दुनिया में भारत एक आस्था का केंद्र है। यहां पर कई चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर हैं।
इनमें कई ऐसे मंदिर हैं जिनके रहस्यों को आज तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं।
ऐसा ही एक भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है जो दक्षिण भारतीय राज्य केरल के थिरुवरप्पु में स्थित है। #Thread
#श्रीकृष्ण_मंदिर_तिरुवरप्पु। यह दुनिया का सबसे असामान्य मंदिर है।
यह मंदिर २३.५८x७ खुला रहता है। यहाँ भगवान कृष्ण हमेशा ही विराजमान रहते हैं।डेढ़ हजार वर्ष पुराना यह मंदिर केरल के कोट्टायम जिले में तिरुवरप्पु में स्थित है। मान्यता है कि यंहा भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिष्ठित
विग्रह हमेशा भूख में रहते हैं इसलिए यह मंदिर ११.५८ घंटे, ३६५ दिन खुला रखा जाता है।
इस मंदिर की एक और ख़ासियत यह है कि पुजारी को दरवाज़ा खोलने के लिए चाबी दी जाती है तो साथ में एक कुल्हाड़ी भी दी जाती है।
लोगों का मानना है कि कृष्ण भूख बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और इसलिए
यदि चाबी के साथ केवल दो मिनट में दरवाजा खोलने में कोई देरी होती हैl
तो पुजारी को कुल्हाड़ी से दरवाजा तोड़ने की अनुमति है।
मंदिर केवल २ मिनट के लिए बंद रहता है। सुबह ११.५८ बजे से १२.०० बजे तक।
लोक मान्यता है कि मंदिर में भगवान कृष्ण की जो मूर्ति स्थापित है वह कंस का वध
करने के बाद बहुत थक चुके श्रीकृष्ण की है।
इसलिए, अभिषेकम समाप्त होने के बाद, स्वामी का सिर पहले सूख जाता है और जब नैवेद्यम उन्हें चढ़ाया जाता है तब तक उसका शरीर सूख जाता है। यंहा १० बार नैवेद्य पूजा होती है।
इस मंदिर की एक और ख़ासियत यह है कि ग्रहण के समय भी मंदिर बंद नहीं होता
है।
लोगों का मानना है कि यह भगवान कृष्ण भूखे रह जाएंगे। कभी एक बार मंदिर को ग्रहण के दौरान बंद कर दिया गया था।
जब पुजारी ने दरवाजा खोला तो उन्होंने पाया कि स्वामी की कमर की पट्टी नीचे खिसक गई है। उस समय मंदिर आए श्री आदि शंकराचार्य जी ने बताया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भगवान
कृष्ण बहुत भूखे रह गए थे।
तब से, उन्होंने ग्रहण काल के दौरान भी मंदिर बंद करने की परंपरा समाप्त कर दी।
भगवान कृष्ण के सोने का समय केवल दो मिनट दैनिक ११.५८ बजे से १२.०० बजे है। मंदिर खुलने का समय दोपहर १२.०० बजे से ११.५८ बजे तक है। मंदिर का पता है, तिरुवरप्पु कृष्णा मंदिर,
तिरुवरप्पु -६८६०२०
प्रसादम का सेवन किए बिना किसी भी भक्त को जाने की अनुमति नहीं है।
हर दिन ११.५७ बजे मंदिर को बंद करने से पहले पुजारी जी जोर से पुकारते है.....
क्या कोई भी यहाँ है ? "
यह प्रसादम में सभी भक्तों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए है।
एक और महत्वपूर्ण चीज है
एक बार जब आप प्रसादम का स्वाद लेते हैं, तो आप जीवनपर्यंत भूखे नहीं रहेंगे और जीवन भर आपको भोजन प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं होगी।
जो श्रद्धालु यहां प्रार्थना करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं भगवान कृष्ण उन सभी भक्तों की सतत देखभाल करते रहते हैं।
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ऊपर श्रीमती विशाखा हरी और उनके बेटे राजगोपाला हरी की तस्वीर है।
श्रीमती विशाखा हरी सीए में स्वर्ण पदक विजेता हैं और हमारे प्राचीन सनातन धर्म, पुराण, इतिहास, वेद और शास्त्रों के बारे में व्यापक ज्ञान रखती हैं।
वह किसी MNC में शामिल हो सकती थी/विदेश जाकर करोड़ों रुपए कमा सकती थी।
लेकिन उसने हमारे पुराणों, इतिहासों, वेदों और शास्त्रों का प्रचार करने के लिए एक कर्नाटक गायक और हरिकथा के निर्माता बनने का फैसला किया।
उनके अधिकांश हरि कथा तमिल भाषा में हैं।
श्रीमती विशाखा हरि के परिवार द्वारा अपने एकमात्र पुत्र को विशाखा हरि के पदचिन्हों पर चलने और हरि कथाओं
की परंपरा को जारी रखने के लिए महान प्रयास।
*हम हिंदू होने के नाते, कम से कम विशाखा हरी और अन्य हिंदू धर्म प्रचारक के सभी आयोजनों में शामिल होकर अपने धर्म से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करें। * * *
हिन्दू युवाओं को विशाखा हरी जैसे उच्च शिक्षित लोगों से प्रेरित होकर हमारे
#गौ_सेवा_का_फल:-
आज से लगभग ८ हजार वर्ष पूर्व त्रेता युग में अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दिलीप के कोई संतान नहीं थी।
एक बार वे अपनी पत्नी के साथ गुरु वसिष्ठ के आश्रम गए। गुरु वसिष्ठ ने उनके अचानक आने का प्रयोजन पूछा। तब राजा दिलीप ने उन्हें अपने पुत्र पाने
की इच्छा व्यक्त की और पुत्र पाने के लिए महर्षि से प्रार्थना की।
महर्षि ने ध्यान करके राजा के निःसंतान होने का कारण जान लिया।
उन्होंने राजा दिलीप से कहा, “राजन! आप देवराज इन्द्र से मिलकर जब स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रहे थे l
तो आपने रास्ते में खड़ी कामधेनु को प्रणाम
नहीं किया। शीघ्रता में होने के कारण आपने कामधेनु को देखा ही नहीं, कामधेनु ने आपको शाप दे दिया कि आपको उनकी संतान की सेवा किये बिना आपको पुत्र नहीं होगा।”
महाराज दिलीप बोले, “गुरुदेव! सभी गायें कामधेनु की संतान हैं। गौ सेवा तो बड़े पुण्य का काम है, मैं गायों की सेवा
गोत्र क्या है? तथा भारतीय सनातन आर्य परम्परा में इसका क्या सम्बंध है?
भारतीय परम्परा के अनुसार विश्वामित्र, जमदग्रि, वसिष्ठ और कश्यप की सन्तान गोत्र कही गई है-
"इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि किसी परिवार का जो आदि प्रवर्तक था, जिस महापुरुष से परिवार चला उसका नाम परिवार का गोत्र बन गया और उस परिवार के जो स्त्री-पुरुष थे वे आपस में भाई-बहिन माने गये,
क्योंकि भाई बहिन की शादी अनुचित प्रतीत होती है, इसलिए एक गोत्र के लड़के-लड़कियों
का परस्पर विवाह वर्जित माना गया।
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कुलस्थ के लोगों के लिए गोत्र व्योरा रखना इसी लिए भी आवश्यक है क्योंकि गोत्र ज्ञान होने से उसके अध्ययन की परम्परा में उसकी शाखा-प्रशाखा का ज्ञान होने से तत सम्बन्धी वेद का पठन―पाठन पहले करवाया जाता है पश्चात अन्य शाखाओं
भारत जिसे हम हिंदुस्तान, इंडिया, सोने की चिड़िया, भारतवर्ष ऐसे ही अनेकानेक नामों से जानते हैं। आदिकाल में विदेशी लोग भारत को उसके उत्तर-पश्चिम में बहने वाले महानदी सिंधु के नाम से जानते थे, जिसे ईरानियो ने हिंदू और यूनानियो ने शब्दों
का लोप करके 'इण्डस' कहा। भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने 'हिन्दुस्थान' नाम दिया था जिसका अपभ्रंश 'हिन्दुस्तान' है।
(हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
भारत में रहने वाले जिसे आज लोग हिंदू नाम से ही जानते आए हैं।
भारतीय समाज, संस्कृति, जाति और राष्ट्र की पहचान के लिये हिंदू शब्द लाखों वर्षों से संसार में प्रयोग किया जा रहा है विदेशियों नेअपनी उच्चारण सुविधा के लिये