*हमारे #पतन का कारण हम स्वयं है!
*समाज में मुश्किल से कुछ प्रतिशत लोग है जो अपनी पहचान बनाए हुए है! उन्हें भी लोग अलग ही नजरिए से देखते है
*किसी अन्य को दोष देने से बेहतर है अपने आप मे सुधार करें, अपनी आने वाली पीढ़ी को संस्कारित करें,उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाए अपने धर्म और संस्कृति को और ज्यादा गहराई से जानने के लिए अपने आस पास होने वाले आर्य निर्मात्री सभा के दो दिवसीय लघु गुरुकुल में भाग ले और अपने श्रेष्ठ 👇
इतिहास में कई विधवाएं हुयीं पर किसी ने आत्मदाह नहीं किया। रावण की विधवा पत्नी मंदोदरी, राम की तीनों माताएं विधवा थी, पर आत्मदाह नहीं किया। अंग्रेज़ो से आने से पहले शिवजी की माता जीजाबाई ने भी विधवा होते हुए आत्मदाह नहीं किया।
राजस्थान में क्षत्रिय राजपूत परिवार की महिलाओं ने 👇
युद्ध मर मारे गए अपने पतियों के वियोग में आत्महत्याएं की जो सिर्फ राज परिवार तक सीमित था यानी साधारण क्षत्रियों की महिलाएं भी आत्मदाह नहीं करतीं थीं।
इतिहास में कोई सबूत नहीं कि ब्राह्मणों और वैश्यों की महिलाओं ने भी कभी इस तथाकथित सती प्रथा का पालन किया पर इतिहास में सम्पूर्ण
हिंदुओं की प्रथा की बात कर हिन्दू समाज को बदनाम किया गया है।
हिन्दू भी अपने बचाव में कहते फिरते हैं कि सती प्रथा अतीत में होती थी, अब तो नहीं होता। जबकि उन्हें कहना चाहिए कि सती प्रथा कभी थी ही नहीं
सती का उल्लेख किसी भी हिन्दू धर्म की पुस्तक में नहीं मिलता, किसी वेद में भी नही
अयोध्या
अपना राम स्वयं चुनती है
कालिदास रचित महाकाव्य
"रघुवंशम्" अद्भुत ग्रंथ है।
इस महाकाव्य के षोडशवें सर्ग में
राम और उनके भाइयों के पुत्रों का वर्णन है।
राम ने अपने बड़े बेटे"कुश"को "कुशावती" नामक राज्य सौंपा था।
रघुवंश के सभी सात भाइयों ने अलग अलग राज्यों पर शासन तो किया।👇
पर वो सबके सब रघुकुल की रीति के अनुरूप अपने सबसे बड़े भाई "कुश" को अपना प्रधान और पूज्य मानतें थे।
यही "जानकीनंदन कुश"
एक दिन राजकाज से निवृत होकर जब रात्रि विश्राम हेतू अपने कक्ष में गये तो आधी रात को देखा कि उनके शयन कक्ष का द्वार अंदर से बंद होने के बाबजूद एक स्त्री उनके घर के
अंदर आई हुई है।
वो फौरन अपनी शैय्या से उठे
और उस स्त्री से कहा
शुभे !
तुम कौन हो?
और तुम्हारे पति का नाम क्या है?
तुम यह समझकर ही मुंह खोलना कि हम रघुवंशियों का चित्त कभी भी पराई स्त्रियों की ओर नहीं जाता
उस स्त्री ने उत्तर देते हुये कहा कि
मैं आपके
राम के अयोध्या की अधिष्ठात्रि
बचपन में एक बिल्ली हमारे घर में रोज आ जाया करती थी
हालांकि,बिल्ली को शेर की प्रजाति का माना जाता है लेकिन बिल्ली बहुत ही डरपोक जीव होती है और जरा सा आवाज होते ही वो तुरत भाग जाती है
तो,हमारे यहाँ आने वाली बिल्ली भी आवाज होते हीभाग जाती थी
लेकिन,मुसीबत ये थी कि वो फिर आ जाती थी👇
उसकी इस आदत को देखकर मैं बहुत चिढता था.
और,एक दिन मैंने बिल्ली को सबक सिखाने की ठानी.
मैंने दूध का कटोरा किचेन से हटाकर एक रूम में रख दिया.
और,मैं एक डंडे के साथ छुप कर बिल्ली के आने का इंतजार करने लगा ताकि जब वो आये तो रूम बंद करके उसे दमभर डंडे से मारूं.
लेकिन, बिल्ली आने
से पहले भैया आ गए और मेरी इस तरह की तैयारी देखकर उसका कारण पूछा.
कारण जानकर वे मुझे बहुत डांटने लगे और बताया कि बिल्ली को रूम बंद करके मारने का प्लान एकदम बेहूदा प्लान है.
क्योंकि, बिल्ली भले ही स्वभाव से डरपोक होती है लेकिन जब उसे भागने का रास्ता नहीं मिलेगा और उसके जान पर बन
भगवान
शिव व्रत के नियम
1.व्रतधारी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पानी में कुछ काले तिल डालकर नहाना चाहिए।
2.भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से होता है परंतु विशेष अवसर व विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूध दही घी शहद चने की दाल सरसों तेल काले तिल आदि कई सामग्रियों से अभिषेक की 👇
विधि प्रचलित है। 3. तत्पश्चात "ॐ नम: शिवाय" मंत्र के द्वारा श्वेत फूल सफेद चंदन चावल पंचामृत सुपारी फल और गंगाजल या साफ पानी से भगवान शिव और पार्वती का पूजन करना चाहिए। 4. मान्यता है कि अभिषेक के दौरान पूजन विधि के साथ-साथ मंत्रों का जाप भी बेहद आवश्यक माना गयाहै👇
फिर महामृत्युंजय मंत्र का जाप हो गायत्री मंत्र हो या फिर भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र।
5.शिव-पार्वती की पूजा के बाद श्रावण के सोमवार की व्रत कथा करें। 6. आरती करने के बाद भोग लगाएं और घर-परिवार में बांटने के पश्चात स्वयं ग्रहण करें।
7.दिन में केवल एक समय नमक रहित भोजन ग्रहण करें।
ऊँ नमः शिवाय
श्री शिव महापुराण
कुंद इंदु सम देह
उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥
अपरिग्रही शिव का चरित्र
वर्णित करने के लिए ही शिव महापुराण की रचना की गई है।
सभी शिव-भक्तो को
"शिव महापुराण" अवश्य पढ़नी चाहिये।
"शिव महापुराण"
पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है।
शिव 👇
महापुराण में
कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को मुक्ति के लिये शिव भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।
मनुष्य को निष्काम भाव से
अपने समस्त कर्म भगवान् शिव-शंकरजी को अर्पित कर देने चाहियें
वेदों और उपनिषदों में प्रणव ऊँ के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है
प्रणव के अतिरिक्त गायत्री
मन्त्र के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है।
परन्तु शिव महापुराण में
8 संहिताओं का उल्लेख प्राप्त होता है।
जो मोक्ष कारक हैं।
ये संहितायें हैं
विद्येश्वर संहिता रुद्र संहिता
शतरुद्र संहिता कोटिरुद्र संहिता
उमा संहिता कैलास संहिता
वायु संहिता [पूर्व भाग]
वायु संहिता