कल अफगानिस्तान के जलालाबाद में पाकिस्तान का वीजा लेने के लिए अफगानी लोग स्टेडियम में जुटे थे भगदड़ मच गई और 12 लोगों की दबकर मौत हो गई
दरअसल अफगानिस्तान के लोग अपनी रोजमर्रा की खरीदी के लिए पाकिस्तान का वीजा लेते हैं
पाकिस्तान उन्हें 3 महीने का मल्टीपल एंट्री वीजा देता है और अफगानिस्तान के लोग अपनी छोटी से छोटी चीजों की खरीदारी के लिए भी पाकिस्तान पर निर्भर है क्योंकि लाखों अफगानी पाकिस्तान का वीजा लेते हैं इसलिए पाकिस्तान एक बड़े से स्टेडियम में वीजा कैंप लगाता है
1986 तक अफगानिस्तान एशिया के सबसे ज्यादा विकास करता हुआ देश था, बेहद आधुनिक था बॉलीवुड की तमाम फिल्मों की शूटिंग अफगानिस्तान में होती थी जिसमें अंतिम फिल्म अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी की खुदा गवाह है जो अफगानिस्तान में शूट की गई थी
अफगानिस्तान के तमाम शहर काबुल जलालाबाद गजनी हेरात कंधार खोस्त एक बेहद खूबसूरत शहर थे और अफगानिस्तान सूखे मेवे का एशिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश हुआ करता था
कहीं कोई कट्टरता नहीं थी आप गूगल पर अफगानिस्तान के 80 के दशक के फोटो सर्च करिए आपको मिनी स्कर्ट में घूमती लड़कियां
नजर आएंगी अफगानिस्तान कि काबुल यूनिवर्सिटी शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र माना जाता था 70 के दशक में काबूल यूनिवर्सिटी में पढ़ना लोगों का सपना होता था वह दौर ऐसा था जब पाकिस्तानी लोग अफगानिस्तान के वीजा के लिए मारपीट करते थे और पाकिस्तानियों का सपना होता था कि
वह अफगानिस्तान में जा कर पढ़ाई करें या व्यापार करें
और फिर एक दिन कपिल मिश्रा ने अफगानिस्तान में जाकर भाषण दिया और अफगानिस्तान पूरी तरह से बर्बाद हो गया
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कमर दर्द , सरवाइकल और चारपाई हमारे पूर्वज बैज्ञानिक थे।
सोने के लिए खाट हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है। हमारे पूर्वजों को क्या लकड़ी को चीरना नहीं जानते थे ? वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर डबल बेड बना सकते थे।
डबल बेड बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होती हैं। चारपाई भी भले कोई साइंस नहीं है , लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। चारपाई बनाना एक कला है। उसे रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है।
जब हम सोते हैं , तब सिर और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खून की जरूरत होती है ; क्योंकि रात हो या दोपहर में लोग अक्सर खाने के बाद ही सोते हैं। पेट को पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय चारपाई की जोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है।
कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.
स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।
कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
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(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)
कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है।
तुलसी का काढ़ा पीने के फायदे
सर्दी, जुकाम और गले में खराश से जल्द राहत दिलाने के लिए तुलसी का काढ़ा पीने की सलाह दी जाती है.
बदलते मौसम में सर्दी-जुकाम से बचने के लिए जरूर पिएं तुलसी काढ़ा, जानिए आसान रेसिपी
किचन में मौजूद कुछ मसालों का इस्तेमाल करके तुलसी का काढ़ा तैयार किया जा सकता है. जानिए इसकी रेसिपी.
10-15 तुलसी के पत्ते 2-3 दालचीनी के छोटे टुकड़े 1-2 काली मिर्च
1 छोटा चम्मच सूखा धनिया
1 इंच अदरक का टुकड़ा
1 चम्मच मिश्री
सेंधा नमक (वैकल्पिक)
बनाने की विधि 1. एक पैन में पानी गर्म होने के लिए रख दें. 2. जब पानी उबलने लगे तो उसमें तुलसी के पत्ते, दालचीनी, काली मिर्च, सूखा धनिया, अदरक का टुकड़ा और मिश्री डालकर 15-20 मिनट तक उबाल लें.
"महाराजा गंगा सिंह जी कलयुग के भागीरथ"
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वर्ष 1899-1900 में राजस्थान में एक बदनाम अकाल पड़ा था...
विक्रम संवत १९५६ (1956) में ये अकाल पड़ने के कारण राजस्थान में इसे छप्पनिया-काळ कहा जाता है...
एक अनुमान के मुताबिक इस अकाल से राजस्थान में लगभग पौने-दो करोड़ लोगों की मृत्यु हो गयी थी...
पशु पक्षियों की तो कोई गिनती नहीं है...
लोगों ने खेजड़ी के वृक्ष की
छाल खा-खा के इस अकाल में जीवनयापन किया था...
यही कारण है कि राजस्थान के लोग अपनी बहियों (मारवाड़ी अथवा महाजनी बही-खातों) में पृष्ठ संख्या 56 को रिक्त छोड़ते हैं...
छप्पनिया-काळ की विभीषिका व तबाही के कारण राजस्थान में 56 की संख्या अशुभ मानी है....
थ्रेड....
मृत्यु होती ही रहती है, देह की । जिस देह में थे जो भोग था वह भोग रहे थे ।
फिर भोग से भागने की इच्छा हुई तो प्राणों का उत्सर्ग किया । लेकिन उससे क्या होगा भोले, प्रारब्ध भोगने फिर यहीं आओगे । अब एक ही बार भोग लो या बार-बार भोगो..
बीच में भागो और फिर से A B C D करते रहो...
जीवन की यही कथा है ।
कहीं पढ़ा था कि जीवन का आरम्भ रुदन से होता है और जीवन का अंत आपके आस पड़ोस के लोगों के रुदन से होता है , किन्तु आरम्भ और अंत के बीच का जीवन हास्य और रस से परिपूर्ण होना चाहिए ।
क्योंकि जो हम समझते हैं वह होता ही नहीं है । सूत से बनी शर्ट की भाँति है दुनिया.. शर्ट के तन्तु उधेड़ते जाईये, और फेंकते जाईये । कुछ बचता ही नहीं ! पुनः व्यवस्थित क्रम में देख लो तो परिधान के प्रति एक आकर्षण, मोह और रुचि उत्पन्न होती है ।