अर्थशास्त्र में चाणक्य ने लिखा है कि "यथा राजा तथा प्रजा"। सही बात है। भारत के केस में और भी सही है। क्यूंकि यहां तो वैसे भी प्रतिनिधित्व लोकतंत्र है। मतलब प्रजा ही राजा चुनती है। प्रजा को अपने हिसाब से राजा चाहिए।
पिछले राजा से प्रजा तंग आ गयी थी क्यूंकि उसके मंत्री ही उसकी नहीं सुनते थे। इसलिए उन्होंने नया राजा चुना। जैसे नवधनाढ्य को मौकापरस्त मित्र घेर लेते हैं उसी प्रकार इस नए राजा को उसके चापलूसों ने खूब चढ़ा दिया है।
"महाराज जनता तो आपकी दीवानी है", "महाराज पड़ौसी देश आपके पराक्रम से थर-थर काँप रहे हैं"। महाराज भी आत्ममुग्ध हो गए हैं। अब ये मंत्रियों की छोडो, किसी की भी नहीं सुन रहे। अब चूंकि राजा आत्ममुग्ध है तो जाहिर है प्रजा भी उसी दिशा में आगे बढ़ेगी।
इसलिए अब प्रजा भी ये मानने लगी है कि वो कभी गलती कर ही नहीं सकती। बस यहीं से असली समस्या की शुरुआत होती है। न राजा गलत है, न प्रजा। देश फिर भी गड्ढे में जा रहा है। पहले तो प्रजा को राजा पर शक हुआ। फिर प्रजा ने राजा से पूछा, राजा ने चापलूसों से। कौन गलत है?
GDP -24%, बेरोजगारी चरम पर, कोरोना मौतें एक लाख पार। मतलब कोई तो गलत है।
मंत्रणा हुई।
किसी ने कहा "चीन गलत है।"
"नहीं-नहीं, इससे चीन से हमारे सम्बन्ध खराब हो सकते हैं।"
"तो फिर पाकिस्तान?"
"पाकिस्तान को पेलने का वादा करके ही हम सत्ता में आये थे, इस बार पाकिस्तान वाला कार्ड नहीं चलेगा।"
"महाराज, फिर विपक्ष के सर ठीकरा फोड़ देते हैं।"
"यार, एक तो विपक्ष खुद भीगी बिल्ली बन अपने लुटियंस के महलों में छुपकर बैठा है। दूसरा, संसद में भी विपक्ष की स्थिति कमजोर है। प्रजा को पता है विपक्ष की कोई औकात नहीं है। कुछ और बताओ।"
"नौकरशाही?"
"अबे मरवाओगे यार तुम। हमारे मंत्रिमंडल में कई सारे सेवानिवृत्त नौकरशाह बैठे हैं। नौकरशाहों को टिकट का लालच देकर ही तो हम अपना काम निकलवाते हैं। उनसे दुश्मनी का खतरा नहीं मोल ले सकते।"
पीछे एक नए नवेले आर्थिक मामलों के चापलूस और निजी आयोग के अध्यक्ष कुछ खुसुर-पुसुर कर रहे थे।
"कुछ कहना चाहते हो?" राजा ने पूछा।
"महाराज, ऐसा करते हैं बैंक वालों को सूली पर चढ़ा देते हैं।"
"वो कैसे?"
नए नवेले आर्थिक सलाहकार ने बोलना शुरू किया।
"1. आर्थिक मंदी है क्यूंकि उद्योग धंधे नहीं चल रहे। उद्योग-धंधे नहीं चल रहे क्यूंकि बैंक लोन नहीं दे रहे।
3. आर्थिक मंदी है इसलिए बेरोजगारी है। 4. देश में चाइनीज माल आ रहा है क्यूंकि भारत में बैंक लोन नहीं देते। 5. प्रवासी मजदूर मर रहे हैं क्यूंकि बैंक वाले लोन के पैसे भरने को बोल रहे हैं। 6. देश में गरीबी है क्यूंकि बैंक वाले सैलरी लेते हैं।
7.कोरोना है क्यूंकि बैंक वाले कस्टमर का ठीक से थर्मल स्कैनिंग, ऑक्सीजन लेवल चेकिंग, फुल बॉडी चेकअप, क्राउड कंट्रोल, सेनेटाइजेशन नहीं कर रहे।
8.बुजुर्ग संकट में हैं क्यूंकि बैंक ने FD पे ब्याज दर घटा दी है। 9. देश में दंगे हो रहे हैं क्यूंकि बैंक वाले पासबुक प्रिंट नहीं कर रहे।
10. सुशांत ने आत्महत्या की क्यूंकि उसके बैंक खाते से रिया ने पैसे निकाल लिए।
और बैंकर्स पे ठीकरा फोड़ना आसान है क्यूंकि जनता ऐसे भी बैंक वालों से खुन्नस खाये बैठी है।"
इतना सुनते ही महाराज की आँखों में प्रशंसा के भाव उमड़ आये।
बाकी के चापलूस भी एक सुर में बोल उठे "हाँ-हाँ, सब बैंक वालों की ही गलती है।"
महाराज ने अपने पालतू ढोलों के जरिये तुरंत प्रजा में ऐलान करवा दिया। प्रजा भी जैसे यही सुनना चाहती थी। उसने तुरंत मान लिया। "हाँ-हाँ, बिलकुल, बैंक वाले ही गलत हैं।"
अब जनता का सारा गुस्सा बैंक वालों पे निकल रहा है। लोग झुण्ड बना के बैंकों में पहुँच रहे हैं। डंडे, चाकू, स्याही, कीचड, और भी पता नहीं क्या क्या लेके। पूरे देश में बैंक वाले पीटे जा रहे हैं। लोग बैंकरों से अपनी दशकों पुरानी दुश्मनियां निकाल रहे हैं।
बीच में राजा के कुछ नजदीकी लोगों ने राजा को समझने की कोशिश भी। "महाराज, थोड़ा रहम खाइये बैंकरों पर। बेचारे दर्द के मारे चिल्ला रहे हैं।"
"कोई रहम नहीं, चालीस साल पहले जब मैं लोन मांगने बैंक गया था तब बैंक वाले ने मुझसे सीधे मुंह बात भी नहीं की थी।", एक चापलूस बोल उठा।
"श्रीमान, जिस बैंक वाले ने आपको दुत्कारा था वो आज रिटायर हो कर बैंक यूनियन का सचिव बना हुआ है। बैंक वाले खुद उससे परेशान हैं। आजकल नयी पीढ़ी के बैंकर आये हैं। ये बेचारे तो दिन में 10-10 घंटे काम करते हैं, छुट्टी के दिन भी बैंक जाते हैं।
पुरानी पीढ़ियों के नाकारापन की सजा इनको क्यों दे रहे हैं? बैंकर जनता के पैसे की सुरक्षा करते हैं, आज बेचारे वो ही असुरक्षित हैं। महाराज, कृपया ये रक्तपात बंद करवाइये। बैंकरों की रक्षा के लिए कानून लाइए। नहीं तो बैंक लूट जाएंगे।"
"महाराज, अगर सरकार ने बैंकरों को बचाने की कोशिश की तो जनता का गुस्सा आप पर निकलेगा। जनता को लगेगा कि सरकार तो बैंक वालों के साथ है। फिर जनता की नजर में आप भी गलत साबित हो जाएंगे। बाकी आप देख लीजिये।" चापलूस ने कहा।
खुद को गलत साबित होने के ख्याल से ही महाराज डर गए। "हम गलत नहीं हो सकते। पिटने दो सालों को।", महाराज ने अंतिम आदेश दे दिया। अब कोई कुछ नहीं बोल रहा था।
भगवान ने मनुष्य को गलतियों का पुतला बनाया है। राजा भी मनुष्य है और प्रजा भी।
परन्तु ये डेमोक्रेसी है, यहां भगवान् गलत हो सकते हैं प्रजा नहीं। राजा अपनी गलती मानने को तैयार नहीं। वैसे प्रजा को भी अब धीरे धीरे समझ आ रहा है कि असली दोषी राजा और उसके चापलूस हैं।
अब समस्या ये है कि राज्याभिषेक का मुहूर्त भारत में पांच साल में एक बार ही निकलता है। देखें तब क्या होता है? तब तक भगवान् से उम्मीद करो की शायद राजा को सद्बुद्धि आ जाए। नहीं तो पिटो और झेलो।
2008 की वैश्विक मंदी का भारत पे कोई ख़ास असर नहीं पड़ा। बहुत से लोग इसका श्रेय मनमोहन सिंह जी और UPA सरकार को देते हैं। मुझे इस बात में संदेह है। कारण? पहला ये कि मनमोहन जी भारतीय अर्थव्यस्था में 1970 से ही सक्रिय रहे हैं। और काफी महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं।
इसी दौरान भारत की अर्थव्यस्था ऋणात्मक भी रही, मुद्रा स्फीति दो अंकों में भी पहुंची, कर की दरें 90% से भी अधिक रहीं। इतने भीषण अर्थशास्त्री के होने के बावजूद भारत 1991 में डिफ़ॉल्ट करने की स्थिति में आ गया था। और दूसरा ये कि 1997 में भी आर्थिक मंदी आयी थी। एशियाई देशों में।
उसका भी प्रभाव भारत पर नहीं पड़ा। तो फिर क्या कारण था कि 2008 में जब पूरा विश्व आर्थिक मंदी से जूझ रहा था तब भारत की आर्थिक वृद्धि दर आठ से भी ऊपर थी? कारण है भारतीयों की बचत की आदत। बचत की आदत का मुख्य कारण है मानसून आधारित खेती।
@Bankers_United@Bankers_We
We need to file a case in the court against this #LevyLOOT .
How is this levy justified when the unions are: 1. Unable to stop the pressure to sell third-party products in banks 2. Unable to stop non-core work like PMFBY premium and data entry work
3. Silent on huge shortage of staff in banks. 4. Silent when one staff is having workload of 3-4 people 5. Silent on attacks on bankers all over India 6. Silent on bankers having lowest salary among all the fields. 7. Silent on rampant political interference in banks.
8. Not even representing the bankers, since most of their officials are retired. 9. Silent on banks being used as vote bank appeasement tools. 10. Unable to stop privatization, disinvestment, merger of banks,
In this country only two things matter, Money and votes. In case of money, you need to have enough to fund political parties. For votes, you must be a vote bank. How to identify a vote bank?
If on one call of a leader, thousands of people come out, block roads, burn buses, bring the nation to halt, it is a vote bank. If their single criterion of voting is instructions from their religious/caste/community leader.
The only left entity is educated middle class, who don't have money to fund political parties but pays tax honestly, who don't vote in herd, but vote on the basis on individual choice.
थ्रेड: मुद्दई ईमानदार वकील बेईमान
डिस्क्लेमर: इस घटना में थोड़ा मसाला भी डाला गया है।
एक बार एक ब्रांच में एक फ्रॉड का केस हुआ। हुआ यूं कि एक गुड़गांव की कंपनी ने मुंबई कि एक कंपनी के नाम के कुछ चेक इशू किये। चेक अपने रेगुलर कूरियर वाले के हवाले कर दिए।
अब चूंकि कूरियर वाला रेगुलर था इसलिए उसको पता था कि लिफाफे में चेक हैं, शायद पहले भी ले जाता रहा हो। लेकिन इस बार उसका ईमान डोल गया। उसने जुगाड़ लगा के payee के नाम के फर्जी पैन वगैरह बनवा लिए और गुजरात में उसी कंपनी के नाम से एक करंट अकाउंट खुलवा लिया।
ब्रांच के अकाउंटेंट साहब ने भी डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन करते टाइम ज्यादा दिमाग नहीं लगाया, क्यूंकि भीड़ इतनी कि टाइम ही नहीं मिलता। हो सकता है करंट अकाउंट का लॉगिन डे रहा हो। दो दिन बाद उसी कूरियर वाले ने वो चेक उस खाते में जमा कर दिए।
नौकरी ज्वाइन करते ही सबसे पहली चीज होती है ट्रेनिंग। पहली ट्रेनिंग शुगर कोटेड कड़वी दवाई की तरह होती है। किसी होटल जैसे ट्रेनिंग सेंटर में हफ्ते-दो हफ्ते के लिए अपने ही जैसे नए लोगों के साथ रहने का मौका मिलता है।
विभिन्न अभिरुचियों और आदतों के हिसाब से नए दोस्त बनते हैं। गंजेड़ियों का अलग ग्रुप, दारूबाजों का अलग, सुटेरियों का अलग। लड़कियों का अलग ग्रुप और उन पर लाइन मरने वालों का अलग। कइयों के दिल टूटते हैं तो कुछ सौभाग्यशालियों को कन्या राशि मिल भी जाती है।
कुलमिला कर कॉलेज वाला माहौल रहता है इसीलिए ट्रेनिंग को नौकरी का हनीमून पीरियड भी कहते हैं। ट्रेनिंग ख़तम होने के बाद कड़वी दवाई यानि पोस्टिंग की शुरुआत होती है।
ट्रेनिंग किसी भी जॉब का सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी हिस्सा होता है। ट्रेनिंग एक सतत प्रक्रिया है।
जमीनी हक़ीक़त से कतई जुदा है ये फरमान। अत्याचार की पराकाष्ठा है ये फरमान। यूनियन के मुँह पे तमाचा है ये फरमान। 5-5 लाख की कैश रिटेंशन लिमिट में वे ब्रांचें चल रहीं हैं जहां एक ही KCC 25 लाख का है, एक ही दिन में 20 लाख कैश उठ जाता है, दिन में 200 कैश वाउचर निकलते हैं। @IOBIndia
और उन पांच लाख में भी पचास हज़ार तो RBI द्वारा जबरदस्ती थमाए हुए कॉइन्स होते हैं, 50 हजार सोइल्ड और म्युटिलटेड नोट होते हैं 2 लाख 5-10-20-50 के नोट होते हैं। ऊपर से कस्टमर नखराले। कॉइन्स नहीं लेंगे, छोटे नोट नहीं लेंगे, पुराने नोट तो भूल ही जाओ। बचता क्या है? झुनझुना!!!
इससे ज्यादा कैश तो ब्रांच के बगल के पान वाले के गल्ले में मिल जाएगा। जब ऊपर के अधिकारीयों को बोलो कैश रिटेंशन लिमिट बढ़ाने को तो बोलते हैं कि लिमिट बढ़ाने के लिए RBI की परमिशन चाहिए। तो लो न परमिशन !!! केवल थर्ड पार्टी प्रोडक्ट्स का कमीशन खाने बैठे हो क्या ऊपर?