अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है.
क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की. कि चरणामृतका क्या महत्व है.
शास्त्रों में कहा गया है
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियोंका शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।
जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता" जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता,
जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.
जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने
तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने
कमंडलु में से जल लेकर भगवान
के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया.
वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई ये शक्ति है भगवान के चरणों की. जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर
चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी .
जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है -
"चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी "
धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है।
कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।
इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है
जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए।
ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है। कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है। इसीलिए
चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं। चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं?
दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर
सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।
कहते हैं इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है। इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।""
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थ्रेड...
भयानक गृहयुद्ध की आहट !!
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जंगल में जो हाल हिरन का होता है लकड़बग्घे भेड़िए पागल कुत्ते सभी उसके मांस के लोभ में उसके पीछे पड़े रहते हैं वह सबसे सरल शिकार होता है.
वही हाल भारत में हिंदुओं का है जिहादी हो या फिर मिशनरियों या फिर मनोरोगी बन चुके अंबेडकरवादी पेरियारवादी हो यह VCK के नाम का तमिलनाडु की एक क्षेत्रीय पार्टी है जो पेरियार को फॉलो करती है उसका बयान देखिए इसने संपूर्ण हिंदू महिलाओं को खुलेआम वैश्या बोल दियाइसके ऊपर कोई
कार्यवाही नहीं हुई.
इसके समर्थक का पोस्ट किया फोटो देखिए एक हिंदू साधु की शिखा जिस तरह जानवरों को रस्सी से बांधा जाता है उसे डंडे से बांधा गया है और उसके पैर को जंजीर में जकड़ गया है.
अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है.
क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की. कि चरणामृतका क्या महत्व है.
शास्त्रों में कहा गया है
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियोंका शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।
जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता" जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता,
जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.
जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने
तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने
कमंडलु में से जल लेकर
बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया।
इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।
इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त मुस्लिम आतंक से जूझने को कहा।
इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर,
पहचानिए इस हस्ती को, वृंदावन में करीब 54 एकड़ परिसर में साध्वी ऋतंभरा जी का 'वात्सल्य ग्राम' आश्रम है।
आश्रम के विशाल दरवाजे के बाईं ओर एक पालना है, जहां कोई भी व्यक्ति, किसी भी समय अनचहा या अनाथ शिशु को रखकर जा सकता है।
पालने में बच्चा छोड़कर जाने वाले व्यक्ति को आश्रम से संबंधित सदस्य किसी भी प्रकार का प्रश्न नहीं पूछता। पालने में कोई बच्चा रखते ही पालने पर लगा सेंसर आश्रम के व्यवस्थापन को इसकी सूचना देता है और आश्रम का कोई अधिकारी आकर उस बच्चे को आश्रम ले आता है।
आश्रम में प्रवेश होते ही वह बच्चा वात्सल्य ग्राम परिवार का सदस्य हो जाता है। अब वह वह अनाथ नहीं कहलाता, उसे आश्रम में ही माँ, मौसी, दादा-दादी; सब रिश्तेदार मिल जाते हैं !
इसके बाद सीबीएसई की पढ़ाई ....प्राकृतिक चिकत्सा .... योग..
आज हम जिस दुनिया में रहते हैं ये मोटे तौर पर फ्रांस की ही बनाई हुई दुनिया है। लिबरलिज्म (असली वाला), मानवाधिकार, सेक्युलरिज्म (असली वाला), लेफ्ट-राइट, लोकतंत्र, समेत जिन नागरिक अधिकारों और आदर्शों को हम जानते हैं ये सब फ्रांस की महान क्रांति से ही दुनिया को मिले हैं।
फ्रांस की महान क्रांति जिसके चार्टर को विश्व के पहले लोकतांत्रिक देश अमेरिका ने अपने संविधान का आधार बनाया।
लेकिन पिछले कुछ दिनों इस्लामिक चरमपंथ का सामना कर रहा फ्रांस आज खुलकर इसके खिलाफ खड़ा है। अपनी महान विरासत, सेक्युलरिज्म या लिबरलिज्म के बोझ में फ्रांस दबा नहीं जा रहा
। जिस कार्टून की वजह से चार्ली हब्दों में आतंकी हमला हुआ या सैम्युल पैटी की जिस कारण हत्या हुई फ्रांस ने वो कार्टून अपने सरकारी बिल्डिंगों पर लगा दिये हैं।
वहां नाथूराम गोडसे, संघ या सावरकर को गाली देने के नाम पर चरमपंथ पाला नहीं जा रहा।