चूंकि ICICI बड़ा बैंक है इसलिए इसकी कहानी भी काफी बड़ी है। इसे एक भाग में समेटना मुश्किल हो गया था। इसलिए इसे दो भागों में पेश कर रहा हूँ।
ICICI की गिनती देश के सबसे बड़े बैंकों में होती है। इस बैंक की सफलता को एक आदर्श के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता रहा है। 1994 में स्थापित हुए इस बैंक को 2001 के बाद लगभग हर साल ही भारत के बेस्ट रिटेल बैंक का अवार्ड मिलता आ रहा है।
देश में 1998 में ही इंटरनेट बैंकिंग लाने वाले इस बैंक को टेक्नोलॉजी से लेकर कस्टमर सर्विस में कई अवार्ड मिले हैं। विशेषकर जब चंदा कोचर इसकी CEO थीं तब तो ICICI महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन चुका था।
चंदा कोचर 2009 में फ़ोर्ब्स की विश्व की सबसे ताकतवर महिलाओं में बीसवें स्थान पर थीं, भारत में सोनिया गांधी की बाद दूसरे नंबर पर। 2011 में पदम् भूषण पाने वाली चंदा कोचर के साथ ऐसा क्या हुआ की 2019 में उनसे वही पद्म पुरस्कार छीनने की बातें होने लगी।
तो शुरू करते हैं ICICI बैंक की कहानी का दूसरा पहलू।
ICICI बैंक पर सरकार, पूंजीपतियों, रेटिंग और अवार्ड एजेंसियों, investors का कितना ही भरोसा क्यों ना हो, लेकिन जहां भारतीय जनता की बात आती है वहाँ भरोसे के मापदंड अलग ही होते हैं।
2003 में एक छोटी सी अफवाह ने लोगों को रात रात भर बैंक के बाहर खड़ा करवा दिया। सारा मार्किट कैपिटल, सारे अवार्ड्स धरे के धरे रह गए जब लोगों ने लिक्विडिटी क्राइसिस की अफवाह के चलते ICICI बैंक से पैसा निकलना शुरू किया।
ऐसा ही नजारा दोबारा 2008 में देखने को मिला। और इस बार तो अफवाह भी नहीं उडी थी। ICICI बैंक देश का एकमात्र बैंक था जो 2008 की मंदी का शिकार हुआ था। और इसका कारण थी बैंक की अंतर्राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा।
वैसे तो भारत के सभी बड़े बैंकों की उपस्थिति अंतर्राष्ट्रीय बाजार में है मगर ICICI बैंक का बिज़नेस इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा तक काफी फैला हुआ था। उस मंदी में ICICI को अपने विदेशी बिज़नेस में काफी घाटा हुआ था।
2008 में जो 130 साल पुराना लेहमन बैंक बर्बाद हुआ था उसमें ICICI बैंक का 80 मिलियन डॉलर का निवेश था। इनफ़ोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने जो कि एक समय में ICICI बैंक के बोर्ड मेंबर भी रहे थे, अपना एक हजार करोड़ रुपया ICICI से निकाल कर SBI में डाल दिया। economictimes.indiatimes.com/industry/banki…
जैसे ही ये खबर बाहर निकली, लोगों में हड़कंप मच गया। ICICI बैंक की ब्रांचों और ATM के बाहर भीड़ लग गई। सरकार और RBI के आश्वासन फिर से बेकार साबित हुए।
2007 से ही ICICI बैंक के ऊपर लोन रिकवरी में अमानवीय तरीकों के उपयोग के आरोप भी लग रहे थे। एक रिपोर्ट के अनुसार तो बैंक के रिकवरी एजेंट्स ने रिकवरी के लिए घर की सारी चीजों के साथ साथ परिवार के सदस्यों को बेचने तक की धमकी दे डाली।
रिकवरी एजेंट्स की धमकियों के चलते कई लोगों ने आत्महत्या तक कर ली। बैंक को इसके लिए RBI से चेतावनी भी मिली थी और कोर्ट में हर्जाना भी भरना पड़ा था। economictimes.indiatimes.com/industry/banki…
2009 में बैंक की बागडोर चंदा कोचर के हाथ में आ गयी जिसके बाद ICICI बैंक का नया चैप्टर शुरू हुआ। बैंक ने कॉर्पोरेट के बजाय खुदरा व्यापार की ओर ध्यान देना शुरू किया। वीडियोकॉन वाले किस्से की शुरुआत भी यहीं से होती है। लेकिन उससे पहले एक दूसरी कहानी पर आते हैं।
अप्रैल 2013 में कोबरापोस्ट नामक ऑनलाइन मैगज़ीन ने "ऑपरेशन रेड स्पाइडर" के नाम से एक स्टिंग ऑपरेशन किया। जिसमें देश के तीनों प्रमुख प्राइवेट बैंकों के बड़े अधिकारी लपेटे में आ गए। ये तीन बैंक थे HDFC, ICICI और AXIS बैंक।
इस ऑपरेशन में प्राइवेट बैंक के अधिकारी Income Tax Act, FEMA, RBI regulations, KYC norms, the Banking Act और Prevention of Money laundering Act (PMLA) की धज्जियाँ उड़ाते हुए दिखे। बिना किसी जोर जबरदस्ती या बाहरी दबाव के काले धन को सफ़ेद करने के लिए प्राइवेट बैंक पूरी तरह तैयार थे।
और ये सुविधा ना केवल सबके लिए उपलब्ध थी बल्कि इसके लिए स्टैण्डर्ड प्रोडक्ट भी डिज़ाइन किये गए थे। पूरी जानकारी कोबरापोस्ट की वेबसाइट पे दी गयी है। बाकी की कहानी अगले भाग में।
डिस्क्लेमर: यहाँ दीगयी समस्त जानकारी और तथ्य, न्यूज़ आर्टिकल्स से उठाये गए हैं। सम्बंधित पार्टी से संपर्क कर किसी तथ्य की पुष्टि नहीं की गयी है। मेरा उद्देश्य किसी प्रकार का डर फैलाना या किसी बैंक या व्यक्ति की छवि को ठेस पहुँचाना नहींहैं। यहां दीगयी जानकारी केवल ज्ञान के लिए है।
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अब आते हैं बड़ी कहानी यानि वीडियोकॉन वाले केस पर। चंदा कोचर 1984 में ICICI से मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर जुड़ीं। 1994 में ICICI बैंक की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
वहाँ से तरक्की करते हुए वे 2006 में ICICI बैंक की DMD और 2009 में CEO बनी। दिसंबर 2008 में चंदा कोचर के पति श्री दीपक कोचर और वीडियोकॉन के मालिक श्री वेणुगोपाल धूत ने मिलकर NuPower Renewables Pvt Ltd (NRPL) नाम की कंपनी बनाई।
जनवरी 2009 में धूत ने NRPL में अपनी पूरी हिस्सेदारी दीपक कोचर को मात्र ढाई लाख में बेच दी। इस कंपनी को धूत की सुप्रीम एनर्जी नाम की कंपनी ने मार्च 2010 में 64 करोड़ का लोन दिया। मार्च 2010 के अंत में सुप्रीम एनर्जी ने NRPL में 95% हिस्सेदारी खरीद ली। indianexpress.com/article/busine…
भारतीय संस्कृति में अंधभक्ति वर्जित है। हमारे सभी धर्मशास्त्र, उपनिषद, वेद पुराण, स्मृतियों में ज्यादातर व्याख्या प्रश्नोत्तर रूप में ही की गयी है। लक्ष्मीजी ने विष्णुजी से, पार्वती ने शिव से, अर्जुन ने कृष्ण से हजारों सवाल पूछे। नचिकेता ने तो यमराज तक से सवाल पूछे थे।
उपनिषद का मतलब ही होता है कि गुरु के पास बैठना। अब पास बैठोगे तो सवाल भी पूछोगे ही। परन्तु आजकल जो वर्क कल्चर चल रहा है उसमें सवाल पूछना वर्जित है। आपको आँख बंद करके ऊपर वालों का हर आदेश मानना है। यही हाल यूनियन के साथ भी है।
हर महीने फीस काट ली जाती है मगर ये कभी नहीं पता चलता कि वो पैसा गया कहाँ? हमें ये भी नहीं पता कि यूनियन वाले करते क्या हैं। वेज सेटलमेंट हो गया लेकिन अभी तक किसी ने ये नहीं बताया कि हमारी प्रमुख मांगें क्यों नहीं मानी गयी।
महाभारत से एक बड़ी सीख ये मिलती है कि घर के मुद्दे अगर घर में ही निपटा लिए जाएँ तो बेहतर हैं। नहीं तो बाहर वाले उन मुद्दों कि आड़ में अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते हैं।
शकुनि को भीष्म और हस्तिनापुर से बदला लेना था इसलिए उसने दुर्योधन को भड़काया। द्रोणाचार्य और द्रुपद ने आपस का हिसाब सेटल करने के लिए कौरव और पांडवों का साथ दिया। कर्ण और एकलव्य दोनों को अर्जुन से पर्सनल खुन्नस निकालनी थी।
यदुवंशी भी अपने अपने स्वार्थ के हिसाब से अपने अपने पसंदीदा पक्षों में बंट गए। ऐसा ही एक महाभारत बैंकों के वेज सेटलमेंट में भी होता है। यहां भी पारिवारिक लड़ाई में बाहर के लोग घुसे हुए हैं। यहां दो पक्ष हैं, बैंकर और मैनेजमेंट।
आज आते हैं कॉर्पोरेट्स के प्यारे, सरकार की आँखों के तारे, इन्वेस्टर्स के दुलारे यस बैंक पर। एक समय था जब यस बैंक सेविंग पर 7% ब्याज देता था (और SBI सिर्फ 4%) और डिपॉजिटर्स ख़ुशी ख़ुशी लाइन में लग कर अपना पैसा यस बैंक में जमा कराते थे।
पिछले दिनों उसी यस बैंक से पैसा निकालने के लिए वैश्विक महामारी के दौरान, भरी दोपहरी में लोगों की लम्बी लम्बी कतारें लगी थी। तो आइये जानते हैं यस बैंक की पूरी कहानी।
1999 में ABN Amro Bank के पूर्व कंट्री हेड श्री अशोक कपूर और Deutsche Bank के पूर्व कंट्री हेड श्री हरक्रीत सिंह ने एक नए बैंक की नींव रखने की योजना बनायीं। अशोक कपूर साहब के कहने पर ANZ Grindlays bank के पूर्व कॉर्पोरेट फाइनेंस हेड श्री राणा कपूर को भी इस योजना में शामिल किया।
भाग 3: Housing Development and Infrastructure Limited (HDIL) और Punjab & Maharashtra Co-operative Bank Limited (PMC)
महाराष्ट्र में झुग्गी बस्तियों यानि स्लम की समस्या काफी बड़ी है।
और असली समस्या इन झुग्गियों की नहीं है, असली समस्या ये है कि ये झुग्गी बस्तियां जिस जमीन पर बनी हुई हैं वो जमीन मुंबई की काफी प्राइम लोकेशन पे है जिस पर सरकार और पूंजीपतियों की नजर शुरू से रही है।
दोनों का ही मानना है कि ये झुग्गियां मुंबई की खूबसूरती पर धब्बा हैं इसलिए इनको हटा कर वहां आलीशान बंगले और मॉल बनने चाहिए। इसी उद्देश्य से 1995 में महाराष्ट्र सरकार ने नया कानून बनाया और "Slum Rehabilitation Authority" की स्थापना की।
मुंशी प्रेमचंद ने 'रंगभूमि' में लिखा है कि बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं मगर केवल संख्यात्मक रूप से। उनको हजार और लाख से संतुष्टि नहीं होती। उनको करोड़ बताओगे तो वे करोड़ के बाद वाली संख्या के बारे में पूछेंगे। और ये जिज्ञासा कभी ख़तम नहीं होती।
उनको अरब-खरब के बाद क्या आता है ये भी जानना है। अगर आपको नहीं पता तो किसी और से पूछेंगे। और तब तक पूछेंगे जब तक कि कोई उनको सच्ची झूठी खरब से बड़ी कोई नयी संख्या बता नहीं देता। उनको हर चीज को संख्या के पैमाने पर मापना होता है।
बाद में इस जानकारी के बारे में अपने दोस्तों के सामने डींगें भी हांकेंगे। जैसे कि कोई अगर बोलेगा कि उसके पापा के पास एक लाख रूपये हैं तो अगला तुरंत बोलेगा कि उसके पापा के पास तो एक करोड़ रूपये हैं। अगले के पापा के पास एक अरब निकलेंगे और उससे अगले के पास एक खरब।