आज शनिवार है और अरुणाचल के एक छोटे से ब्लॉक में पोस्टेड हमारे मित्र ADO साहब साढ़े नौ बजे अपनी बाइक पर असिस्टेंट को लेकर निकल गए हैं खेतों की Geo Tagging करने ताकि Farm Traceability ensure की जा सके और आप सरकार को गाली देते हुए देश की राजधानी बंद करना चाहते हैं।
आपको नींद से जागने की आवश्यकता है। ये जो पचास वर्षों से लगातार एक ही बात सुनाई जा रही है कि देश के एक दो राज्य ही देश का भोजन उत्पादन करते हैं उस धारणा में दरार पड़ चुकी है। संभलने की आवश्यकता आपको है।
बाक़ी राज्यों में किसान की किसानी बहुत मज़बूत हुई है, बस उन्हें स्पेस नहीं मिलता कि वे बता सकें कि क्या कर रहे हैं क्योंकि वे बेचारे दिल्ली से दूर रहते हैं।
पंडित जी ने भाखड़ा नांगल बाँध कहाँ से निकाल कर आपको दिया था वह बात इतिहास में छिप गई है। अपने इस दान के जस्टिफ़िकेशन में उन्हें एक प्रॉपगैंडा की आवश्यकता भी थी जिसकी नींव पूरी मेहनत के साथ डाली गई और उसे सालों साल मज़बूती प्रदान की गई। पुराने ऐश्वर्य का भाड़ा खा रहे हैं आप।
आपसे अधिक मेहनत करने वाले किसान हैं जो चक्का जाम नहीं कर सकते क्योंकि उनके राज्य में चक्का ही नहीं है। लेकिन अपना काम तो वे भी कर ही रहे हैं। उतनी ही मेहनत से जितनी मेहनत से आप कर रहे हैं।
हो सकता है मैं ग़लत होऊँ पर ७ वर्षों में १०-११ राज्यों के किसानों से थोड़ा इंटरैक्शन हुआ है मेरा। जहाँ के किसान MSP का मुँह नहीं ताकते वहीं के किसानों ने नए क्रॉप मिक्स ट्राई किए और सफल भी रहे। शायद MSP ने किसानों का पुरुषार्थ भी कम किया और उन्हें imaginative होने से रोका भी है।
जो लोग APMC में बिज़नेस कर रहे हैं, नए क़ानून के तहत उन्हें नए बाज़ार में ट्रेड करने पर रोक तो नहीं है। फिर क्या कारण है कि वे विरोध कर रहे हैं?
नए क़ानून के तहत कृषि उत्पादों के ट्रेड के लिए जो बेसिक शर्तें हैं, क्या उनसे ट्रेडर्स नाराज़ हैं?
एक बेसिक शर्त है PAN Card का रेजिस्ट्रेशन। इस शर्त का बहुत बड़ा असर है। रुरल इकॉनमी में तमाम लोग लंबी कमाई करके भी टैक्स नहीं देते क्योंकि किसानों के साथ उनका ट्रेड कैश में होता है।
इन क़ानूनों ने किसानों को सहूलियत दी है अपने माल को इंटर-स्टेट ट्रेड के लिए मुहैया कराने की।
क़ानून का ये इंटर-स्टेट ट्रेड वाला पहलू बड़ा मज़ेदार है और क्रांतिकारी भी। लोकल ट्रेडर को इस बात से परेशान होने का पूरा हक़ है कि किसान अब उसके पास आने के लिए बाध्य न होगा।😀
अभी हाल ही में हमने देखा कि अरुणाचल प्रदेश के एक ज़िले के FPO ने एक कम्पनी के साथ अग्रीमेंट करके इलायची इक्स्पॉर्ट करना शुरू किया। यह बदलाव है। आपके पास ऑप्शन है इसका हिस्सा न बनकर बाहर खड़े होकर इस बदलाव को देखते हुए पछताने का।
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
यह कैसा तर्क है कि; एक भी श्लोक रामायण में दिखा सकते हो जो साबित कर दे कि श्रीराम के अयोध्या लौटने पर पटाखे जलाए गए थे?
कोई यह साबित कर सकता है कि इस पृथ्वी पर पहले शुभ कार्य में नारियल या फूल का प्रयोग किया गया था? पहले पूजन में ही दीपक का प्रयोग किया गया था?
क्या हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता के धार्मिक, सांस्कृतिक अनुष्ठान या पूजा पद्धति के नियम पहले ही दिन तय हो गए होंगे? क्या किसी ने पहले ही दिन लिख कर नियम बना दिए थे कि बस इतना ही करना है और इससे बाहर कुछ नहीं करना है?
जिस संस्कृति का इतिहास सहभागिता का अनुपम उदाहरण रहा हो, उसके विकास में समय समय पर नियम जुड़े न हों, इस बात की गारंटी कोई दे सकता है? यदि पहले दिन किताब लिख कर रख दी गई होती तो क्या हमारे इतने देवता होते? हमारे यहाँ पूजा की इतनी पद्धतियाँ होतीं?
जाट आंदोलन,अर्बन नक्सल,दिल्ली दंगा,तुर्की प्लान,एमपी किसान ‘आंदोलन’, शाहीन बाग, जेएनयू..... हाथरस, ऐसे षड्यंत्र तानाशाही के विरुद्ध किए जाते हैं।
नरेंद्र मोदी को वर्षों तक तानाशाह कहने का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि विपक्ष(कांग्रेस) अपने प्रॉपगैंडा में ख़ुद ही विश्वास करने लगा है।
लोकतंत्र में विरोध के तरीक़े षड्यंत्र और मीडिया से नहीं बल्कि परोक्ष रूप से रैली, डिबेट, शासन का विकल्प और नेतृत्व देने में है। समस्या यह है कि इतने षड्यंत्र करने के बाद की बदनामी और लोकतांत्रिक तरीक़े अपनाने पर असफल होने का भय विपक्ष को केवल षड्यंत्र करने तक रोक के रखता है।
विपक्ष पोषित पत्रकार और संपादक हवाट्सऐप यूनिवर्सिटी का चाहे जितना मज़ाक़ बना लें और सच को हँसी में चाहे जितना उड़ा लें, सच यही है कि सोशल मीडिया बहुत मज़बूत है और सूचना प्रसार से देश का राजनीतिक भविष्य तय करने की क्षमता रखता है।
मैं सीधी सोच का कंज़्यू-मर,
तुम कोई ऐड-जेहाद प्रिये,
मैं रामायण की चौपाई,
तुम ट्विस्टेड इक संवाद प्रिये,
मेरा विरोध बस शब्दों तक,
पर दोष सदा मेरे माथे,
पर भूल न जाना, मुझसे ही,
बाज़ार सदा आबाद प्रिये,
मैं शरद पवार के सच जैसा,
तुम भारत भर की भ्रांति प्रिये,
मैं हूँ यूएसए की उथल-पथल,
तुम हो ईरान की शांति प्रिये,
मैं नीतिवचन शिवसेना का,
तुम तड़पन जैसे अरनब की,
मैं हूँ राहुल की लीडरशिप,
तुम कम्यूनिस्टों की क्रांति प्रिये!
मैं सहज पुरातन संस्कार,
तुम एक किताबी तर्क प्रिये,
मैं सर्वस्व समेटे द्रोणगिरि,
तुम हो बूटी का अर्क प्रिये,
मैं दर्शन बल वाला मानस,
तुम व्यक्ति-बंध वाला शरीर,
वह, जिसे मापना दुर्लभ हो,
है इतना लंबा फर्क प्रिये!
रुरल इकॉनमी में ऐग्रिकल्चरल प्रडूस के लिए कॉंट्रैक्ट फ़ॉर्मिंग में फ़ॉर्मिंग में फ़ॉर्मिंग ही महत्वपूर्ण है, कॉंट्रैक्ट नहीं। वही मॉडल काम करेगा जिसमें कम्पनी २००-३०० किसानों के परिवार अडॉप्ट कर ले और उनके और उनके परिवार के लिए सबकुछ करे।
तमाम केस देखें हैं मैंने जिसमें किसान जी ने कॉंट्रैक्ट फ़ॉर्मिंग के तहत आलू की खेती की और तैयार होने पर एक रात आलू निकाल लिया और सुबह थाने में रपट लिखा दी।
राग दरबारी के थानेदार जी वैद्यजी की ठंडाई पीकर किसान जी के प्रोटेक्शन में उतर जाते हैं।
और जहाँ कॉंट्रैक्ट फ़ॉर्मिंग नहीं है वहाँ एक ही फसल के लिए किसान जी तीन लोगों से एडवांस लेकर चौथे को माल बेंच देते हैं।
मझोले और छोटे किसानों को मज़बूत बनाना और कोर्ट कचहरी को दुरुस्त करना ही लॉंग टर्म सलूशन है।
अनिल मुशर्रत का Indian popular culture यानि बॉलीवुड में वही स्थान है जो ग़ुलाम नबी फ़ाई का Indian Intellectual ‘sector’ में था।
हमने ग़ुलाम नबी फ़ाई और भारतीय बुद्धिजीवियों के मकड़जाल को टूटते हुए देखा। अब बारी है मुशर्रत और बॉलीवुड के बनाए मकड़जाल के टूटने की।
फ़ाई, कांग्रेस और ख़ुद तथाकथित बुद्धिजीवियों ने बुद्धिजीवी उद्योग के साथ-साथ हमारी परंपरागत मीडिया का सत्यानाश कर डाला। आज इनमें से कोई ऐसा नहीं जिसकी विश्वसनीयता रत्ती भर बची हो।
फाई ISI का ऑपरेटिव था। पॉप्युलर कल्चर के वाहकों पर अपनी पकड़ बनाने वाला ये मुशर्रत कौन है ये तो नहीं पता लेकिन मुझे लगता है कि निकट भविष्य में भारतीय राजनीतिक और सामाजिक पॉप्युलर बहसें अधिक भारतीय होने जा रही हैं। मुझे लगता है एक और मकड़जाल छिन्न-भिन्न होने जा रहा है।