अब आते हैं बड़ी कहानी यानि वीडियोकॉन वाले केस पर। चंदा कोचर 1984 में ICICI से मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर जुड़ीं। 1994 में ICICI बैंक की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
वहाँ से तरक्की करते हुए वे 2006 में ICICI बैंक की DMD और 2009 में CEO बनी। दिसंबर 2008 में चंदा कोचर के पति श्री दीपक कोचर और वीडियोकॉन के मालिक श्री वेणुगोपाल धूत ने मिलकर NuPower Renewables Pvt Ltd (NRPL) नाम की कंपनी बनाई।
जनवरी 2009 में धूत ने NRPL में अपनी पूरी हिस्सेदारी दीपक कोचर को मात्र ढाई लाख में बेच दी। इस कंपनी को धूत की सुप्रीम एनर्जी नाम की कंपनी ने मार्च 2010 में 64 करोड़ का लोन दिया। मार्च 2010 के अंत में सुप्रीम एनर्जी ने NRPL में 95% हिस्सेदारी खरीद ली। indianexpress.com/article/busine…
नवंबर 2010 में धूत ने सुप्रीम एनर्जी की पूरी हिस्सेदारी अपने एक सहयोगी को ट्रांसफर कर दी। 2012 में एक कंसोर्टियम द्वारा वीडियोकॉन को चालीस हजार करोड़ रूपये का लोन दिया गया जिसमें ICICI की हिस्सेदारी 3250 करोड़ की थी।
इसके छह महीने बाद ही वीडियोकॉन की सुप्रीम एनर्जी को दीपक कोचर के पिनाकल एनर्जी नाम के ट्रस्ट ने मात्र नौ लाख रूपये में खरीद लिया। मतलब वीडियोकॉन की एक सहायक कंपनी ने 64 करोड़ कोचर साहब की कंपनी को दिए जिसके बदले में 3250 करोड़ का लोन वीडियोकॉन को दिया गया। firstpost.com/business/video…
फिर वीडियोकॉन की सहायक कंपनी को औने-पौने दामों पर कोचर साहब ने खरीद लिया। अगर सीधे शब्दों में कहें तो 3250 करोड़ के लोन के बदले कोचर साहब को 64 करोड़ मिले।
मजे की बात ये की उन 3250 करोड़ में से 2850 करोड़ NPA हो चुका है और NRPL (जिसको धूत साहब से 64 करोड़ का लोन मिला था) पिछले छह सालों से 78 करोड़ के घाटे में चल रही है। वैसे तो वीडियोकॉन को कंसोर्टियम के जरिये चालीस हजार करोड़ का लोन मिला था। लेकिन गड़बड़ी की खबर ICICI से आयी।
वीडियोकॉन वाले किस्से की आंच चंदा कोचर जी के घर तक भी पहुंची। बताया जाता है कि कोचर जी का घर भी Credential Finance Ltd से खरीदा गया है जिसके मालिक खुद श्री दीपक कोचर और उनके भाई राजीव कोचर हैं। Credential Finance Ltd के वीडियोकॉन से तथाकथित सम्बन्ध हैं।
2011-12 में NRPL में मॉरिशस बेस्ड कनोडिया फैमिली ने 325 करोड़ का निवेश किया। कनोडिया फैमिली के निशांत कनोडिया एस्सार ग्रुप के रवि रुइया के दामाद हैं।
ICICI ने उस दौरान एस्सार ग्रुप के US और UK में दो प्रोजेक्ट फाइनेंस किये थे जोकि अब दिवालिया हो चुके हैं, और एस्सार खुद लोन डिफ़ॉल्ट से जूझ रही है। बाद में कनोडिया फैमिली ने अपनी पूरी हिस्सेदारी मॉरिशस की एक अन्य कंपनी DH Renewables को बेच दी।
DH Renewables केमन आइलैंड की Accion Diversified Strategies Fund की सहायक कंपनी है। देखने वाली बात ये है कि कनोडिया फैमिली ने इस डील में किसी तरह का कोई मुनाफा नहीं कमाया।
बाद में Accion Diversified Strategies Fund ने NRPL में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा कर 55% कर ली जिसकी कुल कीमत 453 करोड़ है। CBI और आयकर विभाग अभी तक Accion Diversified Strategies Fund के फंड्स का स्रोत पता नहीं लगा पाए हैं।
न्यूज़ रिपोर्ट्स के अनुसार यह पैसा एस्सार ग्रुप से ही आया है। अगर सीधे अर्थों में समझें तो एस्सार ग्रुप को ICICI बैंक से जो लोन मिला उसके बदले में कोचर साहब की कंपनी को 453 करोड़ मिले।
ICICI बैंक ने वीडियोकॉन के साथ ही JP एसोसिएट्स, JP पावर, सुजलॉन और GTL इंफ़्रा जैसी कंपनियों को भी लोन दिए जोकि डूब गए। यहां गौर करने वाली बात ये है की इन सभी कंपनियों ने लोन रिस्ट्रक्चरिंग के लिए अविस्ता एडवाइजरी ग्रुप की सेवाएं ली जिसके बदले में अविस्ता को काफी पैसा मिला।
और अविस्ता ग्रुप के मालिक हैं श्री राजीव कोचर, चंदा कोचर जी के देवर। चूंकि मामला पारिवारिक था इसलिए बैंक के बोर्ड को इस बात की कोई जानकारी नहीं दी गयी।
जब मामला खुल गया तो तो कहा गया कि देवर को परिवार का हिस्सा नहीं माना जा सकता इसलिए बोर्ड को बताने की कोई जरूरत नहीं थी। जब मामला CBI के पास आया तो ICICI ने अविस्ता से किसी भी प्रकार के किसी भी रिश्ते से साफ़ इंकार कर दिया।
यह भी सामने आया है कि ICICI ने आठ सालों तक 300 करोड़ के NPA छुपाये जिससे प्रोविजनिंग भी बचाया गया और बैंक की बैलेंस शीट में 130 करोड़ का अतिरिक्त मुनाफा भी दर्शाया गया।
2016 में अरविन्द गुप्ता नाम के विस्सल ब्लोअर ने ICICI में हो रही इन सभी गड़बड़ियों के बारे में अपने एक ब्लॉग में खुलासा किया था। उन्होंने RBI तथा PMO को भी चिट्ठी लिख कर इस मामले की जानकारी दी थी।
बाद में जब एक अख़बार ने इस बारे में लिखना शुरू किया तब जाकर सर्कार की नींद खुली। मुद्दे की पूरी जांच के लिए जस्टिस BN श्रीकृष्णा आयोग बनाया गया जिसने चंदा कोचर को दोषी पाया।
अभी दो दिन पहले ही ED के PMLA मामलों के न्यायिक प्राधिकरण (Adjucating Authority) ने CBI द्वारा की गयी FIR और जांच में कमी को आधार बनाते हुए चंदा कोचर को क्लीन चिट दे दी है। माना जा रहा है कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि वीडियोकॉन को IBC में मदद मिल सके। business-standard.com/article/compan…
कुलमिला कर बात इतनी है कि लोन के बदले कमीशन, काले से सफ़ेद, मनी लॉन्डरिंग वगैरह बैंकों में काफी आम हैं। बैंक मालिकों और अधिकारियों, पूंजीपतियों और डिफॉल्टरों, नेताओं और सरकारी अधिकारियों, वित्तीय एजेंसियों का एक पूरा नेटवर्क है जो इस काम में लगा हुआ है।
सरकार और RBI को न केवल इसकी पूरी जानकारी रहती है बल्कि रसूख वाले लोग इसका उपयोग अपने स्वार्थ के लिए भी करते हैं। ये लोग केवल तभी जागते हैं जब पब्लिक का पैसा लुट चुका होता है और मामला पब्लिक के सामने आ जाता है। bloombergquint.com/business/ed-fi…
डिस्क्लेमर: इस मामले को काफी सरल भाषा में पेश करने कि कोशिश यहां की गयी है। इस वजह से कई डिटेल्स छोड़ दी गई हैं। यहां दी गयी जानकारी की सत्यता की पुष्टि नहीं की गयी है। यहाँ दी गयी समस्त जानकारी और तथ्य, न्यूज़ आर्टिकल्स से उठाये गए हैं।
सम्बंधित पार्टी से संपर्क कर किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं की गयी है। मेरा उद्देश्य किसी प्रकार का डर फैलाना या किसी बैंक या व्यक्ति की छवि को ठेस पहुँचाना नहीं हैं। यहां दी गयी जानकारी केवल ज्ञान के लिए है। अगर कुछ गलती हो तो क्षमा करें।
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चूंकि ICICI बड़ा बैंक है इसलिए इसकी कहानी भी काफी बड़ी है। इसे एक भाग में समेटना मुश्किल हो गया था। इसलिए इसे दो भागों में पेश कर रहा हूँ।
ICICI की गिनती देश के सबसे बड़े बैंकों में होती है। इस बैंक की सफलता को एक आदर्श के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता रहा है। 1994 में स्थापित हुए इस बैंक को 2001 के बाद लगभग हर साल ही भारत के बेस्ट रिटेल बैंक का अवार्ड मिलता आ रहा है।
देश में 1998 में ही इंटरनेट बैंकिंग लाने वाले इस बैंक को टेक्नोलॉजी से लेकर कस्टमर सर्विस में कई अवार्ड मिले हैं। विशेषकर जब चंदा कोचर इसकी CEO थीं तब तो ICICI महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन चुका था।
भारतीय संस्कृति में अंधभक्ति वर्जित है। हमारे सभी धर्मशास्त्र, उपनिषद, वेद पुराण, स्मृतियों में ज्यादातर व्याख्या प्रश्नोत्तर रूप में ही की गयी है। लक्ष्मीजी ने विष्णुजी से, पार्वती ने शिव से, अर्जुन ने कृष्ण से हजारों सवाल पूछे। नचिकेता ने तो यमराज तक से सवाल पूछे थे।
उपनिषद का मतलब ही होता है कि गुरु के पास बैठना। अब पास बैठोगे तो सवाल भी पूछोगे ही। परन्तु आजकल जो वर्क कल्चर चल रहा है उसमें सवाल पूछना वर्जित है। आपको आँख बंद करके ऊपर वालों का हर आदेश मानना है। यही हाल यूनियन के साथ भी है।
हर महीने फीस काट ली जाती है मगर ये कभी नहीं पता चलता कि वो पैसा गया कहाँ? हमें ये भी नहीं पता कि यूनियन वाले करते क्या हैं। वेज सेटलमेंट हो गया लेकिन अभी तक किसी ने ये नहीं बताया कि हमारी प्रमुख मांगें क्यों नहीं मानी गयी।
महाभारत से एक बड़ी सीख ये मिलती है कि घर के मुद्दे अगर घर में ही निपटा लिए जाएँ तो बेहतर हैं। नहीं तो बाहर वाले उन मुद्दों कि आड़ में अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते हैं।
शकुनि को भीष्म और हस्तिनापुर से बदला लेना था इसलिए उसने दुर्योधन को भड़काया। द्रोणाचार्य और द्रुपद ने आपस का हिसाब सेटल करने के लिए कौरव और पांडवों का साथ दिया। कर्ण और एकलव्य दोनों को अर्जुन से पर्सनल खुन्नस निकालनी थी।
यदुवंशी भी अपने अपने स्वार्थ के हिसाब से अपने अपने पसंदीदा पक्षों में बंट गए। ऐसा ही एक महाभारत बैंकों के वेज सेटलमेंट में भी होता है। यहां भी पारिवारिक लड़ाई में बाहर के लोग घुसे हुए हैं। यहां दो पक्ष हैं, बैंकर और मैनेजमेंट।
आज आते हैं कॉर्पोरेट्स के प्यारे, सरकार की आँखों के तारे, इन्वेस्टर्स के दुलारे यस बैंक पर। एक समय था जब यस बैंक सेविंग पर 7% ब्याज देता था (और SBI सिर्फ 4%) और डिपॉजिटर्स ख़ुशी ख़ुशी लाइन में लग कर अपना पैसा यस बैंक में जमा कराते थे।
पिछले दिनों उसी यस बैंक से पैसा निकालने के लिए वैश्विक महामारी के दौरान, भरी दोपहरी में लोगों की लम्बी लम्बी कतारें लगी थी। तो आइये जानते हैं यस बैंक की पूरी कहानी।
1999 में ABN Amro Bank के पूर्व कंट्री हेड श्री अशोक कपूर और Deutsche Bank के पूर्व कंट्री हेड श्री हरक्रीत सिंह ने एक नए बैंक की नींव रखने की योजना बनायीं। अशोक कपूर साहब के कहने पर ANZ Grindlays bank के पूर्व कॉर्पोरेट फाइनेंस हेड श्री राणा कपूर को भी इस योजना में शामिल किया।
भाग 3: Housing Development and Infrastructure Limited (HDIL) और Punjab & Maharashtra Co-operative Bank Limited (PMC)
महाराष्ट्र में झुग्गी बस्तियों यानि स्लम की समस्या काफी बड़ी है।
और असली समस्या इन झुग्गियों की नहीं है, असली समस्या ये है कि ये झुग्गी बस्तियां जिस जमीन पर बनी हुई हैं वो जमीन मुंबई की काफी प्राइम लोकेशन पे है जिस पर सरकार और पूंजीपतियों की नजर शुरू से रही है।
दोनों का ही मानना है कि ये झुग्गियां मुंबई की खूबसूरती पर धब्बा हैं इसलिए इनको हटा कर वहां आलीशान बंगले और मॉल बनने चाहिए। इसी उद्देश्य से 1995 में महाराष्ट्र सरकार ने नया कानून बनाया और "Slum Rehabilitation Authority" की स्थापना की।
मुंशी प्रेमचंद ने 'रंगभूमि' में लिखा है कि बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं मगर केवल संख्यात्मक रूप से। उनको हजार और लाख से संतुष्टि नहीं होती। उनको करोड़ बताओगे तो वे करोड़ के बाद वाली संख्या के बारे में पूछेंगे। और ये जिज्ञासा कभी ख़तम नहीं होती।
उनको अरब-खरब के बाद क्या आता है ये भी जानना है। अगर आपको नहीं पता तो किसी और से पूछेंगे। और तब तक पूछेंगे जब तक कि कोई उनको सच्ची झूठी खरब से बड़ी कोई नयी संख्या बता नहीं देता। उनको हर चीज को संख्या के पैमाने पर मापना होता है।
बाद में इस जानकारी के बारे में अपने दोस्तों के सामने डींगें भी हांकेंगे। जैसे कि कोई अगर बोलेगा कि उसके पापा के पास एक लाख रूपये हैं तो अगला तुरंत बोलेगा कि उसके पापा के पास तो एक करोड़ रूपये हैं। अगले के पापा के पास एक अरब निकलेंगे और उससे अगले के पास एक खरब।