आज आते हैं कॉर्पोरेट्स के प्यारे, सरकार की आँखों के तारे, इन्वेस्टर्स के दुलारे यस बैंक पर। एक समय था जब यस बैंक सेविंग पर 7% ब्याज देता था (और SBI सिर्फ 4%) और डिपॉजिटर्स ख़ुशी ख़ुशी लाइन में लग कर अपना पैसा यस बैंक में जमा कराते थे।
पिछले दिनों उसी यस बैंक से पैसा निकालने के लिए वैश्विक महामारी के दौरान, भरी दोपहरी में लोगों की लम्बी लम्बी कतारें लगी थी। तो आइये जानते हैं यस बैंक की पूरी कहानी।
1999 में ABN Amro Bank के पूर्व कंट्री हेड श्री अशोक कपूर और Deutsche Bank के पूर्व कंट्री हेड श्री हरक्रीत सिंह ने एक नए बैंक की नींव रखने की योजना बनायीं। अशोक कपूर साहब के कहने पर ANZ Grindlays bank के पूर्व कॉर्पोरेट फाइनेंस हेड श्री राणा कपूर को भी इस योजना में शामिल किया।
ये वही Grindlays बैंक है जिसका नाम हर्षद मेहता घोटाले में भी आया था। इन तीनों ने मिल कर Rabo Bank of the Netherlands की 75% हिस्सेदारी के साथ 2003 में यस बैंक की स्थापना की जिसे 2004 में बैंकिंग लाइसेंस भी मिल गया। 2005 में इनका IPO लांच हुआ।
2003 में ही हरक्रीत सिंह Rabo Bank के साथ विवादों के चलते इस साझेदारी से अलग हो गए। खैर, बाकी सब बढ़िया चल रहा था। अशोक कपूर और राणा कपूर अच्छे मित्र भी थे जो बाद में रिश्तेदार भी बन गए। अशोक कपूर ने अपनी बहन की शादी राणा कपूर से की थी।
लेकिन 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में आतंकवादियों ने ट्राइडेंट होटल में अशोक कपूर की हत्या कर दी। तब से ही यस बैंक विवादों में घिर गया। राणा कपूर ने यस बैंक पर अपना एकाधिकार जमा लिया।
पहले तो स्वर्गीय अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर का नाम यस बैंक के मेजर प्रमोटर्स की लिस्ट में से हटाया गया, बावजूद इसके कि मधु कपूर के पास राणा कपूर से ज्यादा हिस्सेदारी थी।
यहां तक की 2012 में यस बैंक की हिस्ट्री छापी गयी जिसमें स्वर्गीय अशोक कपूर (जिनके कहने पर राणा कपूर को यस बैंक में जगह दी गयी थी) का नाम तक नहीं था। जो कि मधु कपूर को पसंद नहीं आया।
उन्होंने अपनी बेटी शगुन कपूर को यस बैंक के बोर्ड में जगह देने की मांग की जिसको राणा कपूर ने दो बार ठुकराया। मधु कपूर इस मुद्दे को लेकर हाई कोर्ट गयी।
लेकिन चूंकि RBI के अनुसार यस बैंक कोई फैमिली जायदाद नहीं है इसलिए इस आधार पर मधु कपूर या शगुन कपूर को यस बैंक के बोर्ड में जगह नहीं दी जा सकती। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने राणा कपूर के साथ संयुक्त रूप से उनके बोर्ड में डायरेक्टर नियुक्त करने के अधिकार को मान लिया।
लेकिन यहां सिर्फ पारिवारिक अधिकार का मुद्दा ही ख़तम हुआ।
असली समस्या राणा कपूर की कार्यशैली को लेकर थी।
राणा कपूर ने यस Bank को अपनी निजी संपत्ति मान कर चलाया।
यस बैंक के एडवांस एसेट्स 2009 में 12 हजार करोड़ से बढ़ कर 2014 में 55,633 करोड़ और सितम्बर 2019 में चार गुना से भी अधिक बढ़ कर सवा दो लाख करोड़ पर पहुँच गए। इतनी जबरदस्त ग्रोथ के वजह से यस बैंक इन्वेस्टर्स की पहली पसंद बन गया।
2009 में 9 रूपये का शेयर 2018 में 400 रूपये तक पहुँच गया। लेकिन ये ग्रोथ अपने आप में एक समस्या थी। यस बैंक ने ज्यादातर लोन लड़खड़ाती हुई कंपनियों को दिए थे।
इन में शामिल हैं Anil Ambani Group of Companies, the Essel Group, the Dewan Housing Finance Corporation Ltd (DHFL) और Infrastructure Leasing and Financial Services (IL&FS).
मजे की बात ये हैं कि Essel को छोड़ कर ये सारी ही कंपनियां आज NCLT में दिवालिया होने के लिए खड़ी हैं। कंपनियों की खराब हालत जानते हुए भी राणा कपूर ने इनके लिए अपनी तिजोरी खोल रखी थी। बदले में कपूर साहब को बढ़िया कमीशन भी मिला।
CBI की चार्जशीट के अनुसार यस बैंक ने DHFL को 3,700 करोड़ का लोन दिया जिसके लिए राणा कपूर को 600 करोड़ मिले। बताया जाता है कि राणा कपूर ने अपनी तीनों बेटियों के नाम पर अच्छी खासी प्रॉपर्टी बना रखी है। राणा कपूर के राजनीतिक कनेक्शन भी अच्छे थे।
जब ED ने फ्रॉड के केस में राणा कपूर और उनके परिवार की संपत्ति अटैच की थी तो उसमें सेलिब्रिटी पेंटर MF हुसैन द्वारा बनायीं हुई राजीव गाँधी की एक पेंटिंग भी थी जिसे राणा कपूर ने प्रियंका गाँधी से 2 करोड़ में खरीदा था।
यस बैंक की घटिया एसेट क्वालिटी को 2015 में ही विश्व की बड़ी वित्तीय एजेंसी UBS ने उजागर किया था परन्तु यस बैंक ने 2017 में UBS को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। यस बैंक ने अपने कारनामे छुपाने की हरसंभव कोशिस की लेकिन 2018 में IL&FS के बर्बाद होने के साथ ही यस बैंक की हवा निकलने लगी।
इन्वेस्टर्स और डिपॉजिटर्स को सच्चाई पता लगते ही पैसे की निकासी शुरू हो गई।
2018 में जाके RBI की नींद खुली और जनवरी 2019 में राणा कपूर को हटा कर रवनीत गिल को यस बैंक की कमान सँभालने को कहा। लेकिन इस समय तक यस बैंक की हालत इतनी खराब हो गयी कि इसके लिए पैसा जुटाना मुश्किल हो गया।
ना तो डिपॉजिटर्स आ रहे थे ना ही इन्वेस्टर्स। मई 2019 में यस बैंक ने अपना इतिहास का पहला त्रैमासिक घाटा घोषित किया और उसी दिन यस बैंक का शेयर 29% गिरा। यस बैंक की स्थिति इतनी खराब हो गयी कि CEO रवनीत गिल भी उसको संभाल नहीं पाए।
बोर्ड मेम्बर्स और नए CEO में आपसी विवाद गहराने लगे। लगातार बढ़ते NPA, और सामने आते फ्रॉड्स को देखते हुए RBI ने 5 मार्च 2020 को गिल और बाकी बोर्ड को हटा कर यस बैंक का पूरा कण्ट्रोल अपने हाथों में ले लिया। साथ ही यस बैंक से पैसा निकलने पर बंदिशें लगा दी।
यह खबर फैलते ही डूबते बैंक से पैसा निकलने के लिए महामारी के बीच लोगों का हुजूम टूट पड़ा। अप्रैल में RBI ने डूबती नाव को बचाने के लिए SBI को बुलाया। आज्ञाकारी बच्चे की तरह SBI ने 2,500 करोड़ रूपये में यस बैंक की 49% हिस्सेदारी खरीद ली।
आज हालत ये हैं कि यस बैंक के मालिक और कस्टमर (DHFL वाले) दोनों ही जेल में हैं। यस बैंक का शेयर 12 रूपये का है। इन्वेस्टर्स का पैसा डूब चुका है। डिपॉजिटर्स का भरोसा टूट चूका है।
और देश के सबसे भरोसेमंद बैंक जिसने यस बैंक के डिपॉजिटर्स का पैसा बचाया, उस SBI पर अभी भी लंच टाइम वाले जोक बनाये जा रहे हैं। यहां देखने वाली बात ये है कि राणा कपूर ने यस बैंक का इस्तेमाल अपनी दोस्ती निभाने में, धोखे से पैसा कमाने में, राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने में किया।
ICICI और वीडियोकॉन वाले केस में भी चंदा कोचर ने कुछ ऐसा ही किया था। सरकार और RBI की नींद तब खुलती है जब सब लुट चुका होता है। 1934 के लक्ष्मी विलास बैंक को डूबने से बचाने के लिए PNB का सहारा लिया जा रहा है। ये सब होने के बावजूद सरकार आज भी सरकारी बैंकों को बेचने पर तुली हुई है।
डिस्क्लेमर: यहाँ दी गयी समस्त जानकारी और तथ्य, न्यूज़ आर्टिकल्स से उठाये गए हैं। सम्बंधित पार्टी से संपर्क कर किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं की गयी है।
भाग 3: Housing Development and Infrastructure Limited (HDIL) और Punjab & Maharashtra Co-operative Bank Limited (PMC)
महाराष्ट्र में झुग्गी बस्तियों यानि स्लम की समस्या काफी बड़ी है।
और असली समस्या इन झुग्गियों की नहीं है, असली समस्या ये है कि ये झुग्गी बस्तियां जिस जमीन पर बनी हुई हैं वो जमीन मुंबई की काफी प्राइम लोकेशन पे है जिस पर सरकार और पूंजीपतियों की नजर शुरू से रही है।
दोनों का ही मानना है कि ये झुग्गियां मुंबई की खूबसूरती पर धब्बा हैं इसलिए इनको हटा कर वहां आलीशान बंगले और मॉल बनने चाहिए। इसी उद्देश्य से 1995 में महाराष्ट्र सरकार ने नया कानून बनाया और "Slum Rehabilitation Authority" की स्थापना की।
मुंशी प्रेमचंद ने 'रंगभूमि' में लिखा है कि बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं मगर केवल संख्यात्मक रूप से। उनको हजार और लाख से संतुष्टि नहीं होती। उनको करोड़ बताओगे तो वे करोड़ के बाद वाली संख्या के बारे में पूछेंगे। और ये जिज्ञासा कभी ख़तम नहीं होती।
उनको अरब-खरब के बाद क्या आता है ये भी जानना है। अगर आपको नहीं पता तो किसी और से पूछेंगे। और तब तक पूछेंगे जब तक कि कोई उनको सच्ची झूठी खरब से बड़ी कोई नयी संख्या बता नहीं देता। उनको हर चीज को संख्या के पैमाने पर मापना होता है।
बाद में इस जानकारी के बारे में अपने दोस्तों के सामने डींगें भी हांकेंगे। जैसे कि कोई अगर बोलेगा कि उसके पापा के पास एक लाख रूपये हैं तो अगला तुरंत बोलेगा कि उसके पापा के पास तो एक करोड़ रूपये हैं। अगले के पापा के पास एक अरब निकलेंगे और उससे अगले के पास एक खरब।
DHFL का फ्रॉड अकेला नहीं है। इसके साथ PMC, HDIL के फ्रॉड भी जुड़े हैं (इनके बारे में कभी और बात करेंगे)। DHFL का केस समझने के लिए पहले हमें वाधवान फैमिली को समझना होगा।
मैं ज्यादा डिटेल में नहीं जाऊंगा। आप ये फोटो देखिये।
DHFL एक डिपॉजिट टेकिंग NBFC है। 1984 में शुरू हुई इस कंपनी का मुख्य उद्देश्य था लोअर और मिडिल क्लास हाउसिंग लोन देना। DHFL एक ज़माने में देश की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी हुआ करती थी।
तो जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है, यह थ्रेड बैंकों में उच्च प्रबंधन द्वारा फैलाये गए रायते पर आधारित है। किसी भी बैंक के NPA में अधिकतर भाग कॉर्पोरेट NPA का ही होता है जो कि उच्चाधिकारियों द्वारा ही स्वीकृत किये जाते हैं।
वहीँ दूसरी ओर निचले स्तर पचास हजार के लोन में भी स्टाफ की एकाउंटेबिलिटी बिठा दी जाती है। कैश में 50 रूपये शार्ट होने पर कस्टोडियन की जेब से भरवाने वाले उच्चाधिकारी कैसे हजारों करोड़ का लोन NPA करा के बैठ जाते हैं, ये उसी की कहानी है।
भाग 1: रूचि सोया (Ruchi Soya)
1972-73 में शुरू हुई इस कंपनी ने 2011 तक बहुत अच्छे दिन देखे। दुनिया की टॉप 200 उपभोक्ता उत्पाद कंपनियों में शामिल इस कंपनी का मार्केट वैल्यूएशन लगभग 36,000 करोड़ रूपये तक पहुँच गया था।
Two gruesome, horrendous, abhorrent incidents happened today. One in Vallabhgadh, another in Munger. Another happened few days ago in Hathras. These are the few which are fortunate enough to become national news.
There are hundreds which happen everyday, cruel enough to shake the conscience of the society, but not even reported. Every such incident, reported or not, create deep divides in the society, on various lines, caste, religion, gender, region, political ideology, language, race.
The society which is already going through transformation, is breaking apart by every such incident. Deep-seated feeling of discrimination is turning into open hatred. Never before, it was on such wide scale, permeating through every strata of the society.
आजकल पूंजीवाद का दौर है। यहां हर वस्तु और व्यक्ति का मूल्य होता है। यह मूल्य किसी भी रूप में हो सकता है। अभी कल परसों सौम्या जी ने अपनी कामवाली का जीरो बैलेंस खाता खुलवाया ट्विटर पर पोस्ट किया।
जीरो बैलेंस खाता फ्री में खुलता है मगर आजकल के पूंजीवाद के युग में फ्री का क्या काम। मैडम जी ने तुरंत केक मंगवा कर ट्विटर पे इस नेक काम का ढिंढोरा पीटा और फुटेज कमाई। डेमोक्रेसी राजनीती का पूंजीवाद है।
जैसे पूंजीवादी का एकमात्र उद्देश्य होता है मुनाफा, वैसे ही लोकतंत्र में नेता का एकमात्र उद्देश्य होता है वोट। जैसे पूंजीवाद हर चीज में अपना फायदा ढूंढ लेता है वैसे ही राजनेता भी वोट ढूंढने में माहिर होते हैं। कैसे भी मिले, कहीं से भी मिले, बस वोट मिले।