#अकबर ने एक ब्राह्मण को दयनीय हालत में जब भिक्षाटन करते देखा तो बीरबल की ओर व्यंग्य कसकर बोला
बीरबल ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण जिन्हें ब्रह्म देवता के रुप में जाना जाता है.. ये तो भिखारी हैं
बीरबल ने उस समय तो कुछ नहीं कहा, लेकिन जब अकबर महल में चला गया तो #Thread @Vedic_Woman
बीरबल वापिस आया और ब्राह्मण से पूछा कि वह भिक्षाटन क्यों करता है ?
ब्राह्मण ने कहा - मेरे पास धन, आभूषण, भूमि कुछ नहीं है और मैं ज्यादा शिक्षित भी नहीं हूँ । इसलिए परिवार के पोषण हेतू भिक्षाटन मेरी मजबूरी है ।
बीरबल ने पूछा - 'भिक्षाटन से दिन में कितना प्राप्त हो जाता है ?
ब्राह्मण ने जवाब दिया - 'छह से आठ अशर्फियाँ ।
बीरबल ने कहा - आपको यदि कुछ काम मिले तो क्या आप भिक्षा मांगना छोड़ देंगे ?
ब्राह्मण ने पूछा - मुझे क्या करना होगा ?
बीरबल ने कहा - आपको ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रतिदिन 101 माला गायत्री मन्त्र का
जाप करना होगा और इसके लिए आपको प्रतिदिन भेंट स्वरुप 10 अशर्फियाँ प्राप्त होंगी ।
बीरबल का प्रस्ताव ब्राह्मण ने स्वीकार कर लिया । अगले दिन से ब्राह्मण ने भिक्षाटन करना बन्द कर दिया और बड़ी श्रद्धा भाव से गायत्री मन्त्र जाप करना प्रारम्भ कर दिया और शाम को 10 अशर्फियाँ
भेंटस्वरुप लेकर अपने घर लौट आता । ब्राह्मण की सच्ची श्रद्धा व लग्न देखकर कुछ दिनों बाद बीरबल ने गायत्री मन्त्र जाप की संख्या और अशर्फियों की संख्या दोनों ही बढ़ा दीं ।
अब तो गायत्री मन्त्र की शक्ति के प्रभाव से ब्राह्मण को भूख, प्यास व शारीरिक व्याधि की तनिक भी चिन्ता नहीं
रही! गायत्री मन्त्र जाप के कारण उसके चेहरे पर तेज झलकने लगा । लोगों का ध्यान ब्राह्मण की ओर आकर्षित होने लगा । दर्शनाभिलाषी उनके दर्शन कर मिठाई, फल, पैसे, कपड़े चढाने लगे ।
अब तो उसे बीरबल से प्राप्त होने वाली अशर्फियों की भी आवश्यकता नहीं रही । यहाँ तक कि अब तो ब्राह्मण
को श्रद्धा पूर्वक चढ़ाई गई वस्तुओं का भी कोई आकर्षण नहीं रहा । बस वह सदैव मन से गायत्री जाप में लीन रहने लगा ।
ब्राह्मण सन्त के नित्य गायत्री जप की खबर चारों ओर फैलने लगी । दूरदराज से श्रद्धालु दर्शन करने आने लगे । भक्तों ने ब्राह्मण की तपस्थली में मन्दिर व आश्रम का निर्माण
करा दिया । ब्राह्मण के तप की प्रसिद्धि की खबर अकबर को भी मिली ।
बादशाह ने भी दर्शन हेतू जाने का फैंसला लिया और वह शाही तोहफे लेकर राजसी ठाठबाट में बीरबल के साथ सन्त से मिलने चल पड़े । वहाँ पहुँचकर शाही भेंटे अर्पण कर ब्राह्मण को प्रणाम किया । ऐसे तेजोमय सन्त के दर्शनों
से हर्षित हृदय सहित बादशाह बीरबल के साथ बाहर आ गए ।
तब बीरबल ने पूछा - क्या आप इस सन्त को जानतें हैं ?
अकबर ने कहा - नहीं, बीरबल मैं तो इससे आज पहली बार मिला हूँ ।
फिर बीरबल ने कहा - महाराज आप इसे अच्छी तरह से जानते हो । यह वही भिखारी ब्राह्मण है, जिस पर आपने व्यंग्य
कसकर कहा था कि 'ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण ! जिन्हें ब्रह्म देवता कहा जाता है ?
आज आप स्वयं उसी ब्राह्मण के पैरों में शीश नवा कर आए हैं । अकबर के आश्चर्य की सीमा नहीं रही ।
बीरबल से पूछा - लेकिन यह इतना बड़ा बदलाव कैसे हुआ ?
बीरबल ने कहा - 'महाराज ! वह मूल रुप में
ब्राह्मण ही है । परिस्थिति वश वह अपने धर्म की सच्चाई व शक्तियोंं से दूर था । धर्म के एक गायत्री मन्त्र ने ब्राह्मण को साक्षात् '#ब्रह्म' बना दिया और कैसे बादशाह को चरणों में गिरने के लिए विवश कर दिया!
यही ब्राह्मण आधीन मन्त्रों का प्रभाव है । यह नियम सभी ब्राह्मणों पर
सामान रुप से लागू होता है । क्योंकि ब्राह्मण आसन और तप से दूर रहकर जी रहे हैं, इसीलिए पीड़ित हैं ।
वर्तमान में आवश्यकता है कि सभी ब्राह्मण पुनः अपने कर्म से जुड़ें, अपने संस्कारों को जानें और मानें । मूल ब्रह्मरुप में जो विलीन होने की क्षमता रखता है वही ब्राह्मण है ।
यदि ब्राह्मण अपने कर्मपथ पर दृढ़ता से चले तो देव शक्तियाँ उसके साथ चल पड़ती हैं ।
#मंदिर_बनने_से_रोजगार_कैसे_मिलता_है 🚩
थोड़ा रिसर्च कर लो तो पता चलेगा कि जम्मू कश्मीर के रेवेन्यू में सबसे बड़ा हाथ वैष्णो देवी मंदिर का होता है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, वृंदावन, बनारस, तिरुमला जैसे जगह के रोजगार का मुख्य केंद्र वहां स्थित देवालय ही हैं।
फूल-पत्ती, माला, प्रसाद को बेचकर जहाँ सैकड़ों अत्यंत गरीब लोग अपने परिवारों की जीविका चलाते हैं वही देश-विदेश के लाखों दर्शनार्थियों के आने से उस क्षेत्र के सभी हजारों छोटे-बड़े दुकानों की अच्छी बिक्री होती हैं, पर्यटन तथा होटल व्यवसाय से जुड़े हजारों परिवारों की जीविका
बढ़ती है और रोजगार का सृजन होता है। साथ ही सरकार का भी रेवेन्यु बढ़ता है।
मंदिर सिर्फ रोज़गार हीं नहीं देते अपितु आम लोगों की सेवा हेतु मंदिर ट्रस्ट विद्यालय, अस्पताल, वृद्धाश्रम, अनाथालय का भी निर्माण करवाते हैं, जिससे फायदा आम जनमानस को होता है।
*हनुमानजी* की उड़ने की गति कितनी थी
जानिए हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी रही होगी उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं की रात्रि को 9:00 बजे से लेकर 12:00 बजे तक लक्ष्मण जी एवं मेघनाद का युद्ध हुआ था। मेघनाद द्वारा चलाए गए बाण से#लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी #Thread
लगभग रात को 12:00 बजे के करीब और वो मूर्छित हो गए थे।
#रामजी को लक्ष्मण जी मूर्छा की जानकारी मिलना फिर दुखी होने के बाद चर्चा जे उपरांत हनुमान जी & विभीषणजी के कहने से सुषेण वैद्य को लंका से लेकर आए होंगे 1 घंटे में अर्थात 1:00 बजे के करीबन।
सुषेण वैद्य ने जांच करके बताया होगा
किहिमालय के पास द्रोणागिरी पर्वत🏔️🏔️ पर यह चार औषधियां🏕️🏕️ मिलेगी जिन्हें उन्हें सूर्योदय से पूर्व 5:00 बजे से पहले लेकर आना था ।इसके लिए रात्रि को 1:30 बजे हनुमान जी हिमालय के लिए रवाना हुए होंगे।
हनुमानजी को ढाई हजार किलोमीटर दूर हिमालय के द्रोणगिरि पर्वत से उस औषधि को लेकर
ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अंगिरा ब्रह्मा के पुत्र थे। उनके पुत्र बृहस्पति देवताओं के गुरु थे। ऋग्वेद के अनुसार, ऋषि अंगिरा ने सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न की थी।
यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। 51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्र में इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगा रहता है। बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को
बुझााने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहे थे। वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण नहीं जान पाए हैं !!
आज हम आपको बताते है देवी मां ज्वाला जी के मंदिर के बारे में ज्वालामुखी देवी के मंदिर को जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में 9 अलग-अलग जगहों से ज्वालाएं
शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।
इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है
Con..
शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।
शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन,
आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती।
वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और