थ्रेड....
मृत्यु होती ही रहती है, देह की । जिस देह में थे जो भोग था वह भोग रहे थे ।

फिर भोग से भागने की इच्छा हुई तो प्राणों का उत्सर्ग किया । लेकिन उससे क्या होगा भोले, प्रारब्ध भोगने फिर यहीं आओगे । अब एक ही बार भोग लो या बार-बार भोगो.. Image
बीच में भागो और फिर से A B C D करते रहो...

जीवन की यही कथा है ।

कहीं पढ़ा था कि जीवन का आरम्भ रुदन से होता है और जीवन का अंत आपके आस पड़ोस के लोगों के रुदन से होता है , किन्तु आरम्भ और अंत के बीच का जीवन हास्य और रस से परिपूर्ण होना चाहिए ।
क्योंकि जो हम समझते हैं वह होता ही नहीं है । सूत से बनी शर्ट की भाँति है दुनिया.. शर्ट के तन्तु उधेड़ते जाईये, और फेंकते जाईये । कुछ बचता ही नहीं ! पुनः व्यवस्थित क्रम में देख लो तो परिधान के प्रति एक आकर्षण, मोह और रुचि उत्पन्न होती है ।
लेकिन अंततः इस चक्र से मुक्त होने का एकमात्र उपाय है- कर्मवीर बनो, कर्तव्यनिष्ठ बनो और जो लाभ हानि होगा सो उसका है.. मेरा तो कुछ भी नहीं । यह देह तो माटी का साथी है, बिछड़े हुए साथी एक दिन न एक दिन अवश्य ही भेंटते हैं , एक नहीं अपितु अनेक जन्मों तक..
लगभग 50 से 100 चेतनाएं तो वही होती हैं जो न जाने कब से जीवन-मरण की यात्रा में साथ हैं ।

क्रम मत अवरुद्ध कीजिये, यही सार है ।

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18 Oct
थ्रेड... अवश्य पढ़ें...

"महाराजा गंगा सिंह जी कलयुग के भागीरथ"
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वर्ष 1899-1900 में राजस्थान में एक बदनाम अकाल पड़ा था... Image
विक्रम संवत १९५६ (1956) में ये अकाल पड़ने के कारण राजस्थान में इसे छप्पनिया-काळ कहा जाता है...

एक अनुमान के मुताबिक इस अकाल से राजस्थान में लगभग पौने-दो करोड़ लोगों की मृत्यु हो गयी थी...
पशु पक्षियों की तो कोई गिनती नहीं है...
लोगों ने खेजड़ी के वृक्ष की
छाल खा-खा के इस अकाल में जीवनयापन किया था...

यही कारण है कि राजस्थान के लोग अपनी बहियों (मारवाड़ी अथवा महाजनी बही-खातों) में पृष्ठ संख्या 56 को रिक्त छोड़ते हैं...
छप्पनिया-काळ की विभीषिका व तबाही के कारण राजस्थान में 56 की संख्या अशुभ मानी है....
Read 18 tweets
11 Oct
थ्रेड... Must read

#अयोध्या_के_बाद_अब_काशी_और_मथुरा_बाकी_हैं, जानिए ऐसा इतिहास जो आपको आज तक नहीं पढ़ाया गया है...
#We_suppprt_hindutava_unity.

✍ भारत देश में केवल सनातन धर्म ही था, #भारत_सोने_की_चिड़िया कहलाता था,
इसलिए अनेक विदेशी आक्रांताओं की नजर भारत की संपत्ति पर थी ।

✍ विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत को आकर लुटा तो है साथ में भारतीय सनातन संस्कृति को विकृत भी कर दिया और #हिंदुओं_का_कत्ल भी किया और #महिलाओं_के_साथ_बलात्कार भी किये और भारत के मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें भी
बनवा दी।

✍ भारत में तो कितने #मंदिर_तोड़े गए नही बता सकते हैं लेकिन तीन मुख मंदिर थे अयोध्या में #श्री_राम_मंदिर ,
#मथुरा_का_श्रीकृष्ण_जन्मस्थान एवं #काशी_के_विश्वनाथ_मंदिर को #इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़कर कब्जा कर लिया।
Read 18 tweets
10 Oct
थ्रेड...

सोचें कि हिन्दू एकता क्यों जरूरी है!

वे सभी हमारी एकता से घबराये हुए हैं!

पिछले *4* सालों में *7* से *19* राज्यों में पैर पसारते *BJP* से सहमे हुए हैं!
ओड़िशा-बंगाल से तमिलनाडु तक की राजनीति में मोदी की धमक से डरे हैं! उन्हें मालूम है कि अगले दो सालों में अगर मोदी जी के विजयरथ को नहीं रोका गया, तो 2025 तक *RSS* - *विहिंप* - *HUV* जैसे हिन्दुवादी संगठनों के झंडे के नीचे, हिन्दू इतने शक्तिशाली हो जायेंगे
कि उन्हें दबाना नामुमकिन हो जायेगा!

उनके लिए तो अगला वर्ष अस्तित्व की लड़ाई के हैं!

हिन्दू वोट बैंक को क्षत - विक्षत करने का हर हथकंडा अपनाया गया! बरसों की जातिवादी और तुष्टिकरण की राजनीती को यूँ बर्बाद होते देखना उनके लिए असहनीय है!
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10 Oct
थ्रेड...

सर्दियों की तैयारी करें

कोविद ने ज़्यादातर लोगों के लंग्स और हार्ट को कमजोर कर दिया है। इन्फेक्शन अभी भी जारी है और एक बड़ी आबादी को इन्फेक्टेड होने का पता भी नहीं चला है।
सर्दियों में दो और बातें होती हैं – वायु प्रदूषण बढ़ जाता है और हार्ट फेल होने के मामले भी बढ़ जाते हैं। हार्ट फेल होने का एक कारण सर्दियों में लोगों का पानी कम पीना और चाय-कॉफी ज्यादा पीना भी है, इससे डिहाइड्रेशन हो जाता है और खून गाढ़ा और चिपचिपा हो जाता है।
इस साल चाय-कॉफी की जगह गरम पानी पिये।

शहरी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण, जिसे हम अक्सर गिनते भी नहीं हैं – हमारी अपनी कार और सांस है। सांस लेना कम नहीं किया जा सकता है लेकिन कार के उपयोग को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।
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9 Oct
थ्रेड ... अवश्य पढ़ें...

*निगेटिव रिपोर्ट का कमाल —*

10 दिन की जद्दोजहद के बाद एक आदमी अपनी कोरोना नेगटिव की रिपोर्ट हाथ में लेकर अस्पताल के रिसेप्शन पर खड़ा था।

आसपास कुछ लोग तालियां बजा रहे थे, उसका अभिनंदन कर रहे थे।

जंग जो जीत कर आया था वो।
लेकिन उस शख्स के चेहरे पर बेचैनी की गहरी छाया थी।
गाड़ी से घर के रास्ते भर उसे याद आता रहा "आइसोलेशन" नामक खतरनाक और असहनीय दौर का वो मंजर।

न्यूनतम सुविधाओं वाला छोटा सा कमरा, अपर्याप्त उजाला, मनोरंजन के किसी साधन की अनुपलब्धता, कोई बात नही करता था और न ही कोई नजदीक आता था।
खाना भी बस प्लेट में भरकर सरका दिया जाता था।

कैसे गुजारे उसने वे 10 दिन, वही जानता था।

घर पहुचते ही स्वागत में खड़े उत्साही पत्नी और बच्चों को छोड़ कर वह शख्स सीधे घर के एक उपेक्षित कोने के कमरे में गया, जहाँ माँ पिछले पाँच वर्षों से पड़ी थी ।
Read 6 tweets
9 Oct
थ्रेड...

#जरा #सोचिए -*
*#विज्ञान #हमे #कहाँ #ले #आया???*

*वो कुँए का मैला कुचला पानी*
*पिके भी 100 वर्ष जी लेते थे*

*हम RO का शुद्ध पानी पीकर*
*40 वर्ष में बुढे हो रहे है।*

*वो घाणी का मैला सा तैल खाके बुढ़ापे में भी दौड़~मेहनत कर लेते थे।*
*हम डबल~ट्रिपल फ़िल्टर तैल*
*खाकर जवानी में भी हाँफ जाते* है।*

*वो डले वाला नमक खाके*
*बीमार ना पड़ते थे।*

*हम आयोडीन युक्त खाके*
*हाई~लो बीपी लिये पड़े है।*

*वो नीम~बबूल कोयला नमक*
*से दाँत चमकाते थे और 80 वर्ष*
*तक भी चब्बा~चब्बा कर खाते* थे।*
*और हम कॉलगेट सुरक्षा वाले रोज डेंटिस्ट के चक्कर लगाते है ।।*

*वो नाड़ी पकड़ कर*
*रोग बता देते थे और*

*आज जाँचे कराने पर भी*
*रोग नहीं जान पाते है।*

*वो 7~8 बच्चे जन्मने वाली माँ 80 वर्ष की अवस्था में भी* *घर~खेत का काम करती थी।*
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