क्या शरीर में एक ही आत्मा होती है?
वेद-पुराण,अन्य धाराओं में परमात्मा-जीवात्मा और उसके संबंध पर कई प्रकार की व्याख्या की है.दोनों एक है,आत्मा परमात्मा काअंश है,आत्मा पूर्व जन्म का ही प्रवाह है आदि
लेकिन वही पांच तत्व है,परमात्मा एक ही है,तो अनुभव-संवेदना अलग अलग क्यों ?
क्षेत्रज्ञ चार
अंतरात्मा पांच और
भूतात्मा नौ उपप्रकार में संहित होता है
१) क्षेत्रज्ञ-परात्पर, अव्यय,अक्षर,क्षर
१.१) परात्पर- समस्त विश्व का अधिष्ठान स्वरुप अंश - परमात्मा का अंश
१.२) अव्यय- जिसका नाश नहीं होता,जोजन्मजन्मांतर साथ रहता है
१.४) क्षर- आत्मा का अंश तत्व जो उत्पति का का कारण होता है (जैसे घड़े के लिए मिटटी)
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च |
क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ||गीता अ १५ श १६ ||
२.३)विज्ञानात्मा-धर्म,ज्ञान, वैराग्य की प्रेरणा देने वाला अंश तत्व
२. ४)प्रज्ञानात्मा-ज्ञानेन्द्रिय/कर्मेन्द्रिय को विषय का अनुभव-जैसे सभी को रसगुल्ला मीठा ही लगना
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रिभ्यः परं मनः
मनसस्तु परा बुद्धि बुद्धिरेतात्मा महान परः
महतः परम व्यक्तं अव्यक्तात पुरुषः परः
पुरुषान्न परं किंचित सा काष्ठ सा परा गतिः|कठोपनिषद
शरीरात्मा,हंसात्मा और दिव्यात्मा
३.१) शरीरात्मा-प्राणी स्वरुप शरीर (मनुष्य, पशु आदि) का बोध करवाने वाला अंश
३.२)हंसात्मा-आत्मा का अंश जो सदैव जागृत रहता है और शरीरात्मा की रक्षा करता है
३.३) दिव्यात्मा-मनुष्य, पशु और निर्जीव पदार्थ का भेद
३.३.३.१) करमात्मा- आत्मा का अंश जो कर्म का फल और उसका संस्कार छोड़ जाते है- यही एकत्र अंश. जो कर्म आपने किया है चाहे उसका साक्षी अंश.
तो इस प्रकार १८ विभिन्न अंशो से आत्मा की कल्पना की गयी है जिससे ही परिस्तिथिति को, एक ही वस्तु को , एक ही जीवन को व्यक्ती अलग अलग रूप में देखता है,अनुभव करता है,
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