आज जितने भी जातिवादी लेखक है, वैसे सभी लेखकवृन्द सम्राट अशोक द्वारा लिखित बृहद चतुर्थ अभिलेख को कोट करते हुए लिखते है कि सम्राट अशोक ने अपने लेख मे #ब्राह्मण और #श्रमण का उल्लेख किया है| इसलिए, उस समय ब्राह्मण नाम की जाति वर्ण स्थापित था|
अब यहां आपलोग उस अभिलेख की छायाप्रति देखे
जो पोस्ट मे संलग्न है, अंडरलाइन किया हुआ शब्द #बम्हणसमणानं है|
अब इस बम्हणसमणानं शब्द को वर्तमान लेखकगण दो भागो मे तोडकर बताते है कि यहां बम्हण और समणानं दो संज्ञा नाम लिखा है, जबकि ऐसा नही है|
इसी अभिलेख को पुनः देखे, लाल रंग से अंडरलाइन किया हुआ शब्द के नीचे हरा रंग वाले
अंडरलाइन को देखे, उसमे #पुत_च_पोता_च_पपोता लिखा हुआ है|
एक अभिलेख, एक भाषा, एक लेखक, फिर दो प्रकार का अर्थ और लेखन कैसे सम्भव है? एक अर्थ का उपयोग करे👈 एक जगह दो शब्दो के बीच मे अंतराल बनाने हेतु #च का प्रयोग किया गया है तो फिर बम्हणसमणानं के बीच मे भी च का प्रयोग होना चाहिए था|
जबकि ऐसा नही है| अगर च का प्रयोग नही हुआ है तो बम्हणसमणानं एक शब्द है और दूसरी बात कि यह संज्ञा #नाम नही होकर #विशेषण है, भिक्खु संघ के अंदर समण (राग द्वेष को नष्ट करने वाले) भिक्खु थे, उनकी विशेषता (#बम्हण=विद्वान) बताई जा रही है|
जैसे- मिठाई मीठा है| यहां मिठाई की विशेषता मीठा से बताई जा रही है न कि मिठाई और मीठा दो शब्द है|
-Rajeev Patel
मेगास्थनीज यूनानी राजदूत था जो 305 ईसापूर्व मौर्य साम्राज्य के महाराजा “चन्द्रगुप्त मौर्य" के दरबार मे राजदूत बनकर भारत आया था| मेगास्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार मे रहकर भारत की सभ्यता-संस्कृति के बारे मे एक पुस्तक लिखा, जिसका नाम उसने “इंडिका” रखा|
परंतु "इंडिका" की मूलप्रति
आज भारत मे सुरक्षित नही है| उस "इंडिका" मे वर्णित बातो को लेखक के रूप मे आगे J.W.Mccrindle ने नयी “इंडिका” का रूप दिया| इसके अलावा इन सभी लेखको ने भी (डायोडोरस, सिकुलस, स्ट्राबो, प्लीनी तथा एरियन) आगे अपनी अपनी पुस्तक मे उस बातो की चर्चा की है|
मेगास्थनीज द्वारा आंखो देखी सचित्र
चित्रण मे प्रथमतः भारत की सामाजिक व्यवस्था मे कोई वर्ण या जाति की चर्चा नही है यानि “वेद मे वर्णित सदियो से वर्ण” की उत्पत्ति वाली बात सरासर गलत है| सिर्फ यहां के लोगो को पेशागत दिखाया गया है| जिसमे कृषक, पशुपालक, कारीगर, सैनिक, व्यापारी की चर्चा है|
यानी मोर्य काल के समय मे
Ajanta Caves के बारे मे बात करे तो महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले मे यह अजंता की गुफाएं है, वहा लगभग 30 बौद्ध गुफाए स्मारक के रूप मे स्थित है जो दूसरी शताब्दी ईसापूर्व से लेकर 480 या 650 इसवीसन तक के काल मे बनी हुई है और गुफाओ का मुख्य आकर्षण है वहा की पेटिंग और चट्टानो मे
तराशी गयी मूर्तियाँ जो प्राचीन भारतीय बौद्ध कला का बेजोड उदाहरण है तो चलिए Ajanta Caves History के बारे मे कुछ और जानकारी पर बात करते है–
अजंता की गुफाओ मे जो चित्र मिलते है उनमे खास तौर पर एक अलग तरह की खूबसूरती है जो जो इशारे, मुद्रा और रूप के माध्यम से भावना प्रस्तुत करते है|
यूनेस्को के मुताबिक, ये बौद्ध धार्मिक कला की कृतियां है जिसने भारतीय कला को व्यापक तौर पर प्रभावित किया था| Ajanta Caves को इनके निर्माण के आधार पर दो समूहो मे बांटा गया है, जिसमे पहले समूह का निर्माण दूसरी शताब्दी ईसापूर्व मे हुआ है और दूसरा ऐसा समूह है जिसका निर्माण 460 to 480
बोधिवृक्ष को बुद्ध का मानकर सम्राट अशोक ने बोधिवृक्ष पुजा का उत्सव शुरू कर दिया था| सम्राट अशोक बोधिवृक्ष की पुजा कैसे करते थे इसका वर्णन हमे कलिंगबोधि जातक कथा मे मिलता है|
सम्राट अशोक ने बोधिवृक्ष को सुगंधित द्रव्य से नहलाया था, उसपर फुल बरसाए
थे, दिप जलाए थे, उसपर पुष्पमालाएं चढाई गयी थी, झंडे लगाए गए थे, पाणी से भरे घडे (पुन्नघट) बोधिवृक्ष पर लगाए गए थे, बोधिवृक्ष के सभोवार कठडा और कु़ंपन बनाकर उसे सुरक्षित किया गया था, बोधिवृक्ष के चारो बाजू मे धम्मस्तंभ खड़े किए थे, बोधिवृक्ष पर सुवर्णमुद्राओ की वर्षा की गई थी,
सम्राट के साथ सभी ने बोधिवृक्ष की प्रदक्षिणा की थी, प्रदक्षिणा के दरमियान तालियां बजाते हुए लोग मनोभाव से बोधिवृक्ष की प्रशंसा कर रहे थे और साधु साधु गुणगुणा रहे थे|
सांची के स्तुप मे इस तरह की बोधिवृक्ष पुजा का शिल्पांकन किया गया है| बोधिवृक्ष का परिसर तो हरदिन साफ कर साफसुथरा
मेलघाट के छोटे छोटे गाँव मे बजरंग दल का शाखा बनाई गई है और उसके बोर्ड लगाए गए है| इसी तरह की एक बजरंग दल शाखा का बोर्ड नीचे दिया गया है| आदिवासी इलाको मे ब्राम्हणवाद का प्रचार कर मासूम आदिवासियो को मिसगाईड किया जा रहा है| स्कूल, कॉलेज, उच्च शिक्षा, आधुनिक सुविधा की बजाए धर्मांधता
बढाने का काम आदिवासी इलाको मे जारी है| आदिवासी समुदाय को उनकी महत्वपूर्ण वन संपदा से विस्थापन कर उनका पतन किया जा रहा है|
इसे रोकने के लिए "RAEPराष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद" के हमारे क्रांतिकारी मित्र तथा कार्यकर्ता राम धिगर जी और उनके साथियो के साथ हम हर गांव मे बामसेफ और
RAEPराष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद के युनिट गठित कर उनके बोर्ड हर गांव मे लगा रहे है| बहुत जल्द मेलघाट मे क्रांतिकारी परिवर्तन होगा|
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क्या मूलनिवासी समाज के लोगो को जानकारी है इन ब्राह्मणो के सडयंत्रो का पर्दाफाश करने के लिए BAMCEF विगत 45 वर्षों से यानी 1978 से बिना रुके और बिना थके हारे निरंतर काम कर रहा है |
BAMCEF ने ही ब्राह्मणो के द्वारा मूलनिवासी समाज को धर्म शास्त्रो के माध्यम
से वर्णव्यवस्था एवम जाति व्यवस्था का निर्माण करके सदियो से मानवीय अधिकारो से वंचित करने एवम पाखण्ड एवम अन्धविश्वास थोप कर मूलनिवासी समाज के खून पसीने की कमाई को हडपने के धंधो को एक्सपोज किया है, तथा Sc, St, Obc & Minority को अपने दोस्त और दुश्मन की पहचान करवाने के लिए जगाया तथा
राष्ट्रव्यापी संगठित शक्ति का निर्माण कर दिया है | उसी की बदौलत ब्राह्मणो के अन्दर दहशत का निर्माण हुआ है |
फिर भी ब्राह्मण मूलनिवासी समाज के आमलोगो को डराने के लिए परसुराम के वंशज होकर हथियार उठाने की धमकियां दे रहे है | और अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए तमाम तरह के सडयंत्र कर
हां, मैं नोनिया हूं| धरती का पहला आदमी जिसने सबसे पहले यह जाना कि नमक क्या होता है और मैं यही तक सीमित नही रहा| मैंने नमक बनाने की कला का आविष्कार किया| मैं श्रमजीवी रहा हूं| मैंने श्रम किया और पूरी दुनिया को एक ऐसे स्वाद से भर दिया, जिसके बगैर वह किसी
दूसरे स्वाद की कल्पना भी नही कर सकता|
शायद ही आज की पिढी को मेरा महत्व पता हो| मैं मानव सभ्यता के विकास के क्रम मे उनमे शामिल हूं, जिन्होने इस धरती को इंसानो के लायक बनाया| मैं हर जगह था| मैं मेसोपोटामिया मे था और मैं सिंधु नदी सभ्यता के दौर मे भी मौजूद ही था| वह मैं ही था जिसके
बनाए नमक की लालच ने वेस्ट युरेशियनो (आर्यों) को भारत की ओर रूख करने को बाध्य किया| हालांकि मेरे पास इस संबंध मे कोई तथ्य नही है क्योंकि मेरा इतिहास ही नही लिखा गया| लेकिन मैं इतना तो कह सकता हूं कि नाना प्रकार के जानवरो का कच्चा-पक्का बेस्वाद मांस खानेवालो के मुंह मे जब नमक लगा