रहा हूँ । इसलिए यह मंत्र जप कर रहा हूँ तो यह भी संभव हैं । पर इस केस में शतांश जप नही चलेगा इस बात का ध्यान रखे ।
🚩5. स्रुक स्रुव :- ये आहुति डालने के काम मे आते हैं । स्रुक 36 अंगुल लंबा और स्रुव 24 अंगुल लंबा होना
चाहिए । इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए । ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं ।
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भगवान शिव के दो बेटों के अलावा उनकी तीन बेटियां भी है। आइए आप को इस बात से अवगत करवाते हैं, और पूर्ण जानकारी देते हैं।
#पहली_पुत्री ;- अशोक सुंदरी को माता पार्वती के द्वारा बनाया गया था ताकी उनका अकेलापन दूर हो जाए। अशोक नाम इसीलिए रखा गया था, क्यूँकि दुख या #Threads #Copied
शोक के समय वह अपनी इस पुत्री के साथ समय व्यतीत करें, तो उन्हें अच्छा महसूस हो।
सुंदरी इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि वह बहुत ही सुंदर थी। अशोक सुंदरी का विवाह राजा नहुष के साथ हुआ था। उनके द्वारा सौ पुत्रियो का जन्म हुआ जो उनके जैसे ही बहुत सुंदर थी।
#दूसरी_पुत्री ;- ज्योति- यह माता ज्योति के नाम से आज भी धरती पर पूजी जाती हैं। यह भगवान शिव की दूसरी पुत्री हैं। इनके जन्म के पीछे दो कहानियां प्रसिद्ध हैं। पहली कहानी के अनुसार यह भगवान शिव के प्रभामंडल से उत्पन्न हुई थी।
मृत्यु के बाद आत्मा कैसे शरीर के बाहर जाता है? कौन प्रेत का शरीर प्राप्त करता है? क्या भगवान के भक्त प्रेत योनि में प्रवेश करते हैं?
भगवान विष्णु ने गरुड़ को उत्तर दिया(गरुड़ पुराण) #Thread
मृत्यु के बाद आत्मा निम्न मार्गों से शरीर के बाहर जाता है
आँख, नाक या त्वचा पर स्थिर रंध्रों से.
(1) ज्ञानियों का आत्मा मस्तिस्क के उपरी सिरे से बाहर जाता है (2) पापियों का आत्मा उसके गुदा द्वार से बाहर जाता है( ऐसा पाया गया है कि कई लोग मृत्यु के समय मल त्याग करते हैं)
यह आत्मा को शरीर से बाहर निकलने के मार्ग हैं |
शरीर को त्यागने के बाद सूक्ष्म शरीर घर के अंदर कई दिनों तक रहता है
१.अग्नि में ३ तीन दिनों तक
२. घर में स्थित जल में ३ दिनों तक
जब मृत व्यक्ति का पुत्र १० दिनों तक मृत व्यक्ति के लिए उचित वेदिक अनुष्ठान करता है
'युग' शब्द का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। जैसे सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग आदि ।
यहाँ हम चारों युगों का वर्णन करेंगें। युग वर्णन से तात्पर्य है कि उस युग में #Thread @IndiaTales7
किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई, एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय देना। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है -
1.तमसानदी : अयोध्या से
20 किमी दूर है तमसा नदी।
यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की।
2.श्रृंगवेरपुरतीर्थ : प्रयागराज से
20-22 किलोमीटर दूर वे
श्रृंगवेरपुर पहुंचे,
जो निषादराज गुह का राज्य था।
यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा
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पार करने को कहा था।
श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में
*सिंगरौर* कहा जाता है।
3.कुरईगांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे।
4.प्रयाग: कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। कुछ महीने पहले तक प्रयाग को इलाहाबाद कहा जाता था ।
5.चित्रकूट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट।
चित्रकूट वह स्थान है,
जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं।
तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका