भाग 3: Housing Development and Infrastructure Limited (HDIL) और Punjab & Maharashtra Co-operative Bank Limited (PMC)
महाराष्ट्र में झुग्गी बस्तियों यानि स्लम की समस्या काफी बड़ी है।
और असली समस्या इन झुग्गियों की नहीं है, असली समस्या ये है कि ये झुग्गी बस्तियां जिस जमीन पर बनी हुई हैं वो जमीन मुंबई की काफी प्राइम लोकेशन पे है जिस पर सरकार और पूंजीपतियों की नजर शुरू से रही है।
दोनों का ही मानना है कि ये झुग्गियां मुंबई की खूबसूरती पर धब्बा हैं इसलिए इनको हटा कर वहां आलीशान बंगले और मॉल बनने चाहिए। इसी उद्देश्य से 1995 में महाराष्ट्र सरकार ने नया कानून बनाया और "Slum Rehabilitation Authority" की स्थापना की।
मौके पर चौका मारते हुए दीवान फैमिली ने 1996 में HDIL की स्थापना कर दी। HDIL का काम था झुग्गियों को खाली करवा कर वहां से लोगों को शहर के बाहर बसाना, जमीन को साफ़ करवा कर वहाँ बड़े लोगों के लिए महँगी आलीशान बिल्डिंगें बनाना।
धंधा चल निकला और HDIL देश के बड़े रियल एस्टेट डेवेलपर्स में गिनी जाने लगी। 2007 में HDIL अपना IPO भी लेकर आयी थी। ये इस कंपनी के सुनहरे दिन थे। जैसे के मैंने पिछले भाग में बताया था, DHFL और HDIL एक ही परिवार की दो कंपनियां हैं।
HDIL के मालिक राकेश वाधवान DHFL के मौजूदा मालिकों के चाचा हैं। 2008 तक दोनों कंपनियों ने साथ ही काम किया था। अब खून का असर तो आएगा ही। HDIL के मालिकों को भी अय्याशी वाली लाइफस्टाइल का चस्का लग गया।
वही महंगे शौक, बॉलीवुड स्टार्स के साथ पार्टियां, गाड़ियां, यहाँ तक कि पर्सनल जेट भी। 2007 में स्लम रिडेवेलोप्मेन्ट के लिए मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड से डील की। जिसके लिए PMC बैंक (पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआपरेटिव बैंक) से फ्रॉड तरीके से 6,700 करोड़ का लोन उठाया।
लगभग उसी समय वैश्विक मंदी का दौर आया और मुंबई में रियल एस्टेट की मांग एकदम से घट गयी। ऊपर से एयरपोर्ट वाली डील भी कैंसिल हो गयी। लेकिन मालिकों की अय्याशी में कोई कमी नहीं आयी। नतीजा, कंपनी दिवालिया होने की कगार पर आ गयी।
2019 में बैंक ऑफ़ इंडिया के कहने पर NCLT ने HDIL की इन्सॉल्वेंसी की प्रोसेस चालू की। जांच के दौरान अनियमितताएं सामने आयीं तो मामला इकनोमिक ऑफेन्स विंग (EOW) के पास गया। फिर जो खुलासा हुआ वो चौंकाने वाला था।
PMC बैंक ने अपने पूरे लोन पोर्टफोलियो का 73% यानि साढ़े छह हजार करोड़ सिर्फ एक ही कंपनी यानी HDIL को ही दे रखा था। और इसे अंजाम दिया गया 44 फर्जी कंपनियों के जरिये। इन फर्जी कंपनियों के लगभग 21 हजार फर्जी अकाउंट खोले गए और उनके नाम पे लोन सैंक्शन किये गए।
इन सबके आखिरी तार HDIL से ही जुड़े हुए थे। HDIL के तारे पिछले दस साल से ही गर्दिश में चल रहे थे। इन्होने बहुत सारी बैंकों से उधर ले रखा था और उसे चुकाने के लिए इनके पास अपना खुद का पाला हुआ बैंक था। PMC से लोन लेकर बाकी बैंकों का पैसा चुकाया जा रहा था।
PMC में अधिकतर पैसा कच्ची बस्तियों में रहने वाले देश के विभाजन के दौरान भारत आये हुए पंजाबी शरणार्थियों और बाकी गरीब लोगों का था। HDIL और PMC के अधिकारियों ने मिल कर 2019 की दिवाली से एक महीने पहले उन गरीब लोगों की सारी जमापूंजी हड़प ली।
जाने कितने ही लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए। ज्यादातर तो पैसा वापिस आने कि उम्मीद छोड़ चुके हैं लेकिन कुछ को अभी भी चमत्कार की उम्मीद है। कोपरेटिव बैंकों में ये पहला घोटाला नहीं है।
Mahamedha Urban Cooperative Bank Noida, आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी जैसे और भी कई उदाहरण मौजूद हैं जो लोगों के जीवन भर की जमा पूँजी हजम कर चुके हैं। सरकार इसी साल कोआपरेटिव बैंकों को RBI के नीचे लेकर आयी है। देखते हैं कितना फरक पड़ता है।
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आज आते हैं कॉर्पोरेट्स के प्यारे, सरकार की आँखों के तारे, इन्वेस्टर्स के दुलारे यस बैंक पर। एक समय था जब यस बैंक सेविंग पर 7% ब्याज देता था (और SBI सिर्फ 4%) और डिपॉजिटर्स ख़ुशी ख़ुशी लाइन में लग कर अपना पैसा यस बैंक में जमा कराते थे।
पिछले दिनों उसी यस बैंक से पैसा निकालने के लिए वैश्विक महामारी के दौरान, भरी दोपहरी में लोगों की लम्बी लम्बी कतारें लगी थी। तो आइये जानते हैं यस बैंक की पूरी कहानी।
1999 में ABN Amro Bank के पूर्व कंट्री हेड श्री अशोक कपूर और Deutsche Bank के पूर्व कंट्री हेड श्री हरक्रीत सिंह ने एक नए बैंक की नींव रखने की योजना बनायीं। अशोक कपूर साहब के कहने पर ANZ Grindlays bank के पूर्व कॉर्पोरेट फाइनेंस हेड श्री राणा कपूर को भी इस योजना में शामिल किया।
मुंशी प्रेमचंद ने 'रंगभूमि' में लिखा है कि बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं मगर केवल संख्यात्मक रूप से। उनको हजार और लाख से संतुष्टि नहीं होती। उनको करोड़ बताओगे तो वे करोड़ के बाद वाली संख्या के बारे में पूछेंगे। और ये जिज्ञासा कभी ख़तम नहीं होती।
उनको अरब-खरब के बाद क्या आता है ये भी जानना है। अगर आपको नहीं पता तो किसी और से पूछेंगे। और तब तक पूछेंगे जब तक कि कोई उनको सच्ची झूठी खरब से बड़ी कोई नयी संख्या बता नहीं देता। उनको हर चीज को संख्या के पैमाने पर मापना होता है।
बाद में इस जानकारी के बारे में अपने दोस्तों के सामने डींगें भी हांकेंगे। जैसे कि कोई अगर बोलेगा कि उसके पापा के पास एक लाख रूपये हैं तो अगला तुरंत बोलेगा कि उसके पापा के पास तो एक करोड़ रूपये हैं। अगले के पापा के पास एक अरब निकलेंगे और उससे अगले के पास एक खरब।
DHFL का फ्रॉड अकेला नहीं है। इसके साथ PMC, HDIL के फ्रॉड भी जुड़े हैं (इनके बारे में कभी और बात करेंगे)। DHFL का केस समझने के लिए पहले हमें वाधवान फैमिली को समझना होगा।
मैं ज्यादा डिटेल में नहीं जाऊंगा। आप ये फोटो देखिये।
DHFL एक डिपॉजिट टेकिंग NBFC है। 1984 में शुरू हुई इस कंपनी का मुख्य उद्देश्य था लोअर और मिडिल क्लास हाउसिंग लोन देना। DHFL एक ज़माने में देश की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी हुआ करती थी।
तो जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है, यह थ्रेड बैंकों में उच्च प्रबंधन द्वारा फैलाये गए रायते पर आधारित है। किसी भी बैंक के NPA में अधिकतर भाग कॉर्पोरेट NPA का ही होता है जो कि उच्चाधिकारियों द्वारा ही स्वीकृत किये जाते हैं।
वहीँ दूसरी ओर निचले स्तर पचास हजार के लोन में भी स्टाफ की एकाउंटेबिलिटी बिठा दी जाती है। कैश में 50 रूपये शार्ट होने पर कस्टोडियन की जेब से भरवाने वाले उच्चाधिकारी कैसे हजारों करोड़ का लोन NPA करा के बैठ जाते हैं, ये उसी की कहानी है।
भाग 1: रूचि सोया (Ruchi Soya)
1972-73 में शुरू हुई इस कंपनी ने 2011 तक बहुत अच्छे दिन देखे। दुनिया की टॉप 200 उपभोक्ता उत्पाद कंपनियों में शामिल इस कंपनी का मार्केट वैल्यूएशन लगभग 36,000 करोड़ रूपये तक पहुँच गया था।
Two gruesome, horrendous, abhorrent incidents happened today. One in Vallabhgadh, another in Munger. Another happened few days ago in Hathras. These are the few which are fortunate enough to become national news.
There are hundreds which happen everyday, cruel enough to shake the conscience of the society, but not even reported. Every such incident, reported or not, create deep divides in the society, on various lines, caste, religion, gender, region, political ideology, language, race.
The society which is already going through transformation, is breaking apart by every such incident. Deep-seated feeling of discrimination is turning into open hatred. Never before, it was on such wide scale, permeating through every strata of the society.
आजकल पूंजीवाद का दौर है। यहां हर वस्तु और व्यक्ति का मूल्य होता है। यह मूल्य किसी भी रूप में हो सकता है। अभी कल परसों सौम्या जी ने अपनी कामवाली का जीरो बैलेंस खाता खुलवाया ट्विटर पर पोस्ट किया।
जीरो बैलेंस खाता फ्री में खुलता है मगर आजकल के पूंजीवाद के युग में फ्री का क्या काम। मैडम जी ने तुरंत केक मंगवा कर ट्विटर पे इस नेक काम का ढिंढोरा पीटा और फुटेज कमाई। डेमोक्रेसी राजनीती का पूंजीवाद है।
जैसे पूंजीवादी का एकमात्र उद्देश्य होता है मुनाफा, वैसे ही लोकतंत्र में नेता का एकमात्र उद्देश्य होता है वोट। जैसे पूंजीवाद हर चीज में अपना फायदा ढूंढ लेता है वैसे ही राजनेता भी वोट ढूंढने में माहिर होते हैं। कैसे भी मिले, कहीं से भी मिले, बस वोट मिले।