पेशवा साम्राज्य के वक्त दलितों को थूकने के लिए अपने गले में हांडी लटकाना पड़ता था, कमर पर झाड़ू बांधना पड़ता था ताकि जब वे चले तो झाड़ू उनके पैरों के निशान मिटाता चले. पेशवा और उनके पूर्वज दलितों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते थे (1/1)
दलित सवर्णों के तालाब से पानी निकालने की सोच भी नहीं सकते थे, इसलिए महार जाति के लोग पेशवाओं के ब्राह्मणवादी व्यवस्था से लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना में शामिल हुए.
1 जनवरी 1818 को महार जाति (दलित) के 500 जाबांज लड़ाकों ने पेशवाओं की विशाल सेना को भीमा कोरेगांव में धूल चटा दिया 1/2
सदियों से अपमान झेल रहे दलितों ने पेशवाओं से बदला लिया, उन्होंने ब्राह्मणवादी व्यवस्था में कील ठोंक दिया. यह लड़ाई थी गरिमा और सम्मान वापस पाने की, यह लड़ाई थी हक छीनने की. सदियों की दासता की बेड़ियों को महारों ने तलवार से काट दिया था 1/3
इस लड़ाई में महार जाति के जाबांज सैनिक पेशवाओं को इसलिए हरा पाए क्योंकि उनमें सदियों का गुस्सा भरा हुआ था, उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं था लेकिन पाने के लिए पूरा आसमान था.महार जाति का एक-एक सैनिक पेशवाओं के सौ-सौ सैनिकों पर भारी पड़ा 1/4
दलित सैनिकों की वीरता के कायल अंग्रेजी हुकूमत भी हो गई. अंग्रेजों ने महार लड़ाकों की वीरता को सम्मान देने के लिए भीमा कोरेगांव में युद्ध स्मारक बनवाया, वहां स्थित विक्ट्री पिलर पर अदम्य साहसी महार सैनिकों के नाम लिखे गए. 1/5
विश्व रत्न बाबा साहेब आंबेडकर 1 जनवरी 1927 को भीमा कोरेगांव पहुंचे और महार जाति के जाबांज सैनिकों को याद किया. डॉ. आंबेडकर हमेशा कहते थे कि हम सियार नहीं, सिंह है. यहां जाकर बाबा साहेब भीमा कोरेगांव के 'सिंहों' को याद करते, अपने अनुयायियों को उनकी गौरव-गाथा सुनाते. 1/6
मैं भी भीमा कोरेगांव को पढ़ रही हूं, महान महार लड़ाकों को याद कर रही हूं, उनकी वीरता को नमन कर रही हूं. बाबा साहेब ने कहा था, 'जो लोग अपना इतिहास नहीं जानते, वो लोग इतिहास बना नहीं सकते.'
केरल में यह दलित लड़का अपने माता-पिता के लिए कब्र खोद रहा है, वह पुलिसवालों से कह रहा है, 'तुम लोगों ने मेरे मां-बाप की जान ले ली, अब बोलते हो कि मैं इनका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकता.'
तिरुवनंतपुरम के एक गांव में दलित लड़के के पिता खाना खा रहे होते हैं, तभी पुलिस आती है और 1/1
कहती है कि घर खाली करो. राहुल राज के पिता कहते हैं कि खाना खाकर हमलोग चले जाएंगे लेकिन पुलिस नहीं मानती है. इस अपमान और पीड़ा से व्यथित होकर राहुल के पिता खुद पर पेट्रोल डाल आग लगाने की धमकी देते हैं. जिसके बाद पुलिस के साथ लाइटर की छीना-झपटी में लाइटर जमीन पर गिर पड़ती है और 1/2
राहुल के माता पिता की जलकर मौत हो जाती है. आप जानते हैं कि कितनी जमीन के लिए राहुल राज के माता-पिता को अपनी जान गंवानी पड़ी? 1 एकड़ के 33वें हिस्से की खातिर राहुल की सिर से माता-पिता का हाथ हट गया. यह दलित लड़का बेसहारा हो चुका है, राहुल गुस्से और बेइंतहां गम में है लेकिन 1/3