स्कंदगुप्त... गौरवशाली इतिहास जो छुपाया गया...

थ्रेड... अवश्य पढ़ें

दुनियाँ उन्हें पुकारती थी......

#हूण

"""""""""" " The wrath of God " """""""""""""""

"""""""""""""" "खुदा का कहर " """"""""""""""""""'

भारत

455 ई.....
भारत अपने " स्वर्ण युग के वैभव " का आनंद उठा रहा था। पर शेष विश्व ?...

शेष विश्व उस समय आतंक से थरथरा रहा था ....

-----

वे अपने नमदे के तंबुओं के चलते फिरते शहर 'ओरदुओं में रहते थे।

वे दुश्मन की खोपडियाँ अपने तंबू में ट्रॉफियों की तरह सजाते थे।

वे
घोडी के दूध से बनी शराब 'कूमिस' अपने दुश्मन की खोपड़ी में पीते थे।

वे आतताइयों के जिंदगी को कीडे मकोडे से ज्यादा कुछ नहीं समझते थे।

वे अपने घोड़ों पर ही सोते जागते हुए जहाँ से भी गुजरते खून की नदियाँ बह निकलतीं थीं और आग का समंदर लहराने लगता था।
उन्हें दुश्मन का लहू बहाने का नशा था। सोना पाने के लिये वे क्रूरता की हदें इस हद तक पार कर जाते थे कि उन्हें इंसान मानना नामुमकिन लगता था।

इस्लाम के बर्बर राक्षसों से पूर्व वे सभ्यता और संस्कृति के सबसे बडे विध्वंसक थे ।

वे पूरे विश्व पर टिड्डी दल की तरह छा गये थे।
चीन जैसे प्रतापी साम्राज्य से वे कर वसूल करते थे।

पूर्वी रोमन साम्राज्य को उन्होंने उखाड फैंका और पश्चिमी रोमन साम्राज्य की की जडें खोखली कर दीं । हूण #अट्टिला के नाम से पूरा यूरोप थर थर कांपता था।

उनकी एक शाखा "श्वेत हूण" ईरान की ओर मुडी और प्रतापी सासानिद
साम्राज्य का शाहंशाह पीरोज "हेरात के युद्ध" में धूल चाट गया।

अब उनका निशाना था भारत, स्वर्णिम भारत, वैभवशाली भारत जिसकी अपार संपदा के किस्से उन्हें भारत की ओर बढने को उकसा रहे थे....और अंततः वे भारत पर टिड्डी दल की तरह टूट ही पडे।
बैक्ट्रिया, कपिशा के बाद बारी आई गांधार की। तक्षशिला के विश्वविश्रुत विश्वविद्यालय को इन पशुओं ने जलाकर राख कर दिया। हजारों बौद्ध भिक्षुओं के कटे सिर इन बर्बरों के मनोरंजन का साधन बने।

मालव, यौधेय, अर्जुनायन जैसे 'गणतंत्र' जो लौहद्वार के रूप में भारत की रक्षा करते थे,
उनका स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो चुका था। उधर युद्ध के देवता कार्तिकेय के उपासक वृद्ध सम्राट कुमारगुप्त युद्ध से कोसों दूर थे और अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भोगों में मग्न थे।आंतरिक विद्रोह तो होने ही थे। गुप्त साम्राज्य डांवाडोल हो रहाथा।
और तब सामने आया भारत का एक महानायक....एक नया अभिमन्यु ... एक सोलह वर्षीय किशोर ...

---------------- #स्कंदगुप्त---------------

ज्येष्ठ राजकुमार होने के बावजूद स्कंदगुप्त का जीवन फूलों की सेज नहीं था। पिता द्वारा उपेक्षित पत्नी के पुत्र होने के कारण स्कंदगुप्त
पिता का वह प्रेम नहीं मिला जो एक संतान को अपेक्षित होता है।

स्कंदगुप्त के एकाकी जीवन का सबसे बड़ा और एकमात्र संबल था, वरिष्ठ सखा और सलाहकार #चक्रपालित , जो स्कन्दगुप्त के दादा, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के काल के प्रसिद्ध योद्धा #पर्णदत्त का पुत्र था।
साम्राज्य की सारी जिम्मेदारियाँ स्कंदगुप्त के कंधों पर थीं परंतु अधिकार एक भी नहीं था। उधर विमाता #अनंतदेवी के निरंतर षड़यंत्र 'रामायण' और 'महाभारत' की घटनाओं की पुनरावृत्ति कर रहे थे।

परिणाम था विंध्य क्षेत्र में किसी अनजान अपरिरिचित जाति 'पुष्यमित्र' का भयानक विद्रोह।
संसाधनविहीन, अल्पसेना के साथ कुमार स्कन्दगुप्त को मरने के लिये भेज दिया गया। स्थिति इतनी भयावह हो गई कि मुख्य सेना से दूर और पुष्यमित्रों के व्यूह में फंसे स्कन्दगुप्त को रातें जमीन पर बिना शय्या के बितानीं पड़ीं। पर अंततः स्कंदगुप्त की रणनीतिक मेधा व शौर्य के कारण
पुष्यमित्रों को समर्पण करना पड़ा।

पुष्यमित्रों पर विजय की खुशी ज्यादा देर नहीं टिकी। राजधानी से पिता की मरणांतक रुग्णावस्था और पश्चिमोत्तर पर हूणों के आक्रमण के समाचार एक साथ मिले।

राजधानी तक पहुंचते पहुंचते पिता की मृत्यु, अनुज पुरुगुप्त द्वारा सिंहासन पर अधिकार और
माता को कारागृह के नवीन समाचार भी मिल गए

राम और भारत के आदर्शों से प्रेरित स्कंदगुप्त का वैष्णव मन दुविधाग्रस्त था परंतु माता को कारागृह के समाचार ने मन को कठोर बना दिया। सेना, प्रजा और अमात्यवर्ग जे समर्थन व मांग पर अंततः कठोर निर्णय लेना पड़ा। राजधानी पहुंचकर सत्ता अपने
हाथों में ली, अपनी माता को बंदीगृह से मुक्त कराया, विमाता अनंतदेवी और उसके विलासी पुत्र पुरुगुप्त को उनके महलों में सीमित कर दिया और फिर सेना का आह्वान किया।

सेना की दशा आंतरिक कुचक्रों के कारण जर्जरित थी।

प्रजा हताश और निरुत्साहित थी।
परंतु वह तो पूर्वजों की वीर गाथाओं से प्रेरित था

युवकों का बलिदान हेतु आह्वान किया गया।

इस किशोर की वीरता और ओजस्वी नेतृत्व में पूरा राष्ट्र उठ खडा हुआ और स्कंदगुप्त भारत का, आर्यत्व का प्रतीक बन गया ...

युवक तो युवक, वृद्धों की धमनियों में भी आर्यरक्त उबलने लगा।
अब हर युवक स्कन्दगुप्त था।

हूणों के सामने पवित्र भगवा गरुडध्वज लहरा दिया गया और वह हूणों पर परांतक के समान टूट पड़ा।

हूणों को उनकी ही नृशंसता का स्वाद चखाया गया। भारत से खदेडते हुए पश्चिमोत्तर भारत में उन्हें निर्णायक रूप से बुरी तरह रौंद दिया गया।
स्कंदगुप्त की हूणों पर विजय इतनी पूर्ण थी और स्कन्दगुप्त नाम हूणों के लिए इतना डरावना बन गया कि उनके जीते जी तो दूर की बात उनकी मृत्यु के बाद भी 50 वर्षों तक वे भारत पर हमला करने की हिम्मत ना जुटा सके।

यह भारत का दुर्भाग्य था कि अज्ञात कारणों से भारत के इस कौमारव्रती सम्राट
की मात्र बत्तीस वर्ष की अल्पायु में मृत्यु हो गई और सत्ता आई पुनः विलासी पुरुगुप्त के हाथों में जिसने गुप्त साम्राज्य के साथ साथ भारतीय सैन्यशक्ति के पतन के रास्ते खोले और इसके साथ ही भारत पर हूणों के पुनः आक्रमण प्रारम्भ हो गये।

परंतु मरकर भी स्कंदगुप्त का नाम भारत की सेवा
कर रहा था। जनता उन्हें तृतीय विक्रमादित्य मानकर पूजती थी और भारतीय उनकी स्मृति में, उनके नाम पर पुनः उठ खड़े हुए और एक लंबे संघर्ष के पश्चात इस पवित्र भूमि को अंततः हूणों से मुक्त करा ही लिया। अवशिष्ट हूण हिंदुत्व की धारा में विलीन हो गए।
परंतु स्कंदगुप्त व भारत का दुर्भाग्य देखिये।

- यूरोप ने अट्टिला से रोम को बचाने वाले अपने नायक फ्लेवियस इटियॉस को नहीं भुलाया।

- रूस ने तातारों से रूस को बचाने वाले नेव्हस्की को नहीं बिसराया।

परंतु कृतघ्न भारतीय बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों ने क्या किया?
उन्होंने इस किशोर महानायक, इस आधुनिक अभिमन्यु की शौर्य गाथा को भारतीय युवक युवतियों तक पहुंचने ही नहीं दिया उन्हें कभी जानने ही नहीं दिया गया कि 1500 साल पहले इस धरती पर एक ऐसा किशोर पैदा हुआ था जिसकी भुजाओं ने अपने खड्ग से उन बर्बर राक्षसों का संहार किया था जिनकी बर्बरता के
सामने शेष विश्व हार मान चुका था।

अगर स्कंदगुप्त जैसी सफलता किसी अन्य देश के सम्राट को मिली होती तो उसके नाम पर मूर्तियाँ , पदक , सम्मान , सडकों , स्मारकों की श्रंखला खडी की गयी होती पर क्या आपने कभी कोई स्मारक इस महायोद्धा के नाम पर देखा है ??????????????????
---------------
स्रोत:--

1-- भीतरी अभिलेख
2-- जूनागढ़ अभिलेख
3-- कथा सरित्सागर
4-- ऐरण अभिलेख
5-- मध्य एशिया: राहुल सांकृत्यायन
---------------------

अपने महानयोद्धाओं के सच्चे इतिहास को औरों तक भी पहुंचायें शेयर करें या कापी करें बस तथ्यों से लेख से छेड़छाड़ ना करें ।
---------हे मातृभूमि भारत तेरा वैभव अमर रहे--------

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22 Oct
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दरअसल अफगानिस्तान के लोग अपनी रोजमर्रा की खरीदी के लिए पाकिस्तान का वीजा लेते हैं
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.
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1. एक पैन में पानी गर्म होने के लिए रख दें.
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"महाराजा गंगा सिंह जी कलयुग के भागीरथ"
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16 Oct
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बीच में भागो और फिर से A B C D करते रहो...

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