मान्यता है कि मुस्लिम आक्रमकों के सामने लडने वाले हिंदू योद्धा थे और हिंदू सेनाओं में कभी मुस्लिम शामिल नहीं हुए लेकिन यह मान्यता तथ्यों से परे है छत्रपति शिवाजी महाराज से लेकर पेशवाओं और मेवाड़ के महाराणा प्रताप के लिए राष्ट्रवादी मुसलमानों ने अपने प्राणों का बलि दिया है। »»
इब्राहिम खान गर्दी, गोलंदाजी में फ्रांसीसीयों से प्रशिक्षित, दख्खण में निजाम का तौपची था जिसे युद्ध संधि के तहत मराठा सेना को सौंपा गया, फिर जीवन पर्यंत वह मराठों और राष्ट्र के लिए समर्पित रहा। उसने उदगिर के युद्ध में निज़ाम के ख़िलाफ़ पेशवा की विजय में भारी योगदान दिया था। »»
जब अफगानी अहमद शाह अब्दाली से लोहा लेने के लिए सदाशिव राव भाऊ की अगुवाई में विश्वास राव पेशवा पूने से पानीपत (III) के लिए कुच कर गये तब गर्दी उनके मुख्य तोपची थे और उनके हस्तक 10,000 सिपाही और 40 तोपों का काफिला था। »»
युद्ध से पहले अब्दाली मराठा ताकत को आंकने में जुटा था और तभी उसे इब्राहिम गार्दी के बारे में पता चला कि गार्दी मराठों के तोपखाने के कुशल सेनापति थे और उनका निशाना अचूक था.अब्दाली ने अशरफीयों की थैली और मुस्लिम धर्म का वास्ता देकर गार्दी को दगाबाजी के लिए उकसाने की कोशिश की। »»
इब्राहिम खान गर्दी ने अब्दाली के इस नाजायज तोहफे को ठुकराते हुए कहा कि उनका इस्लाम उन्हें चंद सिक्कों के लालच में वतन से गद्दारी करना नहीं सीखाता और ऐसा करने वालों को वह सिर्फ मुल्क का ही नहीं मजहब का भी गद्दार मानते हैं। »»
कहा जाता है कि पानीपत के तीसरे युद्ध की रणनीति मराठा सेनापति सदाशिव राव "भाऊ" ने इब्राहिम गार्दी के साथ मिलकर बनाई थी और इस रणनीति के तहत पहले गार्दी गोलंदाजी कर के दुश्मन सेना को खोखला कर देते और फिर तीन तरफ से हल्ला बोल के दुश्मन सेना को शिकस्त दी जा सकती थी। »»
सुबह करीब आठ बजे शुरू हुए युद्ध में तय रणनीति के तहत दोपहर के दो बजे तक अब्दाली की महाकाय सेना को तबाही की ओर धकेला जा चुका था लेकिन हल्ला करने के लिए अभी भी इंतजार करना जरूरी था लेकिन दुर्भाग्य से कुछ मराठा सरदारों ने आवेश में आ कर रणभूमि में प्रस्थान कर दिया। »»
तय रणनीति का भंग करना बड़ी भूल थी, तितर-बितर हो चुके दुश्मन को इस से एकजुट होने का मौका मिल गया और एक के बाद एक मराठा सरदार अपने प्राणों की आहुति देते चले। यहां तक कि इस गलती के परिणाम स्वरूप सदाशिव राव और पेशवा भी इस युध्द की बलि चढ गये और मराठों को पराजय का मुंह देखना पड़ा। »»
युद्ध के पश्चात जब गार्दी अपने स्वामी विश्वास राव पेशवा की अंतिम क्रिया में शामिल हो रहे थे तभी उन्हें दुश्मन सिपाहीयों द्वारा पकड लिया गया और बेडीयों में जकड़े गार्दी को जब अब्दाली के सामने रखा गया तब फिर से एक बार धन के लालच और मजहब के वास्ते का लुभावना दौर शुरू हो गया। »»
अब्दाली ने उन्हें फिरसे धन का प्रलोभन दिया और खुद की सेना में शामिल होने को कहा लेकिन इब्राहिम गार्दी ने गुस्से में आ कर अब्दालीके मुंह पर थूक दिया। क्रोधित अब्दाली ने पहले तो गार्दी के नाखून खींच लिए फिर हाथ कटवा दिए और फिर जुबान काट दी & अंत में इस वीर योद्धा की ह्त्या करवा दी।
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हिंदू मन्दिरों के शिल्प तथा स्थापत्य, हमारी पौराणिक कथाओं के प्रसंग और हमारे पूर्वजों की शौर्य गाथाएँ अपने-आप में जीनव दर्शन के कितने ही रहस्य समेटे हुए हैं। »»
सुबह से लगातार हो रही बारिश अभी थोड़ी थमी थी। यूनिवर्सिटी के साइंस कॉलेज का कैंपस शान्त था। ग्यारह बजने को थे। अब्बास सर का उबाऊ क्लास बन्क कर के मैं बाहर आ गया। सब स्टूडेंट्स क्लास अटेंड कर रहे हों तब इस समय कैंपस में बाहर रह कर प्रोफेसर्स के नजरों से बचे रहना मुश्किल था इसलिए…
रोज़ की तरह मैं ग्राउंड फ्लोर से मैथ्स डिपार्टमेंट और फर्स्ट फ्लोर से बोटनी डिपार्टमेंट की सीढ़ियां चढ़ते हुए दुसरी मंजिल पर जूलॉजी डिपार्टमेंट पहुंच गया। जूलॉजी में विद्यार्थियों की संख्या कम होने के कारण यहां आवाजाही कम रहती थी…
और इसी कारण मैं अब्बास सर का क्लास बन्क कर के हमेशा यहां समय बिताने आ जाता था। हालांकि जूलॉजी डिपार्टमेंट के उपर छत थी लेकिन छत पर जाने वाला गेट हमेशा लॉक्ड रहता था इसलिए मैं कभी उपर नहीं जा पाया था। आश्चर्यजनक रूप से आज छत पर जाने वाला गेट खुला था। »»
पहले इन्होंने हमारे देश को लूटा फिर कांग्रेसी सरकारों ने करोड़ों रुपए का मेकअप लगा कर इन्हीं के मकबरों को चकाचक चमकाया। वाह वाह करने वाले रेस्टोरेशन से पहले मकबरे की तस्वीर भी नहीं पहचान पाएंगे। »»
शस्त्रों की शक्ति बहुत बड़ी होती है। कंबोडिया में कम्यूनिस्टों ने सरहद पार से अवैध शस्त्र किसानों के हाथों में थमा दिए और सशस्त्र संघर्ष से स्वयं सत्ता प्राप्त कर उन्हीं किसानों का शोषण किया। आज भी कंबोडियाई तानाशाह पोल-पोट द्वारा किए गए नरसंहार के प्रमाण ज़मीन में से निकलते हैं।
पोलपोट के कम्यूनिस्ट दिवास्वप्न के अनुसार देश के सभी लोग किसान थे। बंदूक की नोंक पर शहरों को खाली कराया गया और शिक्षित प्रजाजनों को भी खेतों में मजदूरी करने गांवों में भेज दिया गया। इनमें डॉक्टर और प्राध्यापक जैसे लोग भी शामिल थे। विरोध का परिणाम सीने में बुलेट से मिलता था।
जानकारों के मुताबिक अंदाजन दो मिलियन नागरिकों का कत्लेआम किया गया था। बौद्धिकता का मुखौटा पहना मार्क्सवाद जब अनावृत्त होता है तब रक्तपात का नंगा नाच करता है।
कुछ काम से शहर से बाहर जाना पड़ा, घर पहुंचने में देरी हुई। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे और सूनसान रास्ते पर बाइक बंद हो गई। सोचा कि किसी सेफ जगह पर बाइक पार्क कर पैदल घर चला जाऊंगा। तब तक बाईक खींचने के अलावा कोई चारा नहीं था। फ़रवरी महिने में ठंड कम हो रही थी और…
…और बाईक खींचने के कारण पसीना भी छूट रहा था। इयरफोन में मोहम्मद रफी का गाना चल रहा था तभी पीछे से आवाज आई “बाईक बंद हो गई है क्या?” पीछे मुड़कर देखा तो एक करीबन चालीस साल का आदमी बीड़ी फूंकते हुए बेफिक्र सा आ रहा था। सोचा कि यह भी सही है, बातें करते हुए रास्ता कट जाएगा। लेकिन…
वह कुछ ज्यादा ही बातूनी प्रतीत हो रहा था। उसने कहा कि दो किलोमीटर आगे सरकारी अस्पताल के पास ही रहता है और वहां रात में बाइक पार्क किया जा सकता है। मैं बाईक खींच रहा था और वह थोड़ा पीछे चल रहा था। सामने पुराने सरकारी अस्पताल की इमारत दिख रही थी…
सन 1930 में 384 किलोमीटर की पैदलयात्रा कर गांधीजी दांडी पहुंचे और नमक सत्याग्रह किया यह बात हमें बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती है लेकिन दांडी यात्रा की फलश्रुति क्या है पता है?
अंग्रेजों ने नमक-टैक्स कभी खत्म नहीं किया। 1946 में नेहरू की अंतरिम सरकार बनने तक भारतीय यह टैक्स चुकाते रहे।